Post Viewership from Post Date to 06-Nov-2021 (5th Day)
City Subscribers (FB+App) Website (Direct+Google) Email Instagram Total
1717 117 1834

***Scroll down to the bottom of the page for above post viewership metric definitions

पर्यावरण पर आतिशबाजी के प्रभाव एंव इसके विकल्प

लखनऊ

 01-11-2021 06:08 PM
जलवायु व ऋतु

आवाजें और रौशनी ख़ुशी की भावना को अभिव्यक्त करने का सबसे बेहतर माध्यम होती हैं। उदारहण के लिए जब भी हमें कोई अनपेक्षित खुशखबरी दी जाती है तो, हम ख़ुशी के मारे जोर-जोर से चिल्लाने लगते हैं, अथवा आमतौर पर लोग मित्र के विवाह के शुभअवसर पर रंगीन आतिशबाजियों से आसमान को जगमगा देते हैं। हालांकि शोर अथवा रौशनी करके अपनी ख़ुशी जाहिर करना कोई अपवाद नहीं है, लेकिन यदि हमारी ख़ुशी जाहिर करने का तरीका पर्यावरण अथवा किसी व्यक्ति के जीवन के लिए अभिशाप बन जाए, तो यह निश्चित रूप से अस्वीकार्य एवं निंदनीय है।
आश्चर्य की बात नहीं है कि आतिशबाज़ी की प्रकृति क्षणिक होती है, अर्थात वातावरण में केवल कुछ मिनटों अथवा घंटों तक ही आतिशबाज़ी का खेल चलता है। लेकिन आतिशबाजी इतने कम समय में हमारे वायुमंडल को चरम स्तर तक प्रदूषित कर सकती है। दरसल रंगबिरंगी आतिशबाज़ी के लिए हम पटाखों अथवा रॉकेट के रूप में विभिन्न रासायनिक यौगिकों का प्रयोग करते हैं। उदाहरण के तौर पर हवा में जलने पर लिथियम लवण गुलाबी और सोडियम लवण पीले रंग का उत्पादन करते हैं, वैज्ञानिकों के अनुसार जब आतिशबाजी बंद हो जाती है, तो धातु के लवण और विस्फोटक एक रासायनिक प्रतिक्रिया से गुजरते हुए हवा में धुआं और गैस छोड़ते हैं। इसमें कार्बन डाइऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड और नाइट्रोजन-तीन बेहद हानिकारक ग्रीनहाउस गैसें शामिल हैं, जो दुर्भाग्य से जलवायु परिवर्तन के लिए जिम्मेदार हैं। विस्फोट के दौरान, ये धातु लवण 'जलते नहीं हैं। चूकि वे अभी भी धातु के परमाणु ही होते हैं, और उनमें से कई एरोसोल के रूप में परिवर्तित हो जाते हैं, जो हवा, पानी और मिट्टी को जहरीला कर देते हैं। वैज्ञानिकों के अनुसार यह एरोसोल साँस लेने की प्रकिया के दौरान हमारे शरीर के भीतर प्रवेश कर जाते हैं। जिसके पश्चात् हमारे शरीर पर हानिकारक असर दिखते हुए, यह धातुएँ उल्टी, दस्त या अस्थमा से लेकर गुर्दे की बीमारी, कार्डियोटॉक्सिक प्रभाव और विभिन्न प्रकार के कैंसर जैसी बीमारियां पैदा कर सकती हैं। इंटरनेशनल जर्नल ऑफ एनवायरनमेंटल रिसर्च एंड पब्लिक हेल्थ (International Journal of Environmental Research and Public Health) में प्रकाशित एक अध्ययन ने विभिन्न अवसरों पर आतिशबाजी के प्रदर्शन के कारण सूक्ष्म कणों के साथ-साथ सह-प्रदूषक (जैसे ट्रेस धातु और पानी में घुलनशील आयन) की उच्च सांद्रता का अध्ययन किया। उन्होंने पाया की मुख्य रूप से, इसमें वायुगतिकीय व्यास में 2.5 माइक्रोमीटर से कम कण पदार्थ शामिल होते हैं। पर्यावरण संरक्षण एजेंसी (EPA) के अनुसार यह कण आपके फेफड़ों और रक्त प्रवाह में आसानी से प्रवेश करने में सक्षम होते हैं, और स्वास्थ्य के लिए सबसे बड़ा खतरा पैदा करते हैं। अध्ययन में ज्ञात हुआ की राष्ट्रीय छुट्टियों और त्योहारों के दौरान या उसके कई दिन पहले या बाद तक के दिनों में भी PM2.5 सांद्रता सामान्य स्तर से 2 से 10 गुना अधिक" रहती हैं। जिससे हमारे ग्रह और लोगों दोनों को भारी स्वास्थ्य नुकसान होता है। पटाखों को जलाने से न केवल बहुत वायु एवं ध्वनि प्रदूषण होता है, बल्कि बुझ जाने के पश्चात् वे पर्यावरण को भी नुकसान पहुंचाते हैं।

