नग्न आंखों से न दिखने वाले इस कवक “यीस्ट” का दैनिक जीवन में महत्त्व

फफूंदी और मशरूम
30-01-2021 11:26 AM
Post Viewership from Post Date to 04- Feb-2021 (5th day)
City Subscribers (FB+App) Website (Direct+Google) Messaging Subscribers Total
2783 88 0 2871
* Please see metrics definition on bottom of this page.
नग्न आंखों से न दिखने वाले इस कवक “यीस्ट” का दैनिक जीवन में महत्त्व

प्रत्येक भारतीय घर में भोजन की थाली में दही का कटोरा होता ही है क्योंकि इसे हमारे भोजन का एक ख़ासा हिस्सा माना जाता है। परंपरागत किण्वित खाद्य पदार्थ हमारे आहार का एक निहित हिस्सा हैं क्योंकि वे हमारे पोषण में वृद्धि करते हैं। किण्वित खाद्य पदार्थों में सबसे अहम भूमिका होती है खमीर यानी की यीस्ट (Yeast) की। यीस्ट एक कोशीय सूक्ष्म जीव होता है जो की फंगी (fungi) या कवक का एक प्रकार है। यह शर्करायुक्त कार्बनिक पदार्थ में बहुतायत से पाये जाने वाला विशेष प्रकार का कवक है। यह फूल विहीन पौधा है, इसका शरीर मूल, तना एवं पत्ति में विभक्त नहीं होता है। फंगी या कवक को हिंदी में फफूंद के नाम से भी जाना जाता है। यह जीवों का एक विशाल समुदाय हैं, जिसे साधारणतया वनस्पतियों में वर्गीकृत किया जाता है। मानव कल्याण के लिए कवक का उपयोग प्रारंभिक समाज में भोजन, पेय और दवाओं में होता आ रहा है जिसके पुरातात्विक साक्ष्य हजारों साल पहले के मिलते है। कहते है ये संसार के प्रारंभ से ही जगत में उपस्थित हैं। प्राचीन मिस्रियों ने लगभग 4,000 साल पहले रोटी बनाने के लिए खमीर का उपयोग किया था और यह इस बात का प्रमाण है की यीस्ट का इस्तेमाल सालों से होते आ रहा है। ये यूकेरियोटिक (eukaryotic) जीवों के समूह का सदस्य है जिसमें सूक्ष्मजीव जैसे कि खमीर और मोल्ड्स (Molds), साथ ही साथ अधिक परिचित मशरूम शामिल हैं।
शुरुआत में कुछ लोगों का मत था कि कवक, पौधों की तुलना में जानवरों के करीब है क्योंकि अधिकांश कवक की कोशिका भित्ति मुख्य रूप से काइटिन (chitin) से बनी होती है जोकि एक ऐसा पदार्थ जो कीड़े और झींगा मछलियों के बाह्य कंकाल (exoskeleton) में भी पाया जाता है। परंतु कुछ लोगों का मत है कि कवक की उत्पत्ति शैवाल (algae) में पर्णहरिम की हानि होने से हुई है। यदि वास्तव में ऐसा हुआ है तो कवक को पादप सृष्टि (Plant kingdom) में रखना उचित ही है। दूसरे लोगों का विश्वास है कि इनकी उत्पत्ति रंगहीन कशाभ (flagella) से हुई है जो सदा से ही पर्णहरिम रहित थे। इस विचारधारा के अनुसार इन्हें वानस्पतिक सृष्टि में न रखकर एक पृथक सृष्टि में वर्गीकृत किया जाना चाहिए। पर्णहरित विहीन होने के कारण कवक अपना भोजन स्वयं नहीं बना पाते, ये विविधपोषी (Heterotrophic) होते हैं। नग्न आंखों से न देखने वाले ये कवक अपने जीवन चक्र के विशाल हिस्सों को पौधों और जानवरों के अंदर बिताते हैं, ये अविश्वसनीय रूप से महत्वपूर्ण प्रक्रियाओं के लिए जिम्मेदार हैं, इनमें पोषक तत्वों की वैश्विक साइकिलिंग (cycling), कार्बन सीक्वेस्ट्रेशन (carbon sequestration) और यहां तक कि दुनिया के कुछ सूखाग्रस्त क्षेत्रों में मरुस्थलीकरण की रोकथाम में भी इनकी भूमिका अहम है। एन्टीबायोटिक (Antibiotic) औषधियाँ कवकों से ही प्राप्त किए जाते हैं, साथ ही साथ कवक का उपयोग रोजमर्रा की जिंदगी के पहलुओं में किया जाता है। उच्च रक्तचाप की दवाओं में भी इसका उपयोग देखा गया है। कवक औद्यौगिक कार्यों में भी प्रयोग में आते हैं। पावरोटी, एल्कोहॉल (Alcohol), तथा अम्लों (Acid) के बनाने में किण्वन किया जाता है, जो कुछ कवकों या यीस्ट द्वारा ही संपन्न होता है।
यीस्ट की कोशिकाएं अति सूक्ष्म होती हैं, ये अंडाकार रूप में होती हैं, और इन्हें केवल सूक्ष्मदर्शी से देखा जा सकता है। 1 ग्राम यीस्ट में 20 अरब यीस्ट कोशिकाए होती हैं। यीस्ट 3.5 से 4 के अम्लीय पीएच (pH) में 20 से 28 डिग्री सेल्सियस के बीच के तापमान पर सबसे ज्यादा बढ़ता है। ये कार्बन स्रोत पर ही विकसित होते हैं। इनमें जनन अलैंगिक (Asexual) प्रकार का होता है, इसमें एस्कस और एस्कोस्पोर्स (ascus and ascospores) जैसी जनन विशेषताएं शामिल होती है। ये यीस्ट अलग-अलग मात्रा में विभिन्न प्रकार के एस्टर (ester) बनाते हैं। एथिल एसीटेट (Ethyl acetate) यीस्ट द्वारा बनाये जाने वाला सबसे सामान्य और सबसे आसानी से बनने वाला एस्टर है। यीस्ट का उपयोग मुख्यतः बेकरी (bakery) उद्योग में किया जाता है, ब्रेड (bread), केक (Cake), पिज़्ज़ा (Pizza), खमीरी रोटी, शराब आदि बनाने में यीस्ट का अनिवार्यतः से उपयोग किया जाता है। इसके अलावा चिकित्सा तथा पशुचिकित्सा में एंटीबायोटिक के उत्पादन में भीं इसका उपयोग किया जाता हैं। मादक पेय कई सभ्यताओं के आहार और संस्कृति का हिस्सा रहे हैं, बीयर (beer) और वाइन (wine) के विशिष्ट प्रकार भी यीस्ट की क्रिया के परिणामस्वरूप बनाये जाते हैं। इन दो पेय पदार्थों के अलावा, विभिन्न कंपनियों ने पारंपरिक तरीके से तैयार किए गए अन्य प्रकार के किण्वित खाद्य पदार्थ और कई मादक पेय विकसित किए हैं। फलों, जामुन, या अनाज से उत्पन्न उपरोक्त पारंपरिक मादक पेय के अलावा, मानव ने खमीर का उपयोग कॉफी और चॉकलेट जैसे वैश्विक खाद्य प्रसंस्करण या यहां तक कि अपशिष्ट प्रसंस्करण में भी किया है। खमीर किण्वन न केवल खाद्य निर्माण में उपयोगी है, इसका उपयोग वनस्पति स्रोतों से ईंधन के उत्पादन के लिए भी होता है। कई वैज्ञानिक मानव आनुवंशिकी के बारे में जानने के लिए भी इसका उपयोग करते हैं। खमीर क्लचर (culture) का अध्ययन सीधे मानव जीनोम की मैपिंग का नेतृत्व करता है। हाल ही में खमीर का उपयोग जैव ईंधन के उत्पादन में किया जा रहा है। क्योंकि खमीर चीनी को इथेनॉल (Ethanol) में बदल देता है जिसे वाहनों में डीजल के एक विकल्प के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है। इसमें प्रोबायोटिक गुण होते है जिसके कारण आंतों में फायदेमंद बैक्टीरिया को मदद मिलती है। खाद्य पदार्थों में उपायोग होने वाले यीस्ट का वैज्ञानिक नाम सैकरोमाइसीज सेरविसी (Saccharomyces