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विश्व के विभिन्न देशों और उद्योगपतियों के लिए प्राकृतिक संसाधन हमेशा से ही आकर्षण और
फायदे का सौदा रहे हैं। आकर्षण हो भी क्यों ना! वास्तव में अभी आप जिस डिस्प्ले अथवा स्क्रीन
पर इस लेख को पढ़ रहे हैं, वह भी मूल रूप से प्राकृतिक संसाधनों का एक बदला हुआ स्वरूप ही तो
है!
चाहे लकड़ी, कोयला या सोना हो, प्राकृतिक संसाधन उत्पादन के मूल में हैं। निवेश योग्य प्राकृतिक
संसाधनों की मांग और दायरा निरंतर बढ़ रहा है, क्योंकि विश्व की बढ़ती आबादी को इन संसाधनों
की अधिक से अधिक आवश्यकता है। प्राकृतिक संसाधन निवेश का व्यापक दायरा है।
अपने कच्चे रूप से शुरू होने के साथ प्राकृतिक संसाधन आगे विभिन्न प्रक्रियाओं से होकर गुजरते
हैं। उदाहरण के तौर पर इसमें तेल अथवा बोतल निर्माण के लिए एक पेड़ को 4x4s, 2x10s, 2x4s,
आदि में काटना, साफ किया जाना, पैक करना और बेचा जाना शामिल हैं।
हालांकि,कई बार मवेशी, मक्का, कपास, आदि कृषि वस्तुओं को प्राकृतिक संसाधनों के साथ
समूहीकृत नहीं किया जाता हैं।
प्राकृतिक संसाधनों में आज और भविष्य में निवेश करने के कई आकर्षक कारण क्रमशः दिए गए
हैं:
1. बढ़ती आय: जैसे-जैसे विकासशील देशों में आय बढ़ती है, कीमती धातुओं, निर्माण सामग्री और
अन्य प्राकृतिक संसाधनों की मांग भी बढ़ती जाती है। बढ़ती मांग के कारण आम तौर पर कीमतें
बढ़ती हैं।
2.वैश्विक बुनियादी ढांचा और मरम्मत: विकासशील देशों में सड़कों और अन्य सार्वजनिक कार्यों के
निर्माण के लिए आवश्यक बजरी, लकड़ी, स्टील और अन्य सामग्रियों की भारी होड़ मची रहती है।
यह होड़ जनसंख्या वृद्धि और बढ़ते शहरीकरण से प्रेरित हो रही है। इसी तरह, विकसित देशों में
अधिकांश बुनियादी ढांचे को नियमित आधार पर अद्यतन करने की आवश्यकता होती है, और
मरम्मत और अद्यतन किए जाने से पहले जितने अधिक दशक बीतेंगे, आखिर में प्राक्रतिक
संसाधनों मी मांग खर्च भी उतना ही बड़ा होगा।
3.राजनीतिक खरीद: कच्चे माल जिसको की निरंतर आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए कई देशों ने
प्राकृतिक संसाधनों को खरीदना शुरू कर दिया है। यह खरीद कभी-कभी राजनीतिक समझौतों का
रूप ले लेती है, और निवेशकों के लिए बड़ा फायदा साबित हो सकती है।
4.भंडार का मूल्य: कई प्राकृतिक संसाधन विशेष रूप से धातु मूल्य के भंडार के रूप में कार्य करते
हैं। जब मुद्रास्फीति निवेशकों डराती हैं तो उनके लिए प्राकृतिक संसाधन अधिक आकर्षक हो जाते
हैं।
प्राकृतिक संसाधन निवेशकों के लिए निवेश विकल्पों की एक विस्तृत श्रृंखला पहले से कहीं अधिक
उपलब्ध है।
1. प्रत्यक्ष निवेश (Direct Investment): निवेशक हमेशा सीधे यह संसाधन खरीद सकते हैं।
हालांकि कीमती धातुओं पर छोटे निवेश के लिए यह दृष्टिकोण अच्छी तरह से काम करता है,
लेकिन लकड़ी, प्राकृतिक गैस और अन्य संसाधनों के बारे में बोलते समय यह अव्यवहारिक हो
जाता है, जिसके लिए बड़ी भंडारण सुविधाओं की आवश्यकता होती है, जो संबंधित लागतों के साथ
आती हैं।
2.वायदा और विकल्प (Futures and Options): अनुभवी व्यापारियों के लिए ये बेहतरीन
निवेश हैं, विशेषज्ञों को छोड़कर अन्य के लिए यह चुनौती साबित हो सकते हैं।
3.स्टॉक्स (Stocks): ईटीएफ (ETFs) निश्चित रूप से स्टॉक से बने होते हैं। यहाँ निवेशक
बिचौलिए को काट सकते हैं, और इन प्राकृतिक संसाधन कंपनी के शेयरों को सीधे खरीद सकते हैं।
1970 और 1990 के दशक में भी आप आसानी से पानी में निवेश नहीं कर सकते थे। आपको यह
पता लगाना होगा कि किन कंपनियों को अपने राजस्व का एक महत्वपूर्ण हिस्सा पानी से प्राप्त
हुआ, और फिर उन्हें खरीदना होगा। आप अभी भी कोयला खनन कंपनी में शेयर खरीद सकते हैं,
