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जानवरों द्वारा आपसी संवाद, संचार के लिए उपयोग की जाने वाली विभिन्न विधियां

मेरठ

 07-01-2022 06:41 AM
व्यवहारिक

“पशु संचार”‚ एक जानवर या जानवरों के समूह द्वारा एक या अधिक अन्य जानवरों को जानकारी का हस्तांतरण है‚ जो सूचना प्राप्त करने वाले जानवरों के वर्तमान या भविष्य के व्यवहार को प्रभावित करता है। पशु संचार में सूचना जानबूझकर भी भेजी जा सकती है‚ जैसे कि प्रेमालाप प्रदर्शन में और अनजाने में भी‚ जैसे कि शिकारी से शिकार तक गंध के हस्तांतरण में। सूचना कई जानवरों को स्थानांतरित की जा सकती है। जानवर अपनी भावनाओं को व्यक्त करने वाली आवाज़ें उत्पन्न करते हैं और कुछ पावलोवियन तरीके (Pavlovian way) से संकेतों का उपयोग करते हैं।
भाषा को संचार का एक बहुत ही जटिल रूप माना जाता है जो मानव जाति के बीच होता है। यह मौखिक और गैर-मौखिक सम्मेलनों का एक समूह है‚ जिसका उपयोग मनुष्य अपने विचारों और इच्छाओं को व्यक्त करने के लिए करता है। मनुष्य अपनी आवश्यकताओं और चाहतों को व्यक्त करने के लिए बात करते समय शब्दों का उपयोग करते हैं और जब वे भावनाओं को व्यक्त करना चाहते हैं तो वे रोते हैं‚ हंसते हैं और अलग अलग चेहरे बनाते हैं। पशु या गैर-मनुष्य भी संचार के लक्षण दिखाते हैं‚ जैसे एक कुत्ता उत्तेजित होने पर अपनी पूंछ हिलाता है या एक पक्षी विपरीत लिंग को आकर्षित करने के लिए गाना गाता है। लेकिन जानवरों की भी अपनी एक भाषा होती है‚ इस बात के लिए वैज्ञानिक अभी भी अनिश्चित हैं। पशु भाषाएं‚ गैर-मानव पशु संचार के रूप हैं‚ जो मानव भाषा से समानता प्रदर्शित करती हैं। जानवर कई तरह के संकेतों जैसे आवाज़ या हरकत का उपयोग करके संवाद करते हैं। इस तरह के संकेत को भाषा का एक रूप कहा जाना पर्याप्त जटिल माना जा सकता है‚ यदि संकेतों की सूची बड़ी है‚ संकेत अपेक्षाकृत मनमानी हैं‚ और जानवर उन्हें कुछ हद तक इच्छा के साथ उत्पन्न करते हैं। प्रायोगिक परीक्षणों में‚ पशु संचार को लेक्सिग्राम (lexigrams) के उपयोग के माध्यम से भी प्रमाणित किया जा सकता है‚ जैसा कि चिंपैंजी (chimpanzees) और बोनोबोस (bonobos) द्वारा उपयोग किया जाता है। शोधकर्ताओं का कहना है कि जानवरों या गैर-इंसानों के पास इंसानों की तरह एक सच्ची भाषा नहीं है‚ हालाँकि वे एक दूसरे के साथ ध्वनियों और इशारों के माध्यम से संवाद करते हैं। कई शोधकर्ताओं का तर्क है कि पशु संचार में मानव भाषा के एक महत्वपूर्ण पहलू का अभाव है‚ अर्थात विभिन्न परिस्थितियों में संकेतों के नए पैटर्न के निर्माण का अभाव‚ उदाहरण के लिए मनुष्य नियमित रूप से शब्दों के पूरी तरह से नए संयोजन का निर्माण कर सकते हैं‚ जबकि पशु ऐसा नहीं कर सकते। जानवरों में कई जन्मजात गुण होते हैं‚ जो वे अपनी भावनाओं को व्यक्त करने के लिए उपयोग करते हैं‚ लेकिन ये उन गठित शब्दों की तरह नहीं हैं‚ जिन्हें हम मानव भाषा में देखते हैं। मानव बच्चे धीरे-धीरे भाषा के शब्दों को सीखते हैं और इसे संचार के रूप में उपयोग करते हैं। यदि मानव बच्चों को जन्म के समय ही मनुष्यों से अलग कर दिया जाता तो वे भाषा के शब्द नहीं सीखते और अन्य मनुष्यों के साथ संवाद नहीं कर पाते। वे संचार के अपने प्राथमिक रूप के रूप में ध्वनियों और इशारों का सहारा लेते। जबकि जानवरों के साम्राज्य में अगर उन्हें जन्म से अकेले पाला जाता‚ तो भी वे अपनी तरह की अन्य प्रजातियों की तरह ही व्यवहार और संवाद करने में सक्षम होंगे। भाषाविद् चार्ल्स हॉकेट (Charles Hockett) सहित कुछ शोधकर्ताओं का तर्क है कि मानव भाषा और पशु संचार इतने भिन्न है कि अंतर्निहित सिद्धांत असंबंधित हैं। इसलिए भाषाविद् थॉमस ए. सेबेक (Thomas A. Sebeok) ने पशु संकेत प्रणालियों के लिए “भाषा” शब्द का प्रयोग नहीं करने का प्रस्ताव किया है। मार्क हॉसर (Marc Hauser)‚ नोम चॉम्स्की (Noam Chomsky) और डब्ल्यू टेकुमसेह फिच (W. Tecumseh Fitch) का कहना है कि पशु और मानव भाषा की संचार विधियों के बीच एक विकासवादी अबाध क्रम मौजूद है। लेकिन कुत्तों जैसे जानवर और बात करने वाले पक्षी भी हैं‚ जो इस तथ्य पर प्रश्नचिन्ह लगाते हैं‚ क्योंकि कुत्ते आज्ञाओं को समझते हैं और कुछ पक्षी हैं जो “बात” कर सकते हैं। कुत्तों को कुछ आदेशों का पालन करने के लिए प्रशिक्षित किया जा सकता है और उन्हें अपने मालिकों के इरादों को पढ़ने में विशेषज्ञ के रूप में भी जाना जाता है। वे वास्तविक शब्दों का जवाब नहीं देते हैं‚ लेकिन जिस स्वर में कहा जाता है वे उसे समझने की कोशिश करते हैं‚ इसलिए यदि आप हंसमुख स्वर में “बुरा कुत्ता” कहते हैं‚ तो कुत्ता अपनी पूंछ हिलाएगा और यदि आप कठोर स्वर में “अच्छा कुत्ता” कहते हैं‚ तो कुत्ता अपनी पूंछ को अपने पैरों के बीच में ही रखेगा। इसी प्रकार कैद में रहने वाले पक्षी भी हैं जो “बात” करने में सक्षम होने के लिए जाने जाते हैं‚ ऐसा माना जाता है कि इसका उनके लिए कोई मतलब नहीं है‚ वे केवल उन ध्वनियों की नकल करते हैं जो वे सुनते हैं। जानवरों द्वारा संदेश देने या प्राप्त करने के लिए गंध का उपयोग भी किया जाता है। गंध का बोध‚ महक या घ्राण-चेतना वह विशेष इंद्रिय है‚ जिसके माध्यम से गंध या ख़ुशबू का अनुभव किया जाता है। गंध के बोध के कई कार्य हैं‚ जिसमें खतरों‚ जोखिमों और फेरोमोन (pheromones) जैसे गुप्त या उत्सर्जित रासायनिक कारक का पता लगाना भी शामिल है‚ और यह स्वाद में भी एक भूमिका निभाता है। गंध के द्वारा शक्तिशाली संदेश दिए जा सकते हैं‚ यह एक ऐसा तथ्य है‚ जो उनके द्वारा ऐसा करने के साधनों की खोज से बहुत पहले से ज्ञात था। प्राचीन यूनानियों (Greeks) को पता था कि गर्मी में मादा कुत्ते का स्राव नर कुत्तों के लिए आकर्षक होता है। 1623 में प्रकाशित‚ अपनी मधुमक्खी पालक नियमावली “द फेमिनिन मोनार्की” (The Feminine Monarchie) में‚ चार्ल्स बटलर (Charles Butler) ने चेतावनी दी थी कि एक घायल मधुमक्खी की “रैंक गंध” (ranke smell) अन्य क्रोधित मधुमक्खियों को डंक मारने के लिए आकर्षित करेगी। कीट घ्राण या महक‚ रासायनिक संग्राहक के कार्य को संदर्भित करता है‚ जो कीड़ों को खाना ढूंढने‚ शिकारी से बचने‚ फेरोमोन के माध्यम से संभोग भागीदारों को खोजने और अंडे देने के योग्य आवासों का पता लगाने के लिए‚ अस्थिर यौगिकों को पहचानने में सक्षम बनाता है। इस प्रकार‚ यह कीड़ों के लिए सबसे महत्वपूर्ण संवेदना है। यह सबसे महत्वपूर्ण कीट व्यवहार है जो पूरी तरह से समय पर होना चाहिए‚ यह इस बात पर निर्भर करता है कि वे क्या सूंघते हैं और कब सूंघते हैं। उदाहरण के लिए‚ पॉलीबिया सेरीसिया (Polybia sericea) सहित ततैया की कई प्रजातियों में शिकार के लिए गंध अत्यंत आवश्यक है।

संदर्भ:
https://bit.ly/32SQ9qg
https://bit.ly/3F1hV0A
https://bit.ly/34hwKj2
https://bit.ly/3F4NCpY
https://bit.ly/3G0P8dT
https://bit.ly/3F5z9tL

चित्र संदर्भ   
1. चिंपाजी को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
2. जम्हाई लेती लोमड़ी को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
3. अपने मालिक को देखते कुत्तों को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
4. मनुष्य के हाथ को टटोलती गिलहरी को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
5. चींटियों की कतार को दर्शाता एक चित्रण (flickr)

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