प्राचीन भारतीयों द्वारा संस्कृत को "देव भाषा", "देववाणी" या देवताओं की भाषा माना गया है।
संस्कृत शब्द का शाब्दिक अर्थ "परिष्कृत" या "शुद्ध" होता है, जो प्राकृत शब्द के अर्थ का विलोम है।
प्राकृत शब्द का अर्थ, "प्राकृतिक", या "अशिष्ट" होता है। वास्तव में संस्कृत भाषा एक ऐसी भाषा
हुआ करती थी जिसने संपूर्ण भारतवर्ष के सभी क्षेत्रों को एक दूसरे के साथ संवाद करने का अवसर
प्रदान किया और जो लोग इस तथ्य से परिचित नहीं हैं, उनके लिए संस्कृत भाषा हिंदू धर्म की मुख्य
धार्मिक भाषा है।
मुख्य रूप से संस्कृत भाषा दक्षिण एशिया की एक शास्त्रीय भाषा है जो इंडो-आर्यन भाषा परिवार से
संबंधित है। कांस्य युग के अंत में उत्तर-पश्चिम से अपनी पूर्ववर्ती भाषाओं के फैलने के पश्चात्
दक्षिण एशिया में इस भाषा का उदय हुआ। संस्कृत हिंदू धर्म की पवित्र भाषा के साथ-साथ शास्त्रीयहिंदू दर्शन की भाषा और बौद्ध तथा जैन धर्म के ऐतिहासिक ग्रंथों की भाषा भी है।
यह प्राचीन और
मध्ययुगीन दक्षिण एशिया में एक संयुक्त भाषा थी, और प्रारंभिक मध्ययुगीन युग में दक्षिण पूर्व
एशिया और मध्य एशिया में हिंदू और बौद्ध संस्कृति के द्वारा प्रचारित होने के कारण यह धर्म और
राजनीतिक अभिजात वर्ग की भाषा बन गई। भारत से प्राप्त होने वाली अधिकांश महान साहित्यिक
कृतियाँ और साथ ही साथ कई धार्मिक ग्रंथ भी संस्कृत भाषा में ही लिखे गए हैं। हिंदू और बौद्ध
धर्म के मंत्रों और भजनों की भाषा भी संस्कृत ही है।
संस्कृत भाषा को एक अनुसूचित भाषा के रूप में संरक्षित किया गया है और यह भारत के एक राज्य
उत्तराखंड की आधिकारिक भाषा भी मानी गई है, लेकिन आज के दौर में भारत की आबादी का केवल
1% भाग ही संस्कृत भाषा बोलता है। भारत के इतिहास से हमें पता चलता है कि भारत में कई
युगों पहले से ही संस्कृत भाषा का उपयोग किया जा रहा है। उस समय संस्कृत भाषा की पूर्वज भाषा
बोली जाती थी, जिसे वैदिक संस्कृत के रूप में जाना जाता है।
वैदिक संस्कृत भाषा ने ही बाद में
शास्त्रीय संस्कृत को जन्म दिया, जिसका उपयोग रामायण जैसे कई महान भारतीय महाकाव्यों को
लिखने के लिए किया गया था। आज भारत में हिंदी सबसे लोकप्रिय भाषाओं में से एक है और यह
संस्कृत भाषा से अत्याधिक प्रभावित है। वास्तव में हिंदी, संस्कृत भाषा का ही एक रूप है जिसे
खड़ीबोली के रूप में संस्कृत से ही परिवर्तित किया गया है। आधुनिक भारत के अलावा, आसपास के
क्षेत्रों की अन्य भाषाएं जैसे ऑस्ट्रोनेशियन (Austronesian), चीन-तिब्बती, और दक्षिण पूर्व एशिया
(South East Asia) की कई भाषाएं भी संस्कृत भाषा का प्रभाव दिखाती हैं। कुछ विद्वानों ने कहा
है कि अंग्रेजी भाषा में कुछ ऐसे शब्द भी हैं जो मूल रूप से संस्कृत के शब्द थे।
संस्कृत भाषा भारत में काफी प्राचीनतम तथा गहराई से जुड़ी हुई भाषा है। इस तथ्य का सबसे बड़ा
प्रमाण यह है कि सबसे पहले लिखित अभिलेखों में से एक अभिलेख संस्कृत भाषा में लिखा गया था।
यह अभिलेख संभवत: ऋग्वेद के ग्रंथ थे, जो प्राचीन काल से हिंदू भजनों का एक संग्रह है। हालाँकि
इसका समर्थन करने के लिए कोई बड़ा प्रमाण नहीं है। वैदिक संस्कृत विशुद्ध रूप से बोली जाने
वाली भाषा थी, लेकिन इसके उचित उच्चारण के लिए इसे पूरा याद रखना अत्यधिक महत्वपूर्ण था,
इसलिए हम संपूर्ण रूप से कह सकते हैं कि हमारे पास अब जो लिखित ग्रंथ हैं, वे उस युग के
समानकाल के ही हैं। ये सभी धार्मिक और औपचारिक ग्रंथ, धर्म और दर्शन दोनों की दृष्टि से अत्यंत
महत्वपूर्ण हैं। हिंदू धर्म के लिए संस्कृत भाषा के विशिष्ट महत्व होने के अलावा, संस्कृत भाषा जैन
