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अंतर्राष्ट्रीय बाघ दिवस पर जानते हैं की भारत में बाघ आबादी की गणना कैसे की जाती है?

लखनऊ

 30-07-2022 09:00 AM
स्तनधारी

एक आदमखोर बाघिन, जिसके बारे में कहा जा रहा है कि उसने अक्टूबर 2020 से दुधवा टाइगर रिजर्व (Dudhwa Tiger Reserve) के पास कम से कम 21 इंसानों को मार डाला, अब उसको अपना जीवन लखनऊ चिड़ियाघर में कैद में बिताना पड़ेगा, लेकिन इस तरह के हमलों के पीछे सिर्फ एक बाघ को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है? वर्तमान में आवासीय नुकसान और अवैध शिकार के कारण कई जीव-जंतु अपने मूल स्थान या जंगलों से निकल कर नगरीय क्षेत्रों या ऐसे क्षेत्रों की ओर गमन कर रहे हैं जहां लोग निवास करते हैं। ये अवस्था मानव जीवन को तो असुरक्षित करती ही हैं किंतु साथ ही साथ इन जानवरों को भी संकट में डालती है। बाघों के मरने के पीछे सबसे बड़ी वजह है उनके आवास और शिकार का खत्म होना। इंसान की निगरानी में रहने वालों के साथ ही मुक्त बाघों को कैसे बचाया जाए और उनकी संख्या बढ़ाई जाए यह वैज्ञानिकों के लिए हमेशा बहस का मुद्दा रहता है। विश्व बाघ दिवस, जिसे अक्सर अंतर्राष्ट्रीय बाघ दिवस (International Tiger Day) कहा जाता है, हर साल 29 जुलाई को बाघों की घटती आबादी के बारे में जागरूकता बढ़ाने और उनके संरक्षण के प्रयासों के लिए मनाया जाता है।वर्ष 2010 में रूस (Russia) के सेंट पीटर्सबर्ग (Saint Petersburg) में हुए बाघ सम्मेलन (Tiger Summit) में 29 जुलाई को अंतर्राष्ट्रीय बाघ दिवस मनाने का निर्णय लिया। इस सम्मेलन में 13 देशों ने भाग लिया था और उन्होंने बाघों की संख्या में दोगुनी बढ़ोत्तरी का लक्ष्य रखा था। इसका लक्ष्य बाघों के प्राकृतिक आवासों की रक्षा के लिए एक वैश्विक प्रणाली को बढ़ावा देना और बाघ संरक्षण के मुद्दों के लिए जन जागरूकता और समर्थन बढ़ाना है।
दो सौ साल पहले, इंडोनेशियाई दलदल से लेकर रूस तक, दसियों हज़ार बाघ भारत और 29 अन्य देशों में घूमते थे। कभी इसकी कई उप-प्रजातियां पाई जाती थीं, जिन्हें अब विलुप्त माना जाता है। आज, केवल छह उप- प्रजातियां शेष हैं। इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर (International Union for Conservation of Nature-IUCN) ने 2014 में अनुमान लगाया था कि जंगल में केवल 2,200 से 3,200 बाघ हैं, जो विलुप्ति की कगार पर खड़े हैं। बाघों की आबादी का लगभग 93% निवास स्थान का नुकसान, अवैध शिकार और शिकार की कमी के कारण इनकी आबादी में भारी गिरावट आई है। खाद्य श्रृंखला में बाघ शीर्ष के जीवों में से एक है जिस पर पूरा पारिस्थितिकी तंत्र निर्भर करता है। पारिस्थितिकी तंत्र के संतुलन को बनाए रखने के लिये बाघों का संरक्षण बहुत ही आवश्यक है। पिछले 100 वर्षों में वैश्विक स्तर पर बाघों की आबादी में भारी गिरावट देखने को मिली है और कई क्षेत्रों में बाघों की आबादी पूर्णतयः समाप्त हो चुकी है। IUCN रेड लिस्ट में बाघ को संकटग्रस्त #39 की सूची में रखा गया है। पहले पेशेवर शिकारियों द्वारा शिकार के दौरान जानवरों के पैरो के निशान से शेरों और बाघों को पारंपरिक रूप से ट्रैक किया जाता था। विंटर-ब्लीथ और धर्म कुमार सिंह (1950) द्वारा जानवरों के पैरो के निशान के माध्यम गणना के आधार पर पहली शेर गणना के बाद, ओडिशा के एक वन अधिकारी सरोज राज चौधरी ने बाघों की गिनती के लिए इस दृष्टिकोण को संशोधित किया। लेकिन 2004-05 में सरिस्का वन्यजीव अभ्यारण्य से अवैध शिकार के कारण बाघों के अचानक गायब होने बाद ही आधिकारिक रिकॉर्ड में पैरो के निशान के माध्यम से जनगणना के आधार पर पर्याप्त बाघों की उपस्थिति दिखाई गई। इस आपदा पर मीडिया द्वारा खुले तौर पर सामने आने के बाद प्रधान मंत्री को भारत में बाघ संरक्षण के लिए एक रणनीति विकसित करने के लिए 2005 में टाइगर टास्क फोर्स (Tiger Task Force) की स्थापना की गई थी।
राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (National Tiger Conservation Authority) के निर्माण और वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम 1972 में संशोधन की सिफारिश करने के अलावा, टाइगर टास्क फोर्स ने प्रोजेक्ट टाइगर (Project Tiger) निदेशालय और मध्य प्रदेश वन विभाग के सहयोग से भारतीय वन्यजीव संस्थान द्वारा विकसित आधुनिक वैज्ञानिक प्रोटोकॉल के आधार पर बाघों और उनके पारिस्थितिक तंत्र की देशव्यापी निगरानी का सुझाव दिया, प्रोजेक्ट टाइगर की शुरुआत केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा वर्ष 1973 में की गई थी। इस कार्यक्रम के तहत बाघ आबादी वाले राज्यों को बाघों के संरक्षण हेतु केंद्रीय सहायता उपलब्ध कराई जाती है। । राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण ने राज्य के वन विभागों, संरक्षण एनजीओ के साथ मिलकर और वाइल्डलाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (Wildlife Institute of India) द्वारा समन्वित, तब से चार वर्ष के लिए बाघों की स्थिति, सह- शिकारियों, शिकार और उनके पर्यावास के लिए एक राष्ट्रीय मूल्यांकन किया है। भारत में बाघों का पहला देशव्यापी मूल्यांकन 2006 में किया गया था और इसने भारत की बाघों की आबादी 1,411 होने का अनुमान लगाया था। 2006 के अभ्यास के दौरान सुंदरवन का आकलन नहीं किया गया था, क्योंकि उस समय बाघ आवास के नमूने के लिए प्रोटोकॉल विकसित नहीं किया गया था। दूसरा और तीसरा आकलन 2010 और 2014 में किया गया था, 2014 की जनगणना में देश में बाघों की कुल संख्या 2,226 आंकी गई थी, वहीं 2010 की जनगणना ने यह आंकड़ा 1,706 और 2006 संस्करण 1,411 पर रखा था, यह दर्शाता है कि बाघों की संख्या में वृद्धि हुई है। सबसे अधिक बाघ मध्य प्रदेश (526) में पाए गए हैं, उसके बाद कर्नाटक में 524 और उत्तराखंड में 442 बाघ हैं। पिछले पांच वर्षों में, संरक्षित क्षेत्रों की संख्या 692 से बढ़कर 860 से अधिक हो गई और सामुदायिक भंडार 43 से बढ़कर 100 से अधिक हो गए।
मूल्यांकन का चौथा चक्र 2018 और 2019 में सर्वोत्तम उपलब्ध विज्ञान, प्रौद्योगिकी और विश्लेषणात्मक उपकरणों का उपयोग करके किया गया था। मूल्यांकन के इस चक्र की अनूठी विशेषता, डिजिटल इंडिया को ध्यान में रखते हुए, मानव त्रुटियों को कम करने के लिए जानकारी के संग्रह और प्रसंस्करण में नवीन तकनीकी उपकरणों का विकास और उपयोग है। इस चक्र में, मोबाइल फोन एप्लिकेशन M-STrIPES (बाघों के लिए निगरानी प्रणाली - गहन सुरक्षा और पारिस्थितिक स्थिति) के माध्यम से प्राथमिक क्षेत्र की जानकारी की रिकॉर्डिंग, जो जीपीएस का उपयोग जियोटैग फोटो-साक्ष्य (geotag photo-evidences) और सर्वेक्षण की जानकारी के लिए करता है, ने इस अभ्यास को और अधिक सटीक बना दिया, और आज जारी हुई ताजा रिपोर्ट के मुताबिक देश में 2967 बाघ मौजूद हैं। 2018 की रिपोर्ट के अनुसार भारत में बाघों की संख्या 2967 थी। देखा जाए तो 2010 से बाघों की संख्या में लगातार इजाफा ही हुआ है। 2018-19 के बाघों की स्थिति के आकलन का चौथा चक्र सबसे सटीक सर्वेक्षण था। इसके लिए वाइल्ड लाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (Wildlife Institute of India) ने देशभर के टाइगर रिजर्व नेशनल पार्क अभयारण्य और सामान्य वनमंडलों में 28 पैरामीटर पर बाघों की गणना की। इसके लिए पूरे देश में 20 राज्यों के लगभग 381,400 किलोमीटर जंगलों में सर्वे किया गया। वन विभाग के कर्मचारी इस दौरान करीब 5 लाख 22 हज़ार 996 किलोमीटर पैदल चले। देशभर में 141 स्थानों पर 26,838 स्थानों पर कैमरा ट्रैप लगाए गए थे। इन कैमरों के परिणामस्वरूप वन्यजीवों की 34,858,623 तस्वीरें मिलीं, जिनमें से 76,651 बाघों की और 51,777 तेंदुओं की थीं। इस प्रक्रिया को पूरी करने में लगभग 5 लाख 93 हज़ार 882 मानव कार्य दिवस लगे। यह अबतक दुनिया का सबसे बड़ा वन्यजीव सर्वेक्षण का सबसे बड़ा प्रयास है।

संदर्भ:
https://bit.ly/3zkhLAC
https://bit.ly/3ONcTtE
https://bit.ly/3JlyQ1R
https://go.nature.com/3PL7mFc

चित्र संदर्भ
1. झुंड में बाघों को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
2. पेंसिल्वेनिया लाइसेंस प्लेट "जंगली जानवरों को बचाओ" के नारे को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. एक दूजे को दुलारते बाघों को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
4. बाघ की ऐतिहासिक श्रेणी को हल्के पीले रंग में और वर्तमान श्रेणी (2006) को हरे रंग में दिखाया गया है। साथ ही राष्ट्रीय सीमाएँ भी जोड़ी गई हैं। को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
5. एल्बोर्ग चिड़ियाघर, डेनमार्क में साइबेरियाई बाघ को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)



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