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भारत में आपको हर राज्य की संस्कृति, पहनावे और खानपान आदि में आसानी से विविधतायें देखने को
मिल जाएंगी! सांस्कृतिक विविधताओं के बावजूद एकछत्र भारत, विश्व में "अनेकता में एकता" की मिसाल
कायम करता है। भारत न केवल समृद्ध सांस्कृतिक विविधता रखता है, बल्कि भारत की वन जैव
विविधता भी पूरे विश्व के लिए आश्चर्य का विषय रही है!
अपनी विविध जलवायु, विशाल भूभाग और कम से कम 10 विशिष्ट जैव-भौगोलिक क्षेत्रों की विशेषता के
साथ, भारत वन प्रकारों की एक विशाल विविधता का प्रदर्शन करता है और तीन वैश्विक स्थलीय जैव
विविधता वाले हॉट स्पॉट (hot spot) के केंद्र में है। आज चूंकि कई अन्य स्थलीय आवासों ने अपनी
प्राकृतिक अवस्था खो दी है, इसलिए भारत की अधिकांश स्थलीय जैव विविधता अब जंगल में निवास
करती है। यहाँ एक प्रभावशाली संरक्षित क्षेत्र नेटवर्क स्थापित है, जिसमें 509 वन्यजीव अभयारण्य, 96
राष्ट्रीय उद्यान (14 बायोस्फीयर रिजर्व "Biosphere Reserve" सहित) , स्वदेशी समुदायों द्वारा बनाए
गए कई पवित्र उपवन भी शामिल हैं।
हालांकि, एक सौम्य वन नीति और एक मजबूत नियामक व्यवस्था के बावजूद, बढ़ती मानव आबादी, भूमि
उपयोग परिवर्तन और आक्रामक विदेशी प्रजातियों के प्रसार की बढ़ती आवश्यकताओं के कारण भारत में
वन क्षरण और जैव विविधता का नुकसान भी निरंतर जारी है। जिसके बचाव हेतु जैव विविधता की सीमा
और हानि की निरंतर निगरानी की जानी चाहिए और बड़े पैमाने पर जैव विविधता संरक्षण पुनर्वास में भाग
लेने के लिए लोगों को आकर्षित किये जाने की आवश्यकता है।
वानिकी संदर्भ में एक नए अध्ययन से पता चला है कि दक्षिण और दक्षिण पूर्व एशिया में समृद्ध देशी वृक्ष
विविधता के विलुप्त होने का खतरा हमारे सामने है। क्षेत्र-व्यापी और स्थानिक रूप से स्पष्ट खतरे का
आकलन एशिया में 63 सामाजिक-आर्थिक रूप से महत्त्वपूर्ण देशी पेड़ों पर केंद्रित है। निवास स्थान
रूपांतरण, अतिशोषण, अतिचारण, आग आदि कारणों से सभी वृक्ष प्रजातियाँ खतरे में हैं। ये वन परिदृश्य,
करोड़ों लोगों के लिए विविध पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं को बनाए रखने में महत्त्वपूर्ण हैं, अतः
पारिस्थितिकी तंत्र और जैव विविधता के नुकसान को रोकने के लिए तत्काल समन्वित, लक्षित संरक्षण
और मजबूत पहल की आवश्यकता है।
एशिया प्रशांत वन आनुवंशिक संसाधन कार्यक्रम (APFORGEN) के विशेषज्ञों द्वारा 20 देशों में उनके
सामाजिक-आर्थिक महत्त्व के लिए चुनी गई 63 प्रजातियों की पहचान की गई। लकड़ी से लेकर
व्यावसायिक और स्थानीय रूप से महत्त्वपूर्ण गैर-लकड़ी वन उत्पादों के साथ-साथ क्षरण नियंत्रण, मिट्टी
में सुधार और छाया सहित पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं के प्रावधान के लिए मूल्यवान, विविध लक्षणों और
उपयोगों के साथ पेड़ विभिन्न प्रकार के आवासों में पाए जाते हैं।
क्षेत्र की पहचान और उपलब्धता, उपयुक्त रणनीतियों के साथ अनुसंधान की कमी, हितधारकों के बीच
हितों का टकराव, गरीबी और वित्तपोषण आदि भारत के लिए वन बहाली (forest restoration) में कुछ
प्रमुख चुनौतियाँ हैं। लेकिन इन चुनौतियों के साथ ही कई वैश्विक लक्ष्यों को पूरा करने के अवसर भी मौजूद
हैं। सबसे महत्त्वपूर्ण और प्रभावशाली हितधारकों के रूप में वन-आश्रित ग्रामीण समुदायों को वनों से जुड़े
निर्णय लेने में शामिल किया जाना चाहिए। उनकी चिंताओं को दूर किया जाना चाहिए और प्रोत्साहन की
पेशकश की जानी चाहिए।
