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हाल के दिनों में, हमारे लखनऊ सहित पूरे राज्य के धार्मिक स्थलों में, ज़ोर-ज़ोर से बजने वाले लाउडस्पीकरों
(loudspeakers) को या तो हटा दिया गया, या उनसे निकलने वाली ध्वनि अर्थात डेसिबल स्तर (decibel
level) को, कम करने का आदेश दे दिया गया है! इस प्रकरण ने अनेक लोगों को ध्वनि प्रदूषण और उससे
होने वाले नुकसान के बारे निश्चित तौर पर जागरूक किया है, तथा इससे जुड़े कानूनों को जानने का भी
मौका दिया है।
हाल के दिनों में मंदिरों और मस्जिदों में लाउडस्पीकर के इस्तेमाल को लेकर, सांप्रदायिक तनाव काफी बढ़
गया है। हालांकि, इस संदर्भ में अदालत ने 2005 में पारित, कानून की व्याख्या करते हुए स्पष्ट किया था,
कि "ध्वनि प्रदूषण, स्वतंत्रता संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीवन के अधिकार का एक हिस्सा है"।
दरअसल अदालत ने अपने 2005 के फैसले में स्पष्ट किया था की, "शोर, नागरिकों के शांति से रहने के
मौलिक अधिकार में हस्तक्षेप करता है! उस समय शीर्ष अदालत ने यह स्पष्ट कर दिया था कि, कोई भी
व्यक्ति, चाहे उसका धर्म या उद्देश्य कुछ भी हो, तब भी वह, "अपने स्वयं के परिसर में भी, ऐसा शोर नहीं
कर सकता है, जो उसके परिसर दायरे से बाहर जाकर पड़ोसियों या अन्य लोगों के लिए उपद्रव का कारण
बने”।
अदालत ने कहा, "कोई भी लाउडस्पीकर की मदद से अपने भाषण की आवाज को बढ़ाकर शोर पैदा करने के
मौलिक अधिकार का दावा नहीं कर सकता है।" अदालत ने कहा था कि, किसी भी धर्म का उद्देश्य किसी को
अपनी आस्था की अभिव्यक्तियों को सुनने के लिए मजबूर करना नहीं है, अतः धार्मिक भक्ति फैलाने के
लिए लाउडस्पीकर जरूरी नहीं है।
इसी के मद्देनज़र केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (Central Pollution Control Board (CPCB) ने ध्वनि
प्रदूषण (विनियमन और नियंत्रण) नियम, 2000 के तहत, ध्वनि प्रदूषण को प्रतिबंधित करने वाले मानदंडों
का उल्लंघन करने वालों के लिए 1,000 रुपये से 1 लाख रुपये के बीच जुर्माना का एक नया सेट प्रस्तावित
किया है।
दरअसल, लगातार तेज निर्माण गतिविधियों, समारोहों और जुलूसों में लाउडस्पीकर और हॉर्न बजाने जैसेध्वनि प्रदूषण के सभी योगदानकर्ता, मानदंडों का उल्लंघन कर रहे हैं। इसी को ध्यान में रखते हुए, ध्वनि
प्रदूषण पर चल रहे मामलों के जवाब में, राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण (National Green Tribunal
(NGT) के साथ दायर, 12 जून, 2020 की रिपोर्ट में सीपीसीबी द्वारा नए जुर्माने की सूची प्रस्तावित की गई
थी।
ध्वनि प्रदूषण नियमों के उल्लंघन पर जुर्माना:
जुर्माने की नई प्रणाली के तहत, लाउडस्पीकर/पब्लिक एड्रेस सिस्टम (public address system) के
उपयोग पर मानदंडों का उल्लंघन, करने पर उपकरण की जब्ती और 10,000 रुपये का जुर्माना हो सकता
है।
इसी तरह, डीजल जनरेटर सेट (diesel generator set) के उपयोग पर ध्वनि प्रदूषण मानदंडों का
उल्लंघन करने पर, पूरे सेट को सील किया जा सकता है और सेट के आकार के आधार पर 10,000 रुपये से
100,000 रुपये के बीच जुर्माना लगाया जा सकता है। साथ ही ध्वनि उत्सर्जक निर्माण उपकरण के मामलों
में, उल्लंघन करने पर 50,000 रुपये का जुर्माना और इसकी जब्ती या सीलिंग भी हो सकती है।
अवांछित शोर से निपटने के लिए 2011 में सात शहरों: बैंगलोर, चेन्नई, दिल्ली, हैदराबाद, कोलकाता,
लखनऊ और मुंबई में स्थापित राष्ट्रीय परिवेश शोर निगरानी नेटवर्क के तहत, 70 शोर निगरानी स्टेशन
स्थापित किये गए हैं। दरअसल कोई भी अवांछित ध्वनि, जो मानव कान में झुंझलाहट, जलन और दर्द का
कारण बनती है, शोर कहलाती है। इसे A-भारित डेसिबल (dB (A) में मापा जाता है, जो ध्वनि की प्रबलता
को दर्शाता है। शोर का स्तर किसी भी उपकरण या मशीन द्वारा उत्पादित शोर के डेसिबल स्तर को
संदर्भित करता है। सामान्य तौर पर, मानव कान 85 डीबी तक के शोर के स्तर को सहन कर सकता है।
इससे आगे की आवाज इंसानों की उत्पादकता और जीवन की गुणवत्ता को प्रभावित कर सकती है।
इन सात शहरों के परिवेशी शोर स्तर के आंकड़ों से पता चलता है कि, इनमें से लगभग 90 प्रतिशत स्टेशनों
में दिन और रात दोनों के दौरान ध्वनि स्तर स्वीकृत सीमा से अधिक पाया गया। कुछ स्टेशनों पर, दर्ज
किए गए ध्वनि स्तर, निर्धारित मानदंडों से लगभग दोगुने अधिक थे।