cerevisiae) है, और इसे चीनी खाने वाला कवक (sugar-eating fungus) भी कहते है। यीस्ट कोशिकाएं उर्जा प्राप्त करने के लिए भोजन को पचाती हैं, इनका पसंदीदा भोजन शर्करा है, ये शर्करा प्रमुख रूप से सुक्रोस (sucrose), फ्राक्टोस (fructose), ग्लूकोस (glucose), और माल्टोज (maltose) है। यीस्ट का उपयोग खमीर उठाने के लिए किया जाता है, यीस्ट किण्वन (Fermentation) की प्रक्रिया के द्वारा कार्बोहैड्रेड्स (carbohydrate) और शर्करा को कार्बन डाइऑक्साइड (carbon dioxide) में बदल दिया जाता है। इस कार्बन डाइऑक्साइड के उत्पादन के परिणामस्वरूप, आटा फूलता है क्योंकि आटे के लचीलेपन के कारण गैस बाहर नहीं निकल पाती। इस किण्वन प्रक्रिया में बनने वाले एथिल अल्कोहोल (Ethyl alcohol) के कारण ब्रेड में विशेष स्वाद और महक पैदा होती है। किण्वन एक प्राकृतिक प्रक्रिया है जो हजारों वर्षों से मानव द्वारा मादक पेय बनाने के मूल उद्देश्य के साथ-साथ रोटी और अन्य उत्पादों के लिए उपयोग में लायी जाती आ रही है। किण्वन एक चयापचय की प्रक्रिया है जिसमें यीस्ट कार्बोहाइड्रेट जैसे कि स्टार्च या चीनी को एक अल्कोहॉल (alcohol) या एक एसिड (acid) में परिवर्तित करता है।
1850 और 1860 के दशक में, फ्रांसीसी रसायनज्ञ (French chemist) और माइक्रोबायोलॉजिस्ट (microbiologist) लुई पाश्चर (Louis Pasteur), किण्वन का अध्ययन करने वाले पहले वैज्ञानिक बने, उन्होंने बताया कि यह प्रक्रिया जीवित कोशिकाओं द्वारा की जाती है। उन्होनें बताया कि किण्वन यीस्ट द्वारा किया जाता है, और इस प्रक्रिया में ग्लूकोज चयापचय (Metabolism) से उत्पन्न पाइरूवेट (pyruvate), इथेनॉल और कार्बन डाइऑक्साइड में टूट जाता है। ग्लूकोज से इथेनॉल के उत्पादन के लिए योजनाबद्ध रासायनिक समीकरण इस प्रकार है: C6H12O6 (ग्लूकोज) → 2C2H5OH (इथेनॉल) + CO2 (कार्बन डाइऑक्साइड) इस प्रक्रिया में ऑक्सीजन की अनुपस्थिति या सीमित ऑक्सीजन के तहत, एसिटाल्डीहाइड (acetaldehyde) से इथेनॉल का उत्पादन होता है, और एटीपी (ATP) के दो मोल (moles) उत्पन्न होते हैं। इस पूरी प्रक्रिया में कोशिकाओं को, पर्याप्त एटीपी देने के लिए उच्च मात्रा में ग्लूकोज का उपभोग करना पड़ता है। परिणामस्वरूप, इथेनॉल जमा होता है और जब ऐसा होता है तो किण्वन गतिविधि बंद हो जाती है। किण्वन के लिए उपयुक्त तापमान 25 डिग्री सेल्सियस से 33 डिग्री सेल्सियस है।

संदर्भ:
https://bit.ly/3pwqtFT
https://www.ncbi.nlm.nih.gov/pmc/articles/PMC7466055/
https://stateoftheworldsfungi.org/2018/useful-fungi.html
https://redstaryeast.com/science-yeast/what-is-yeast/
https://en.wikipedia.org/wiki/Yeast
https://sciencing.com/common-uses-yeast-8217336.html
चित्र संदर्भ:
मुख्य तस्वीर किण्वित अचार दिखाती है। (पिक्साबे)
दूसरी तस्वीर यीस्ट सीरियल ड्रॉप टेस्ट (Yeast serial drop test) दिखाती है। (विकिमीडिया)
तीसरी तस्वीर यीस्ट को दिखाती है। (विकिमीडिया)
आखिरी तस्वीर में बीयर और ब्रेड दिखाया गया है। (pixnio)