आप सभी मशरूम से भली-भांति परिचित होंगे। मशरूम मानव जाति द्वारा जंगलों से इकट्ठा किये जाने के बाद से ही भोजन के रूप में खाए जा रहे हैं। हालांकि, उस समय अपने जटिल स्वभाव के कारण मशरूम को घरेलू रूप से नहीं उगाया जाता था। लगभग हजार साल पहले चीन ने सर्वप्रथम उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय मशरूम की कृत्रिम खेती की शुरुआत की। वास्तविक वाणिज्यिक उद्यम तब शुरू हुए जब यूरोपीय लोगों ने 16वीं और 17वीं शताब्दी के दौरान ग्रीन हाउस (Green houses) और गुफाओं में बटन मशरूम (Button Mushroom) की खेती शुरू की। ऊतकों और बीजाणुओं के माध्यम से शुद्ध खेती (Culture) को अलग करने की सफलता दुनिया में वाणिज्यिक मशरूम उत्पादन की प्रक्रिया में महत्वपूर्ण मोड़ था।
लगभग 100 देशों में अपने पोषक, औषधीय मूल्यों और आय पैदा करने वाले उद्यम के कारण मशरूम को अब महत्वपूर्ण महत्व मिल रहा है। मशरूम कवक नामक जीवों के एक अलग समूह से संबंधित हैं। इनमें प्रायः हरे पदार्थ जिसे क्लोरोफिल (Chlorophyll) कहा जाता है, की कमी होती है तथा ये मृत और सड़ने वाले कार्बनिक पदार्थों पर वृद्धि करते हैं। इन क्षयकारी पदार्थों द्वारा, मशरूम अपनी महीन धागे जैसी विशेष तंतुनुमा संरचनाओं (माइसिलिया-Mycelia) की मदद से अपने पोषण को अवशोषित करते हैं। मशरूम के फलीय भाग की संरचना विभिन्न रंगों और आकृतियों के साथ या तो छाते जैसी या फिर किसी अन्य आकार की हो सकती है। आधार की तैयारी के लिए बुनियादी ढांचे का निर्माण करने हेतु, फसल के उगने, वंश वृद्धि की तैयारी और पोस्टहार्वेस्ट हैंडलिंग (Postharvest handling) हेतु कुछ गैर-कृषि भूमि को छोड़कर एक इनडोर (Indoor) फसल होने के नाते मशरूम को एक कृषि योग्य भूमि की आवश्यकता नहीं होती है।
मशरूम का सबसे प्रसिद्ध रूप बटन मशरूम है, जिसे वैज्ञानिक तौर पर एगैरिकस बाइस्पोरस (Agaricus Bisporus) के नाम से जाना जाता है। यह प्रायः खाद्य बेसिडियोमाइसिटी (Basidiomycetes) मशरूम है तथा यूरोप और उत्तरी अमेरिका में घास के मैदान का मूल निवासी है। अपरिपक्व होने पर इसकी दो रंग अवस्थाएँ होती हैं, पहली श्वेत या सफेद और दूसरी भूरी। दोनों अवस्थाओं के लिए मशरूम का नाम भिन्न-भिन्न होता है। वर्तमान समय में बाइस्पोरस की खेती 70 से अधिक देशों में की जाती है, और यह दुनिया में सबसे अधिक और व्यापक रूप से खपत की जाने वाली मशरूमों में से एक है।
भारत में सफेद बटन मशरूम को मौसमी रूप से पर्यावरण नियंत्रित फसल घरों में उगाया जाता है। मौसमी रूप से इसे उगाने की अवधि 5-6 महीने तक होती है अर्थात जब बाह्य तापमान फसल के अनुकूल होता है, तब मौसमी रूप से इसे 5-6 महीने में उगाया जा सकता है। बटन मशरूम दुनिया भर में उगाई और खायी जाने वाली सबसे लोकप्रिय मशरूम किस्म है। भारत में, इसका उत्पादन पहले सर्दियों के मौसम तक सीमित था, लेकिन प्रौद्योगिकी विकास के साथ, लगभग पूरे वर्ष इनका उत्पादन छोटे, मध्यम और बड़े खेतों में किया जा रहा है।
