भारतीय हिन्दू धर्म में जगन्नाथ यात्रा का एक अत्यंत ही महत्वपूर्ण स्थान है, यह यात्रा पूरे विश्व भर में देखी जाती है तथा दुनियाभर से लोग इस यात्रा में शामिल होने के लिए भारत का रुख करते हैं। श्री जगन्नाथ भगवान् की यात्रा उड़ीसा के पुरी में स्थित अति प्राचीन श्री भगवान् जगन्नाथ मंदिर के प्रांगण से शुरू होकर श्री गुण्डिचा मंदिर तक जाती है। भगवान् जगन्नाथ यात्रा के तर्ज पर ही सम्पूर्ण भारत में अलग अलग स्थानों पर इस तरह के यात्राओं का आयोजन किया जाता है।
मेरठ शहर में भी श्री जगन्नाथ भगवान् के रथयात्रा का आयोजन पिछले 100 वर्षों से किया जा रहा है। मेरठ शहर में यह यात्रा सदर के विल्वेश्वर नाथ मंदिर के प्रांगण से प्रारम्भ होती है जो मेरठ छावनी होते हुए पूरे शहर में चक्कर लगाती है। मेरठ में यह रथयात्रा बड़े धूमधाम से मनायी जाती है, विगत वर्ष एक चांदी के 600 किलो के रथ पर इस यात्रा का आयोजन किया गया था। जैसा हम सभी जानते हैं, मुख्य रथयात्रा उड़ीसा के पुरी में स्थित जगन्नाथ मंदिर से प्रारम्भ होती है। उड़ीसा की यह रथयात्रा दुनिया की सबसे प्राचीनतम रथयात्रा के रूप में जानी जाती है। इस रथयात्रा का विवरण भारतीय धर्मग्रंथों में देखने को मिलता है। इस रथयात्रा का विवरण पद्म पुराण, ब्रम्ह पुराण और स्कन्द पुराण में देखने को मिलता है इसके साथ ही इस रथयात्रा का वर्णन कपिल संहिता में भी देखने को मिलता है। इसद रथयात्रा में तीन प्रमुख रथ होते हैं जिस पर भगवान् जगन्नाथ, भगवान् बलभद्र और देवी सुभद्रा आसीन होते हैं। इन रथों पर भगवान् की प्रतिमा को स्थापित करने से पहले कई लम्बी प्रक्रियाएं अपनाई जाती हैं जो इन रथों को जगन्नाथ मंदिर के प्रांगण में खड़ा कर के सम्पूर्ण की जाती हैं।
मूर्ती को रथों में स्थापित करने के प्रक्रिया को पहंडी के नाम से जाना जाता है। इस यात्रा के लिए तैयार किये गए रथ विशेष होते हैं तथा इनको कोई भी आम व्यक्ति तैयार नहीं कर सकता है। इन रथों को सिर्फ विश्वकर्मा सेवक ही तैयार करते हैं। ये रथ दसपल्ला जंगल से लाये गए नीम के पेड़ और नारियल के पेड़ की लकड़ियों से ही बनाए जाते हैं। पेड़ को चुनने से लेकर के उसको काटने और काटने के उपरान्त पुरी तक लाने में कई धार्मिक अनुष्ठान किये जाते हैं। यहाँ पर बनाए गए तमाम रथ विशेष होते हैं तथा उनका एक अलग महत्व होता है। इस रथ यात्रा में तीन रथों का निर्माण किया जाता है जिसमे इन रथों के आकार और प्रकार शास्त्रों में वर्णित विधान के ही अनुरूप होते हैं।
इस रथ यात्रा में बनाये गए रथों का विवरण निम्नवत है:-
देवी सुभद्रा के रथ को दर्पदलन/ पद्मध्वज या देवदलन के नाम से जाना जाता है। यह रथ उंचाई में कुल 43 फुट का होता है तथा इसमें कुल 12 पहिये होते हैं। प्रत्येक पहियों की उंचाई 7 फुट होती है, इस रथ पर काला और सफ़ेद कपडा लगाया गया रहता है। इस रथ में जो काला कपडा लगाया जाता है वह शक्ति और मात्रु देवी से सम्बंधित होती है। इस रथ को बनाने में कुल 593 लकड़ियां लगती हैं। इस रथ में 9 अन्य देवियाँ भी स्थापित की जाती हैं जैसे की चंडी, चामुंडा, वाराही आदि।
भगवान् बालभद्र के रथ को तालाध्वज के नाम से जाना जाता है। इस रथ के ध्वज पर नारियल के पेड़ का अंकन किया जाता है। इस रथ के 14 पहिये होते हैं जिनकी उंचाई 7 फुट की होती है तथा ये लाल और नीले कपडे से घिरे होते हैं। इस रथ की उंचाई 40 से 44 फुट होती है। इस रथ में कुल 763 लकड़ियों का प्रयोग किया जाता है तथा इसमें 9 अन्य देवों को भी स्थापित किया जाता है जैसे गणेश, कार्तिकेय, मुक्तेश्वर आदि।
भगवान् जगन्नाथ का रथ नंदीघोष/ गरुणध्वज/ कपिध्वज के नाम से जाना जाता है। यह रथ सभी रथों में सबसे विशाल होता है तथा इसकी उंचाई 45 फुट की होती है तथा यह 45 फुट चौड़ा भी होता है। इस रथ में कुल 16 पहिये होते हैं जिनकी उंचाई 7 फुट की होती है। इस रथ पर लाल और पीला वस्त्र लगाया जाता है। जैसा जगन्नाथ भगवान् को कृष्ण भगवान् का रूप माना जाता है और कृष्ण को पीताम्बर के नाम से भी जाना जाता है अतः पीला वस्त्र उनसे सम्बंधित है। इस रथ को बनाने में 832 लकड़ियों का प्रयोग किया जाता है। यह रथ गरुण देव द्वारा संरक्षित होता है तथा इस रथ को चलाने वाले का नाम दारुक होता है। इस रथ में अन्य 9 देवों को स्थापित किया जाता है जिसमे वराह, गोवर्धन, राम और नारायण आदि हैं।
चित्र सन्दर्भ:
1. मुख्य चित्र में सन 1907 में अनजान चित्रकार द्वारा लिया गया जगन्नाथ रथ यात्रा का चित्र। (Wikimedia)
2. दूसरे चित्र में मेरठ में जगन्नाथ रथ यात्रा के दौरान श्रद्धालु। (Youtube)
3. तीसरा चित्र पुरी मंदिर के प्रांगड़ में चलने वाला रथ निर्माण का कार्य दृश्यांवित है। (Flickr)
सन्दर्भ :
1. https://bit.ly/3dolobM
2. http://www.jagannathdham.in/rath-yatra-festival/details-of-rath-yatra-chariots/
3. https://en.wikipedia.org/wiki/Ratha_Yatra_(Puri)
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