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भारत दुनिया का पांचवां सबसे अधिक जलवायु-संवेदनशील देश है। वर्ष 2020-21‚
जलवायु परिवर्तन के मिश्रित प्रभावों तथा जलवायु तन्यकता के निर्माण में
निष्क्रियता की लागतों को गंभीर रूप से दर्शाता हैं। चक्रवात “तौकतै” (Tauktae)
और “यास” (Yaas) ने भारत के पूर्वी और पश्चिमी तटों पर जीवन और
आजीविका को तहस-नहस कर दिया। उनके कारण आई बाढ़ ने तटीय समुदायों के
दुख तथा समस्याओं को और बढ़ा दिया।
ऊर्जा‚ पर्यावरण और जल परिषद (सीईईडब्ल्यू) (Council on Energy‚
Environment and Water (CEEW)) द्वारा किए गए एक विश्लेषण से पता
चलता है कि 75 प्रतिशत से अधिक भारतीय जिले‚ चरम जलवायु घटनाओं के
संपर्क में हैं। विश्व मौसम विज्ञान संगठन (World Meteorological
Organisation) की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत को पिछले साल चक्रवात‚ बाढ़
और सूखे जैसी आपदाओं के कारण 87 अरब डॉलर का नुकसान हुआ‚ क्योंकि
ग्लोबल वार्मिंग जीवन और संपत्ति को प्रभावित करता है। संयुक्त राष्ट्र (United
Nations) की मौसम एजेंसी ने‚ यूनाइटेड नेशंस इकोनॉमिक एंड सोशल कमीशन
फॉर एशिया एंड दि पैसिफिक (United Nations Economic and Social
Commission for Asia and the Pacific) के अनुमानों के अनुसार‚ अपनी स्टेट
ऑफ द क्लाइमेट इन एशिया रिपोर्ट (State of the Climate in Asia report)
में कहा कि‚ भारत का नुकसान चीन के बाद दूसरे स्थान पर था‚ जिसने 2020 में
238 बिलियन डॉलर का नुकसान किया। जापान में यह नुकसान भारत के 85
अरब डॉलर के नुकसान से थोड़ा कम था।
मौसम संगठन ने बताया कि अधिकांश नुकसान‚ सूखे के कारण हुआ था। 2020‚
एशिया के रिकॉर्ड में सबसे गर्म साल था‚ जिसका औसत तापमान 1981 और
2010 के बीच औसत से 1.39 डिग्री सेल्सियस अधिक था‚ जो ग्लासगो
(Glasgow) में वैश्विक शिखर सम्मेलन से पहले जलवायु संकट की सीमा को
उजागर करता है।
सीईईडब्ल्यू (CEEW) का अनुमान है‚ कि पिछले दो दशकों में भारत की आपदा
तैयारियों में कमीयों की प्रत्यक्ष लागत 13.14 लाख करोड़ रुपये थी। विशेष रूप से
चरम जलवायु घटनाओं ने‚ पिछले 50 वर्षों में भारत को 99 बिलियन डॉलर से
अधिक की लागत दी है। एक कस्टमर डेटा प्लेटफॉर्म विश्लेषण (customer data
platform analysis) के आधार पर पता चला है कि इस तरह के आयोजनों पर
अगले पांच वर्षों में भारतीय उद्योग जगत को 7 लाख करोड़ रुपये तथा भारतीय
बैंकों को 6 लाख करोड़ रुपये से अधिक की लागत आने की संभावना है। इसके
अलावा‚ अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (International Labour Organisation) का
अनुमान है‚ कि गर्मी की लहरों जैसी धीमी गति से शुरू होने वाली घटनाओं की
स्थिति में निष्क्रियता के कारण भारत को 2030 तक 34 मिलियन नौकरियों का
नुकसान होने की संभावना है। शिकागो विश्वविद्यालय (University of Chicago)
के एक हालिया अध्ययन के अनुसार‚ इससे 2% की वार्षिक औद्योगिक राजस्व
हानि भी हो सकती है। कई अध्ययनों से यह भी पता चला है‚ कि जलवायु
