पहले के समय में जब लखनऊ की सियासत नवाबों के हाथों में थी, उस दौरान नवाबों के पास उत्तम नस्ल के
घोड़े या शानदार बैलगाड़ियां होती थी, जो उनकी शान में चार चांद लगा देती थी! अब रही बात आम जनता
की तो, ब्रिटिश राज के आगमन से पहले और आज भी, न केवल लखनऊ, बल्कि पूरे देश की जनता अपने
दैनिक कार्यों और यहां तक की जीवन यापन के लिए भी गाय, बैल, बकरी और घोड़ों जैसे पालतू जानवरों पर
निर्भर रही है। यह पालतू जानवर हमें न केवल पौष्टिक दूध और मांस उपलब्ध कराते हैं, साथ ही कृषि और
बागवानी में भी सदियों से किसानों की सेवा कर रहे हैं। लेकिन आज कई जानवरों की जगह आधुनिक
मशीनों ने ले ली है, साथ ही पशुओं से जुड़े कई अन्य व्यवसाय भी आधुनिक चुनौतियों से जूझ रह हैं!
भारत के 45% कृषि परिवारों के घरों में मवेशी मौजूद हैं,जिनमें से 27% के पास भैंस हैं, और 14% के पास
कुक्कुट पक्षी (poultry birds) हैं। केवल 19% कृषि परिवारों के पास ही ओवाइन (Ovine) और अन्य
स्तनधारियों (भेड़, बकरी, सुअर, खरगोश, आदि) का स्वामित्व है। इस प्रकार मवेशी और कुक्कुट पक्षियों की
संख्या अन्य जानवरों से अधिक है। पिछड़े वर्ग (OBC) के लगभग एक तिहाई (32%) कृषि परिवारों के पास
भैंस हैं, जो अनुसूचित जनजाति (एसटी) 15%, अनुसूचित जाति (एससी) 23% की तुलना में बहुत अधिक
हैं।
कृषि परिवारों के स्वामित्व वाले कुल 73% मवेशियों में 85% भैंसें मादाएं हैं। इसका मतलब यह है कि
मवेशियों और भैंसों को खेतों में काम करने के बजाय बड़े पैमाने पर दुधारू पशुओं के रूप में पाला जाता है।
मवेशियों में ऐसा विषम लिंगानुपात प्राकृतिक कारणों से नहीं है, बल्कि कृषि परिवारों द्वारा नर मवेशियों
और भैंसों को बेच या छोड़ दिया जाता है। ऐसा करने का प्रमुख कारण यह है की, इंसानों की तरह जानवरों
को भी रहने के लिए जगह चाहिए। साथ ही, मवेशियों के चारे पर वित्तीय बोझ भी पड़ता है। 2018-19 में
पशुपालन पर AFH के कुल खर्च का 84.4% था।
एक सर्वे में पाया गया कि सर्वेक्षण के समय केवल 27% मवेशी और 37% भैंस ही दूध दे रहे थे। हालांकि
इससे ऐसे में घर की शुद्ध आय को नुकसान होना तय है। पशु किसान अपने स्वयं के उपभोग के लिए दूध
की तुलना में कुक्कुट का उपयोग करने की अधिक संभावना रखते हैं। इसके अलावा, स्व-उपभोग के लिए
उपयोग किए जाने वाले पशु उत्पादन का हिस्सा, सभी उत्पादों में काफी भिन्न होता है। मवेशियों और भैंस
के दूध के मामले में यह लगभग 45% है, मुर्गी पालन के मामले में 60% है, लेकिन मछली के लिए सिर्फ
9.9% और जीवित भेड़ या बकरी के लिए शून्य है।
गुजरात में AFH द्वारा उत्पादित दूध का 64% सहकारी समितियों (co-operative societies) को बेचा
जाता है। गुजरात अकेला ऐसा राज्य नहीं है, जहां डेयरी क्षेत्र में सहकारी समितियों की मजबूत उपस्थिति
है। केरल और कर्नाटक में भी, लगभग 50% दूध, सहकारी समितियों को बेचा जाता है। फिर तमिलनाडु
और महाराष्ट्र जैसे राज्य हैं, जहां उत्पादित कुल दूध का 40% से अधिक, निजी प्रोसेसर खरीदते हैं। दूसरे
