City Subscribers (FB+App) | Website (Direct+Google) | Total | ||
1157 | 143 | 1300 |
***Scroll down to the bottom of the page for above post viewership metric definitions
कनॉट रेंजर्स (Connaught Rangers) विद्रोह से लेकर भारतीय-आयरिश स्वतंत्रता संघ तक, कई सूत्र
भारत और आयरलैंड को जोड़ते हैं क्योंकि दोनों ही अंग्रेजों से स्वतंत्रता के लिए लड़े थे।भारत और
आयरलैंड दोनों ही ब्रिटेन के गुलाम थे और आजादी के लिए दोनों ही देशों ने एक जैसी लड़ाई लड़ी।
दोनों देशों के स्वतंत्रता आंदोलनों के बीच अलग अलग स्तर पर संबंध भी रहे।
यूं तो जवाहर लाल
नेहरू, बल्लभ भाई पटेल और सुभाष चंद्र बोस के आयरिश राष्ट्रवादियों के साथ संबंध थे लेकिन इस
कड़ी में सबसे महत्वपूर्ण नाम एनी बेसेंट का है जिन्होंने भारत की आजादी के लिए होम रूल लीग
बनाया था। अंग्रेज़ों के विरुद्ध भारतीय संघर्ष के प्रति आयरिश लोगों के मन में सहानुभूति का कोई
ठिकाना नहीं था। आयरिश-भारतीय बंधन के कई उदाहरण दिए जा सकते हैं। जिनमें से एक भारत में
सिस्टर निवेदिता के नाम से पहचाने जाने वाली आयरलैंड की मार्गरेट नोबल (Margaret Noble) का है,
जिन्होंने भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में और स्वामी विवेकानंद के साथ रामकृष्ण मिशन के प्रसार में
भी काफी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। सिस्टर निवेदिता न केवल एक महान राष्ट्रवादी थीं बल्कि एक
महान इंसान भी थीं। उन्होंने स्वामी विवेकानंद से मिलने के बाद भारत को अपना घर बनाया और
अपना पूरा जीवन मानव जाति की सेवा के लिए समर्पित कर दिया। अपने छोटे से जीवन में उनका
अभिषेक कई उपाधियों से हुआ। जहां रवींद्रनाथ टैगोर ने उन्हें 'लोकमाता' बताया, वहीं उनके गुरु
स्वामी विवेकानंद ने उन्हें 'शेरनी' कहा। उन्हें श्री अरबिंदो द्वारा 'अग्निशिखा' या आग की लौ, इंग्लैंड में
'चैंपियन ऑफ इंडिया' और भारत के सभी लोगों द्वारा 'सिस्टर' भी कहा जाता था।
1867 में आयरलैंड में मार्गरेट नोबल के रूप में उनका जन्म हुआ और उनके पिता सैमुअल नोबल
एक आयरिश चर्च में पुजारी थे। वे अक्सर अपने दादा और अपने पिता के साथ गरीबों की सेवा करने
के लिए उनके घरों में जाती थीं। जब वे 10 वर्ष की थी तब उनके पिता का देहांत हो गया था,
लेकिन उनकी कोमलता और सहानुभूति बनी रही।उन्होंने अपनी स्कूली शिक्षा लंदन (London) के
चर्च के बोर्डिंग (Boarding) स्कूल से की।
बाद में, उन्होंने हैलिफ़ैक्स कॉलेज (Halifax College) में
दाखिला लिया जहाँ उन्होंने कला, साहित्य, संगीत और भौतिकी सहित विभिन्न विषयों का अध्ययन
किया। वह कॉलेज की प्रधानाध्यापिका से बहुत प्रभावित थीं जिन्होंने उन्हें त्याग और सेवा का मूल्य
सिखाया। 17 साल की उम्र में, वे एक शिक्षिका बन गई। इसके बाद, उन्होंने विंबलडन में एक स्कूल
की स्थापना की और शिक्षण के अनूठे तरीकों के लिए लोकप्रिय हो गईं। वह एक विपुल लेखिका भी
बनीं। उन्होंने बौद्ध धर्म और पूर्व की अन्य पुस्तकों सहित धर्म पर विभिन्न पुस्तकों का भी अध्ययन
किया।
1895 में जब स्वामी विवेकानंद जी से मिलने के बाद उनके जीवन में एक अभूतपूर्व मोड़ आया, जो
अमेरिका (America) से लंदन (London) घूमने आए थे। उन्हें शिकागो (Chicago) में धर्म संसद में उनके
विस्मयकारी संबोधन के बारे में भी पता चला, जिसने लाखों लोगों के दिलों और विचारों पर स्थान
बना दिया था।लेकिन क्या आप जानते हैं कि स्वामी विवेकानंद एक बार मेरठ आए थे?अमेरिका के
शिकागो से पूरी दुनिया में सनातन धर्म की पताका फहराने वाले स्वामी विवेकानंद से मेरठ का बहुत
करीब से जुड़ाव रहा है। शिकागो से पहले स्वामी विवेकानंद मेरठ आए थे और यहां की पुस्तकालय में
वेद, पुराण, उपनिषद, योग और दर्शन सहित तमाम साहित्यों का अध्ययन किया था।सिस्टर निवेदिता
ने विवेकानंदजी के विभिन्न कार्यक्रमों में भी भाग लिया।पूर्व की शिक्षाओं में उनकी गहरी रुचि के
