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अधिकांश हिन्दू धार्मिक ग्रंथों में वर्णित गाथाएँ, केवल किसी घटनाक्रम को वर्णित करने तक ही
सीमित नहीं हैं। बल्कि इन गाथाओं में निहित प्रतीकात्मक संदेश पूरी मानवता को किसी समस्या
के घटित होने से पूर्व का अंदेशा पाने, या कोई कर्म करने से पूर्व ही उसके फलों का अंदेशात्मक स्वाद
चखा देती हैं। उदाहरण के तौर पर पवित्र हिंदू धार्मिक ग्रंथ भागवत पुराण के सप्तम स्कन्ध में
वर्णित हिरण्यकश्यप और उसके पुत्र प्रह्लाद की लोकप्रिय कथा, न केवल एक धार्मिक गाथा है,
बल्कि इसमें निहित निःस्वार्थ भक्ति और बुराई पर अच्छाई की विजय का संदेश, आज के
विचलित समाज को ईश्वर की मौजूदगी और उसके न्याय के प्रति अधिक विश्वास दिलाता है।
यद्यपि प्रहलाद और हिरण्यकश्यप की कहानी को, विभिन्न धार्मिक ग्रंथों में वर्णित किया गया है।
लेकिन भक्त प्रह्लाद की कहानी का सबसे पहला दस्तावेज अथवा उल्लेख भागवत पुराण में
दिखाई देता है। भागवत पुराण जिसे श्रीमद भागवतम, श्रीमद्भागवत महापुराण या केवल भागवत
के रूप में भी जाना जाता है, हिंदू धर्म के अठारह महान पुराणों (महापुराण) में से एक है। संस्कृत में
रचित और लगभग सभी भारतीय भाषाओं में उपलब्ध, भागवत पुराण में अन्य पुराणों की तरह,
ब्रह्मांड विज्ञान, खगोल विज्ञान, वंशावली, भूगोल, किंवदंती, संगीत, नृत्य, योग और संस्कृति
सहित कई विषयों पर चर्चा की गई है।
भागवत पुराण वैष्णववाद में एक श्रद्धेय पाठ मानी जाती है। वैष्णववाद एक हिंदू परंपरा है, जो
विष्णु को ही अराध्य देव मानती है। इसकी रचना की तिथि संभवतः आठवीं और दसवीं शताब्दी
सी.ई के बीच की मानी जाती है, लेकिन कुछ जानकार इसे छठी शताब्दी सी.ई का भी मानते हैं।
'भागवत पुराण' का अनुवाद 'विष्णु के भक्तों के इतिहास' या 'विष्णु के गौरवशाली भक्त' के रूप में
किया जा सकता है। 'भागवत' का अर्थ है 'विष्णु का अनुयायी या उपासक'। आदिकालीन भगवान,
विष्णु के अवतार श्री कृष्ण को इस पूरे शास्त्र में सीधे 'भगवान' के रूप में जाना जाता है।
श्रीमद्भागवतम के 18,000 श्लोकों में भक्ति योग का समर्थन करने वाले और परस्पर जुड़े हुए,
कई गैर-रेखीय संवाद, शिक्षाएँ और स्पष्टीकरण शामिल हैं, जो समय के साथ और इसके बारह सर्गों
में आगे-पीछे होते रहते हैं।
इस पुस्तक में 15 अध्यायों से युक्त, सातवां सर्ग गंगा नदी के तट पर सुकदेव गोस्वामी और
परीक्षित के बीच के संवाद को दर्शाता है। संवाद की एक अतिरिक्त किंतु उल्लेखनीय परत, नारद
और युधिष्ठिर संवाद के बीच, राक्षस-राज हिरण्यकशिपु के विष्णु भक्त-पुत्र प्रह्लाद का वर्णन
करती है।
प्रह्लाद का जन्म दानवराज हिरण्यकश्यप के महल में हुआ था। प्रह्लाद के पिता हिरण्यकश्यप को
वरदान प्राप्त था कि उसे गर्भ से पैदा होने वाला कोई भी जीव नहीं मार सकता, न ही वह किसी
आदमी और न ही जानवर द्वारा मारा जा सकता है, न दिन में और न ही रात में, न घर के अंदर और
न ही बाहर, न जमीन पर और न ही अंदर, न हवा में और न ही पानी में, और न ही मानव निर्मित
हथियार के द्वारा उसे मारना संभव है। हालांकि, हिरण्यकश्यप भगवान विष्णु का घोर विरोधी था,
उसके द्वारा अपने पुत्र प्रह्लाद को मारने के बार-बार प्रयास करने के बाद, अंततः भगवान विष्णु के
एक प्रमुख अवतार भगवान नरसिंह (आधा शेर आधा मनुष्य) द्वारा प्रह्लाद की रक्षा की गई।
"नरसिंह" शब्द संस्कृत शब्द "नार" से बना है जिसका अर्थ है मनुष्य, और "सिह" का अर्थ है शेर।
