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भारतीय समुद्री व्यापार का इतिहास‚ तीसरी सहस्राब्दी ईसा पूर्व के दौरान शुरू होता
है‚ जब सिंधु घाटी के निवासियों ने मेसोपोटामिया (Mesopotamia) के साथ
समुद्री व्यापारिक संपर्क शुरू किया। वैदिक अभिलेखों के अनुसार‚ भारतीय
व्यापारियों और सौदागरों ने सुदूर पूर्व और अरब के साथ व्यापार किया। तीसरी
शताब्दी ईसा पूर्व मौर्य काल के दौरान‚ जहाजों और व्यापार की निगरानी के लिए
एक निश्चित “नौसेना विभाग” भी था।
अगस्तस (Augustus) के शासन के दौरान भारतीय उत्पाद रोमनों (Romans)
तक पहुंचे। रोमन इतिहासकार स्ट्रैबो (Strabo) ने मिस्र (Egypt) के रोमन कब्जे
के बाद भारत के साथ रोमन व्यापार में वृद्धि का उल्लेख किया है। जैसे-जैसे
भारत और ग्रीको-रोमन (Greco-Roman) दुनिया के बीच व्यापार में वृद्धि हुई‚
रेशम और अन्य वस्तुओं को किनारे करते हुए‚ मसाले भारत से पश्चिमी दुनिया में
मुख्य आयात बन गए। भारतीय अलेक्जेंड्रिया (Alexandria) में मौजूद थे‚ जबकि
रोम के ईसाई (Christian) और यहूदी (Jewish)‚ रोमन साम्राज्य के पतन के लंबे
समय बाद भी भारत में रहते रहे‚ जिसके परिणामस्वरूप रोम के लाल सागर
बंदरगाहों (Red Sea ports) का नुकसान हुआ‚ जिसका उपयोग टॉलेमिक राजवंश
(Ptolemaic dynasty) के बाद से ग्रीको-रोमन दुनिया द्वारा भारत के साथ
व्यापार को सुरक्षित करने के लिए किया जाता था।
7वीं से 8वीं शताब्दी के दौरान‚ दक्षिण पूर्व एशिया (Southeast Asia) के साथ
भारतीय वाणिज्यिक संबंध अरब (Arabia) और फारस (Persia) के व्यापारियों के
लिए महत्वपूर्ण साबित हुए। पुर्तगाल (Portugal) के मैनुअल 1 (Manuel I) के
आदेश पर‚ नाविक वास्को डी गामा (Vasco da Gama) की कमान के तहत‚
चार जहाजों ने केप ऑफ गुड होप (Cape of Good Hope) का चक्कर लगाया‚
जो अफ्रीका (Africa) के पूर्वी तट से मालिंदी (Malind) तक हिंद महासागर में
कालीकट (Calicut) तक जाने के लिए जारी रहा। पुर्तगाली साम्राज्य‚ मसाला
व्यापार से विकसित होने वाला पहला यूरोपीय साम्राज्य (European empire) था।
सिंधु नदी के आसपास के क्षेत्र में 3000 ईसा पूर्व तक समुद्री यात्राओं की अवधि
और आवृत्ति दोनों में स्पष्ट वृद्धि दिखाई देने लगी। इस क्षेत्र में 2900 ईसा पूर्व
तक व्यवहार्य लंबी दूरी की यात्राओं के लिए इष्टतम स्थितियां मौजूद थीं।
मेसोपोटामिया के शिलालेखों से संकेत मिलता है‚ कि सिंधु घाटी के भारतीय
व्यापारी तांबा‚ लकड़ी‚ हाथी दांत‚ मोती‚ सोना और कारेलियन (carnelian) के
साथ‚ मेसोपोटामिया में अक्कड़ के सरगोन (Sargon of Akkad) के शासनकाल
के दौरान सक्रिय थे। गोश एंड स्टर्न्स (Gosch & Stearns) सिंधु घाटी की पूर्व-
आधुनिक समुद्री यात्रा पर लिखते हैं: इस बात के प्रमाण मौजूद हैं कि हड़प्पा के
लोग सुमेर के लिए जहाजों और लैपिस लाजुली (lapis lazuli) जैसी विशिष्ट
वस्तुओं पर काष्ठ और विशेष लकड़ी का थोक-लदान करते थे। लैपिस लजुली का
व्यापार उत्तरी अफगानिस्तान से पूर्वी ईरान तथा सुमेर तक किया जाता था।
लोथल (Lothal) में दुनिया का पहला जहाजघाट या बंदरगाह‚ गाद के जमाव से
बचने के लिए मुख्य धारा से दूर स्थित था। आधुनिक समुद्र विज्ञानियों ने देखा है
कि साबरमती के हमेशा-स्थानांतरित मार्ग पर इस तरह के एक जहाजघाट का
निर्माण करने के लिए‚ हड़प्पावासियों के पास ज्वार से संबंधित महान ज्ञान के
साथ अनुकरणीय हाइड्रोग्राफी (exemplary hydrography) और समुद्री
