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कब क्यों और कैसे इंसान ने अन्य पशुओं का दूध ग्रहण करना शुरू किया पौष्टिक दूध का इतिहास

मेरठ

 06-09-2021 11:24 AM
स्तनधारी

हमारी भारतीय संस्कृति में दूध को पार्यप्त आहार माना गया है। पार्यप्त आहार होने का यह तर्क यूं ही नहीं दिया गया, बल्कि इसके पीछे एक ठोस आधार है। दरसअल दूध को शरीर के समुचित विकास के लिए सबसे आदर्श आहार माना गया है। क्यों की इसमें शरीर के लिए सभी बेहद ज़रूरी पोषक तत्व जैसे, कैल्शियम (calcium), फास्फोरस (phosphorus), विटामिन बी (B vitamins), पोटेशियम (potassium) और विटामिन डी (vitamin D) के साथ ही प्रोटीन आदि प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं। इसके अलावा इसमें कई एंजाइम और कुछ जीवित रक्त कोशिकाएं भी हो सकती हैं। इंटरनेशनल डेयरी जर्नल (International Dairy Journal) के द्वारा किये गए एक शोध से यह बात साबित हो चुकी है कि दूध न पीने वाले लोगों की तुलना में, रोजाना कम से कम एक ग्लास दूध पीने वाले लोग हमेशा मानसिक और बौद्धिक तौर पर बेहतर स्थिति में होते हैं।
मनुष्य अथवा जानवरों का नवजात शिशु तब तक दूध पर निर्भर रहता है, जब तक वह अन्य पदार्थों का सेवन करने में अक्षम होता है। जिसे वह अपनी माता से प्राप्त करता है। साधारणतया दूध में 85 प्रतिशत जल होता है, और शेष भाग में ठोस तत्व यानी खनिज व वसा होता है। गाय-भैंस के अलावा बाज़ारों में विभिन्न कंपनियों का डिब्बा बंद दूध भी उपलब्ध हो जाता है। मनुष्य ने सबसे पहले नियमित रूप से अन्य स्तनधारियों के दूध का सेवन करना नवपाषाण क्रांति या कृषि के विकास के दौरान सीखा, जब उनसे जानवरों पालतू बनाना शुरू किया।
दूध पीने की शुरुआत मेसोपोटामिया (Mesopotamia) में 9000–7000 ईसा पूर्व से अमेरिका (Americas) में 3500–3000 ईसा पूर्व के बीच हुई। दक्षिण पश्चिम एशिया में सबसे पहले भेड़ और बकरियों को पालतू बनाया गया और दूध प्राप्त किया गया। प्रारंभ में जानवरों को मांस के लिए रखा जाता था, और डेयरी उद्योग, बालों और श्रम के लिए घरेलू पशुओं का इस्तेमाल चौथी सहस्राब्दी ईसा पूर्व में बहुत बाद में शुरू हुआ। लगभग 7000 ईसा पूर्व तक दूध देने वाले घरेलु जानवर दक्षिण पश्चिम एशिया से यूरोप में फैल गए। अफ्रीका में भी भेड़ और बकरियों को दक्षिण पश्चिम एशिया से लाया गया, लेकिन अफ्रीकी मवेशियों को लगभग 7000-6000 ईसा पूर्व स्वतंत्र रूप से पालतू बनाया गया। चौथी सहस्राब्दी ईसा पूर्व तक पालतू ऊंटों को मध्य अरब, उत्तरी अफ्रीका और अरब प्रायद्वीप में डेयरी जानवरों के रूप में भी इस्तेमाल किया जाने लगा। मध्य युग के दौरान दूध को "पुण्य सफेद शराब (virtuous white wine)" कहा जाता था, क्योंकि शराब पीने के लिए पानी की तुलना में अधिक सुरक्षित थी।
