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आज दुनिया बीमारियों के उपचार हेतु केमिकल युक्त दवाइयों पर, अपनी निर्भरता दिन-पर-दिन बढ़ा रही
हैं, जिस कारण हम प्रकृति द्वारा प्रदत्त उन शानदार जड़ी-बूटियों या प्राकृतिक उपचारों की अनदेखी कर रहे
हैं, जो रोगी को बिना हानि पहुचाएं, प्राकृतिक रूप से स्वस्थ कर सकते हैं! फिकस माइक्रोकार्पा या इंडियन
लॉरेल (Ficus Microcarpa or Indian Laurel) भी एक ऐसा ही उष्णकटिबंधीय पेड़ है, जो कसैला और
पित्त रोधी होने के साथ ही, इसकी छाल का उपयोग रक्तपित्त (रक्तस्राव) दोषों, अल्सर, त्वचा रोगों जलन
और सूजन, आदि अनेक रोगों के उपचार में चिकित्सकीय रूप से किया जाता है।
भारतीय लॉरेल (Ficus microcarpa) को चीनी बरगद, मलायन बरगद, कर्टेन अंजीर (Curtain Fig), या
गजुमारू के रूप में भी जाना जाता है। फिकस माइक्रोकार्पा एक उष्णकटिबंधीय पेड़ है, जिसकी छाल चिकनी
और हल्के भूरे रंग की होती है, तथा इसके पूरे अंडाकार पत्ते लगभग 2-2.5 इंच (5-6 सेमी) लंबे होते हैं। इसे
व्यापक रूप से एक छायादार पेड़ के रूप में लगाया जाता है।
इंडियन लॉरेल, उष्णकटिबंधीय एशिया, दक्षिणी चीन, ताइवान, पश्चिमी प्रशांत के द्वीपों और ऑस्ट्रेलिया
के मूल निवासी माने जाते हैं। एक उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय प्रजाति के पेड़ को, गर्म जलवायु
और आर्द्र वातावरण की आवश्यकता होती है। फिर भी यह, 0 डिग्री सेल्सियस के करीब तापमान का भी
सामना कर सकता है। इसकी प्रजातियां मुख्य रूप से कम ऊंचाई पर होती हैं, और इसके प्राकृतिक आवासों
में उष्णकटिबंधीय वर्षावन, नदी के किनारे, तट, दलदल तथा मैंग्रोव (Mangrove) शामिल हैं।
भारतीय लॉरेल को कई सामान्य नामों जैसे प्लाक्सा (संस्कृत), इथी, इथियाल (मलयालम), चीनी बरगद,
चमकदार लीव्ड अंजीर “Glossy Leaved Figs” (अंग्रेजी), आदि के नाम से भी जाना जाता है। छाल, और
पत्तियों का उपयोग घाव, अल्सर, खरोंच, पेट फूलना, यकृतविकृति, दस्त, पेचिश, मधुमेह, हाइपरडिप्सिया
(hyperdipsia), जलन, रक्तस्राव, विसर्प, जलोदर, अल्सरेटिव स्टोमाटाइटिस (ulcerative stomatitis),
हीमोप्टाइसिस (hemoptysis), मनोरोगी, प्रदर और योनि रक्तस्राव में किया जाता है।
फिकस माइक्रोकार्पा
शीतल, कसैला और पित्तरोधी भी होता है। इसमें अच्छा उपचार गुण पाया जाता है, और इसका उपयोग
अल्सर के उपचार में बाहरी उपयोग के लिए तेल, और मलहम तैयार करने में किया जाता है।
यह केरल में,अल्सर, कुष्ठ रोग, खुजली और पित्त के, उपचार के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला महत्वपूर्ण
पौधा है। चीन में, दांत दर्द के लिए इसका उपयोग किया जाता है, जिसके लिए इसे पहले सुखाया जाता है,
पाउडर किया जाता है और फिर सड़ने वाले या दर्द वाले दांत पर लगाया जाता है।
यह एक बारहमासी पौंधा होता है, जिसका वितरण भारत में 1,500 मीटर (अंडमान और निकोबार द्वीप
समूह, अरुणाचल प्रदेश, असम, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, प्रायद्वीपीय क्षेत्र, पंजाब, राजस्थान,