या कोयला ईटीएफ खरीद सकते हैं। कोयला वायदा व्यापार कर सकते हैं, या यहां तक कि स्टोर
करने के लिए कोयले का शिपमेंट भी खरीद सकते हैं। निवेश के विकल्प और इन संसाधनों की मांग
में लगातार वृद्धि के साथ, यह निवेशकों के लिए एक बहुत ही दिलचस्प क्षेत्र है।
भारतीय अर्थव्यवस्था दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है। भारत में खनन और तेल
उद्योगों के विस्तार के लिए आवश्यक पूंजी को आकर्षित करने के लिए सरकार को निवेश के
माहौल में सुधार, पर्यावरण मानकों को बढ़ाने और सार्वजनिक समर्थन का निर्माण करने के लिए
व्यापार के साथ मिलकर काम करने की आवश्यकता है।
स्टील बनाने वाली सामग्री, लौह अयस्क और कोयले की भारतीय मांग 2016 और 2030 के बीच
दोगुनी होने की उम्मीद है। भारत अनावश्यक रूप से सालाना 250 अरब डॉलर से अधिक तेल,
खनिज और धातुओं का आयात करता है, और इस क्षेत्र में रोजगार की संभावना भी बहुत कम है।
भारतीय कार्यबल (workforce) जल्द ही दुनिया में सबसे बड़ा होगा। हालांकि इस बात को अब
राजनीतिक नेता भी मानने लगे हैं और 2019 की राष्ट्रीय खनिज नीति का लक्ष्य अगले सात वर्षों
में खनन और तेल उद्योगों के आकार को तीन गुना करना है।
इन लक्ष्यों प्राप्त करने में केवल सही नीतिगत ढांचे और व्यवसाय से प्रतिबद्धताओं के साथ, तीन
बदलाव की जरूरत है।
1. सबसे पहले, सरकार की नीति के अंतर्गत संसाधन विकास की सुविधा प्रदान करनी चाहिए। हमें
संसाधनों तक उद्योग की पहुंच में सुधार करने, अनुमति को तेज और अधिक अनुमान लगाने
योग्य बनाने की जरूरत है। साथ ही बुनियादी ढांचे की बाधाओं को भी दूर करने की आवश्यकता है,
जिससे उत्पादन को खदान से ग्राहकों तक पहुंचाना मुश्किल हो जाता है।
2. दूसरा, हमें विकास के लिए अधिक से अधिक सामुदायिक समर्थन हासिल करने के लिए खुद को
और उद्योग को चुनौती देने की जरूरत है। कुछ हद तक इसके लिए पर्यावरण मानकों को बढ़ाने
और उद्योग के प्रदर्शन में जनता के विश्वास को जीतने की आवश्यकता होगी। व्यवसाय को एक
नियामक निकाय बनाने के लिए सरकार के साथ काम करना चाहिए ताकि समुदायों को लगे कि
उनकी रक्षा की जा रही है।
3. अंत में उद्योग को राज्य की क्षमता बनाने और विकास के लाभों को फैलाने के लिए सरकार के
साथ काम करने की जरूरत है। मार्च 2018 तक वित्तीय वर्ष में सार्वजनिक वित्त में प्राकृतिक
संसाधन समूह वेदांता का योगदान लगभग $4.7bn बिलियन था। अकेले वेदांता में 65,000 से
अधिक लोग कार्यरत हैं,जो अपने सामुदायिक कार्यक्रमों के माध्यम से 3.4m की मदद करता है।
एक बढ़ता हुआ क्षेत्र इन लाभों को बहुत अधिक बढ़ा सकता है।
आज भारतीय अर्थव्यवस्था के सामने सबसे महत्वपूर्ण घाटा प्राकृतिक संसाधनों के आयात में होने
वाला खर्च है। अपनी तेल आवश्यकता का दो-तिहाई आयात करने के अलावा, भारत अगले दशक में
दुनिया के सबसे बड़े कोयला आयातक के रूप में चीन से आगे निकल जाएगा, बावजूद इसके की
चीन की कोयले की खपत भारत की तुलना में छह गुना अधिक है। लौह अयस्क के मामले में भी,
भारत विश्व स्तर पर लौह अयस्क का तीसरा सबसे बड़ा निर्यातक होने के बजाय जल्द ही
आयातक बनने के जोखिम में आ गया है। अतः इस जोखिम से उभरने के लिए नए बिंदुओं पर
विचार करने की आवश्यकता है।
संदर्भ
https://bit.ly/3zIpd8s
https://bit.ly/3najAex
https://bit.ly/3t6mNzs
https://on.ft.com/3JVzEKB
चित्र संदर्भ
1. खदानों में कार्यरत मजदूरों को दर्शाता एक चित्रण (Ft)
2. कटे हुए पेड़ों को दर्शाता एक चित्रण (Flickr)
3. कांच की बोतल की निर्माण प्रक्रियाको दर्शाता एक चित्रण (Britannica)
4. कोयला खनन को दर्शाता एक चित्रण (Flickr)
5. प्राकृतिक गैस संयंत्र को दर्शाता एक चित्रण (Arab News)
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