धर्म, बौद्ध धर्म और सिख धर्म में इस्तेमाल की जाने वाली एक दार्शनिक भाषा भी है।
जैन धर्म भारत की आबादी के 1% से भी कम लोगों द्वारा प्रचलित धर्म है और फिर भी सदियों से
जैन साहित्य का भारतीय संस्कृति और इतिहास पर बहुत बड़ा प्रभाव रहा है। इस जैन साहित्य को
लिखने के लिए उपयोग की गई मुख्य भाषाओं में से एक संस्कृत भी है। इसी तरह बौद्ध धर्म की
मुख्य भाषा पहले प्राकृत थी, लेकिन बाद में बौद्ध धर्म द्वारा भी संस्कृत भाषा को अपनाया गया,
जिसके पश्चात कुछ सबसे महत्वपूर्ण बौद्ध साहित्य संस्कृत भाषा में लिखे गए हैं। सिख धर्म में हमें
संस्कृत भाषा का प्रमाण कुछ इस प्रकार प्राप्त होता है कि सिख धर्म का सबसे महत्वपूर्ण धार्मिक
ग्रंथ, "गुरु ग्रंथ साहिब", को कुछ भिन्न-भिन्न भाषाओं में लिखा गया है, जिनमें से एक संस्कृत भाषा
भी है। इन सभी प्रमुख कारणों के साथ-साथ और भी कई प्रकार के उल्लेख हैं जिनसे हमें पता चलता
है कि संस्कृत भाषा भारत से किस प्रकार इतनी गंभीरता से जुड़ी हुई है।
संस्कृत भाषा साहित्यज्ञान का एक ऐसा सागर है जिसमें ज्ञान के विभिन्न मोती सम्मिलित हैं। यह
भाषा वेदों, शास्त्रों तथा काव्यों का स्रोत है और इसे देवताओं की भाषा माना गया है। वैदिक संस्कृत
भाषा का सही रूप हजारों साल पहले से ही दुनिया की शुरुआती प्रमुख भाषाओं जैसे ग्रीक (Greek)
हिब्रू (Hebrew) और लैटिन (Latin) आदि से पहले ही अस्तित्व में था। इस भाषा के निर्माण में
व्याकरण की महानता और विशिष्टता की मुख्य भूमिका देखी जा सकती है। संस्कृत के 36 व्यंजन
और 16 स्वरों में से प्रत्येक की ध्वनि शुरुआत से ही स्थिर और सटीक है।
उन्हें कभी बदला, सुधारा
या संशोधित नहीं किया गया। संस्कृत भाषा के सभी शब्दों का उच्चारण हमेशा से वही किया जाता
था जो आज किया जाता है। प्राचीन युग में किसी भी प्रकार का कोई 'ध्वनि परिवर्तन' नहीं था, स्वर
प्रणाली में कोई परिवर्तन नहीं होता था, और शब्दों के निर्माण के संबंध में संस्कृत के व्याकरण में
कभी भी कोई जोड़ नहीं बनाया गया था। इससे यह स्पष्ट है कि संस्कृत विश्व की सभी भाषाओं का
स्रोत है, न कि किसी भाषा की व्युत्पत्ति। इसीलिए संस्कृत भाषा को विश्व की दिव्य मातृभाषा माना
गया है। संपूर्ण भारत देश में विस्तृत सभी क्षेत्रों के लोग आसानी से संस्कृत भाषा को अपनाकर उससे
जुड़ सकते हैं और यही भाषा संपूर्ण देश को एकजुट करने का सबसे अच्छा साधन भी साबित हो
सकता है। संस्कृत में हमारी भारतीय संस्कृति की तथा अन्य कई महान कृतियां प्रसारित हैं। हमारी
भारतीयता इस भाषा से मुख्य रूप से जुड़ी हुई है, इसीलिए आने वाली पीढ़ियों को संस्कृत भाषा का
अध्ययन करना एवं संस्कृत सीखना बहुत आवश्यक है।
संदर्भ:
https://bit.ly/3MgN6K2
https://bit.ly/3MavC1M
https://bit.ly/3Mh7Tx5
https://bit.ly/3sAGY7p
चित्र संदर्भ
1 संस्कृत में विकिमीडिआ सेमिनार को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
2. कई देशों में संस्कृत भाषा की ऐतिहासिक उपस्थिति को प्रमाणित किया गया है। साक्ष्य में दक्षिण एशिया, दक्षिण पूर्व एशिया और मध्य एशिया में खोजे गए पांडुलिपि पृष्ठ और शिलालेख शामिल हैं। ये 300 और 1800 सीई के बीच दिनांकित किए गए हैं। जिनको दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. गुप्त लिपि (सी. 828 सीई) में सबसे पुराने जीवित संस्कृत पांडुलिपि पृष्ठों में से एक, को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
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