समय - सीमा 267
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हवा के ऊपर उठने से समुद्री सतह पर हवा की मात्रा बहुत
कम हो जाती है, और उस क्षेत्र में निम्न दबाव उत्पन्न हो जाता है। गर्म और नमीयुक्त हवा के ऊपर
जाने से बादल बनना शुरू हो जाते हैं। जैसे-जैसे यह प्रक्रिया जारी रहती है, वैसे-वैसे बादल बढ़ते हैं और
हवा भी घूमने लगती है। जब तूफान तेजी से घूमता है, तब केंद्र में एक आंख जैसी संरचना बन जाती है,
तथा यह प्रक्रिया चक्रवात का रूप ले लेती है। तूफान कितना तीव्र है, इसके आधार पर ही इससे होने
वाली क्षति का अनुमान लगाया जा सकता है।या यूं कहें, कि तूफान जितना तीव्र होगा उससे होने वाली
क्षति भी उतनी ही अधिक होगी।यूं तो दुनिया भर में अन्य समुद्र तट भी बढ़ते तूफानों की चपेट में हैं,
जैसे लुइसियाना (Louisiana) का खाड़ी तट, लेकिन समुद्र की सतह के अत्यधिक गर्म तापमान और हवा
की स्थिति जैसी वायुमंडलीय स्थितियों के कारण, बंगाल की खाड़ी चक्रवात के प्रति अधिक संवेदनशील
है। इसकी तुलना यदि हम अरब सागर से करें तो,अरब सागर,बंगाल की खाड़ी की तुलना में ठंडा होता है
और यहां वातावरण में मौजूद हवाएं विपरीत होती हैं, खासकर शुरुआती मानसून के दौरान या मानसून के
दौरान। वायुमण्डल के निचले स्तर पर हवाएँ एक दिशा में और ऊपरी स्तर पर विपरीत दिशा में बह
सकती हैं, जिससे चक्रवात लंबवत रूप से ऊपर की ओर विकसित नहीं होता। बंगाल की खाड़ी में चक्रवात
का बनना और फिर पूर्वी तटीय क्षेत्रों जैसे पश्चिम बंगाल और उड़ीसा से टकराना काफी आम है, लेकिन
महाराष्ट्र और गुजरात के पास तटीय क्षेत्रों में भी यह परिस्थितियां बनने लगी हैं। इसके अलावा पिछले
कुछ दशकों में गर्मियों के चक्रवातों की संख्या बढ़ती जा रही है, तथा वे अधिक भयावह रूप लेने लगे हैं।
इसका मुख्य कारण है, ग्लोबल वॉर्मिंग के कारण होने वाला जलवायु परिवर्तन।
ग्लोबल वॉर्मिंग ने समुद्र
की सतह के तापमान में वृद्धि की है, जिसका मतलब है,कि समुद्र की सतह से अधिक हवा ऊपर की
ओर जा रही है, हवा की गति तेज हो रही है,तथा परिणामस्वरूप चक्रवातों को जन्म दे रही है। मानसून
के शुरुआती दौर में चक्रवात नहीं बनता है, लेकिन जलवायु परिवर्तन के कारणसमुद्री स्थितियां बदल रही
हैं, तथा चक्रवात बनने लगे हैं।चक्रवातीय घटनाओं की सटीकता का अंदाजा पहले से लगा पाना मुश्किल
होता है, इसलिए इसकी तीव्रता कितनी होगी, इस बारे में कुछ नहीं कहा जा सकता।चक्रवातों का उचित
प्रकार से सामना करने के लिए राज्यों का पहले से ही तैयार होना आवश्यक है। इसके लिए राज्यों को
एक राहत संरचना का निर्माण करना चाहिए, पूर्व चेतावनी प्रणाली की सटीकता पर ध्यान देना चाहिए,
स्पष्ट संचार योजना विकसित करनी चाहिए तथा प्रभावी समन्वय समूह का निर्माण करना चाहिए।