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लखनऊ के बाहरी हिस्से में बसा कुकरैल आरक्षित वन अपने यहाँ मौजूद विलुप्तप्राय घड़ियालों की नर्सरी और हिरन पार्क के लिए मशहूर है।पूरा वन क्षेत्र रसीले पेड़ों की छाया से युक्त है जो तमाम उन रास्तों को गर्मी से बचाते हैं, जिन पर चलकर अतिथि यहाँ भ्रमण के लिए आते हैं।इस वन में चिड़ियों की बहुतायत है और थोड़े-बहुत काले हिरन भी यहाँ हैं।इस आरक्षित वन ने विलुप्त हो रहे अजगरों को फिर से जीने का मौक़ा दिया।यह विशाल वन क्षेत्र वन विभाग की देन है।यह घड़ियालों के लिए सुरक्षित स्वर्ग है।
भारत और घड़ियाल
घड़ियालों का भारत से पुराना नाता है।बहुत से देवी-देवताओं के साथ इनकी आकृति दिखाई देती है।मूर्तियों में भीऔर चित्रों में भी।संस्कृत में इसे मकर कहते हैं।प्रागैतिहासिक काल में घड़ियालों की सात प्रजातियाँ भारत में रहती थीं।बाद में यह संख्या घटकर तीन हो गई- मगर घड़ियाल (Crocodylus palustris), नमक पानी घड़ियाल (C.porosus) और घड़ियाल (Gavialis gangeticus)।
मगर घड़ियाल :
यह भारत की सबसे आम प्रजाति है।यहाँ तक कि मुहावरों में भी इसका प्रयोग होता है - ‘मगरमच्छ के आंसू’, ‘पानी में रहकर मगर से बैर’ काफ़ी मशहूर हैं।इसकी औसत लम्बाई 13-14 फ़ीट होती है।ब्रिटिश उपनिवेशवाद से पहले मगर प्रजाति की अच्छी-ख़ासी संख्या थी।बाद में Romulus Whitaker, अमेरिकी मूल के भारतीय जीवविज्ञानी ने मद्रास घड़ियाल बैंक इनके संरक्षण और प्रजनन के लिए बनाया।इस समय इस बैंक में हज़ारों घड़ियाल हैं।हालाँकि बाक़ी भारत में ये जंगल, नदियों और राष्ट्रीय उद्यानों में मिलते हैं।वर्जनाओं और लोककथाओं के कारण इनके बारे में ज़्यादा जानकारी उपलब्ध नहीं है।
नमक पानी घड़ियाल :
यह भारत के पूर्वी राज्यों उड़ीसा, प० बंगाल और दक्षिण में आंध्र प्रदेश तथा तमिलनाडु में पाए जाते हैं।ये 23 फ़ीट लम्बे होते हैं।इनकी जनसंख्या 300 के आस-पास है।ये भित्तरकनिका, सुंदरवन के जंगलों और महानदी डेल्टा आदि जगहों में होते हैं।
ख़ासियतें :
इनकी टांगों में चपटे तराज़ू की तरह दांतेदार आकृति होती है और बाहरी पैरों में बड़े जाल होते हैं।थूथन थोड़ा लम्बा होता है और उसमें 19 ऊपरी दांत होते हैं।इनमें मज़बूत पूँछ और जालदार पैर होते हैं।इनकी देखने,सूंघने और सुनने की क्षमता बहुत ज़्यादा होती है।वयस्क मादा मगर लम्बाई में दो से ढाई मीटर और नर मगर तीन से साढ़े तीन मीटरलम्बे होते हैं।मगर घड़ियाल बहुत तेज़ तैराक होते हैं।गर्मियों में ये पानी में डूबे रहते हैं।जाड़ों में नदी के किनारे धँसे रहते हैं।विपरीत मौसमों के लिए ये बिल बना लेते हैं।
शिकार और ख़ुराक :
मगर साँपों, मछलियों, कछुओं, चिड़ियों, बंदरों, गिलहरियों,चूहों, ऊदबिलावों और कुत्तों का शिकार करते हैं।ये पहले सरीसृप हैं जो चिड़ियों के शिकार के लिए चुग्गे का प्रयोग हथियार के तौर पर करते हैं।
मगरमच्छ जनगणना:
अपने निवास के नष्ट होने से मगरमच्छों की संख्या पर काफ़ी असर पड़ा है।एक जनगणना के अनुसार नमक पानी मगरमच्छों की संख्या बढ़ी है।इनकी संख्या 1,742 पाई गई।इनकी संख्या में वृद्धि का कारण दूरंदेशी सरकारी योजनाएँ थीं।
संरक्षण:
1975 में पहला संरक्षण कार्यक्रम उड़ीसा में हुआ।वहाँ मगर की तीन प्रजातियाँ होती हैं।Baula, मगर और घड़ियाल परियोजनाएँ उड़ीसा में UNDP/FAO की सहायता से चल रही हैं।
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