10,000 वर्ष पूर्व प्रारंभिक मनुष्यों ने जंगली जानवरों को अपने बच्चों को पालते हुए देखा जैसे वे अपने बच्चों को पालते थे। जिसके बाद मनुष्य ने बकरियों और ऑरोच (गाय की पैतृक नस्लों) को पकड़कर दूध को मिट्टी के बर्तनों में इकट्ठा करना शुरू कर दिया । वे भी जल्द ही समझ गए थे की अन्य जानवरों का दूध एक संपूर्ण, पौष्टिक भोजन है। वैज्ञानिकों के पास इस बात के ठोस प्रमाण हैं कि मनुष्यों ने कम से कम 10,000 साल पहले जानवरों का कच्चा दूध पीना शुरू किया था। प्राचीन शिशु बोतलें इस बात का प्रमाण देती हैं, कि कम से कम 8,000 साल पहले जानवरों के दूध का इस्तेमाल मानव शिशुओं को पिलाने के लिए शरू कर दिया था। दूसरे जानवरों का दूध पिलाने की यह संस्कृति इतनी लोकप्रिय हुई की अगले कुछ हज़ार वर्षों में ही भूमध्यसागरीय क्षेत्र, यूरोप, एशिया और मध्य पूर्व में फैल गईं। मानव इतिहास में, ऊंट, गाय, बकरी, भेड़, गधे, घोड़े, जल भैंस, हिरन और अन्य स्तनधारियों सहित कई प्रजातियों का उपयोग उनके दूध के लिए किया गया है।
दूध के प्रचलित होने से अब लोगों को अब अपना अधिकांश समय भोजन प्राप्त करने में खर्च नहीं करना पड़ता था, और इसके बजाय वे कस्बों के विकास के लिए अपनी मस्तिष्क शक्ति का उपयोग कर सकते थे। जिसके बाद पालतू जानवर उच्च मूल्य की संपत्ति बन गए। जैसे-जैसे सभ्यता आगे बढ़ी, दूध देने वाले स्तनधारियों के मालिक अमीर बन गए और समुदायों के लिए भोजन का स्रोत बन गए। कच्चे दूध ने मनुष्यों को ऐसी परिस्थितियों में भी पनपने में सहायता की , जहां जीवित रहना मुश्किल होता। दूध ने मानव को भोजन की स्थिर आपूर्ति के साथ एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में प्रवास और प्रसार करने की अनुमति दी।
आज भारत में, डेयरी क्षेत्र देश के सामाजिक-आर्थिक और ग्रामीण अर्थव्यवस्था के विकास में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। डेयरी उद्योग गांवों में लाखों घरों को आजीविका प्रदान करता है तथा शहरी और ग्रामीण दोनों क्षेत्रों में लोगों को गुणवत्तापूर्ण दूध और दूध उत्पादों की आपूर्ति सुनिश्चित करता है।
वैश्विक दुग्ध उत्पादन में भारत प्रथम स्थान पर है, जो 1990-1991 के 53.9 मिलियन टन से बढ़कर 2012- 13 में 127.9 मिलियन टन हो गया है। यह क्षेत्र भारत की राष्ट्रीय आय का लगभग एक चौथाई योगदान देता है, और कृषि में लगे कुल कर्मचारियों की संख्या लगभग 60 प्रतिशत है। भारत 21वीं सदी के मेगा डेयरी बाजार के रूप में उभर रहा है। यह देश में ग्रामीण रोजगार और आय का एक महत्वपूर्ण स्रोत है। पिछले तीन दशकों के दौरान भारत में इस क्षेत्र की वृद्धि दर 5% प्रति वर्ष देखी गई है। 90% से अधिक पशुधन की देखभाल और प्रबंधन महिलाओं द्वारा किया जाता है। जहां एक सामान्य वर्ष में, फसल उत्पादन केवल 90 से 120 दिनों के रोजगार पैदा कर सकता है। बाकी बचे हुए समय में किसान बेरोज़गार रहते हैं, ऐसी स्थिति में डेयरी उद्पादन ग्रामीण क्षेत्रों मील का पत्थर साबित हो सकता है।

संदर्भ
https://bit.ly/3BEPiFu
https://bit.ly/3zJrpMb
https://bbc.in/3jHw8bM
https://en.wikipedia.org/wiki/Milk

चित्र संदर्भ
1. अपनी गायों के साथ अफ़्रीकी मूल के व्यक्ति का एक चित्रण (science)
2. मामल्लापुरमइंडिया में दूध दुहते कृष्ण मंडप बसरालीफ मूर्तिकला का एक चित्रण (flickr)
3. गाय के बछड़े को दूध पीना सिखाते बुजुर्ग का एक चित्रण (flickr)
4. अमृतसर गागड़ो में में दूध की ढुलाई कर रहे विक्रेता एक चित्रण (wikimedia)

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