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एक जैव आधारित अनूठी व् टिकाऊ सामग्री के रूप में कैक्टस पौधे से प्राप्त चमड़ा

मेरठ

 14-06-2022 08:36 AM
बागवानी के पौधे (बागान)

चारे की फसल के रूप में कैक्टस (Cactus) हरे चारे की व्यापक कमी को दूर कर सकता है, खासकर गर्मियों के महीनों के दौरान जब देश के कई हिस्सों में उच्च तापमान और पानी की कमी से खाद्य सुरक्षा को खतरा रहता है। कैक्टस भारत के बड़े हिस्से सहित कई शुष्क क्षेत्रों में कठोर कृषि-जलवायु परिस्थितियों में भी अनुकूली लक्षण प्रदर्शित करता है, और अक्सर वहां पनपता है जहां कोई अन्य फसल नहीं उग सकती है।
कैक्टस कांटेदार, और लुभावने होते हैं। यह पौधे अंदर से रसीले होते हैं, इनमें मोटे कोट होते हैं इस पर लगे कांटे सुनिश्चित करते हैं कि शिकारी इसके अंदर के रस तक न पहुंच सकें, पौधे हवा में मौजूद नमी को अवशोषित करते हैं। ये आर्थिक रूप से उपयोगी होते हैं, और इनके फूल शानदारहोते हैं। कैक्टस चमड़ा एक जैव-आधारित सामग्री है जिसकी अपनी श्‍वसन करने की क्षमता होती है। इस अनूठी सामग्री का उपयोग हैंडबैग, जूते, परिधान और फर्नीचर के लिए किया जाता है। यहां तक कि कार कंपनियां (car companies) भी इस दौड़ में शामिल हो रही हैं; मर्सिडीज- बेंज (Mercedes-Benz) ने जनवरी 2022 में एक कॉन्सेप्ट इलेक्ट्रिक कार (concept electric car) के इंटीरियर (interior) में कैक्टस सहित चमड़े के विकल्प लागू किए। कैक्टस का चमड़ा नोपल कैक्टस (ओपंटिया फिकस-इंडिका) (Opuntiaficus-indica) से बनाया जाता है जिसे कांटेदार नाशपाती कैक्टस या भारतीय अंजीर ऑप्टुनिया (optunia) के रूप में भी जाना जाता है, जो इसे स्वचालित रूप से काफी टिकाऊ सामग्री बनाता है। कैक्टस चमड़े को साल में दो बार केवल परिपक्व कैक्टस के पत्ते को काटकर बनाया जाता है, ताकि कैक्टस को नुकसान न पहुंचे और यह बढ़ता रहे।
भुवनेश्वर (उड़ीसा) में क्षेत्रीय वनस्‍पति संसाधन केंद्र (आरपीआरसी) (rprc) में स्थित ग्रीनहाउस में 1050 प्रजातियां और कैक्टस की संकर किस्में हैं, यह एशिया (Asia) में इस प्रकार का सबसे बड़ा संग्रह है जिसमें सफेद, गुलाबी, बैंगनी, पीला, लाल और गहरे लाल रंग के फूल मौजूद हैं। इसका प्राकृतिक वितरण पैटर्न मानवीय गतिविधियों से बहुत प्रभावित हुआ है। रिप्सालिस (Rhipsalis) आज अफ्रीका (Africa), मेडागास्कर (Madagascar) और श्रीलंका में पाए जाते हैं। ओपंटिया (Opuntia) की कुछ प्रजातियों को ऑस्ट्रेलिया (Australia) में देखा जा सकता है, जहां उन्हें 18 वीं शताब्दी में सजावटी पौधों के रूप में पेश किया गया था। कैक्टस को एक छोटी सी जगह पर उगाया जा सकता है, इसे कम पानी तथा न्यूनतम ध्यान देने की आवश्यकता होती है। इनकी न केवल दुर्लभ सुंदर फूलों के लिए बल्कि आर्थिक उद्देश्यों के लिए भी बड़े पैमाने पर खेती की जाती हैं। कैक्टि में ट्यूबलर (tubular) या घुमावदार फूल दोनों होते हैं। ये मुख्‍यत: जंगलों में लगते हैं; लेकिन अब वे संरक्षकों और नर्सरी में भी संरक्षित किए जाते हैं। कैक्टस को उनके असामान्य आकार के कारण प्रजनन के योग्य माना जाता है। यह उन्हें भोजन प्राप्त करने में मदद करता है; जबकि मोटे कोट कई हफ्तों तक नमी और जीवन शक्ति बनाए रखने में मदद करते हैं।
