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21 फरवरी 2021 का दिन पूरे विश्व में मातृभाषा दिवस के रूप में मनाया गया, ताकि दुनिया
भर में भाषाई और सांस्कृतिक विविधता तथा बहुभाषावाद को बढ़ावा दिया जा सके। भारत में
समय की मांग के अनुसार अनेकों अन्य भाषाएं विकसित हो रही हैं, जिनमें से अंग्रेजी भी
एक है, जिसे भारत में दूसरी और तीसरी भाषा के रूप में सबसे अधिक मान्यता दी गई
है।भारत में अंग्रेजी को अपनी मातृभाषा के रूप में वर्णित करने वाले लोगों की संख्या
2,59,678 है जो 2011 की जनगणना के अनुसार भारत की कुल जनसंख्या का 0.2% हिस्सा
है।
लेकिन अगर हम दूसरी और तीसरी भाषा के रूप में इसे बोलने वाले लोगों को ध्यान में
रखते हुए भारत में अंग्रेजी की समझ को देंखे तो अंग्रेजी बोलने वालों का हिस्सा कुल आबादी
का 10.6% के करीब अर्थात 128 मिलियन है, तथा हिंदी के बाद भारत में दूसरी सबसे
अधिक बोली जाने वाली भाषा है।यह आंकड़ा भारत को दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा अंग्रेजी
बोलने वाला देश बनाता है।इस मामले में अंग्रेजी बोलने वाले 239 मिलियन लोगों के साथ
अमेरिका सबसे आगे है,जो संयुक्त राज्य की कुल आबादी के 78% हिस्से के करीब है।भारत
में अंग्रेजी दूसरी और तीसरी भाषा के रूप में अत्यधिक महत्व रखती है, क्यों कि विभिन्न
क्षेत्रों जैसे अंतरराष्ट्रीय और आंतरिक मामले, तकनीकी और वैज्ञानिक उन्नति,उच्च अध्ययन,
रोजगार आदि में इसका विशेष स्थान है। इन सब बातों को ध्यान में रखते हुए भारत की
एक बड़ी आबादी अंग्रेजी सीखने को तत्पर है। अंग्रेजी शिक्षण की सबसे मुखर मांग अब भारत
के सबसे वंचित समुदायों से आती है। ऐसा इसलिए है क्योंकि सफेदपोश नौकरियों यानी
शारीरिक श्रम से रहित नौकरियों जिसमें व्यक्ति प्रायः मेज-कुर्सी पर बैठकर कार्य करता है,के
लिए अंग्रेजी अब पहले से कहीं ज्यादा जरूरी हो गई है।
भारत में 528 मिलियन लोग पहली भाषा के रूप में हिंदी बोलते हैं। यह भारत में सबसे
व्यापक रूप से बोली जाने वाली पहली और दूसरी भाषा दोनों है, जबकि अंग्रेजी केवल 44वीं
सबसे व्यापक रूप से बोली जाने वाली पहली भाषा है, भले ही यह दूसरी सबसे व्यापक रूप से
बोली जाने वाली दूसरी भाषा है।यह एकमात्र ऐसी भाषा भी है, जिसे पहली भाषा की तुलना में
अधिक वक्ता अपनी दूसरी भाषा के रूप में उपयोग करते हैं। यह बताता है कि कार्य
वातावरण में इसका महत्व बढ़ रहा है तथा एक सेतु भाषा के रूप में यह विशेष भूमिका
निभाता है।
लोक फाउंडेशन के सर्वेक्षण के अनुसार, अंग्रेजी ग्रामीण घटना की तुलना में कहीं अधिक शहरी
घटना है, दूसरे शब्दों में शहरी क्षेत्रों के लोग ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले लोगों की तुलना में
अधिक अंग्रेजी बोलते हैं।केवल 3% ग्रामीण उत्तरदाता ऐसे थे, जिन्होंने कहा कि वे अंग्रेजी
बोल सकते हैं, जबकि इसके मुकाबले 12% शहरी उत्तरदाता ऐसे थे जिन्होंने कहा कि वे
अंग्रेजी बोल सकते हैं।अंग्रेजी बोलने वाले लोगों की संख्या ‘वर्ग तत्व’ पर भी निर्भर करती है।
उदाहरण के लिए 2% से कम गरीबों के मुकाबले 41% अमीर अंग्रेजी बोल सकते हैं। इसका
मतलब है कि धनी वर्ग के लोग गरीब वर्ग की तुलना में अधिक अंगेजी बोलते हैं।अंग्रेजी
बोलना शिक्षा से भी जुड़ा हुआ है, जैसे सभी स्नातकों में से एक तिहाई स्नातक लोग अंग्रेजी
