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लखनऊ राजमहल में दरबार लगाए हुए नवाब सादात अली खान की एक दुर्लभ जलावरण चित्रकारी

लखनऊ

 09-04-2022 09:45 AM
द्रिश्य 3 कला व सौन्दर्य

सदियों से अनदेखा की गई कलाकृतियों को बस 'कंपनी पेंटिंग' (Company Painting) और 'कंपनी स्कूल' (Company School) का नाम दिया गया था; लेकिन एक आला नौकरशाही श्रेणी को सौंपी गई कुछ कलाकृतियों को अब उत्कृष्ट कृतियों के रूप में मान्यता दी जा रही है।कंपनी पेंटिंग का सबसे उत्कृष्ट उदाहरण, नवाब सादात अली खान की 1799 की लखनऊ राजमहल में दरबार लगाए हुए एक दुर्लभ जलावरण चित्रकारी है। मुसोवर खान द्वारा मूल अहस्ताक्षरित जल रंग की यह चित्रकारी मूल चित्रकारी (जो खो चुकी है) की प्रतिलिपि है। इसमें नवाब सादात अली खान (1798-1814) 18 वीं शताब्दी के अंत में लखनऊ में सबसे महत्वपूर्ण लोगों, भारतीय और यूरोपीय लोगों से घिरे एक दरबार में सिंहासन में अपने बेटे के साथ बैठे हुए दर्शाये गए थे।उपस्थित लोगों में नवाब के बगल में बैठे ब्रिटिश निवासी कर्नल विलियम स्कॉट (Colonel William Scott) (1754-1804), नवाब के ठीक बगल में बैठे मुख्यमंत्री, तफ़ुज़ाई हुसैन खान (1727-1800) और मेजर जनरल क्लाउड मार्टिन (Major General Claude Martin) (1735-1800) शामिल हैं। यह जलावरण चित्र उसी का एक संस्करण है जो हिंटरस्टन हाउस (Hinterston House), आयरशायर (Ayrshire), स्कॉटलैंड (Scotland) के संग्रह में है। वहीं 18वीं सदी के अंत और 19वीं सदी की शुरुआत में ईस्ट इंडिया कंपनी के संरक्षकों द्वारा कमीशन (Comission) की गई चित्रकारी लंदन (London) के वालेस (Wallace)संग्रहालय में एक प्रदर्शनी में प्रदर्शित हुई। ईस्ट इंडिया कंपनी के लिए भारतीय चित्रकारी उन कलाकारों पर केंद्रित है जिन्हें पहले उपेक्षित किया गया था। प्रदर्शनी के संग्रहाध्यक्ष, इतिहासकार विलियम डेलरिम्पल के अनुसार, उन्हें "सबसे बड़ी क्षमताओं के प्रमुख कलाकारों" के रूप में प्रसिद्धि प्रदान की जानी चाहिए।प्रदर्शनी सूची, दस्तावेज़ और वृतांत के लिए उपनिवेशवाद की अतृप्त प्यास को दर्शाती उत्कृष्ट चित्रों की एक रोमांचक श्रृंखला प्रस्तुत करती है।वे यूरोपीय (European) वनस्पतिविदों, प्राणीविदों, मानवविज्ञानी और वास्तुकारों के अध्ययन के लिए भारतीय वन्यजीवों (जानवरों, वनस्पतियों, जीवों), लोगों और इमारतों को दर्शाते हैं।200 साल से अधिक पुराने होने के बावजूद, कई वन्यजीव कार्य आश्चर्यजनक रूप से सही सलामत हैं।
शेख ज़ैन उद-दीन का चंदन की शाखा पर बैठा भारतीय नीलकंठ पक्षी (1779) का चित्रकाफी मनमोहक है, उन्होंने इसे यूरोपीय प्राकृतिक इतिहास शैलियों और मुगल चित्रकला परंपराओं दोनों को जोड़कर बनाया है।यह उल्लेखनीय लगता है कि इस तरह की प्रतिभा के काम की उपेक्षा की गई है, लेकिन इनकी लेबलिंग को देख कर लगता है कि ये एक अनिश्चय की स्थिति में फंसे हुए हैं। क्योंकि भारतीयों के लिए ये तस्वीरें भारतीय नहीं हैं और उपनिवेशवाद के चिह्नों को दर्शाती हैं। और ब्रिटेन इन्हें साम्राज्य के लिए एक शर्मिंदगी के रूप में देखते हैं, क्योंकि साम्राज्य के पतन के बाद, अंग्रेजों ने इसे एक पेटी में डालकर रख दिया था। सबसे दुखद बात तो यह है कि गुलाम अली खान, शेख ज़ैन उद-दीन और वेल्लोर के येलापा ऐसे नाम हैं जिन्हें लोग आज पहचानते नहीं हैं। 