क्या पर्यावरण के अनुकूल पटाखे हैं?
हमारे पास आतिशबाजी के कुछ ऐसे विकल्प हैं, जो अपने पारंपरिक समकक्षों की तुलना में पर्यावरण को कम नुकसान पहुंचाते हैं। जैसे धुआं रहित और सल्फर मुक्त प्रणोदक तुलनात्मक रूप से बेहतर विकल्प हो सकते हैं। हालांकि ये पर्यावरण के अनुकूल आतिशबाजी पारंपरिक आतिशबाजी की तुलना में 15 से 65 प्रतिशत कम पार्टिकुलेट मैटर (particulate matter) का उत्सर्जन करती हैं, लेकिन ये भी 100% पर्यावरण के अनुकूल नहीं हैं। जानकारों के अनुसार आतिशबाजी की कुल संख्या को सख्ती से प्रतिबंधित किया जाना चाहिए। साथ ही कुछ ऐसे अन्य उपाय अपनाए जा सकते हैं, जो पर्यावरण के लिए कम हानिकारक हो सकते हैं। जैसे यदि आप अभी भी आतिशबाजी देखने के इच्छुक हैं, इन्हे अपने घर पर जलाने के बजाय सुरक्षित दूरी से सार्वजनिक प्रदर्शन का आनंद लें सकते हैं या, उन्हें टीवी पर देख सकते हैं। इस प्रकार आप उससे अधिक प्रदूषण या कचरे में योगदान नहीं देंगे। भारत में दीवाली को पारंपरिक रूप से रोशनी के त्योहार के रूप में जाना जाता है क्योंकि यह "अंधेरे पर प्रकाश की जीत, बुराई पर अच्छाई और अज्ञान पर ज्ञान की जीत" का प्रतीक है। लेकिन भारी आतिशबाज़ी के कारण यह कई शहरों में धुंध के त्योहार में बदल जाता है। हालांकि सरकार इससे निपटने के लिए "ग्रीन पटाखों" का विकल्प चुनने की सलाह दे रही है। माना जाता है कि यह पटाखे पारंपरिक आतिशबाजी की तुलना में पीएम 2.5 का 25 से 30 प्रतिशत कम उत्सर्जन करते हैं। यह 2.5 माइक्रोमीटर से कम व्यास वाला कण है, जो पटाखे जलाने पर वातावरण को प्रदूषित करता है। किंतु पर्यावरण संरक्षण के संदर्भ में आतिशबाजी की बिल्कुल भी जरूरत नहीं है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) के अनुसार 2017 की दिवाली की तुलना में 2018 में सभी स्टेशनों पर पार्टिकुलेट मैटर (PM10, PM2.5) के मामले में हवा की गुणवत्ता खराब हुई है, यह स्थित तब है जब दिल्ली में आतिशबाज़ी पूरी तरह से प्रतिबंधित है। बारूद में पोटेशियम नाइट्रेट मौजूद होता है। हालांकि आज भी कई क्षेत्रों में दिवाली के दौरान पटाखों पर पूर्ण प्रतिबन्ध है, और सुप्रीम कोर्ट का आदेश भी है की प्रदूषण फैलाने वाले पटाखों पर प्रतिबंध का सख्ती से पालन किया जाना चाहिए। दिवाली प्रदूषण सिर्फ एक या दो दिन तक रहता है, लेकिन अदालत ने माना कि प्रदूषकों में तेज वृद्धि स्वास्थ्य के लिए एक गंभीर खतरा है।