परिवर्तन का प्रभाव केवल चरम घटनाओं तक ही सीमित नहीं है‚ यह कृषि के
सकल घरेलू उत्पाद‚ जो भारत में आजीविका का सबसे बड़ा प्रदाता है‚ को 2030
तक 1.5% तक कम कर देगा। यह चावल और गेहूं जैसी मुख्य फसलों की पैदावार
में 6-10% तक गिरावट ला सकता है। यह भी सम्भावना है कि 2050 तक भारत
में 45 मिलियन से अधिक लोग पलायन करने के लिए विवश हो जाएंगे। भारत
पहले से ही ग्लोबल वार्मिंग के परिणामों का अनुभव कर रहा है‚ अत्यधिक गर्मी‚
भारी वर्षा‚ भयंकर बाढ़‚ विनाशकारी तूफान और समुद्र का बढ़ता स्तर देश भर में
जीवन‚ आजीविका और संपत्ति को नुकसान पहुंचा रहा है।
उत्तर प्रदेश‚ सबसे बड़ी आबादी वाला राज्य होने के कारण‚ जलवायु के संरक्षण में
बड़ी भूमिका निभाता है। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि
सरकार हमेशा जलवायु परिवर्तन के मुद्दे को लेकर चिंतित रहती है तथा इसे
सुधारने की दिशा में सख्ती से काम कर रही है। 2017 में सत्ता में आने के बाद
उन्होंने अपने पहले कदम के रूप में‚ सभी अवैध बूचड़खानों को बंद करा दिया‚ जो
कई बीमारियों के पीछे का मूल कारण थे। सीएम ने कहा पर्यावरण की बेहतरी की
दिशा में‚ “नमामि गंगे परियोजना” के माध्यम से‚ हमने पवित्र नदी को पहले की
तुलना में बहुत अधिक स्वच्छ बना दिया है। अब कानपुर का एक भी सीवेज गंगा
नदी में नहीं गिराया जाता है। अब वाराणसी में पवित्र नदी में डॉल्फ़िन भी देखी
जा सकती है। उन्होंने यह भी उल्लेख किया कि उनकी सरकार‚ भूजल रिचार्जिंग
के काशी और चित्रकूट मॉडल (Kashi and chitrakoot models of
groundwater recharging)‚ प्लास्टिक पर प्रतिबंध लगाने जैसी और अन्य
सहायता की पहल के माध्यम से स्थिति को सकारात्मक रूप से बदलने की
कोशिश कर रही है। उन्होंने कहा कि वे हर ग्राम पंचायत में एक सामुदायिक
शौचालय तथा ठोस कचरा प्रबंधन के लिए भी काम कर रहे हैं। इसके अलावा
सरकार 100 साल से अधिक पुराने पेड़ों को संरक्षित करने के लिए समर्पित रूप से
काम कर रही है। इसकी मिसाल बाराबंकी में 5000 साल पुराना एक पेड़ है‚ जिसे
राज्य सरकार द्वारा संरक्षित किया जा रहा है। आम‚ जामुन‚ बरगद‚ पीपल और
ड्रमस्टिक के कई पारंपरिक पेड़‚ जो पर्यावरण की रक्षा और संरक्षण में महत्वपूर्ण
भूमिका निभाने के लिए जाने जाते हैं‚ राज्य में लगाए गए हैं। “पीएम आवास
योजना” के तहत ड्रमस्टिक के दो पेड़ लगाए जाते हैं‚ जो न केवल बीमारियों और
संक्रमणों को रोकने में मदद करता है बल्कि विटामिन और प्रोटीन से भरपूर सब्जी
‘सहजन’ भी प्रदान करता है। पौधों को काटने से न केवल ग्लोबल वार्मिंग को
बढ़ावा मिलता है बल्कि प्रदूषण भी बढ़ता है। सीएम ने कहा‚ “प्रकृति के करीब
रहने से प्रतिरक्षा प्रणाली को भी बढ़ावा मिलता है। यह कोविड-19 (COVID-19)
महामारी के कठिन समय में साबित हुआ है‚ संयुक्त राज्य अमेरिका (United
States) में मृत्यु दर पूरी महामारी के दौरान भारत की तुलना में 1.5 गुना अधिक
थी।” जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों को कम करने तथा स्वस्थ जीवन के लिए