इस प्रकार, भगवान ने असुर को मारने के लिए आधा भाग मनुष्य, और आधा भाग सिंह का धारण
किया।
प्रह्लाद के विष्णु भक्त होने का प्रमुख कारण था कि, अपनी माता के गर्भ में रहते हुए उसे देवऋषि
नारद के मधुर मंत्रों को सुनने का अवसर मिला। उन्हें बचपन में नारद ने ही शिक्षित किया था।
नतीजतन, उसने अपना पूरा जीवन भगवान विष्णु को समर्पित कर दिया। उनके पिता को विष्णु के
प्रति उनका आध्यात्मिक झुकाव कदापि पसंद नहीं आया और उन्होंने प्रह्लाद को कई बार
चेतावनी भी दी। अपने पिता हिरण्यकश्यप की कई चेतावनियों के बावजूद, प्रह्लाद ने विष्णु की
पूजा करना जारी रखा। परेशान होकर और क्रोध में, उसके पिता ने तब प्रह्लाद को जहर देने का
फैसला किया। लेकिन हरी कृपा से वह बच गया। फिर उसने (प्रह्लाद के पिता ने) उसे हाथियों से
रौंदा, लेकिन लड़का अभी भी जीवित था। फिर उसने प्रह्लाद को जहरीले सांपों के साथ एक कमरे में
रखा, सांप उसे डंसने के बजाय, उसके लिए बिस्तर बन गए। प्रहलाद को एक घाटी से एक नदी में
फेंक दिया गया था, लेकिन विष्णु ने उसे बचा लिया था।
इस क्रम में प्रह्लाद को मारने का सबसे प्रबल प्रयास, हिरण्यकश्यप की बहन होलिका द्वारा किया
गया, जिसे अग्नि में भी जीवित रहने का वरदान प्राप्त था। इसलिए हिरण्यकश्यप ने प्रह्लाद को,
चिता पर बैठी अपनी बहन होलिका की गोद में बिठाया। प्रह्लाद ने भगवान विष्णु से अपनी रक्षा
की प्रार्थना की। परिणाम स्वरूप होलिका स्वयं उस अग्नि में भस्म हो गई और हरी भक्त प्रह्लाद
बच गया। इस घटना को लोकप्रिय हिंदू त्यौहार होली के रूप में मनाया जाता है। होली भारत का
अत्यंत प्राचीन पर्व है जो, होलिका या होलाका के नाम से भी मनाया जाता है। वसंत की शुरुआती
ऋतु में हर्षोल्लास के साथ मनाए जाने के कारण इसे वसंतोत्सव और काम-महोत्सव भी कहा गया
है।
यद्दपि प्रह्लाद की कहानी का जिक्र सबसे पहले श्रीमद भागवत में आता है, लेकिन इस प्रसिद्ध
घटना का वर्णन हमें, हेम सरस्वती द्वारा लिखित 12 वीं शताब्दी की असमिया पुस्तक प्रह्लाद
चरित्र में भी मिलता है। जो संस्कृत शैली में यह कहानी बताती है कि कैसे पौराणिक राजा प्रह्लाद
की विष्णु के प्रति आस्था और भक्ति ने उन्हें विनाश से बचाया और समाज में नैतिक व्यवस्था को
बहाल किया। प्रथम महान असमिया कवि थेकविराज माधव कंडली (Thekviraj Madhava
Kandali) द्वारा (14वीं शताब्दी) , द्वारा भगवान कृष्ण के संदर्भ में यह कथा लिखी गई थी।
प्रह्लाद ने अपने पिता को दिखाया कि विष्णु हर जगह मौजूद हैं। प्रहलाद अंततः दैत्यों का राजा
बन जाता है और अपनी मृत्यु के बाद विष्णु के साथ (वैकुंठ) में निवास करता है। प्रतीकात्मक रूप
से यह घटना भी बुराई पर अच्छाई की विजय को दर्शाती है।
संदर्भ
https://bit.ly/3I8yJ7K
https://en.wikipedia.org/wiki/Holi
https://en.wikipedia.org/wiki/Prahlada
https://en.wikipedia.org/wiki/Bhagavata_Purana
चित्र सन्दर्भ
1. होलिका दहन और भागवत पुराण को दर्शाता चित्रण ( youtube, wikimedia)
2. परीक्षित को संबोधित करते हुए शुकदेव गोस्वामी को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
3. नरसिंह के खिलाफ गदा चलाते हुए हिरण्यकशिपु को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
4. हिरण्यकश्यप ने प्रह्लाद को, चिता पर बैठी अपनी बहन होलिका की गोद में बिठाया। जिसको दर्शाता एक चित्रण (youtube)
5. हिरण्यकश्यप वध को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
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