साथ, वे विवेकानंदजी के भाषण से प्रभावित थीं।
उन्होंने बहुत सारे सवाल उठाए जिनके जवाबों ने
उनकी शंकाओं को दूर किया और विवेकानंदजी के लिए उनके विश्वास और श्रद्धा स्थापित
किया।सीखने, सेवा करने और समर्पण के लिए उनकी रुचि ने विवेकानंदजी को उन्हें भारत आने का
निमंत्रण देने के लिए प्रेरित किया।जब वे 28 जनवरी, 1898 को भारत आईं, स्वामी विवेकानंद स्वयं
उनका स्वागत करने के लिए कलकत्ता बंदरगाह गए। सिस्टर निवेदिता ने दक्षिणेश्वर मंदिर का दौरा
किया, जहां रामकृष्ण परमहंस ने अपनी साधना की थी।
स्वामी विवेकानंद ने औपचारिक रूप से
मार्गरेट को ब्रह्मचर्य की शपथ दिलाई और 25 मार्च, 1898 को उन्हें "निवेदिता" का नाम दिया। यह
भारत के इतिहास में पहली बार था कि एक पश्चिमी महिला को भारतीय मठवासी आदेश में प्राप्तकिया गया था। वे रामकृष्ण परमहंस की आध्यात्मिक पत्नी शारदा देवी से भी मिलीं।उन्होंने अपना
पूरा जीवन गरीबों और वंचितों कि मदद करने के लिए समर्पित कर दिया। सिस्टर निवेदिता ने जनता
को शिक्षित करना शुरू किया, विशेषकर उन लड़कियों को जो शिक्षा से प्रमुख रूप से वंचित थीं। भारत
का पहला बालिका विद्यालय खोलने के इरादे से, उन्होंने धन जुटाने के लिए इंग्लैंड और अमरीका की
यात्रा की।अंत में, वे 1889 में अपने प्रयास में सफल रही और बाद में घर-घर जाकर लड़कियों को
स्कूल में शामिल होने के लिए प्रेरित करने का प्रयास किया। लड़कियों को स्कूल भेजना उस समय
वर्जित था, इसलिए उनके पास केवल विधवाएँ और वयस्क महिलाएँ पढ़ने आया करती थीं क्योंकि
अधिकांश पुरुष सदस्यों ने अपनी बेटियों को स्कूल भेजने से मना कर दिया था। उन्होंने महामारी,
अकाल और बाढ़ के दौरान बंगाल के लोगों की मदद करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और 1905
में बंगाल के विभाजन पर कड़ी आपत्ति जताई।वे स्वदेशी आंदोलन की समर्थक थीं, जिसने घरेलू रूप से
उत्पादित हस्तनिर्मित वस्तुओं के पक्ष में आयातित ब्रिटिश सामानों के बहिष्कार का आह्वान किया
था।भारत पर ब्रिटिश शासन के अत्याचार को देख वे काफी दुखी थी, इसलिए उन्होंने अपने लेखन की
शक्ति और लोगों को स्वतंत्रता के लिए लड़ने के लिए प्रेरित करने वाले अपने बेहतरीन वक्तृत्व
कौशल के माध्यम से जनता को प्रेरित करने का काम किया।
राष्ट्रवाद की भावना का आह्वान करने
के लिए, उन्होंने वंदे मातरम को अपने स्कूल में दैनिक प्रार्थना के रूप में पेश किया। उन्होंने लॉर्ड
कर्जन को पूर्वी संस्कृति को पश्चिम की संस्कृति से कम मानने की वजह से उजागर कर उनसे
सार्वजनिक रूप से जनता से माफी मँगवाई। उन्होंने अपनी संस्कृति और विरासत के प्रति सम्मान की
भावना उत्पन्न करने के लिए भारतीयों को प्रेरित करने के लिए पूरे भारत का दौरा किया।
संदर्भ :-
https://bit.ly/3MevKgq
https://bit.ly/3xSMbea
https://bit.ly/3Oy0Z7Z
https://bit.ly/38f1t27
https://bit.ly/3OFyeqe
चित्र संदर्भ
1 सिस्टर निवेदिता (मार्गरेट नोबल) 1867-1911 शिक्षाविद और भारतीय स्वतंत्रता के प्रचारक बोर्ड को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
2. मार्गरेट एलिजाबेथ नोबल - मूर्ति - बंगाल इंजीनियरिंग और विज्ञान विश्वविद्यालय - सिबपुर - हावड़ा, को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. भारत की 1968 की मुहर पर सिस्टर निवेदिता को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4. बागबाजार के घर में एक स्मारक पट्टिका जहां सिस्टर निवेदिता ने अपना स्कूल शुरू किया था, जिसको दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
© - 2017 All content on this website, such as text, graphics, logos, button icons, software, images and its selection, arrangement, presentation & overall design, is the property of Indoeuropeans India Pvt. Ltd. and protected by international copyright laws.