बटन मशरूम के उत्पादन के लिए कई फार्म (Farm) स्थापित किए गए हैं और यह विविधता अभी भी दुनिया के उत्पादन और खपत पर हावी है। भारत अपनी विविध कृषि परिस्थितियों और कृषि अपशिष्टों की बहुतायत के साथ, मुख्य रूप से घरेलू बाजार के लिए, चार दशकों से अधिक समय से मशरूम का उत्पादन कर रहा है।
सफेद बटन मशरूम की व्यावसायिक खेती का सबसे पहला वैज्ञानिक विवरण 1707 में फ्रांसीसी वनस्पतिशास्त्री जोसेफ पिट्टन डी टूरनेफोर्ट (Joseph Pitton de Tournefort) द्वारा किया गया था। फ्रांसीसी कृषक ओलिवियर डी सेरेस (Olivier de Serres) ने उल्लेख किया कि मशरूम की माइसिलिया का प्रत्यारोपण करने से मशरूम का अधिक प्रसार होगा। सामान्य एगैरिकस मशरूम (Agaricus Mushroom) की आधुनिक व्यावसायिक किस्में मूल रूप से हल्के भूरे रंग की थीं तथा सफेद मशरूम को 1925 में खोजा गया था। बड़े पैमाने पर सफेद बटन मशरूम का उत्पादन यूरोप (मुख्य रूप से पश्चिमी भाग), उत्तरी अमेरिका (संयुक्त राष्ट्र अमेरिका, कनाडा), चीन, कोरिया, इंडोनेशिया, ताइवान तथा भारत में केंद्रित है। भारत में बटन मशरूम का राष्ट्रीय वार्षिक उत्पादन लगभग 50,000 टन है। वनस्पति विकास और प्रजनन वृद्धि के लिए सफेद बटन मशरूम को क्रमशः 20-28 तथा 12-18 डिग्री सेल्सियस (Degree Celsius) तापमान की आवश्यकता होती है। इसके अलावा इसके लिए 80-90% की सापेक्ष आर्द्रता और फसल के दौरान पर्याप्त वेंटिलेशन (Ventilation) की भी आवश्यकता होती है। मौसमी रूप से, यह भारत के उत्तर-पश्चिम मैदानी इलाकों में सर्दियों के महीनों के दौरान और पहाड़ियों पर साल में 8-10 महीने तक उगाया जाता है। हालांकि, आधुनिक खेती तकनीक के आगमन के साथ अब भारत में कहीं भी इस मशरूम की खेती करना संभव है। प्रयोग किये जा रहे मशरूम के प्रकार और किस्मों के आधार पर उत्पादक एक साल में सफेद बटन मशरूम की औसतन 3-4 फसलें उगा सकते हैं। भारत में मशरूम के प्रमुख उत्पादक राज्य हिमाचल प्रदेश, उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु और कर्नाटक हैं। इसकी खेती की तकनीक को निम्नलिखित चरणों में विभाजित किया जा सकता है: स्पॉन उत्पादन (Spawn Production), खाद तैयार करना (Compost Preparation), स्पॉनिंग (Spawning), स्पॉन चलाना (Spawn Running), आवरण (Casing) तथा फल लगना (Fruiting)। मशरूम की हार्वेस्टिंग (Harvesting) बटन अवस्था पर की जाती है तथा ऊपरी भाग को 2.5 से 4 सेंटीमीटर तक मापा जाता है।
लगभग 100 ग्राम कच्चे सफेद मशरूम 93 किलोजूल (Kilojoules) खाद्य ऊर्जा प्रदान करते हैं और विटामिन बी (Vitamin B), राइबोफ्लेविन (Riboflavin), नियासिन (Niacin) और पैंटोथेनिक एसिड (Pantothenic acid) का एक उत्कृष्ट स्रोत हैं। ताजे मशरूम भी आहार खनिज फास्फोरस (Phosphorus) का एक अच्छा स्रोत हैं। ताजे बटन मशरूम में 0.2 माइक्रोग्राम (Micrograms) विटामिन डी भी पाया जाता है।
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