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हम आमतौर पर कार्बन उत्सर्जन और पर्यावरण संरक्षण के संदर्भ में, भारत से जुड़ी नकारात्मक बातें ही
सुनते हैं! लेकिन आपको आज यह जानकर बेहद प्रसन्नता होगी की, सन 2006 के दौरान के 1,411 की
तुलना में, वर्तमान भारत में बाघों की संख्या बढ़कर 2,967 हो गई है! हालांकि यह सभी पशु प्रेमियों के लिए
एक बेहद अच्छी खबर है, लेकिन बाघ संरक्षण के प्रयास, अन्य जंगली शिकारियों और ग्रामीण जनजीवन
के लिए नई चुनौती बनकर उभरे हैं! चलिए जानते हैं कैसे?
आज जहां कई देश संरक्षित क्षेत्रों में भी बाघों को बचाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं, वहीं भारत ने अपना लक्ष्य
पहले ही हासिल कर लिया है। दरअसल भारत सरकार ने अप्रैल 1973 में बाघों के संरक्षण के लिए एक
व्यापक पहल, प्रोजेक्ट टाइगर (Project Tiger) शुरू की थी। बाद में, प्रोजेक्ट टाइगर के तहत टाइगर
रिजर्व के प्रबंधन के लिए 2005 में एक वैधानिक निकाय, राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (NTCA) की
स्थापना की गई। इस परियोजना के तहत अब तक 53 बाघ अभयारण्य स्थापित किए जा चुके हैं। और इस
प्रकार, आज बाघ, एक छत्र प्रजाति बन गए हैं।
पर्याप्त शिकार हासिल करने के लिए, एक नर बाघ को 60-150 वर्ग किमी और मादा को 20-60 वर्ग किमी
भूमि क्षेत्र की आवश्यकता होती है। बाघ अकेले रहना पसंद करते हैं, और अन्य बाघों के साथ भी जमीन को
आसानी से साझा नहीं करते हैं। भारतीय वन्यजीव संस्थान की एक हालिया रिपोर्ट में कहा गया है कि,
सुंदरबन में बाघों की "उच्च जनसंख्या घनत्व" के परिणामस्वरूप युवा बाघों को भटकना पड़ रहा है।
इसके अलावा, भारत में बाघों के सह-शिकारियों की स्थिति को दर्शाने वाली एक रिपोर्ट ने, संकेत दिया है कि,
बाघ-केंद्रित दृष्टिकोण उनके निवास स्थान को सीमित कर रहा है, तथा अन्य मांसाहारी जानवरों जैसे सुस्त
भालू, लकड़बग्घा, भेड़िये, सियार और मुख्य रूप से तेंदुए के संरक्षण के प्रयासों को बुरी तरह से प्रभावित कर
रहा है।
तेंदुए (panthera pardus) को वर्तमान में इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर (IUCN) की
खतरे वाली प्रजातियों की, लाल सूची में "कमजोर" के रूप में सूचीबद्ध किया गया है, और वन्यजीव
संरक्षण अधिनियम, 1972 के तहत संरक्षित किया गया है।
कई कारणों से सिकुड़ते आवास से लेकर सड़क दुर्घटना तथा अवैध शिकार का निशाना बनने से 83 प्रतिशत
तेंदुओं के विलुप्त होने का जोखिम बढ़ गया है। यदि मौजूदा रोडकिल पैटर्न (roadkill pattern) जारी रहा,
तो आनेवाले 33 वर्षों में तेंदुए पूरी तरह से विलुप्त हो जाएंगे।
तेंदुआ बाघों से बहुत डरता है और बाघों से डरा हुआ तेंदुआ आसान भोजन की तलाश में मानव बस्तियों में
प्रवेश करता है। यह भी एक बड़ा कारण है की, बीते कुछ वर्षों में तेंदुए और इंसानों की भिड़ंत की घटनाएं भी
बड़ी हैं!
