भारत और ब्रिटेन में चुनावी समानताएं एवं अंतर

आधुनिक राज्य: 1947 से अब तक
01-12-2021 09:04 AM
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भारत और ब्रिटेन में चुनावी समानताएं एवं अंतर

15 अगस्त सन 1947 की सुबह मूल भारतीय नागरिकों ने पहली बार आज़ादी की खुली हवा में साँस ली! इससे पूर्व तक भारत में ब्रिटिश उपनिवेशों का शाशन रहा। चूंकि ब्रिटिश अधिकारी एवं आम नागरिक भी एक लंबे अरसे तक भारत में रहे, इस बीच उन्होंने हमारे साथ ब्रिटेन की कई संस्कृतियों का आदान-प्रदान भी किया। भारत की कुछ प्रणालियों में ब्रिटिश शाशकों की नीतियां आज भी सामान दिखाई देती हैं। यद्यपि हमारे औपनिवेशिक इतिहास के कारण आधुनिक ब्रिटेन और भारत की लोकतांत्रिक चुनाव प्रणाली में भी काफी समानताएं हैं, लेकिन कुछ महत्वपूर्ण अंतर भी देखे जा सकते हैं। जिन्हे समझना दिलचस्प है!
भारत और यूनाइटेड किंगडम में प्रायः एक ही मतदान प्रणाली काम करती है, जिसे "फर्स्ट-पास्ट-द- पोस्ट "first-past-the-post (FPTP) वोटिंग पद्धति के नाम से जाना जाता है। जिसके अंतर्गत मतदाता अपनी पसंद के उम्मीदवार को वोट अथवा मत देते ,हैं तथा जो उम्मीदवार सर्वाधिक वोट प्राप्त करता है वह विजयी होता है। (FPTP) वोटिंग पद्धति दुनिया के करीब एक तिहाई देशों में व्यापक रूप से प्रचलित है। जिसके कुछ उल्लेखनीय उदाहरणों में यूनाइटेड किंगडम, संयुक्त राज्य अमेरिका, कनाडा और भारत शामिल हैं। भारत और ब्रिटेन दोनों संसदीय लोकतंत्र हैं, और दोनों के पास प्रादेशिक निर्वाचन क्षेत्रों के आधार पर संसद के निचले सदन में चुनाव का पहला-पास्ट-द-पोस्ट, एफपीटीपी, मॉडल है। साथ ही दोनों देश बहुदलीय लोकतंत्र भी हैं। यदि हम राष्ट्र प्रमुख के संदर्भ में देखें तो ब्रिटेन एक राजशाही तंत्र है, और उसके पास एक राजा या रानी होती है। वही भारत जैसे गणतांत्रिक देशों में यह एक राष्ट्रपति होता है। भारतीय प्रणाली में सरकार के मुखिया के तौर पर प्रधानमंत्री को नियुक्त किया जाता है, जिसे सीधे मतदाताओं के बजाय लोकसभा के सदस्यों द्वारा नियुक्त किया जाता है। यदि किसी एक दल को बहुमत प्राप्त होता है, तो वह दल सरकार बनाने का हकदार होता है, जिसका नेता प्रधान मंत्री होता है। वहीं यूनाइटेड किंगडम के प्रत्येक संसदीय क्षेत्र हाउस ऑफ कॉमन्स (House of Commons) के लिए एक सांसद का चुनाव करता है। तो कुल मिलाकर ब्रिटेन में कोई राष्ट्रपति नहीं होता है, वहीं भारत में राष्ट्रपति होते है. जिनका चुनाव निर्वाचक मंडल के सदस्यों द्वारा किया जाता है। यूके (United Kingdom)और भारत में प्रणाली की तुलना करना दिलचस्प है, जिसमें कई समानताएं और साथ ही महत्वपूर्ण अंतर हैं। भारत में चुनाव की तारीखें चुनाव आयोग द्वारा तय की जाती हैं, जबकि ब्रिटेन में चुनावों की तारीखें पहले से ही निर्धारित कर ली गई हैं। ब्रिटेन में मतपेटियों का उपयोग किया जाता है, जबकि भारत में पारदर्शिता के लिए 1998 से इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन का उपयोग किया जाता रहा है। ब्रिटेन में निचले सदन और निर्वाचन क्षेत्र का आकार भारत से भिन्न होता है, जिनके हाउस ऑफ कॉमन्स में 650 सांसद होते हैं, जिन्हे 70,000 मतदाताओं के निर्वाचन क्षेत्र द्वारा चुना जाता हैं, जबकि भारत में 16 लाख मतदाताओं के निर्वाचन क्षेत्र द्वारा 543 