छोर पर हिमाचल प्रदेश, छत्तीसगढ़ और झारखंड जैसे राज्य हैं, जहां न तो सहकारी समितियों और न ही
निजी व्यवसायों की दुग्ध अर्थव्यवस्था में मजबूत उपस्थिति है, और घर के भीतर ही दूध उत्पादन का 3/4
या अधिक उपभोग किया जाता है।
अगर वैज्ञानिक तरीके से पालतू जानवरों की देखभाल की जाए, तो डेयरी किसान बहुत पैसा कमा सकते हैं।
दरअसल गाय पालन में दूध ही आय का एकमात्र स्रोत नहीं है। बल्कि बाजार में जैविक खेती में गोबर और
गोमूत्र की भी अत्यधिक मांग है। गोबर को सुखाकर बोरियों में बेचा जाता है, जिससे भी ग्रामीणों को रुपये
मिलते हैं। इसी तरह जैविक क्षेत्र में गोमूत्र और पंचगव्य भी बेचे जाते हैं। किसान चाहें तो छाछ, दही और
घी जैसे मूल्य वर्धित उत्पादों के रूप में अधिक पैसा कमा सकते हैं। होटल और रेस्टोरेंट में भी इनकी काफी
मांग है। कुल मिलाकर चार या पांच गायों से एक परिवार बिना किसी परेशानी के अपना जीवन यापन कर
सकता है।
आज कई संगठनों द्वारा, हलाल मांस (halal meat) का बहिष्कार करने कि मांग की जा रही है। जानकार
मान रहे हैं की, यह किसानों की आजीविका को गंभीर रूप से प्रभावित करेगा। सार्वजनिक स्वास्थ्य
शोधकर्ता डॉ सिल्विया करपगम (Dr. Sylvia Karpagam), के अनुसार, “पशुधन किसान वर्तमान में गंभीर
संकट में हैं, क्योंकि वे ऋण चुकाने में असमर्थ हैं, तथा अन्य किसान उनसे मवेशी खरीदने में झिझक रहे
हैं।” “बकरी, भेड़ और मुर्गी पालन करने वाले किसानों के लिए सबसे बड़ा डर, बड़े निगमों की भागीदारी और
बिचौलियों की शुरुआत है। क्योंकि इससे बिचौलिए, स्थानीय व्यापारी का सारा मुनाफा लूट सकते हैं।
बकरी और भेड़ के व्यापार में, परिवहन और कसाई सहित आपूर्ति श्रृंखला में शामिल बहुसंख्यक मुस्लिम ही
हैं। मुस्लिम समुदाय से आपूर्ति श्रृंखला में शामिल अधिकांश लोगों के साथ, किसानों को कड़ी मेहनत करनी
होगी और अपने प्रस्तावों (proposals) को कम करना होगा, क्योंकि मांस व्यापार समय के प्रति
संवेदनशील हो गया है। अधिकांश किसान मजदूर वर्ग के हैं, जिसमें आमतौर पर खानाबदोश, भूमिहीन या
छोटे जोत वाले किसान हैं। "अधिकांश मवेशी, भेड़, बकरी और मुर्गी पालन करने वाले किसान गरीब
पृष्ठभूमि से आने वाले मौसमी किसान हैं।" हलाल बहिष्कार की प्रारंभिक प्रतिक्रिया के कारण किसान
अपने पशुओं को कम कीमतों पर बेच सकते हैं, या बिना किसी सौदेबाजी की शक्ति के अपने ऋणों को
चुकाने के लिए अपने पशुओं को ऋणदाताओं को बेच सकते हैं।
संदर्भ
https://bit.ly/3koLUI6
https://bit.ly/3KvVi7B
https://bit.ly/3OKv5W1
चित्र संदर्भ
1 इनाम लेकर गाय के पास खड़े व्यक्ति को दर्शाता एक चित्रण (Flickr)
2. भैंसों के तबेले में महिला को दर्शाता एक चित्रण (Flickr)
3. घास चरती बकरियों को दर्शाता एक चित्रण (Pixabay)
4. गाय को चारा देते किसान को दर्शाता एक चित्रण (PixaHive)
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