Post Viewership from Post Date to 25-Jul-2022 (30th Day)
City Subscribers (FB+App) Website (Direct+Google) Email Instagram Total
1162 9 1171

***Scroll down to the bottom of the page for above post viewership metric definitions

अन्य शिकारी जानवरों पर भारी पड़ रही हैं, बाघ केंद्रित संरक्षण नीतियां

मेरठ

 25-06-2022 09:49 AM
निवास स्थान

हम आमतौर पर कार्बन उत्सर्जन और पर्यावरण संरक्षण के संदर्भ में, भारत से जुड़ी नकारात्मक बातें ही सुनते हैं! लेकिन आपको आज यह जानकर बेहद प्रसन्नता होगी की, सन 2006 के दौरान के 1,411 की तुलना में, वर्तमान भारत में बाघों की संख्या बढ़कर 2,967 हो गई है! हालांकि यह सभी पशु प्रेमियों के लिए एक बेहद अच्छी खबर है, लेकिन बाघ संरक्षण के प्रयास, अन्य जंगली शिकारियों और ग्रामीण जनजीवन के लिए नई चुनौती बनकर उभरे हैं! चलिए जानते हैं कैसे?
आज जहां कई देश संरक्षित क्षेत्रों में भी बाघों को बचाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं, वहीं भारत ने अपना लक्ष्य पहले ही हासिल कर लिया है। दरअसल भारत सरकार ने अप्रैल 1973 में बाघों के संरक्षण के लिए एक व्यापक पहल, प्रोजेक्ट टाइगर (Project Tiger) शुरू की थी। बाद में, प्रोजेक्ट टाइगर के तहत टाइगर रिजर्व के प्रबंधन के लिए 2005 में एक वैधानिक निकाय, राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (NTCA) की स्थापना की गई। इस परियोजना के तहत अब तक 53 बाघ अभयारण्य स्थापित किए जा चुके हैं। और इस प्रकार, आज बाघ, एक छत्र प्रजाति बन गए हैं। पर्याप्त शिकार हासिल करने के लिए, एक नर बाघ को 60-150 वर्ग किमी और मादा को 20-60 वर्ग किमी भूमि क्षेत्र की आवश्यकता होती है। बाघ अकेले रहना पसंद करते हैं, और अन्य बाघों के साथ भी जमीन को आसानी से साझा नहीं करते हैं। भारतीय वन्यजीव संस्थान की एक हालिया रिपोर्ट में कहा गया है कि, सुंदरबन में बाघों की "उच्च जनसंख्या घनत्व" के परिणामस्वरूप युवा बाघों को भटकना पड़ रहा है।
इसके अलावा, भारत में बाघों के सह-शिकारियों की स्थिति को दर्शाने वाली एक रिपोर्ट ने, संकेत दिया है कि, बाघ-केंद्रित दृष्टिकोण उनके निवास स्थान को सीमित कर रहा है, तथा अन्य मांसाहारी जानवरों जैसे सुस्त भालू, लकड़बग्घा, भेड़िये, सियार और मुख्य रूप से तेंदुए के संरक्षण के प्रयासों को बुरी तरह से प्रभावित कर रहा है। तेंदुए (panthera pardus) को वर्तमान में इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर (IUCN) की खतरे वाली प्रजातियों की, लाल सूची में "कमजोर" के रूप में सूचीबद्ध किया गया है, और वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 के तहत संरक्षित किया गया है।
कई कारणों से सिकुड़ते आवास से लेकर सड़क दुर्घटना तथा अवैध शिकार का निशाना बनने से 83 प्रतिशत तेंदुओं के विलुप्त होने का जोखिम बढ़ गया है। यदि मौजूदा रोडकिल पैटर्न (roadkill pattern) जारी रहा, तो आनेवाले 33 वर्षों में तेंदुए पूरी तरह से विलुप्त हो जाएंगे। तेंदुआ बाघों से बहुत डरता है और बाघों से डरा हुआ तेंदुआ आसान भोजन की तलाश में मानव बस्तियों में प्रवेश करता है। यह भी एक बड़ा कारण है की, बीते कुछ वर्षों में तेंदुए और इंसानों की भिड़ंत की घटनाएं भी बड़ी हैं!
इस साल अप्रैल में उत्तराखंड के टिहरी में शिकारियों ने एक तेंदुए की गोली मारकर हत्या कर दी थी, क्योंकि उसने आठ साल के बच्चे की जान ले ली थी, वहीं मई 2022 में पौड़ी गढ़वाल के एक गांव में एक तेंदुए को जिंदा जला दिया गया था, क्योंकि वहां ग्रामीणों को शक था कि, यह वही तेंदुआ है जिसने एक 47 वर्षीय महिला की हत्या की थी। मैदानी इलाकों की तुलना में पहाड़ियों में तेंदुओं से बदला लेने के मामले अधिक देखे गए हैं, क्योंकि शिकार की कमी के कारण तेंदुए पूर्व की ओर अधिक आकर्षित होते हैं।
जब एक बार कोई बाघ आदमखोर (इंसानों को खाने वाला) बन जाता है, तो वह इंसानों का सारा डर खो देता है, और किसी भी समय लोगों पर हमला कर सकता है। इसके विपरीत तेंदुआ आदमखोर हो भी जाए तो, इंसानों से डरना कभी नहीं छोड़ता! नेपाल और भारत ने पिछले एक दशक में अपने यहां, बाघों की आबादी को बढ़ाने में काफी प्रगति की है! नेपाल में, तेंदुए और सुस्त भालू जैसी प्रजातियों के संरक्षण को नज़रअंदाज़ किया जा रहा है, और उनके निवास स्थानों को भी बाघों के लिए अनुकूलित किया गया है, जिससे मानव और वन्यजीवों के बीच संघर्ष काफी बढ़ गया है।
लेकिन कुछ संरक्षणवादीयों और नेपाल तथा भारत के बाघों के गढ़ों में अनुसंधान के बढ़ते निकायों के अनुसार “बाघों के लिए जो अच्छा होता है, वह हमेशा सभी जानवरों के लिए अच्छा नहीं होता है”, विशेष रूप उन जानवरों के लिए जो बाघों के निवास स्थान को साझा करते हैं।” हम केवल बाघों पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं, जबकि इस बीच अन्य शिकारी प्रजातियों पर आवश्यक ध्यान नहीं दिया जा रहा है! बाघों के आवास का विस्तार, तेंदुओं के लिए बड़ा संकट खड़ा कर सकता है, जिससे उनके स्थानीय लोगों के साथ संघर्ष होने की संभावना अधिक हो जाती है। विशेषज्ञों के अनुसार, मानव-पशु संघर्ष बढ़ रहा है और आगे भी बढ़ेगा, क्योंकि वन्यजीवों के आवास मनुष्यों के दबाव में सिकुड़ रहे हैं। एक रिपोर्ट के अनुसार, लगभग 29 प्रतिशत बाघ अपने कोर ज़ोन (core zone) के बाहर रह रहे हैं, और लगभग 80 प्रतिशत हाथी अतिक्रमण और विभिन्न विकास गतिविधियों के कारण प्रभावित हुए हैं।
भारत के राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण और भारतीय वन्यजीव संस्थान की 2018 की एक रिपोर्ट यह भी इंगित करती है कि, सुस्त भालू, लकड़बग्घा, भेड़िये और सियार जैसी प्रजातियों के आवास सिकुड़ रहे हैं, और बाघ-केंद्रित नीतियां उन्हें नहीं बचा सकती हैं।

