जब वायुमंडलीय तापमान, शून्य से नीचे या शून्य डिग्री सेल्सियस (0 डिग्री सेल्सियस या 32 डिग्री फ़ारेनहाइट) होता है, तब बर्फ़ का निर्माण शुरू होता है। अगर ज़मीन का तापमान, शून्य से नीचे या शून्य डिग्री सेल्सियस है, तो बर्फ़ ज़मीन पर जम जाएगी। जम्मू और कश्मीर में गुलमर्ग और पहलगाम, उत्तराखंड में नैनीताल और औली, हिमाचल प्रदेश में मनाली और अरुणाचल प्रदेश में तवांग, भारत में बर्फ़बारी देखने के लिए सबसे मशहूर जगहों में से एक हैं। सौर ताप के कारण, नदियों, झीलों, तालाबों आदि से पानी का लगातार वाष्पीकरण होता रहता है। यह ध्यान रखना ज़रूरी है कि, जल वाष्प (water vapour) , वायुमंडलीय हवा से हल्का होता है। अपने कम वज़न के कारण, जल वाष्प, वायुमंडल में ऊपर उठता है और बादलों में बदल जाता है। वायुमंडल में जैसे-जैसे, हम ऊपर की ओर बढ़ते हैं, तापमान कम होता जाता है। तापमान कम होने पर हवा की जल वाष्प को धारण करने की क्षमता कम हो जाती है। एक निश्चित ऊँचाई पर, हवा जल वाष्प से भर जाती है। जल वाष्प और नमी से भरी हवा को अतिसंतृप्त कहा जाता है। इस अवस्था में, जल वाष्प, हवा में मिले धुएँ और धूल के कणों के साथ संघनित हो जाता है और ठंडा होने पर, बर्फ़ के कणों में बदल जाता है। ये कण, एक दूसरे से मिलकर बर्फ़ के क्रिस्टल बनाते हैं। जब हवा, इन कणों का भार सहन नहीं कर पाती, तो वे बर्फ़ के टुकड़ों के रूप में धरती पर गिरते हैं और उन क्षेत्रों पर बर्फ़ की चादर बना देते हैं, जहाँ काफ़ी ऊँचाई होती है। तो आइए, आज हम, जम्मू और कश्मीर में बर्फ़बारी के कुछ अद्भुत चलचित्र देखेंगे । हम सर्दियों के दौरान, घूमने के लिए उपयुक्त स्थलों जैसे श्रीनगर, दूधपथरी आदि के बारे में भी जानेंगे। इसके बाद, हम यह भी देखेंगे कि कश्मीर में लोग स्कीइंग (skiing) का मज़ा कैसे लेते हैं। इसके अलावा, हम यह समझने की कोशिश करेंगे कि बर्फ़बारी कैसे होती है।