'कंपनी पेंटिंग' शब्द का इस्तेमाल दशकों से औपनिवेशिक (ज्यादातर ईस्ट इंडिया कंपनी) संरक्षकों के लिए चित्रित कार्यों को संदर्भित करने के लिए किया गया है, जो संरक्षक और चित्रकार के बीच एक संबंध को दर्शाता है, जिसमें चित्रकार ने औपनिवेशिक स्वामी की कल्पना को चित्रित किया। वहीं इस दृष्टिकोण को अब विद्वत्ता में सक्रिय रूप से संशोधित किया जा रहा है, यह तर्क देते हुए कि चित्रकारों को प्रतिरोध और परिवर्तन के घटक के रूप में मान्यता दी गई है: भारतीय कला में चित्रकला और कला ऐतिहासिक संलाप का विघटन एक वास्तविक और वर्तमान चुनौती है।वेल्लोर के दक्षिण भारतीय कलाकार येल्लापा एक ऐसे व्यक्ति की तरह लगते हैं जो अपने काम के मिटने से प्रभावित नहीं होंगे, लेकिन उनका निष्क्रिय ढंग से मंत्रमुग्ध कर देने वाला स्व-चित्र, वेल्लोर का येलापाह (1832-1835) काफी बारीकी से बनाया गया है। वहीं प्रदर्शनी में एक जॉन वोम्बवेल का चित्र स्मोकिंग ए हुक्का (John Wombwell Smoking A Hookah 1790), उत्तर भारतीय शहर लखनऊ में, एक यॉर्कशायर (Yorkshire) के लेखाकार जॉन वोम्बवेल को, भारतीय रीति-रिवाजों और शैली को अपनाते हुए, एक गलीचा पर बैठे हुए,मुगल अलंकार में कपड़े पहने हुक्के का आनंद लेते हुए दर्शाया गया है।
19वीं शताब्दी की शुरुआत में नौच लड़कियों (नृत्य करने वाली लड़कियों) के चित्रों का एक त्रिपिटक भारतीय महिलाओं की एक दुर्लभ और संक्षिप्त झलक को दिखाता है। महिलाओं का चित्र शायद ही चित्रित संग्रह में दिखाई देते हैं, सिवाय कुलीन स्त्रियों के आदर्श चित्रों के अलावा"।उस दृष्टिकोण से, पटना के कलाकार हुलास लाल और लालजी द्वारा चित्रित नौच लड़कियों के स्पष्ट चित्र एक वास्तविकता पर आधारित संपत्ति हैं, महिलाओं के ये चित्र उनके आत्मविश्वासी व्यक्तित्व और लचीलेपन की भावना को दर्शाते हैं।
अंग्रेजों के शासन में आने के बाद चित्रकारों और कलाकारों को भुला सा दिया गया था, इसलिए जीविकोपार्जन के लिए संघर्ष कर रहे ये चित्रकार अमीर ब्रिटिश संरक्षक और कंपनी से जुड़ गए और यूरोपीय कला को अपनी कला में लाने लगे। और भारतीय चित्रकार बड़े पैमाने पर यूरोपीय शैली में पेंटिंग करने लगे, उदाहरण के लिए, सीता राम की द ग्रेट गन ऑफ आगरा बिनिथ द शाह बुर्ज (The Great Gun of Agra Beneath the Shah Burj - 1815) जॉन कांस्टेबल के ग्रामीण अंग्रेजी जलरंगों की याद दिलाती है।

संदर्भ :-
https://bbc.in/3uc2MHK

चित्र संदर्भ
1. लखनऊ राजमहल में दरबार लगाए हुए नवाब सादात अली खान की एक दुर्लभ जलावरण चित्रकारी को दर्शाता एक चित्रण (Prarang)
2. लखनऊ राजमहल में दरबार लगाए हुए नवाब सादात अली खान की एक दुर्लभ जलावरण चित्रकारी को दर्शाता एक अन्य चित्रण (Prarang)
3. कंपनी पेंटिंग के एक अन्य उदाहरण दुर्लभ पक्षी ब्लैक स्टॉर्क का एक चित्रण (audubonart)" को दर्शाता एक चित्रण (audubonart)



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