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विभिन्न संस्कृतियों में नारियल को "जीवन का वृक्ष" भी कहा जाता है। जिसके पीछे प्रमुख कारण
यह है की, नारियल के एक वृक्ष में एक आम इंसान को जीवित रखने के लिए भोजन, पानी या कपड़े
से लेकर आग तक, सभी आवश्यक संसाधन मौजूद होते हैं। यह वृक्ष हजारों वर्षों से लाखों लोगों को
जीविका, भोजन और आश्रय प्रदान करता आ रहा है।
2011 में नेशनल ज्योग्राफिक सोसाइटी (National Geographic Society) द्वारा लिखित,
आनुवंशिक परीक्षण से पता चला कि, नारियल की उत्पत्ति भारत और दक्षिण पूर्व एशिया में हुई थी।
कई लोग मानते हैं की यह फल तैरते हुए पूरे विश्व में फ़ैल गया। लेकिन इतिहासकार यह भी मानते
हैं कि, नारियल को इंसानो ने अन्य महाद्वीपों में पहुचाया। इस बात की सबसे अधिक संभावना है
कि, 2,000 साल पहले सर्वप्रथम अरब व्यापारियों ने भारत से नारियल को पूर्वी अफ्रीका में
फैलाया। यहां तक कि उन्होंने फल को ज़्हाज़हत अल-हिंद नाम भी दिया था, जिसका अर्थ,
"भारत का नट (कठोर छिलके वाला फल)" होता है, और अरबी में यह नाम आज भी जीवित है।
नारियल को अरब व्यापारियों द्वारा ही मेसोपोटामिया (Mesopotamia) में भी ले जाया गया।
16 वीं शताब्दी की शुरुआत में, वास्को ड गामा (Vasco Da Gama) जैसे खोजकर्ता या
उपनिवेशवादियों के साथ “समुद्री रेशम मार्ग" के माध्यम से नारियल यूरोप पंहुचा। वास्को ड गामा
और अन्य पुर्तगाली व्यापारियों से ही नारियल के समकालीन और सबसे अधिक मान्यता प्राप्त
अंतरराष्ट्रीय नाम “कोको-नट (coconut)” की उत्पत्ति हुई। क्योंकि यह एक कोका रुटो, या
खोपड़ी जैसा दिखता था, जिसके अंत में तीन बिंदु होते थे जैसे दो आंखें और एक मुंह। साथ ही
नारियल के रेशे, बालों से भी मिलते जुलते थे।
इसके अलावा 16वीं शताब्दी की शुरुआत में, एक विनीशियन रईस, एंटोनियो पिंगा फेटा
(Venetian nobleman, Antonio Pinga Feta), जिन्हे इतिहास के पहले साहसिक पर्यटकों में
से एक के रूप में गिना जा सकता है, उन्होंने अपनी यात्रा पत्रिका में नारियल का विशेष रूप से
उल्लेख किया है।: “नारियल का पेड़ खजूर के पेड़ के जैसा होता है। जैसे हमारे पास ब्रेड, दाखमधु,
तेल और सिरका है, वैसे ही वे इन सब चीजों को केवल नारियल के पेड़ों से प्राप्त कर लेते हैं। दो ताड़
के पेड़ों के साथ, दस लोगों का एक पूरा परिवार अपना भरण-पोषण कर सकता है। नारियल के पेड़
सौ साल तक चलते हैं।“
सोलहवीं शताब्दी के यूरोपीय लोगों का मानना था कि नारियल के गोले में जादुई उपचार
शक्तियाँ होती हैं, और उन्होंने इसे कीमती धातुओं और रत्नों से जड़े हुए विस्तृत गोले में बदल
दिया। यह प्रथा 19वीं शताब्दी में भी जारी रही।
प्राचीन समय से ही मनुष्य अपनी यात्रा पर नारियल ले जाने के लिए उत्सुक रहा है। नारियल न
केवल भोजन और पानी दोनों का एक स्रोत है, बल्कि नारियल के ताड़ के विभिन्न भागों का उपयोग
अन्य उद्देश्यों के लिए भी किया जा सकता है। उदाहरण के लिए, इसके रस से शराब और चीनी
