खमीर की उत्पत्ति का इतिहास और भारत में इससे बनने वाले लोकप्रिय व्यंजन

फफूंदी और मशरूम
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खमीर की उत्पत्ति का इतिहास और भारत में इससे बनने वाले लोकप्रिय व्यंजन
बेकर्स खमीर (Baker's yeast)खमीर के प्रकार का सामान्य नाम है जो ब्रेड (Bread) को बेक करते समय संघटक के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। इसका उपयोग फुलाने के घटक के रूप में किया जाता है। यह आटे में मौजूद शर्करा को कार्बन डाइऑक्साइड (Carbon dioxide) और इथेनॉल (Ethanol) में परिवर्तित करता है और रोटी को हल्का और स्वादिष्ट बनाता है।वहीं खमीर को कवक की श्रेणी में रखा जाता है जो एकल कोशिकाओं के रूप में विकसित होते हैं औरअनुजात कोशिकाओं का निर्माण या तो नवोदित (Budding) या बाइनरी विखंडन (Binary fission) द्वारा करते हैं। वे अधिकांश कवक से भिन्न होते हैं, जो तन्तु की भांति हाइपहे (Hyphae) के रूप में विकसित होते हैं।इस बात की कोई जानकारी नहीं है कि पहली बार खमीर का उपयोग ब्रेड बनाने के लिए कब किया गया था, लेकिन प्राचीन मिस्र (Egypt)में ब्रेड बनाने के लिए खमीर के उपयोग केसबसे पहले निश्चित विवरण मिलते हैं। ऐसे माना जाता है किभोजन के लिए आटेको गूँथने के लिए आटे और पानी के मिश्रणकोगर्मी के समय पर सामान्य से अधिक समय तक छोड़ दिया गयाहोगा और प्राकृतिक रूप से आटे में मौजूद खमीर ने आटे को किण्वित कर दिया होगा।जिससे परिणामी ब्रेड सख्त फ्लैटब्रेड (Flatbread) की तुलना में हल्का और स्वादिष्ट पाया गया होगा।ऐसा माना जाता है कि शायद शुरुआती बेकर खमीर के जीवाणुओं की क्रिया के बारे में अधिक नहीं जानते थे, इसलिए उनके द्वारा पहले से ही खमीरे आटे से थोड़ा भाग अलग कर दिया जाता होगा और उसे अन्य आटे को खमीरा करने के लिए उपयोग किया जाता होगा। आटे को फुलाने के घटक को प्राप्त करने का एक और तरीका बीयर (Beer) से था जो शायदउस दौरान बेकर द्वारा किया भी गया हो।
19वीं शताब्दी में, ब्रेड बेकर्स द्वारा बीयर किण्वक से अपना खमीर प्राप्त किया, जिससे उन्होंने मीठी-किण्वित ब्रेड बनाई।इस प्रक्रिया को डच (Dutch) प्रक्रिया के रूप में जाना जाता है (क्योंकि डच आसवकने सर्वप्रथम व्यावसायिक रूप से खमीर बेचना शुरू किया), यह प्रक्रिया जर्मनी (Germany) में फैल गई और खमीर को क्रीम (Cream) के रूप में बेचा जाने लगा।वहीं टेबेंहोफ (Tebbenhof) पहले व्यक्ति थे, जिन्होंने 1825 में नमी निकालने के माध्यम से खमीर को क्यूब केक (Cube cake) में बनाने का एक तरीका खोजा।1867 में रेइमिंगहॉस (Reiminghaus) ने फिल्टर (Filter)दाबयंत्र का इस्तेमाल किया जिससे बेकर के खमीर के औद्योगिक निर्माण में सुधार हुआ। इस प्रक्रिया को विनीज़ (Viennese) प्रक्रिया कहा जाता है और यह पूरे फ्रांसीसी (French) बाजार में फैल गई।खमीर केक (Cake) बनाने की यह विधि आज भी पूरे यूरोप (Europe) में प्रयोग की जाती है। चार्ल्स फ्लेशमैन (Charles Fleischmann) ने संयुक्त राज्य अमेरिका में खमीर बनाने की विधि लाई।उन्हें एक युवा लड़के के रूप में एक आसवनी में प्रशिक्षित किया गया था और जहां उन्होंने सीखा कि खमीर आसवन का उप-उत्पाद है।खमीर के विभिन्न रूप और प्रकार निम्न हैं:
1. क्रीम खमीर 19वीं सदी के खमीर का निकटतम रूप है।यह मूल रूप से विकास माध्यम से लिए गए तरल में खमीर कोशिकाओं का निलंबन है। क्रीम खमीर का उपयोग औद्योगिक बेकरियों में पेशेवर वितरण और मिश्रण उपकरण के साथ किया जाता है, और शायद ही कभीइसका छोटी बेकरियों या घरेलू रसोइयों में उपयोग किया जाता है।

2. कम्प्रेस्ड खमीरको क्रीम खमीर में मौजूद अधिकांश तरल जल निकालकर बनाया जाता है।यह खमीर औद्योगिक और घरेलू उपयोग के लिए उपयोग किया जाता है।

3. सक्रिय शुष्क खमीर मेंसूखी, मृत कोशिकाओंके मोटे आवरण में जीवित खमीर कोशिका समाहित होती है और खमीर को एक मोटा आयताकारदाने का आकार देता है। उपयोग करने से पहले इसे पहले पुन: निर्जलित किया जाता है। कमरे के तापमान पर रखने पर यह एक वर्षबना रहता है, जबकि जमे हुएरूप में यह 10 साल या उससे अधिक समय तक बना रह सकता है।ये घरेलूउपयोग के लिएउचित होता है।