इस साल अप्रैल में उत्तराखंड के टिहरी में शिकारियों ने एक तेंदुए की गोली मारकर हत्या कर दी थी, क्योंकि
उसने आठ साल के बच्चे की जान ले ली थी, वहीं मई 2022 में पौड़ी गढ़वाल के एक गांव में एक तेंदुए को
जिंदा जला दिया गया था, क्योंकि वहां ग्रामीणों को शक था कि, यह वही तेंदुआ है जिसने एक 47 वर्षीय
महिला की हत्या की थी। मैदानी इलाकों की तुलना में पहाड़ियों में तेंदुओं से बदला लेने के मामले अधिक
देखे गए हैं, क्योंकि शिकार की कमी के कारण तेंदुए पूर्व की ओर अधिक आकर्षित होते हैं।
जब एक बार कोई बाघ आदमखोर (इंसानों को खाने वाला) बन जाता है, तो वह इंसानों का सारा डर खो देता
है, और किसी भी समय लोगों पर हमला कर सकता है। इसके विपरीत तेंदुआ आदमखोर हो भी जाए तो,
इंसानों से डरना कभी नहीं छोड़ता!
नेपाल और भारत ने पिछले एक दशक में अपने यहां, बाघों की आबादी को बढ़ाने में काफी प्रगति की है!
नेपाल में, तेंदुए और सुस्त भालू जैसी प्रजातियों के संरक्षण को नज़रअंदाज़ किया जा रहा है, और उनके
निवास स्थानों को भी बाघों के लिए अनुकूलित किया गया है, जिससे मानव और वन्यजीवों के बीच संघर्ष
काफी बढ़ गया है।
लेकिन कुछ संरक्षणवादीयों और नेपाल तथा भारत के बाघों के गढ़ों में अनुसंधान के बढ़ते निकायों के
अनुसार “बाघों के लिए जो अच्छा होता है, वह हमेशा सभी जानवरों के लिए अच्छा नहीं होता है”, विशेष रूप
उन जानवरों के लिए जो बाघों के निवास स्थान को साझा करते हैं।” हम केवल बाघों पर ध्यान केंद्रित कर
रहे हैं, जबकि इस बीच अन्य शिकारी प्रजातियों पर आवश्यक ध्यान नहीं दिया जा रहा है! बाघों के आवास
का विस्तार, तेंदुओं के लिए बड़ा संकट खड़ा कर सकता है, जिससे उनके स्थानीय लोगों के साथ संघर्ष होने
की संभावना अधिक हो जाती है। विशेषज्ञों के अनुसार, मानव-पशु संघर्ष बढ़ रहा है और आगे भी बढ़ेगा,
क्योंकि वन्यजीवों के आवास मनुष्यों के दबाव में सिकुड़ रहे हैं। एक रिपोर्ट के अनुसार, लगभग 29 प्रतिशत
बाघ अपने कोर ज़ोन (core zone) के बाहर रह रहे हैं, और लगभग 80 प्रतिशत हाथी अतिक्रमण और
विभिन्न विकास गतिविधियों के कारण प्रभावित हुए हैं।
भारत के राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण और भारतीय वन्यजीव संस्थान की 2018 की एक रिपोर्ट यह भी
इंगित करती है कि, सुस्त भालू, लकड़बग्घा, भेड़िये और सियार जैसी प्रजातियों के आवास सिकुड़ रहे हैं,
और बाघ-केंद्रित नीतियां उन्हें नहीं बचा सकती हैं।
संदर्भ
https://bit.ly/39Md6yU
https://bit.ly/3QEi3dw
https://bit.ly/39MV6V1
चित्र संदर्भ
1. बाघ और तेंदुए को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
2. राज्यवार बंगाल टाइगर जनसंख्या भारत, 2019 को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. एक बंदी तेंदुए को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4. स्लोथ भालू को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
5. जंगल में बाघों को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
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