संदर्भ
https://bit.ly/39Md6yU
https://bit.ly/3QEi3dw
https://bit.ly/39MV6V1

चित्र संदर्भ
1. बाघ और तेंदुए को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
2. राज्यवार बंगाल टाइगर जनसंख्या भारत, 2019 को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. एक बंदी तेंदुए को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4. स्लोथ भालू को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
5. जंगल में बाघों को दर्शाता एक चित्रण (flickr)

***Definitions of the post viewership metrics on top of the page:
A. City Subscribers (FB + App) -This is the Total city-based unique subscribers from the Prarang Hindi FB page and the Prarang App who reached this specific post. Do note that any Prarang subscribers who visited this post from outside (Pin-Code range) the city OR did not login to their Facebook account during this time, are NOT included in this total.
B. Website (Google + Direct) -This is the Total viewership of readers who reached this post directly through their browsers and via Google search.
C. Total Viewership —This is the Sum of all Subscribers(FB+App), Website(Google+Direct), Email and Instagram who reached this Prarang post/page.
D. The Reach (Viewership) on the post is updated either on the 6th day from the day of posting or on the completion ( Day 31 or 32) of One Month from the day of posting. The numbers displayed are indicative of the cumulative count of each metric at the end of 5 DAYS or a FULL MONTH, from the day of Posting to respective hyper-local Prarang subscribers, in the city.

RECENT POST

  • आधुनिक हिंदी और उर्दू की आधार भाषा है खड़ी बोली
    ध्वनि 2- भाषायें

     28-12-2024 09:28 AM


  • नीली अर्थव्यवस्था क्या है और कैसे ये, भारत की प्रगति में योगदान दे रही है ?
    समुद्री संसाधन

     27-12-2024 09:29 AM


  • काइज़ेन को अपनाकर सफलता के शिखर पर पहुंची हैं, दुनिया की ये कुछ सबसे बड़ी कंपनियां
    विचार 2 दर्शनशास्त्र, गणित व दवा

     26-12-2024 09:33 AM


  • क्रिसमस पर लगाएं, यीशु मसीह के जीवन विवरणों व यूरोप में ईसाई धर्म की लोकप्रियता का पता
    विचार I - धर्म (मिथक / अनुष्ठान)

     25-12-2024 09:31 AM


  • अपने परिसर में गौरवपूर्ण इतिहास को संजोए हुए हैं, मेरठ के धार्मिक स्थल
    विचार I - धर्म (मिथक / अनुष्ठान)

     24-12-2024 09:26 AM


  • आइए जानें, क्या है ज़ीरो टिलेज खेती और क्यों है यह, पारंपरिक खेती से बेहतर
    भूमि प्रकार (खेतिहर व बंजर)

     23-12-2024 09:30 AM


  • आइए देखें, गोल्फ़ से जुड़े कुछ मज़ेदार और हास्यपूर्ण चलचित्र
    य़ातायात और व्यायाम व व्यायामशाला

     22-12-2024 09:25 AM


  • मेरठ के निकट शिवालिक वन क्षेत्र में खोजा गया, 50 लाख वर्ष पुराना हाथी का जीवाश्म
    शुरुआतः 4 अरब ईसापूर्व से 0.2 करोड ईसापूर्व तक

     21-12-2024 09:33 AM


  • चलिए डालते हैं, फूलों के माध्यम से, मेरठ की संस्कृति और परंपराओं पर एक झलक
    गंध- ख़ुशबू व इत्र

     20-12-2024 09:22 AM


  • आइए जानते हैं, भारत में कितने लोगों के पास, बंदूक रखने के लिए लाइसेंस हैं
    हथियार व खिलौने

     19-12-2024 09:24 AM






  • © - 2017 All content on this website, such as text, graphics, logos, button icons, software, images and its selection, arrangement, presentation & overall design, is the property of Indoeuropeans India Pvt. Ltd. and protected by international copyright laws.

    login_user_id