पर्यावरण को स्वच्छ और शुद्ध बनाने की पहल में‚ सीएम ने ‘माटी कला बोर्ड’
(Mati Kala Board) का गठन किया है‚ जिसने मिट्टी में तकनीक को जोड़ा है।
भारत को एक सक्रिय जलवायु जोखिम शमन रणनीति की आवश्यकता है‚ जिसमें
व्यापक रूप से तेज तथा बेहतर निर्माण पर ध्यान दिया जाए। सबसे पहले‚
बुनियादी ढांचे की क्षति‚ वित्तीय नुकसान‚ खोई हुई आजीविका‚ प्रवास और
स्वास्थ्य प्रभावों जैसे जलवायु प्रभावों के लिए देश के जोखिम का व्यापक
मूल्यांकन होना चाहिए। समय पर तथा अंशांकित कार्रवाई‚ प्रणालीगत जोखिमों को
कम कर सकती है‚ और राजस्व लाभ उत्पन्न कर सकती है।
अध्ययनों से पता चलता है‚ कि आपदा-तन्यक बुनियादी ढांचे (डीआरआई)
(disaster-resilient infrastructure (DRI)) में निवेश करने से‚ कमजोर देशों को
4.2 ट्रिलियन डॉलर का लाभ मिल सकता है। निवेश की गई राशि चौगुने लाभ की
पेशकश करेगी‚ जबकि निष्क्रियता की लागत 2020-2030 के बीच 1 ट्रिलियन
डॉलर की सीमा में हो सकती है। सीईईडब्ल्यू (CEEW) विश्लेषण संकेत करता है‚
कि मजबूत जोखिम शमन तंत्र को लागू करने तथा अकेले बेहतर आपदा तैयारियों
में निवेश करने से‚ पिछले दो दशकों में भारत को 6.76 ट्रिलियन से अधिक की
बचत हो सकती है।
एक उच्च-स्तरीय संकल्प ‘जलवायु जोखिम एटलस’ (Climate Risk Atlas)‚
भारत को जिला स्तर पर महत्वपूर्ण कमजोरियों का नक्शा बनाने में मदद करेगा।
इसके कई अनुप्रयोगों में बेहतर तटीय निगरानी और पूर्वानुमान के लिए समर्थन
शामिल होगा‚ जो चक्रवातों और अन्य चरम घटनाओं की तीव्र उत्कटता को देखते
हुए अत्यावश्यक हैं। भारत को कंपनियों के लिए‚ ऋणदाताओं‚ बीमाकर्ताओं और
नियामक प्राधिकरणों को जलवायु संबंधी वित्तीय जोखिमों की रिपोर्ट करना
अनिवार्य बनाना चाहिए। ऐसा करने से उन्हें‚ जोखिम से वाकिफ व्यावसायिक
निर्णय लेने तथा चरम घटना के लिए तैयार मूल्य श्रृंखला विकसित करने में मदद
मिलेगी‚ जिससे क्षेत्रीय तन्यकता में वृद्धि होगी। इसके अलावा‚ सिस्टम
नवीनीकरण और नई तकनीकों का उपयोग करते हुए जलवायु-जाँच महत्वपूर्ण
बुनियादी ढांचा (climate-proof critical infrastructures) चाहिए। नयी राष्ट्रीय
तथा राज्य-स्तरीय आर्थिक और बुनियादी ढांचा नीतियों की भी आवश्यकता है‚
ताकि तन्यक प्रणालियों का निर्माण और रखरखाव करने‚ जोखिमों को कम तथा
प्रबंधित करने और प्रतिकूल जलवायु घटनाओं की भविष्यवाणी और प्रतिक्रिया
करने की हमारी क्षमता में सुधार किया जा सके।
संदर्भ:
https://bit.ly/3jOBiCj
https://bit.ly/3BsKtyp
https://bit.ly/3Gz6y26
https://bit.ly/3bnXOxw
चित्र संदर्भ
1. परमाणु संयंत्रों से निकलते धुएं को दर्शाता एक चित्रण (
Inside Climate News)
2.चक्रवात के परिणामों को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
3. बर्फ की कमी में ध्रुवीय भालू का एक चित्रण (gettyimages)
4. चेन्नई में भारतीय नौसेना द्वारा राहत प्रयास को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
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