और ठोस खोल से ही कोकोस तेल निकाला जा सकता है। आज, यह अटलांटिक और प्रशांत
महासागर के दोनों किनारों पर उगते हैं। 2 सितंबर को एशियाई प्रशांत नारियल समुदाय (APCC)
के गठन के उपलक्ष्य तथा नारियल के उपयोग और महत्व को बढ़ावा देने के लिए प्रतिवर्ष विश्व
नारियल दिवस भी मनाया जाता है। APCC का मुख्यालय जकार्ता, इंडोनेशिया में है और भारत
सहित सभी प्रमुख नारियल उत्पादक देश APCC के सदस्य हैं।
एक शोधकर्ता केनेथ ऑलसेन (kenneth olsen) और उनके सहयोगियों ने दुनिया भर के 1322
नारियल के पेड़ों से नारियल डीएनए का गहन विश्लेषण प्रकाशित किया। उनकी टीम ने पाया कि
नारियल के जटिल इतिहास के बावजूद, नारियल की आबादी की अंतर्निहित आनुवंशिक संरचना
बेहद सरल है। अधिकांश नारियल आनुवंशिक रूप से भिन्न दो समूहों, प्रशांत और हिंद महासागर
के नारियलो में से एक थे। ये दोनों आनुवंशिक तौर पर काफी अलग हैं। नारियल के पूरी आनुवंशिक
विविधता का लगभग एक तिहाई, हिंद महासागर और प्रशांत महासागर के अनुरूप दो समूहों के
बीच विभाजित किया जा सकता है।
प्रशांत क्षेत्र में, नारियल की खेती सबसे पहले दक्षिण पूर्व एशिया के द्वीपों फिलीपींस, मलेशिया,
इंडोनेशिया पर की जाती थी। हिंद महासागर में, नारियल की खेती का संभावित केंद्र भारत की
दक्षिणी परिधि थी, जिसमें श्रीलंका, मालदीव और लक्षद्वीप शामिल थे।
जानकार मानते हैं की प्रशांत नारियल को हिंद महासागर में कुछ हज़ार साल पहले ,प्राचीन
ऑस्ट्रोनेशियन (Ancient Austronesian) द्वारा दक्षिण पूर्व एशिया को मेडागास्कर
(Megadagascar) और तटीय पूर्वी अफ्रीका से जोड़ने वाले व्यापार मार्गों की स्थापना के साथ
पहुचाया गया था। हिंद महासागर के नारियल को यूरोपीय लोगों द्वारा बहुत बाद में नई दुनिया में
पहुँचाया गया। इस नारियल को पुर्तगालियों द्वारा हिंद महासागर से अफ्रीका के पश्चिमी तट तक
ले जाया गया। इस प्रकार आज फ्लोरिडा (Florida) में जो नारियल होते हैं, वे काफी हद तक हिंद
महासागर के ही प्रकार हैं। चूंकि भारतीय और प्रशांत किस्मों के बीच आनुवंशिक अंतर बहुत
अधिक और स्पष्ट हैं, इसलिए दोनों वंश लंबे समय से अलग-अलग दिशाओं में विकसित हो रहे
होंगे।
संदर्भ
https://bit.ly/3pT1dM3
https://bit.ly/3CIFe22
https://bit.ly/3KxmFj8
चित्र संदर्भ
1. नक्काशी में शामिल नारियल को दर्शाता एक चित्रण (Art)
2. नारियल के ताड़ (कोकोस न्यूसीफेरा) को दर्शाता एक चित्रण (lookandlearn)
3. नारियल के पेड़ पर चढ़ते एक आदमी को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4. भारतीय उपमहाद्वीप और द्वीप दक्षिण पूर्व एशिया में विविधता के मूल केंद्रों से नारियल के अनुमानित ऐतिहासिक परिचय को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
5. तंजोंग कटोंग में नारियल के पेड़ों के नीचे बंगले को दर्शाता एक चित्रण (lookandlearn)
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