4. तत्काल खमीर सक्रिय शुष्क खमीर जैसा दिखता है, लेकिन दाने व्यास में छोटे होते हैं। यहकाफी कम समयके लिए भी बना रहता है। उपयोग करने से पहले इसे पुन: निर्जलित करने की आवश्यकता नहींहोती है। घरेलू उपयोग के लिएउपयुक्त होता है।इससे हम कुलचा; आलू कुलचा; गोअन स्टीम्ड राइस ब्रेड (Goan steamed rice bread); साबुत गेहूं धनिया और तिल नान;तथासाबुत गेहूँ की ब्रेड; डिनर रोल; डबल रोटी; पूरी गेहूं की रोटी रोल; लड़ी पाव आदि ब्रेड को आप तत्काल खमीर का उपयोग करके बना सकते हैं।

5. तेजी से फूलने वाला खमीर एक प्रकार का सूखा खमीर है जो छोटे दानेदार आकार का होता है, और इसे आटे में तेजी से घोला जा सकता है। यह अन्य प्रकार के खमीर की तुलना में अधिक कार्बन डाइऑक्साइड उत्पन्न करता है और आटे को बहुत तेजी से फुलाता है। इसका उपयोग अक्सर ब्रेड मशीनों में किया जाता है।

6. ओस्मोटोलरेंट यीस्ट (Osmotolerant Yeast) :यदि आप दालचीनी के रोल या कुछ मीठा बनाने की योजना बना रहे हैं तो ऑस्मोटोलरेंट यीस्ट एक उत्कृष्ट विकल्प है। सादे आटे की तुलना में मीठे आटे को फुलाने में अधिक समय लगता है। वास्तव में, अधिकांश मीठे आटे में इतनी वृद्धि नहीं होती है कि वे फूली हुई, हवादार ब्रेड बना सकें।वहीं ओस्मोटोलेरेंट एक विशेष खमीर है जो आमतौर पर एक ही नाम से आसानी से उपलब्ध नहीं होता हैयानि इसको विभिन्न नामों से भी जाना जाता है। 7. पौष्टिक खमीर : यदि आप अपनी ब्रेड में एक अलग पौष्टिक स्वाद मिलाते हुए उसके पोषण मूल्य को बनाए रखना चाहते हैं, तो पोषण खमीर एक अच्छा विकल्प हो सकता है। हालाँकि, ध्यान रखें कि यह आपके आटे को फुलाने में मदद नहीं करेगा। यह आमतौर पर बेकिंग के लिए उपयोग नहीं किया जाता है क्योंकि यह एक निष्क्रिय खमीर है जिसे ज्यादातर स्वास्थ्य पूरक के रूप में सेवन किया जाता है। पौष्टिक खमीर विटामिनबी (VitaminB) से भरपूर होता है। याद रखें, इसके अलावा कोई अन्य प्रकार का खमीर किसी भी मात्रा में सीधे उपभोग के लिए सुरक्षित नहीं है।

हालाँकि, भारत मेंप्राचीन समय मेंरोटियाँ ज्यादातर चपाती और मोटी रोटियाँ थीं जो कम से कम एक सप्ताह तक सही रह सकती थीं और हड़प्पा संस्कृति के दौरानजब गेंहू की खेती के साथ विकसित की गई थीं। लेकिन तंदूर-आधारित किण्वित ब्रेड विविधता के साथ आने में सभ्यता को और 100वर्षलग गए।मुगलई और उत्तरी सीमांत व्यंजनों के साथ इसके सेवन के कारण, कई लोग मानते हैं कि नान, फारस (Persia) से आए कबाब की तरह, फारसियों और मुगलों द्वारा विकसित किया गया था।हालाँकि, भारत-फ़ारसी कवि अमीर कुशराऊ के लेख मेंनान का पहला विवरण 1300 ईस्वी का बताता है।नान को दिल्ली के शाही दरबार में नान-ए-तुनुक (हल्की रोटी) और नान-ए-तनुरी (तंदूर ओवन में पकाया जाता है) के रूप में पकाया जाता था। लगभग 1526 से भारत में मुगल काल के दौरान, कीमा या कबाब के साथ नान राजघरानों का एक लोकप्रिय नाश्ता भोजन था।वहीं नान से प्रेरित एक ओर आविष्कार कुलचे का था। इसे बेकिंग सोडा (Baking soda) जैसे फुलाने वाले घटक के साथ स्वयं फूलने वाले आटे का उपयोग करके बनाया गया। साथ हीइसे तवे या ईंट के भट्टे पर बनाना आसान था, जिससे यह आम जनता और राजसी लोगों के पास काफी आसानी से उपलब्ध था।इस तरह प्रसिद्ध अमृतसरी कुलचे का जन्म हुआ, जिसके बारे में कई लोग कहते हैं कि यह आलू के परांठे पर आधारित था। निश्चित रूप से अन्य भिन्नताओं में कश्मीरी और पेशवरी नान थे, जिसमें अनिवार्य रूप से कुलचे में फलों और सूखे मेवों के साथ मीट के साथ भरा हुआ होता है।

संदर्भ :-
https://bit.ly/332k4wg
https://bit.ly/3HQtD08
https://bit.ly/3r0inaF
https://bit.ly/3I5Jx75
https://bit.ly/33lcmNm
https://bit.ly/3r0iNhf

चित्र सन्दर्भ:
1. यीस्ट की क्रिया के कारण आटा फूलना (Youtube)
2. माइक्रोस्कोप के तहत खमीर (Youtube)