संदर्भ
https://bit.ly/3pRnbA0
https://bit.ly/2XZerwh
https://bit.ly/31h7Hv9
https://bit.ly/3nAU0yo

चित्र संदर्भ

1.आतिशबाज़ी से उत्पन्न हुए धुंए और रौशनी को दर्शाता एक चित्रण (RollingStone)
2. नए साल के जश्न में हो रही आतिशबाज़ी को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. दुकान में रखे पटाखों का एक चित्रण (youtube)
4. दिवाली के बाद की दिल्ली को दर्शाता एक चित्रण (zenger)



***Definitions of the post viewership metrics on top of the page:
A. City Subscribers (FB + App) -This is the Total city-based unique subscribers from the Prarang Hindi FB page and the Prarang App who reached this specific post. Do note that any Prarang subscribers who visited this post from outside (Pin-Code range) the city OR did not login to their Facebook account during this time, are NOT included in this total.
B. Website (Google + Direct) -This is the Total viewership of readers who reached this post directly through their browsers and via Google search.
C. Total Viewership —This is the Sum of all Subscribers(FB+App), Website(Google+Direct), Email and Instagram who reached this Prarang post/page.
D. The Reach (Viewership) on the post is updated either on the 6th day from the day of posting or on the completion ( Day 31 or 32) of One Month from the day of posting. The numbers displayed are indicative of the cumulative count of each metric at the end of 5 DAYS or a FULL MONTH, from the day of Posting to respective hyper-local Prarang subscribers, in the city.

RECENT POST

  • होबिनहियन संस्कृति: प्रागैतिहासिक शिकारी-संग्राहकों की अद्भुत जीवनी
    सभ्यताः 10000 ईसापूर्व से 2000 ईसापूर्व

     21-11-2024 09:30 AM


  • अद्वैत आश्रम: स्वामी विवेकानंद की शिक्षाओं का आध्यात्मिक एवं प्रसार केंद्र
    पर्वत, चोटी व पठार

     20-11-2024 09:32 AM


  • जानें, ताज महल की अद्भुत वास्तुकला में क्यों दिखती है स्वर्ग की छवि
    वास्तुकला 1 वाह्य भवन

     19-11-2024 09:25 AM


  • सांस्कृतिक विरासत और ऐतिहासिक महत्व के लिए प्रसिद्ध अमेठी ज़िले की करें यथार्थ सैर
    आधुनिक राज्य: 1947 से अब तक

     18-11-2024 09:34 AM


  • इस अंतर्राष्ट्रीय छात्र दिवस पर जानें, केम्ब्रिज और कोलंबिया विश्वविद्यालयों के बारे में
    वास्तुकला 1 वाह्य भवन

     17-11-2024 09:33 AM


  • क्या आप जानते हैं, मायोटोनिक बकरियाँ और अन्य जानवर, कैसे करते हैं तनाव का सामना ?
    व्यवहारिक

     16-11-2024 09:20 AM


  • आधुनिक समय में भी प्रासंगिक हैं, गुरु नानक द्वारा दी गईं शिक्षाएं
    विचार I - धर्म (मिथक / अनुष्ठान)

     15-11-2024 09:32 AM


  • भारत के सबसे बड़े व्यावसायिक क्षेत्रों में से एक बन गया है स्वास्थ्य देखभाल उद्योग
    विचार 2 दर्शनशास्त्र, गणित व दवा

     14-11-2024 09:22 AM


  • आइए जानें, लखनऊ के कारीगरों के लिए रीसाइकल्ड रेशम का महत्व
    नगरीकरण- शहर व शक्ति

     13-11-2024 09:26 AM


  • वर्तमान उदाहरणों से समझें, प्रोटोप्लैनेटों के निर्माण और उनसे जुड़े सिद्धांतों के बारे में
    शुरुआतः 4 अरब ईसापूर्व से 0.2 करोड ईसापूर्व तक

     12-11-2024 09:32 AM






  • © - 2017 All content on this website, such as text, graphics, logos, button icons, software, images and its selection, arrangement, presentation & overall design, is the property of Indoeuropeans India Pvt. Ltd. and protected by international copyright laws.

    login_user_id