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चित्रकला अपने आप में ही इतना लोकप्रिय और व्यापक विषय है, जिसके एक छोर से दूसरे
छोर तक का अध्ययन करने में संभवतः किसी कलाप्रेमी का पूरा जीवन ही समर्पित हो जाए,
फिर भी वह चित्रकला की सभी शैलियों को न जान पाए। यद्दपि चित्रकारी की हर शैली
अपने आप में विशेष महत्ता रखती है, किंतु कंपनी शैली (Company School Paintings)
के चित्रों के नाम की ही भांति इसकी निर्माण शैली भी विशिष्ट और अद्वितीय है।
कंपनी शैली या कंपनी पेंटिंग को हिंदी में कंपानी कलाम के नाम से भी जाना जाता है। यह
भारतीय कलाकारों द्वारा भारत में बनाई गई, चित्रों की एक इंडो-यूरोपीय शैली है, जिसकी
शुरुआत 18 वीं शताब्दी में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी तथा अन्य विदेशी कंपनियों के साथ
हुई। अधिकांशतः यह पेंटिंग कागज पर की जाती थी, लेकिन कभी-कभी यह दिल्ली जैसे
शहरों में हाथी दांतों पर की जाती थी।
ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने 1700 के दशक के अंत में दक्षिण एशिया में अपने दायरे का
विस्तार किया, इस दौरान बड़ी संख्या में इंग्लैंड से उसके कर्मचारियों भारत में आने लगे।
गुजरते समय के साथ उन ब्रिटिश नागरिकों ने भारत देश की यात्रा की और असामान्य
वनस्पतियों और जीवों, आश्चर्यजनक प्राचीन स्मारकों और नए लोगों को देखा, वे स्मृतियों
के रूप में इन छवियों को घर (इंग्लैंड) भेजने या ले जाने के लिए कैप्चर करना चाहते थे।
चूँकि इस दौरान कैमरा की खोज न होने से, अठारहवीं और उन्नीसवीं शताब्दी के ब्रिटिश
नागरिकों को चित्रकारी करने के लिए भारतीय चित्रकारों को काम पर रखना पड़ता था।
इन
कलाकारों द्वारा यूरोपीय शैली और पैलेट में किए गए चित्रकारी के कार्यों को सामूहिक रूप
से "कंपनी" पेंटिंग के रूप में जाना जाता है।
पेंटिंग की यह शैली कई अलग-अलग शहरों में पैदा हुई। सबसे पुराने ब्रिटिश व्यापार घरानों
में से एक के रूप में कलकत्ता महत्वपूर्ण प्रारंभिक उत्पादन केंद्रों में से एक था। शैली के
प्रसिद्ध कलाकारों में पटना में काम करने वाले सेवक राम और दिल्ली के गुलाम अली खान
परिवार के सदस्य थे। इस शैली की चित्रकारियों में शानदार मुगल स्मारक सबसे लोकप्रिय
विषय थे। पटना कंपनी पेंटिंग के प्रमुख केंद्रों में से एक था, क्योंकि यह एक महत्वपूर्ण
कारखाने और एक प्रांतीय समिति दोनों का केंद्र रहा। साथ ही यह कई ब्रिटिश प्रवासियों का
घर भी था।
इस शैली की अधिकांश पेंटिंग आकार में छोटी थीं, जो भारतीय लघु परंपरा को दर्शाती हैं।
लेकिन पौधों और पक्षियों के प्राकृतिक चित्रण आमतौर पर उनके मूल आकार में ही होते थे।
इस चित्रकला में भारतीय लोगों, नर्तकियों और त्योहारों का चित्रण किया जाता था।
साथ ही इसके अंतर्गत पशु या वानस्पतिक विषयों को भी चित्रित किया जाता था। कामुक
विषयों के चित्रण के संदर्भ में भी यह शैली लोकप्रिय रही। भारत में इसके प्रमुख निर्माण केंद्रों
के रूप में कलकत्ता, मद्रास (चेन्नई), दिल्ली, लखनऊ, पटना, तंजावुर और बैंगलोर के मराठा
दरबार की मुख्य ब्रिटिश बस्तियाँ थीं।
फ्रांस में जन्मे और बाद में भारत आकर लखनऊ में रहने वाले मेजर-जनरल क्लाउड मार्टिन
(Major-General Claude Martin) ने कंपनी पेंटिंग की एक एल्बम में पक्षियों के 658
चित्रों को चित्रित किया, जिसमें एक चित्रकारी में दुर्लभ पक्षी ब्लैक स्टॉर्क (Black Stork) भी
शामिल है, जो अब न्यूयॉर्क में मेट्रोपॉलिटन म्यूज़ियम ऑफ़ आर्ट (Metropolitan
Museum of Art) में संग्रहित है।
इस शैली के कुछ उल्लेखनीय कलाकारों में मजहर अली खान शामिल हैं, जिन्होंने थॉमस
मेटकाफ (Thomas Metcalf) की दिल्ली बुक पर काम किया था, और उनकी फ्रेजर एल्बम
(Fraser Album) को एक उत्कृष्ट कृति माना जाता है। उन्होंने, अपने चाचा गुलाम मुर्तजा
खान की तरह, अंतिम मुगल सम्राटों और उनके दरबारों के चित्र भी चित्रित किए। यह शैली
18 वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में शरू होकर उन्नीसवीं शताब्दी की शुरुआत तक उत्पादन के
चरम पर थी, 19वीं शताब्दी तक कई कलाकारों ने इसे व्यवसाय के रूप में भी अपनाया और
उनके पास अपने काम बेचने के लिए दुकानें और इसे बनाने के लिए कार्यशालाएं थीं।
दुर्भाग्य से आधुनिक फोटोग्राफी का आगमन कंपनी शैली के लिए सबसे बड़ा नुकसान
साबित हुआ, और 20 वीं शताब्दी में पटना के ईश्वरी प्रसाद, जिनकी मृत्यु 1950 में हुई,
संभवतः इसके अंतिम उल्लेखनीय प्रतिपादक थे।
संदर्भ
https://www.metmuseum.org/toah/hd/cpin/hd_cpin.html
https://en.wikipedia.org/wiki/Company_style
https://www.britannica.com/art/Company-school
चित्र संदर्भ
1. कंपनी पेंटिंग को संदर्भित करता एक चित्रण (V&A · Explore The Collections)
2. कंपनी शैली में 3 दक्षिण भारतीय जोड़ियों का एक चित्रण (framemark.vam.ac.uk)
3. ईस्ट इंडिया कंपनी का एक सैन्य अधिकारी की पेंटिंग का एक चित्रण (wikimedia)
4. चित्रकारी में दुर्लभ पक्षी ब्लैक स्टॉर्क का एक चित्रण (audubonart)
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