सिक्किम), ऑस्ट्रेलिया, भूटान , चीन, इंडो चीन, जापान, मलेशिया, नेपाल, श्रीलंका और ताइवान में कम
और मध्यम ऊंचाई वाले जंगलों में अच्छी तरह से फैला हुआ जाता है।
भारतीय लॉरेल, एक उच्च जोखिम वाला, आक्रामक, कर्टेन अंजीर या बरगद से संबंधित पेड़ होता है। यह
कथित तौर पर कुछ जगहों पर आक्रामक होता है, जहां इसका परागण ततैया द्वारा किया जाता है, जिसमें
हवाई, फ्लोरिडा, बरमूडा, फ्रेंच पोलिनेशिया, गुआम, बोनिन द्वीप समूह और वेस्ट इंडीज (Hawaii,
Florida, Bermuda, French Polynesia, Guam, Bonin Islands and the West Indies), मध्य और
दक्षिण अमेरिका के कुछ हिस्से भी शामिल हैं। कर्टेन अंजीर के पेड़ के गोलाकार फल के अंदर फूलों का
चक्रव्यूह होता है। अर्थात्, एक अंजीर वास्तव में एक फल नहीं है, बल्कि यह एक पुष्पक्रम एक बल्ब नुमा
तने के अंदर निहित कई फूलों और बीजों का समूह होता है। इस असामान्य व्यवस्था के कारण, बीज-
तकनीकी रूप से अंजीर के अंडाशय- को एक विशेष परागण कर्ता की आवश्यकता होती है, जो इन सीमित
क्वार्टरों (limited quarters) में नेविगेट (navigate) करने के लिए अनुकूलित हो।
यहां शुरू होती है, अंजीर और ततैया के बीच संबंधों की कहानी। अपने छोटे शरीर के बावजूद, अंजीर, ततैया
रानी के लिए लगभग सही आकार की होती है, वह अक्सर अपने पंख और एंटीना खो देती है, क्योंकि वह
अंजीर में एक तंग उद्घाटन के माध्यम से प्रवेश करती है। एक बार अंदर जाने के बाद, रानी अपने अंडे जमा
करते हुए कक्ष के भीतर यात्रा करती है, और साथ ही अंजीर के परागण में भी सहायक होती है। मादाएं एक
और अंजीर को रानियों के रूप में परागित करती हैं और नर अपना पूरा जीवन चक्र एक ही फल के भीतर
व्यतीत करते हैं।
अंजीर और उसके ततैया की कहानी जानने के बाद, सबसे आम सवाल यह है, "क्या हम अंजीर खाते समय
ततैया खाते हैं?" संक्षिप्त उत्तर यह है कि यह निर्भर करता है! कुछ अंजीर पार्थेनोकार्पिक
(parthenocarpic) अर्थात बीज रहित होते हैं। व्यावसायिक रूप से खेती की जाने वाली अंजीर का पेड़
आमतौर पर पार्थेनोकार्पिक किस्म का होता है, जिसे फल पैदा करने के लिए परागण की आवश्यकता नहीं
होती है।
दूसरी ओर, अंजीर के पेड़ों की वे प्रजातियाँ, जो परागण के लिए ततैया पर निर्भर होती हैं, उनमें संभवतः
ततैया के टुकड़े हो सकते हैं। हालांकि, पंखहीन नर ततैया पीछे रह जाते हैं, और एक बार संभोग करने तथा
अपना सुरंग बनाने का काम पूरा करने के बाद मर जाते हैं। इसलिए, मनुष्य सहित जानवर, जो अंजीर खाते
हैं , वे मृत ततैया का सेवन कर सकते हैं!
संदर्भ
https://bit.ly/3mAVb0V
https://bit.ly/3ND7p50
https://bit.ly/3MPZiRz
https://bit.ly/39kjywP
चित्र संदर्भ
1. भारतीय लॉरेल वृक्ष को दर्शाता एक चित्रण (Wikimedia)
2. भारतीय लॉरेल वृक्ष के बीज को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
3. भारतीय लॉरेल के फूल को दर्शाता चित्रण (Wikimedia)
4. कर्टेन अंजीर से निकली ततैया को दर्शाता चित्रण (Wikimedia)
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