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वर्तमान समय में विदेशी सब्जियों की लोकप्रियता निरंतर बढ़ती जा रही है। यह चलन भारत
के अन्य स्थानों सहित हमारे लखनऊ में भी देखने को मिल रहा है।लखनऊ के किसान
विदेशी सब्जियों की खेती कर रहे हैं। स्थानीय स्तर पर उगाई जाने वाली विदेशी सब्जियां
जल्द ही लखनऊ के बाजारों में सस्ती कीमतों पर उपलब्ध होंगी और आम आदमी की थाली
तक पहुंचेंगी।ब्रोकोली (Broccoli), बोक चॉय (Bok choy), लेट्यूस (Lettuce), जुकीनी
(Zucchini) और अन्य विदेशी सब्जियांजो अब तक केवल आलीशान सुपरमार्केट या मॉल में ही
उपलब्ध होती थीं, अब स्थानीय 'सब्जी मंडियों' में उपलब्ध होंगी और वह भी बहुत सस्ती
कीमतों पर।
विदेशी फल बड़े पैमाने पर लगातार बदलती उपभोक्ता आदतों और उनके द्वारा प्रदान किए
जाने वाले स्वास्थ्य लाभों के कारण पसंद किए जाते हैं।अपने अद्भुत स्वाद और असंख्य
स्वास्थ्य लाभों के कारण,उपभोक्ताओं की बढ़ती संख्या पौधों पर आधारित खाद्य पदार्थ और
विदेशी फलों को अपने दैनिक आहार में शामिल कर रही है।उदाहरण के लिए,
एवोकैडो(Avocado) विटामिन C, E, K और विटामिन B6 का एक उत्कृष्ट स्रोत है।
इसी प्रकार
कीवी (Kiwi) विटामिन C, K, E, पोटेशियम (Potassium), फोलेट (Folate) और विटामिन E से
भरपूर होते हैं। एंटीऑक्सिडेंट (Antioxidants) और फाइबर (Fibre) के अलावा, ये दोनों विदेशी
फल विटामिन C के भी अच्छे स्रोत हैं।क्यों कि विदेशी फलों को अच्छी तरह से यहां उगाया
जा सकता है, तथा भारतीय उपभोक्ता आधार समृद्ध है, इसलिए निर्यातकों और खुदरा
विक्रेताओं को विदेशी फलों और सब्जियों की मांग में वृद्धि देखने को मिल रही है।
जबकि विदेशी फल और सब्जियां दुनिया भर से आयात किए जाते हैं, लेकिन भारत ने भी
इसका उत्पादन शुरू कर दिया है क्योंकि इस बाजार में काफी वृद्धि हुई है।तमिलनाडु में
नीलगिरी जिला लेट्यूस की बेहतरीन गुणवत्ता का उत्पादन करता है, जबकि ताजा उगाए गए
एवोकैडो हिमाचल प्रदेश में पाए जा सकते हैं।भारत दुनिया में फलों और सब्जियों का दूसरा
सबसे बड़ा उत्पादक है, और साथ ही यह खाद्य उत्पादों के लिए एक महत्वपूर्ण बाजार भी है।
2018 में,भारत ने 3 बिलियन डॉलर के फलों और सब्जियों का आयात किया जबकि 2019
में यह आंकड़ा घटकर 1.2 अरब डॉलर रह गया था। भारत में अंतर्राष्ट्रीय खाद्य की वृद्धि
का अनुसरण अंतर्राष्ट्रीय खाद्य पदार्थों के घरेलू उत्पादन द्वारा किया जा रहा है, जो 14-16
प्रतिशत की दर से बढ़ रहा है।भारत सरकार ने इस छोटे लेकिन महत्वपूर्ण क्षेत्र को बढ़ावा
देने के लिए स्थानीय किसानों को विदेशी खाद्य सामग्री के बीज और पौधे उपलब्ध कराने
की घोषणा की है।फलों में, जो बड़ी मात्रा में आयात किए जाते हैं, उनमें जापान (Japan) के
फ़ूजी (Fuji) सेब और अन्य प्रकार के हरे सेब, लाल अंगूर, खजूर, जामुन, कीवी फल आदि
शामिल हैं।भारत में एक विविध जलवायु है, जिसका अर्थ है कि कुछ सेबों को दूसरे सेबों से
आसानी से प्रतिस्थापित किया जा सकता है।ड्रैगन फ्रूट (Dragon fruit) की खेती महाराष्ट्र,
कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, पश्चिम बंगाल, तेलंगाना, तमिलनाडु, ओडिशा, गुजरात और अंडमान और
निकोबार द्वीप समूह सहित कई पूर्वोत्तर राज्यों में बढ़ी है।
यह फल अपने उच्च पोषण मूल्य
के कारण शहरी क्षेत्रों में बहुत लोकप्रिय है।भारत अमेरिका (America) और ऑस्ट्रेलिया
(Australia) जैसे देशों से ब्रोकोली, आइसबर्ग लेट्यूस (Iceberg lettuce), रंगीन शिमला मिर्च,
एस्पर्गस (Asparagus), अजवाइन, पार्सले (Parsley), ब्रसेल्स स्प्राउट्स (Brussel sprouts), जुकीनी
और गोभी सहित सब्जियों की एक बड़ी श्रृंखला का आयात करता है। किसान इन सब्जियों
को पूरे साल उगाते हैं, न कि केवल उनके विशिष्ट मौसम के दौरान। विभिन्न सरकारी और
गैर-सरकारी संगठनों ने किसानों को इन फसलों को उगाने के लिए प्रेरित करने के लिए
प्रोत्साहन योजनाएँ शुरू की हैं। हरियाणा, महाराष्ट्र और कर्नाटक अब वे मुख्य केंद्र बन गए
हैं, जहां विदेशी साग-सब्जियों का उत्पादन किया जा रहा है।
लखनऊ में विदेशी सब्जियों की लोकप्रियता का श्रेय स्थानीय किसानों को दिया जाना
चाहिए,जो धीरे-धीरे पारंपरिक सब्जियों से विदेशी सब्जियों को उगाने की ओर स्थानांतरित हो
गए हैं। किसानों को 30,000 से भी अधिक ब्रोकोली की पौध वितरित की गयी है, क्यों कि
किसानों द्वारा इसकी खेती में रुचि दिखाई गयी है। ये विदेशी सब्जियां, जो अब तक या तो
दूसरे राज्यों में उगाई जाती थीं या दिल्ली के बाजार से लाई जाती थीं, अब स्थानीय बाजारों
में सस्ती कीमतों पर उपलब्ध होंगी।2010-11 के दौरान कृषि विज्ञान केंद्र, (ICAR-IISR)लखनऊ
में एक प्रशिक्षण कार्यक्रम चलाया गया, जिसमें विदेशी सब्जियों की खेती के बारे में विस्तृत
जानकारी दी गयी।कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिकों ने खेती के लिए ब्रोकली, पार्सले (Parsley),
लाल पत्ता गोभी, चीनी (China) पत्ता गोभी, चेरी टमाटर (Cherry tomato) आदि की बीज सामग्री
की व्यवस्था की।वैज्ञानिकों ने किसानों का मार्गदर्शन किया और बुवाई से लेकर कटाई तक में
हर तरह से उनकी मदद की।2010-11 के दौरान किसानों को पिछले वर्षों की तुलना में
अधिक शुद्ध रिटर्न मिला।2011-12 के दौरान, किसानों ने अपनी पूरी भूमि में इन विदेशी
सब्जियों को उगाना शुरू कर दिया था।0.506 हेक्टेयर क्षेत्र में उगाई गई विदेशी सब्जियों की
खेती की लागत 26,400रुपये थी, जिसने वर्ष 2011-12 के लिए क्रमश: 336,500 रुपये और
310,100रुपये का सकल और शुद्ध रिटर्न दिया।इस प्रकार उच्च आर्थिक लाभ के लिए कई
किसान विदेशी सब्जियों को उगाने के लिए प्रेरित हुए हैं।
संदर्भ:
https://bit.ly/3I0v8IX
https://bit.ly/3zOKY6T
https://bit.ly/3zPEYus
https://bit.ly/3qs3U8x
चित्र संदर्भ
1. देशी विदेशी सब्जियो को दर्शाता एक चित्रण (Flickr)
2. फल विक्रेता को दर्शाता एक चित्रण (Flickr)
3. जापान के फूजी सेब को दर्शाता एक चित्रण (Flickr)
4. सब्जी बाजार को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)