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अनेक सरीसृपों का प्राचीन काल से ही प्रतीकात्मक महत्व है, तथा इन्हीं में से एक
मगरमच्छ भी हैं।उन्हें मूर्तिकला और चित्रकला में कई हिंदू देवी-देवताओं के साथ चित्रित
किया गया है। प्रागैतिहासिक काल में, भारत में मगरमच्छ की सात प्रजातियाँ निवास करती
थीं, लेकिन आज इनकी संख्या तीन प्राथमिक प्रजातियों तक सीमित हो गई है। भारतीय
जलीय आवास जिनमें झीलें और नदियाँ शामिल हैं, मगरमच्छ की तीन प्राथमिक प्रजातियों
को आवास प्रदान करती हैं।मग्गर (mugger) मगरमच्छ जिसे क्रोकोडायलस
पलुस्ट्रिस(Crocodylus palustris) भी कहा जाता है,पूरे देश की झीलों और नदियों में पाया
जाता है। खारे पानी का मगरमच्छ जिसे क्रोकोडायलस पोरोसस (Crocodylusporosus) कहा
जाता है,देश के पूर्वी तट और निकोबार और अंडमान द्वीप समूह में पाया जाता है। घड़ियाल
जिसे गेवियलिस गैंगेटिकस (Gavialis gangeticus) नाम दिया गया है,नदी क्षेत्रों में पाया जाता
है।मग्गर मगरमच्छ भारत की सबसे आम मगरमच्छ प्रजाति है, जो सभी जीवित मगरमच्छों
में सबसे लंबे समय तक जीवित रहने वाले मगरमच्छों में से एक है तथा गंभीर रूप से
संकटग्रस्त स्थिति का सामना कर रहा है। यह एक मध्यम आकार का चौड़ा थूथन वाला
मगरमच्छ है, जिसे मार्श क्रोकोडाइल (Marsh crocodile) के नाम से भी जाना जाता है।यह
दक्षिणी ईरान (Iran) से लेकर भारतीय उपमहाद्वीप में स्वच्छ जलीय आवासों का मूल निवासी
है,जहां यह दलदल, झीलों, नदियों और कृत्रिम तालाबों में रहता है।यह एक शक्तिशाली तैराक
है, जिसकी लंबाई 5 मीटर तक हो सकती है।गर्म मौसम के दौरान यह उपयुक्त जल निकायों
की तलाश में जमीन पर भी चलता है।मगर मगरमच्छ कम से कम 4.19 मिलियन वर्ष
पहले विकसित हुआ था और वैदिक काल से ही नदियों की फलदायी और विनाशकारी
शक्तियों का प्रतीक रहा है।लखनऊ के निकट स्थित कुकरैल रिजर्व फॉरेस्ट (Kukrail Reserve
Forest) हिरण पार्क के साथ मगरमच्छों की लुप्तप्राय प्रजातियों की नर्सरी के लिए प्रसिद्ध
है।वन क्षेत्र पेड़ों की हरी-भरी कैनोपी से आच्छादित है जो विभिन्न रास्तों को छायांकित करते
हैं। यह आगंतुकों के लिए पैदल मार्ग प्रदान करता है। इस आरक्षित वन ने मगरमच्छों की
आबादी को विलुप्त होने की कगार से वापस लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।लखनऊ के
बाहरी इलाके में कुकरैल रिजर्व, वन विभाग द्वारा विकसित एक विशाल जंगल है। यह
मगरमच्छों के लिए एक सुरक्षित आश्रय स्थल है, जो मगरमच्छों की लुप्तप्राय आबादी को
बचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह भारत में 3विशेष मगरमच्छ प्रजनन केंद्रों में से
एक है।कुकरैल मगरमच्छ केंद्र और मद्रास क्रोकोडाइल बैंक ट्रस्ट (Madras Crocodile Bank
Trust) को नेशनल ज्योग्राफिक सोसाइटी (National Geographic Society) द्वारा शीर्ष दो सबसे
सफल मगरमच्छ प्रजनन केंद्रों के रूप में दर्जा दिया गया है।मगरमच्छ सहित कुछ अन्य
जंगली जानवरों को देखने के लिए यह एक बेहतरीन जगह है।मगरमच्छों के संरक्षण के लिए
कुकरैल में केंद्र स्थापित करने का विचार 1978 में आया। केंद्र को पर्यावरण और वन
मंत्रालय के सहयोग से उत्तर प्रदेश वन विभाग द्वारा वित्त पोषित किया गया था। यहां बड़ी