कैक्टस विश्‍वभर में असमान रूप से वितरित हैं। इसकी सबसे बड़ी सांद्रता भूमध्य रेखा के 30 डिग्री उत्तर और 30 डिग्री दक्षिण अक्षांश के आसपास पाई जाती है। इसकी दक्षिण अफ्रीका तथा उपोष्णकटिबंधीय उत्तर और दक्षिण अमेरिका में सबसे अधिक प्रजातियां पायी जाती हैं। कैक्टस परिवार कई स्‍वतंत्र वनस्पति परिवारों के बीच वितरित अनुमानित 10,000 ज्ञात रसदार पौधों का पांचवां हिस्सा है। आज तक, वैज्ञानिक कैक्टस परिवार के वर्गीकरण के लिए एक विशिष्ट आंकड़े तक पहुंचने में विफल रहे हैं।
हालांकि, इंटरनेशनल ऑर्गनाइजेशन फॉर सक्सुलेंट प्लांट स्टडी (International Organization for Succulent Plant Study) ने 93 प्रजातियों को अपनाया है और दुनिया में कैक्टस की 2508 स्वीकृत प्रजातियों का लेखा-जोखा रखा है।
हालांकि अधिकांश किस्में शुष्क, और यहां तक कि रेगिस्तानी क्षेत्रों में भी मौजूद हैं, यह दुनिया के लगभग हर हिस्से वस्तुतः आर्कटिक से उत्तरी गोलार्ध के माध्यम से; भूमध्य रेखा के पास और अंटार्कटिक के दक्षिण की ओर में पाया जाता है। जहां कैक्टस की जंगली किस्में उनके प्राकृतिक आवास में पाई जाती हैं, वहीं इस शानदार पौधे की बढ़ती मांग ने शोधकर्ताओं और व्यापारिक रूप से खेती करना भी प्रारंभ कर दिया है।
भारत में और साथ ही दुनिया के अन्य हिस्सों में कई शहरी केंद्रों में इसकी संरक्षण खेती जोर पकड़ रही है। लेकिन इन नई फसलों की संभावनाओं का पता लगाने से लेकर वास्तव में उनकी कटाई करने और उनके द्वारा प्रदान किए जाने वाले लाभों को प्राप्त करने के लिए अभी एक लंबा रास्ता तय करना है। उदाहरण के लिए, संसाधन-गरीब किसानों के लिए शुरुआती चुनौतियों में स्थानीय जरूरतों और परिस्थितियों से मेल खाने वाली किस्मों की पहचान करने और उनका परीक्षण करने की आवश्यकता है। पांच भारतीय राज्यों में काम करने वाली चार साल की पायलट परियोजना भुज सहित निर्णय निर्माताओं और किसानों के सहयोग से विभिन्न कैक्टस किस्मों का परीक्षण कर रही है। यह पहल 2011 में नई दिल्ली में आयोजित एक अंतरराष्ट्रीय कैक्टस अनुसंधान बैठक के बाद की गई, जब आईसीएआर के महानिदेशक ने चारे के लिए कैक्टस की खेती में रुचि व्यक्त की।
2014 और 2015 में पायलट नर्सरी विकसित करने के लिए आईसीएआरडीए (ICARDA), आईसीएआर (ICAR) संस्थानों और विश्वविद्यालयों द्वारा 67 कैक्टस किस्मों का उपयोग किया गया था, जिन्हें आईसीएआर-आईजीएफआरआई, आईसीएआर- सीएजेडआरआई (ICAR-IGFRI, ICAR-CAZRI), फूड लेग्यूम रिसर्च प्लेटफॉर्म (Food Legume Research Platform (FLRP)) के सहयोग से कई स्थानों पर स्थापित किया गया था। 67 किस्मों में से 18 ने अच्छा प्रदर्शन किया और अगले चरण के लिए उपयुक्त मानी गईं। तब से, पांच राज्यों ओडिशा, कर्नाटक, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और गुजरात में आईसीएआर संस्थानों और राज्य विभागों के माध्यम से किसानों के बीच लगभग 45,000 कैक्टस वितरित किए गए हैं।

संदर्भ:
https://bit।ly/3towsk0
https://bit।ly/3aK8OYR
https://bit।ly/3zu8R5C

चित्र संदर्भ
1. कैक्टस पौधे से प्राप्त चमड़े को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
2. मर्सिडीज- बेंज (Mercedes-Benz),को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
3. ओरली कैक्टस फार्म को दर्शाता एक चित्रण (Wikimedia)
4. ओरली कैक्टस को दर्शाता चित्रण (look and learn)

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