बोल सकते हैं। अंग्रेजी बोलने की क्षमता धार्मिक और जातिगत आयामों से भी जुड़ी हुई है।
6% हिंदुओं और 4% मुसलमानों की तुलना में 15% से अधिक ईसाई अंग्रेजी बोल सकते
हैं।अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के किसी भी व्यक्ति की तुलना में उच्च जाति के
व्यक्ति के अंग्रेजी बोलने की संभावना तीन गुना अधिक होती है। अंग्रेजी के ज्ञान का एक
लिंग आयाम भी है। अर्थात पुरुषों के एक उच्च अनुपात का कहना है, कि वे अंग्रेजी में बोल
सकते हैं, जबकि महिलाओं का यह अनुपात अपेक्षाकृत कम है। देश में यह आम धारणा है,
कि दक्षिण भारत में अधिक लोग अंग्रेजी को एक सेतु भाषा (हिंदी के बजाय) के रूप में
उपयोग करते हैं, लेकिन इसके बावजूद कई उत्तरी और उत्तर-पूर्वी राज्यों के निवासियों का एक
बड़ा हिस्सा दक्षिण हिस्से की तुलना में अधिक अंग्रेजी बोलता है।
अंग्रेजी बोलने की संभावना
एक राज्य की समृद्धि से भी सम्बंधित लगती है। उदाहरण के लिए गोवा, मेघालय जैसे
राज्यों (जहां ईसाई धर्म के लोग अधिक रहते हैं), की तुलना में दिल्ली, हरियाणा जैसे राज्य
जो काफी समृद्ध हैं, में अधिक लोग अंग्रेजी बोलते हैं। इससे पता चलता है कि अंग्रेजी
बोलना भौगोलिक स्थिति की तुलना में आय और धर्म से अधिक निकटता से जुड़ा हुआ है।
2011 की जनगणना के अनुसार, यह निष्कर्ष निकाला गया है कि लगभग 83 मिलियन
भारतीयों (6.8%) ने अंग्रेजी को अपनी दूसरी भाषा के रूप में स्वीकार किया है, और 46
मिलियन (3.8%) ने इसे अपनी तीसरी भाषा के रूप में स्वीकार किया, जिससे अंग्रेजी भारत
में दूसरी सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा बनी।अगले दशक में भारत में अंग्रेजी बोलने
वालों की आबादी का चौगुना होने की उम्मीद है।असम जैसे राज्यों जहां आय का स्तरनिम्न
है और ईसाई धर्म की सीमित उपस्थिति है, में अंग्रेजी बोलने वालों का अनुपात अपेक्षाकृत
अधिक है।
लोक फाउंडेशन सर्वेक्षण में द्विभाषी भारतीयों की हिस्सेदारी 37.5% आंकी गई है, जो
जनगणना (केवल 20% पर)की तुलना में कहीं अधिक है।लोक फाउंडेशन सर्वेक्षण में
त्रिभाषियों और अन्य की हिस्सेदारी 11% से अधिक आंकी गयी है।भारतीय स्वतंत्रता के
आधी सदी के बाद अंग्रेजी उच्च शिक्षा, राष्ट्रीय मीडिया, उच्च न्यायपालिका और अधिकारी वर्ग
और कॉर्पोरेट व्यवसाय की भाषा बनी हुई है। इसका कारण इन सभी क्षेत्रों में अंग्रेजी का
महत्व है।
संभवतः इसका एक अन्य कारण यह भी है, कि भारत में वास्तव में इसकी अपनी
राष्ट्रीय भाषा की परिभाषा सही तरह से स्पष्ट नहीं हो पा रही है।हिंदी, केंद्र सरकार की
आधिकारिक भाषा है, लेकिन यह अब कृत्रिम रूप ले चुकी है तथा 20वीं सदी की संरचना में
व्यापक तौर पर नहीं बोली जा रही है।
संदर्भ:
https://bit.ly/3HZVpro
https://bbc.in/3I3C4p7
https://bit.ly/3LXN4qP
चित्र संदर्भ
1. भारतीय अमेरिकन को दर्शाता चित्रण (istock)
2. सबसे अधिक बोली जाने वाली आधिकारिक भाषा द्वारा भारत के राज्य और केंद्र शासित प्रदेश को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
3. तमिलनाडु में ईसाई समुदाय को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
4. भारतीय कार्यालयों को दर्शाता चित्रण (flickr)
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