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विश्व में औद्योगीकरण तथा शहरीकरण बड़ी ही तेज़ी के साथ बढ़ रहा है, जिस कारण खेती-
किसानी करने हेतु योग्य भूमि का दायरा भी निरंतर घट रहा है। चूंकि खेती-बाड़ी सिंकुड़ रही है,
जिस कारण किसानों के सामने अधिक फसल उगाने हेतु पर्याप्त जमीन भी नहीं है। अतः फसल के
कम उद्पादन के कारण किसानों को आर्थिक लाभ होने की सम्भावना भी कम ही है। इस विडंबना
से निपटने के लिए सबसे अधिक कारगर विकल्प यह हो सकता हैं, की हम खेती में उन फल और
सब्जियों का चुनाव करें जो कम भूमि क्षेत्र लेकर अधिक मुनाफा पैदा करे। उदाहरण के तौर पर हम
अपने निजी बगीचों में मशरूम की खेती कर सकते हैं। और इस पोस्ट में मशरूम की खेती के लाभ
और इसकी मांग आपको भी हैरान कर देगी!
मशरूम एक प्रकार का कवक होता है, जिसे लैटिन में एगारिकस बिस्पोरस (Agaricus bisporus)
के नाम से जाना जाता है। कवक प्रजातियों से संबंधित मशरूम एक पौष्टिक शाकाहारी व्यंजन है,
और उच्च गुणवत्ता वाले प्रोटीन (20-35 प्रतिशत शुष्क वजन) का सर्वोत्तम श्रोत माना जाता है।
आमतौर पर वर्तमान में मशरूम की 3 किस्मों की खेती की जाती है, जिसमे सफेद मशरूम
(एगरिकस बिस्पोरस:Agaricus bisporus), धान-पुआल मशरूम (वोल्वेरिला
वॉल्वेसिया:Volvarilla volvasia) और सीप मशरूम (प्लुरोटस साजोर-काजू:Pleurotus sajor-
cashew) शामिल हैं। वनस्पति जगत में, मशरूम को विषमपोषी जीव अर्थात निचले स्तर का
पौंधा माना गया है। हरे पौधों के विपरीत,मशरूम विषमपोषी होते हैं, तथा प्रकाश संश्लेषण प्रक्रिया
नहीं करते हैं। मशरूम में कई विटामिन और खनिज प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं, जैसे यह बी-
कॉम्प्लेक्स और आयरन, और लाइसिन जैसे गुणवत्ता वाले प्रोटीन का एक बेहतरीन स्रोत साबित
होता हैं। साथ ही यह पूरी तरह से वसा (कोलेस्ट्रॉल) मुक्त होते हैं और एंटीऑक्सीडेंट से भी भरपूर
होते हैं। अतः इसके ऐसे ही अनगिनत लाभों ने विश्वभर में मशरूम की मांग में तेज़ी से वृद्धि की
है।
हमारे देश भारत में मूलतः तीन प्रकार के मशरूम की खेती की जाती है।
1. बटन मशरूम।
2. स्ट्रॉ मशरूम।
3. सीप मशरूम।
सरकारी आंकड़ों के अनुसार, भारत ने 2013-14 में 17,100 मीट्रिक टन मशरूम का उत्पादन किया,
और 2018 तक यह बढ़कर 4,87,000 मीट्रिक टन (चार वर्षों में लगभग 29 गुना वृद्धि) हो गया।
फिर भी भारत में दुनिया के मशरूम उत्पादन का केवल 2% हिस्सा है, वही शीर्ष पर चीन स्थापित
है, जो वैश्विक उत्पादन का 75% से अधिक उत्पादित करता है। भारत में उत्तर प्रदेश जैसे राज्य
मशरूम के शीर्ष उत्पादकों के रूप में उभरे हैं। मशरूम इकोसिस्टम - स्पॉनिंग यूनिट्स, कम्पोस्ट,
मार्केटिंग और संबद्ध सेवाएं भी धीरे-धीरे उभर रही हैं। सोनीपत, गोरखपुर आदि घरेलू उत्पादन के
प्रमुख केंद्रों के रूप में उभर रहे हैं भारत में मशरूम की खेती सबसे अधिक लाभदायक कृषि-
व्यवसायों में से एक है जिसे कोई भी कम निवेश और कम जगह के साथ शुरू कर सकता हैं। भारत
में मशरूम की खेती धीरे-धीरे कई लोगों की आय के वैकल्पिक स्रोत के रूप में बढ़ रही है।
मशरूमों की खेती पांच चरणों में सम्पन्न की जाती है
पहला चरण : खाद तैयार करना
मशरूम की खेती का विचार आने के साथ ही हमें खाद तैयार करने की तैयारी शुरू कर देनी चाहिए।
इसके लिए हम कम्पोस्टिंग (composting) का सहारा ले सकते हैं। यह खाद प्रायः खुले में तैयार
की जाती है। कम्पोस्ट तैयार करने के लिए गहरे गड्ढों का निर्माण किया जाता है, जिसे ढकने की