यद्दपि ध्वनि प्रदूषण नियमों ने विभिन्न क्षेत्रों में दिन और रात दोनों समय के लिए ध्वनि के स्वीकार्य स्तर
को परिभाषित किया है। जैसे:
औद्योगिक क्षेत्रों में, अनुमेय सीमा, दिन के लिए 75 डेसीबल, डीबी और रात में 70 डीबी रखी गई है।
वाणिज्यिक क्षेत्रों में, यह 65 डीबी और 55 डीबी है, जबकि आवासीय क्षेत्रों में यह क्रमशः दिन और रात के
दौरान 55 डीबी और 45 डीबी है। इसके अतिरिक्त, राज्य सरकारों ने कई स्थानों को 'साइलेंट जोन (silent
zone)' भी घोषित किया है, जिसमें स्कूल, कॉलेज, अस्पताल और अदालतों के परिसर के 100 मीटर के
दायरे में आने वाले क्षेत्र शामिल हैं। इस क्षेत्र में अनुमेय शोर सीमा दिन के दौरान 50 डीबी और रात के
दौरान 40 डीबी निर्धारित किया गया है।
सबसे पहले, ध्वनि प्रदूषण और इसके स्रोतों को वायु (प्रदूषण की रोकथाम और नियंत्रण) अधिनियम, 1981
के तहत संबोधित किया गया था। हालांकि, अब उन्हें ध्वनि प्रदूषण (विनियमन और नियंत्रण) नियम,
2000 के तहत अलग से विनियमित किया जाता है। इसके अतिरिक्त, पर्यावरण (संरक्षण) नियम, 1986
के तहत मोटर वाहनों, एयर-कंडीशनर, रेफ्रिजरेटर, डीजल जनरेटर (Air-conditioner, Refrigerator,
Diesel Generator) और कुछ अन्य प्रकार के निर्माण उपकरणों के लिए भी ध्वनि मानक निर्धारित किए
गए हैं। वायु (प्रदूषण की रोकथाम और नियंत्रण) अधिनियम, 1981 के तहत उद्योगों से निकलने वाले शोर
को राज्यों / केंद्र शासित प्रदेशों के लिए राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड / प्रदूषण नियंत्रण समितियों (SPCBs /
PCCs) द्वारा नियंत्रित किया जाता है।
दिल्ली सरकार द्वारा, नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (National Green Tribunal (NGT) को प्रस्तुत किए गए
आंकड़ों में कहा गया है की, राजधानी दिल्ली में 2021 के पहले तीन महीनों में, प्रत्येक दिन 16 उल्लंघन दर्ज
किए गए। पुलिस ने पिछले साल ऐसे 6,712 मामले दर्ज किए, जबकि इस साल 31 मार्च तक 1,442
उल्लंघन दर्ज किए गए। अधिकांश उल्लंघन- 70% या 1047 मामले - लाउडस्पीकर और सार्वजनिक
घोषणा के कारण, निर्धारित शोर मानकों का पालन नहीं करने के कारण हुए।
इसके साथ ही निर्माण उपकरण, दिल्ली में ध्वनि प्रदूषण का दूसरा सबसे बड़ा स्रोत थे! इस संदर्भ में इस
साल अब तक 273 मामले दर्ज किए गए। राजधानी में 1 जनवरी से 31 मार्च, 2021 तक कुल 2,883 जुर्माना
दर्ज किया गया, जिसमें से 2,070 संशोधित निकास और साइलेंसर के लिए थे। इस बीच, प्रेशर हॉर्न
(pressure horn) के इस्तेमाल के खिलाफ कुल 560 जुर्माना, वाहनों में तेज संगीत बजाने के लिए 224
और साइलेंट जोन में हॉर्न बजाने के खिलाफ 29 जुर्माना लगाया गया।
दिल्ली में शोर से संबंधित शिकायतों को दर्ज करने के लिए, ऑनलाइन शिकायतें Ngms.delhi.gov.in पर
दर्ज की जा सकती हैं अथवा लोग शोर से संबंधित उल्लंघन के लिए हेल्पलाइन नंबर 155271 पर भी कॉल
कर सकते हैं। दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति ने हाल ही में शोर से संबंधित उल्लंघनों के लिए जुर्माना
सीमा का एक नया सेट अधिसूचित किया है, जो निर्धारित शोर मानकों का पालन नहीं करने पर 1 लाख
रुपये तक जा सकता है। इसी क्रम में उत्तर प्रदेश में पिछले एक महीने में राज्य भर में कम से कम 1.29 लाख
लाउडस्पीकरों को या तो हटा दिया गया या उनका डेसिबल स्तर कम कर दिया गया। इनमें से 71,114
लाउडस्पीकरों को विभिन्न पूजा स्थलों से हटा दिया गया, जबकि शेष की मात्रा कम कर दी गई। हटाए गए
लाउडस्पीकरों को शैक्षिक उद्देश्यों के लिए स्कूलों को सौंप दिया गया है।
संदर्भ
https://bit.ly/3Hkh3Y2
https://bit.ly/3QkdEME
https://bit.ly/3tvppq6
चित्र संदर्भ
1. लाउडस्पीकरों (loudspeakers) पर प्रतिबंधों को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
2. हॉर्न लाउडस्पीकर को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. चौराहे पर लगे लाउडस्पीकर को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
4. शांत क्षेत्र को दर्शाता चित्रण (Flickr)
5. ध्वनि स्तर मीटर पर्यावरण और कार्यस्थल में ध्वनियों को मापने के मुख्य उपकरणों में से एक है, जिसको दर्शाता एक चित्रण (flickr)
6. नो हॉर्न के साइन को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
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