सांसद चुने जाते हैं। जहाँ ब्रिटेन में अभी भी शिकायतें आम हैं कि मतपत्र कुछ बूथों पर समय पर नहीं पहुंचते हैं, वही भारत में ऐसा नहीं है। यहाँ चुनाव आयोग यह सुनिश्चित करता है कि ईवीएम को सुदूर कोनों और वामपंथी उग्रवाद से खतरे वाले क्षेत्रों में भी वितरित किया जाए। भारत में लोकसभा और ब्रिटेन के हाउस ऑफ कॉमन्स समकक्ष हैं जिनके मतदाता सीधे अपने प्रतिनिधियों का चुनाव करते हैं। यूके में, चुनाव प्रचार बहुत सस्ता है, जहाँ उम्मीदवारों या एजेंटों द्वारा घर-घर जाकर और टीवी बहस तक ही प्रचार प्रसार सीमित होता है। ब्रिटेन में टीवी और रेडियो पर सशुल्क (शुल्क देकर) राजनीतिक विज्ञापन की अनुमति नहीं है। जबकि भारत में मास मीडिया चुनाव अभियानों की रीढ़ मानी जाती है। भारत में पेड न्यूज (paid news), काफी प्रचलित है, वही यूके में यह अनसुनी है। यूके में उम्मीदवारों और पार्टियों दोनों के चुनावी खर्च की एक सीमा है, जबकि भारत में यह केवल उम्मीदवारों तक ही सीमित है। 2014 में भारत में 66.4 प्रतिशत के मुकाबले ब्रिटेन के कुल 66.1 प्रतिशत मतदान के साथ दोनों देशों में मतदाताओं की भागीदारी समान थी; हालांकि, पिछले कुछ वर्षों में, ब्रिटेन में मतदाताओं की संख्या में कमी आ रही है। वही भारत में इसके विपरीत मतदाताओं की संख्या का ग्राफ और ऊपर जा रहा है, हालांकि दोनों देशों के युवाओं में मतदान के प्रति उदासीनता आम है। भारत 1998 से इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों (ईवीएम) का उपयोग कर रहा है। जबकि यूके में ऐसा नहीं है हालांकि दोनों देशों में इंटरनेट या ऑनलाइन वोटिंग के लिए पहल धीमी गति से बढ़ रही है। यूके के लिए सबसे बड़ा सकारत्मक पहलु यह है की उनका वोटिंग सिस्टम (Voting System) बहुत साफ है, जहाँ वोटिंग के दौरान कोई हिंसा नहीं होती, बूथ कैप्चरिंग नहीं होती, कोई प्रतिरूपण नहीं है और कोई हेराफेरी भी नहीं होती। यूके दुनिया का एकमात्र देश है जहां वोटिंग के लिए किसी पहचान प्रमाण की आवश्यकता नहीं है। मतदाता सूची में फोटो नहीं होती है। उंगलियों का कोई निशान नहीं देना पड़ता। मतदाता की पहचान सत्यापित करने के लिए बूथ में कोई पार्टी एजेंट भी नहीं होता है। वही भारत में वोटिंग प्रक्रिया चुनाव आयोग के लिए एक कड़ा संघर्ष साबित होता है भारत में एक वोटिंग बूथ (voting booth) को किले की तरह सुरक्षित करना पड़ता है। एक बहुत महत्वपूर्ण अंतर यह है भी कि वहां मतदान के दिन कोई छुट्टी नहीं होती है।

संदर्भ
https://bit.ly/2ZxJsrW
https://bit.ly/3pdBIEr
https://bit.ly/3pehDOp
https://bit.ly/32N6fS5
https://en.wikipedia.org/wiki/Elections_in_India

चित्र संदर्भ   
1. मतदान पेटी और EVM मशीन को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
2. एकल सदस्यीय जिले के लिए प्रथम-पास्ट-द-पोस्ट मतपत्र। मतदाता को एक (और केवल एक) अंकित करना होगा। जिसको दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3.लिस्बर्न में 2007 उत्तरी आयरलैंड विधानसभा चुनाव के पोस्टर को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4. उत्तर पूर्व समरसेट निर्वाचन क्षेत्र 2019 आम चुनाव के परिणाम की मतगणना घोषणा को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)

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