संख्या में विभिन्न प्रकार के पक्षी जिनमें निवासी और प्रवासी पक्षी दोनों शामिल हैं, देखने
को मिलते हैं।मगरमच्छ सभी सरीसृपों में सबसे अधिक मुखर माने जाते हैं, जो प्रजाति, उम्र,
आकार और लिंग के आधार पर विभिन्न स्थितियों के दौरान कई तरह की आवाजें निकालते
हैं। उदाहरण के लिए कुछ प्रजातियां अकेले स्वरों के माध्यम से 20 से अधिक विभिन्न
संदेशों को संप्रेषित कर सकती हैं।मगरमच्छ सरीसृपों में सबसे अधिक सामाजिक होते हैं। भले
ही वे सामाजिक समूह नहीं बनाते, लेकिन फिर भी कई प्रजातियां नदियों के कुछ हिस्सों में
भोजन के लिए या धूप सेंकने के लिए एकत्रित होती हैं। अधिकांश प्रजातियां अत्यधिक क्षेत्रीय
नहीं होती हैं, केवल खारे पानी के मगरमच्छ को छोड़कर,जो अत्यधिक क्षेत्रीय और आक्रामक
प्रजाति है।मगरमच्छों में पदानुक्रम का एक निश्चित रूप होता है।सबसे बड़े और सबसे भारी
नर सबसे ऊपर होते हैं, जिनकी पहुंच सबसे अच्छी बास्किंग (Basking) साइट तक होती है।
मगरमच्छों में पदानुक्रम का एक अच्छा उदाहरण नील मगरमच्छ है। यह प्रजाति इन सभी
व्यवहारों को स्पष्ट रूप से प्रदर्शित करती है।मगरमच्छों द्वारा सामाजिक संचार के दौरान
कुछ स्वर निकाले जाते हैं।विशेष रूप से एक ही लिंग के प्रति क्षेत्रीय प्रदर्शन और विपरीत
लिंग के साथ प्रेमालाप के दौरान।इसलिए अधिकांश विशिष्ट स्वरों का उच्चारण प्रजनन के
मौसम के दौरान किया जाता है।इसके अलावा संकट की स्थिति में भी विशेष प्रकार के स्वर
निकाले जाते हैं।इन विशिष्ट स्वरों में चिर्प (Chirp),संकट कॉल (Call),थ्रेट
(Threat)कॉल,हैचिंग(Hatching)कॉल,बेल्लोइंग (Bellowing)शामिल है।जब युवा अंडे से बाहर
निकलने वाले होते हैं, तब वे एक पीपींग (Peeping) जैसी आवाज निकालते हैं,जो मादा को
घोंसला खोदने के लिए प्रोत्साहित करता है।मादा फिर अपने मुंह में चूजों को इकट्ठा करती
है और उन्हें पानी में ले जाती है, जहां वे कई महीनों तक मादा के संरक्षण में रहते हैं।अन्य
मगरमच्छों को किसी भी खतरे के प्रति सचेत करने के लिए या जब कोई मगरमच्छ खतरे
में हो, तब युवा मगरमच्छों द्वारा संकट कॉल दी जाती है।हैचिंग कॉल मादा मगरमच्छों
द्वारा प्रजनन के दौरान दी जाती है, कि उसने अपने घोंसले में अंडे दिए हैं।बेल्लोइंग
(Bellowing) कॉल विशेष रूप सेनर मगरमच्छ द्वारा दी जाती है,बेल्लोइंग कोरस सबसे अधिक
बार वसंत ऋतु में होता है,जब प्रजनन समूह एकत्रित होते हैं।
संदर्भ:
https://bit.ly/3Icey9k
https://bit.ly/3AgmeEz
https://bit.ly/3AnaTCP
https://bit.ly/3AeMjE9
https://bit.ly/3AohFs8
https://bit.ly/3fG9Zb3
https://bit.ly/3GS5Dty
चित्र संदर्भ
1. मगर मच्छ को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
2. खारे पानी के मगरमच्छ को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
3. मार्श क्रोकोडाइल (Marsh crocodile) को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
4. मगरमच्छ के बच्चों को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
5. मगरमच्छ के अंडे के आरेख को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
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