दरअसल वन बहाली से तात्पर्य एक ऐसे जंगल या परिदृश्य को वापस लाने का कार्य है, जो मानवजनित
शोषण या प्राकृतिक कारकों से अपनी मूल स्थिति से क्षतिग्रस्त हो गया है। वन पुनर्स्थापन न केवल
निम्नीकृत वनों (degraded forests) और उनके विभिन्न कार्यों की बहाली की सुविधा प्रदान करता है,
बल्कि वनों के पारिस्थितिक, आर्थिक और सामाजिक कार्यों और मूल्यों को बहाल करके सतत विकास में
योगदान करने के लिए सबसे अच्छे समाधानों में से एक माना जाता है।
FAO (2018) की रिपोर्ट के अनुसार 1990 और 2015 के बीच वैश्विक वनों में 3% की निरंतर गिरावट ने भी
वन संरक्षण और बहाली की आवश्यकता को बढ़ा दिया है। वैश्विक प्राकृतिक वन पुनर्विकास से कार्बन
संचय क्षमता को मापने वाले 2020 के एक अध्ययन में कहा गया है कि प्राकृतिक रूप से पुनर्जीवित जंगलों
में लगभग 32% अधिक कार्बन भंडारण होता है। इन निष्कर्षों ने वृक्षारोपण की तुलना में वन बहाली पर
अधिक जोर देने के साथ, संरक्षण के प्रति एक अनुकूल झुकाव पैदा किया है। इस दशक (2021-2030) में
संयुक्त राष्ट्र द्वारा निर्दिष्ट पारिस्थितिकी तंत्र की बहाली पर, वन बहाली की नई तकनीकों को नियोजित
करना आवश्यक है।
2011 से, भारत ने 9.8 मिलियन हेक्टेयर क्षेत्र को भी बहाली के तहत लाया है। हालाँकि, वर्ल्ड रिसोर्स
इंस्टीट्यूट (world resource institute (WRI) की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में वन संरक्षण और
परिदृश्य बहाली के लिए लगभग 140 मिलियन हेक्टेयर क्षमता है, जो 2040 तक 3 से 4.3 बिलियन टन
ऊपर-जमीनी कार्बन को अलग कर सकती है।
भारत में वनों के निरंतर क्षरण का सबसे महत्त्वपूर्ण कारण चराई है। यह 75% से अधिक वन क्षेत्र को
प्रभावित करता है। वनों से जुड़ी आजीविका की इस निर्भरता और जटिलता ने न केवल विभिन्न वनीकरण
कार्यक्रमों की प्रगति को प्रभावित किया है, बल्कि उनकी बहाली सहित भविष्य के वनों के विकास के लिए
गंभीर चुनौतियों का सामना करना जारी रखा है।
भारतीय वन क्षेत्र 1, 73, 000 वन-आश्रित गांवों में रहने वाली एक चौथाई आबादी को आजीविका सहायता
प्रदान करता है। देश की जैव विविधता इसकी ऊर्जा जरूरतों का 40% है, यह चराई की आवश्यकता के
50% की पूर्ती करता है। जंगल 275 मिलियन से अधिक लोगों के लिए आजीविका के प्रमुख स्रोत है और
56% से अधिक ग्रामीण ईंधन और चारा प्रदान करते है।
वन पारिस्थितिकी तंत्र द्वारा प्रदान की जाने वाली प्रावधान सेवाएं निम्नवत हैं:
• खाद्य: विभिन्न खाद्य पदार्थ, पशुधन चारा, मत्स्य पालन, जंगली खाद्य पदार्थ।
• फाइबर: कपास, रेशम और अन्य फाइबर।
• इमारती लकड़ी, ईंधन की लकड़ी और अन्य एनटीएफपी।
• आनुवंशिक संसाधन, मीठे पानी का कायाकल्प विनियमन सेवाएं।
• वायु गुणवत्ता में सुधार।
• मिट्टी के कटाव की रोकथाम।
• पानी की गुणवत्ता में वृद्धि।
• जैविक नियंत्रण आदि ।
संदर्भ
https://bit.ly/3skDGnY
https://bit.ly/3uyg9CJ
https://bit.ly/3HDN1NY
https://bit.ly/3oBmo4T
https://www.jstor.org/stable/43740343
चित्र संदर्भ
1. जंगलों के बीच में बसे पहाड़ी गांव को दर्शाता एक चित्रण (unsplash)
2. हिमाचल प्रदेश में वन को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. पेभारत के पश्चिमी घाट में एक झील के चारों ओर जंगल को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4. अप्रैल 2008 में भारत की एक नासा उपग्रह छवि को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
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