भी पार्यप्त व्यवस्था कर लेनी चाहिए हालांकि कम्पोस्टिंग खुले में की जाती है, लेकिन बारिश के
पानी से बचाने के लिए उन्हें ढक कर रखना चाहिए। कंपोस्टिंग के लिए निर्मित गड्ढों को घाट भी
कहा जाता है, इन गड्ढों मे, गोबर और अन्य कार्बनिक अपशिष्टों को सड़ने के लिए डाला जाता है।
दूसरा चरण: अवांछित तत्वों को ख़त्म करना
हमारी तैयार कम्पोस्ट खाद में अवांछित बैक्टीरिया, कीड़े, नेमाटोड, कीट, कवक, या अन्य
हानिकारक जीव खाद में मौजूद हो सकते हैं। अतः इन्हे मारने के लिए पाश्चराइजेशन आवश्यक है।
साथ ही पहले चरण की खाद बनाने के दौरान बनने वाले अमोनिया को हटाना आवश्यक है। 0.07
प्रतिशत से अधिक सांद्रता में अमोनिया अक्सर मशरूम स्पॉन वृद्धि के लिए खतरनाक होता है,
इसलिए इसे भी समाप्त किया जाना चाहिए, जिसके लिए आप इसके ढक्कन खोल सकते हैं। इससे
अमोनिया और कार्बन डाइऑक्साइड को बाहरी हवा से बदल दिया जाएगा।
तीसरा चरण : ट्रे में कम्पोस्ट भरना
तैयार खाद गहरे भूरे रंग की होती है। जब आप कम्पोस्ट को ट्रे में भरते हैं, तो वह न तो ज्यादा गीला
होना चाहिए और न ही ज्यादा सूखा होना चाहिए। अगर खाद सूखी है तो पानी की कुछ बूंदों का
छिड़काव करें। अगर बहुत गीला है, तो थोड़ा पानी वाष्पित होने दें। खाद फैलाने के लिए ट्रे का
आकार आपकी सुविधा के अनुसार हो सकता है। लेकिन, यह 15 से 18 सेमी गहरा होना चाहिए।
इसके अलावा, सुनिश्चित करें कि ट्रे सॉफ्टवुड से बनी हैं। ट्रे को किनारे तक खाद से भरा जाना
चाहिए और सतह पर समतल किया जाना चाहिए।
चौथा चरण :स्पॉनिंग (Spawning)
मूल रूप से मशरूम मायसेलियम को दूसरे पात्र अथवा स्थान में बोने की प्रक्रिया को स्पॉनिंग कहा
जाता है। स्पॉनिंग 2 तरीकों से की जा सकती है: पहली- ट्रे की सतह पर कम्पोस्ट बिखेरकर या फिर
ट्रे में भरने से पहले ग्रेन स्पॉन को कम्पोस्ट के साथ मिलाकर। स्पॉनिंग के बाद ट्रे को पुराने
अखबारों से ढक दें। फिर नमी और नमी बनाए रखने के लिए शीट को थोड़े से पानी के साथ छिड़का
जाता है। शीर्ष ट्रे और छत के बीच की दूरी कम से कम 1 मीटर अवश्य होनी चाहिए।
पांचवा चरण : आवरण
खेत की मिट्टी की मिट्टी-दोमट, जमीन के चूना पत्थर के साथ पीट काई का मिश्रण, या पुनः प्राप्त
अपक्षय, खर्च की गई खाद जिसे आवरण के रूप में उपयोग किया जा सकता है। आवरण स्पॉन-रन
कम्पोस्ट पर लगाया जाने वाला एक आवरण है, जिस पर मशरूम धीरे-धीरे और स्थिर रूप से बनते
हैं। आवरण को पोषक तत्वों की आवश्यकता नहीं होती है, क्योंकि आवरण केवल जल भंडार के रूप
में कार्य करता है और एक जगह जहां राइजोमॉर्फ का निर्माण होता है।
छठा चरण : फसल कटाई
आमतौर पर, मशरूम स्पॉनिंग के 10 से 15 दिनों के भीतर उगने लगते हैं। वे अगले 10 दिनों तक
बढ़ते रहते हैं। एक बार जब वोल्वा फूट जाता है और अंदर का मशरूम खुल जाता है, तो फसल
कटाई के लिए तैयार हो जाती है। बहुत नाजुक होने के कारण इन मशरूमों की शेल्फ लाइफ बहुत
कम होती है, इसलिए इन्हें ताजा ही खाना पड़ता है।
संदर्भ
https://bit.ly/3pLIbYZ
https://bit.ly/3EqrNBu
https://bit.ly/2ZvlmOJ
https://bit.ly/3vTzCMG
चित्र संदर्भ
1. ऑर्गनिक मशरूम फार्मिंग को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
2. विभिन्न प्रकार के मशरूमों को दर्शाता एक चित्रण (PhotoDune)
3. मशरूम की कम्पोस्ट का एक चित्रण (istock)
4. ट्रे में कम्पोस्ट भरने का एक चित्रण (youtube)
5. बेचने हेतु तैयार मशरूम का एक चित्रण (istock)
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