इंजीनियरिंग (maritime engineering) का होना भी आवश्यक था। यह दुनिया में
पाया जाने वाला सबसे पहला ज्ञात जहाजघाट था‚ जो बर्थ और सर्विस जहाजों से
सुसज्जित था। यह अनुमान लगाया जाता है कि लोथल इंजीनियरों ने ज्वार-भाटा
की गतिविधियों और ईंट-निर्मित संरचनाओं पर उनके प्रभावों का अध्ययन किया
होगा‚ क्योंकि दीवारें भट्ठे में जली हुई ईंटों की हैं। इस ज्ञान ने उन्हें पहले स्थान
पर लोथल के स्थान का चयन करने में सक्षम बनाया‚ क्योंकि खंभात की खाड़ी
(Gulf of Khambhat) में सबसे अधिक ज्वारीय आयाम है‚ और नदी मुहाना में
प्रवाह ज्वार के माध्यम से जहाजों को हटाया जा सकता है।
ओडिशा के गोलबाई सासन (Golbai Sasan) में उत्खनन से नवपाषाण संस्कृति
का पता चलता है‚ जो लगभग 2300 ईसा पूर्व की है‚ उसके बाद एक ताम्रपाषाण
संस्कृति और फिर एक लौह युग संस्कृति लगभग 900 ईसा पूर्व शुरू हुई। इस
स्थल पर पाए गए उपकरण नाव निर्माण का संकेत देते हैं‚ जिसका उपयोग
संभवतः तटीय व्यापार के लिए किया जाता रहा होगा। ताम्रपाषाण काल की कुछ
कलाकृतियां वियतनाम (Vietnam) में पाई जाने वाली कलाकृतियों के समान हैं‚
जो बहुत प्रारंभिक काल में इंडोचीन (Indochina) के साथ संभावित संपर्क का
संकेत देती हैं।
भारत में जहाज निर्माण का एक समृद्ध इतिहास रहा है और भारतीय काफी
कुशल नाविक थे। अर्थात‚ अतीत में भारत के पास भी कई बंदरगाह थे। यहां
भारत के कुछ प्राचीन बंदरगाहों की सूची दी गई है। ये सभी बंदरगाह व्यापार और
वाणिज्य का केंद्र थे और अपने समय में दुनिया के सबसे व्यस्त बंदरगाहों में से
एक थे।
1- मुज़िरिस बंदरगाह (Muziris Port) - यह प्राचीन समृद्ध‚ आकर्षक बंदरगाह
शहर 3000 ईसा पूर्व में सबसे जीवंत व्यावसायिक क्षेत्रों में से एक था। इस स्थान
पर मसाले‚ रत्न‚ रेशम‚ हाथी दांत‚ मिट्टी के बर्तन आदि ले जाने वाले जहाज
बार-बार आते थे। यह स्थान वर्तमान में कोडुंगल्लूर (Kodungallur) के नाम से
जाना जाता है और मध्य केरल में कोच्चि से कुछ दूरी पर है। बंदरगाह ने इस क्षेत्र
को फारसियों (Persians)‚ फोनीशियन (Phoenicians)‚ अश्शूरियों (Assyrians)‚
यूनानियों (Greeks)‚ मिस्रियों (Egyptians) और रोमन साम्राज्य से जोड़ा। 30 से
अधिक देशों ने इस क्षेत्र के व्यापार में योगदान दिया।
2- अरिकामेडु बंदरगाह (Arikamedu Port) - यह भारत के केंद्र शासित प्रदेश
पुडुचेरी (Puducherry) में स्थित है। यह एकमात्र बंदरगाह था जिसके माध्यम से
तमिलों ने रोमन और फ्रांसीसी के साथ व्यापार किया। इस बंदरगाह ने कपड़ा‚
अर्ध-कीमती रत्न‚ मोतियों‚ कांच और चूड़ियों के निर्यात पर विशेष ध्यान देने के
साथ असंख्य वस्तुओं के व्यापार की सुविधा प्रदान की। व्यापार की सबसे अधिक
आयातित वस्तुओं में से एक मदिरा भी थी। तमिलों के लिए एक और लोकप्रिय
आयातित वस्तु‚ टेरा सिगिलटा (Terra Sigillata) था‚ जो लाल रोमन मिट्टी से
बना बर्तन था।
3- बारूच बंदरगाह (Baruch Port) - बारूच के नाम से एक बड़ा और समृद्ध
बंदरगाह लगभग 2000 साल पहले आधुनिक गुजरात में स्थापित किया गया था।
इस बंदरगाह को यूनानियों द्वारा बरुकाचा (Barukaccha) और रोमनों द्वारा
बरगज़ा (Barygaza) के नाम से भी जाना जाता था। ऐतिहासिक दस्तावेजों में
इसका शायद ही कोई उल्लेख मिलता है। यह रेशम और मसालों के मामले में शीर्ष
निर्यात स्थानों में से एक है जो अमीर रोमन नागरिकों द्वारा मांगा गया था।
बारूच बंदरगाह का उज्जैन और मथुरा के साथ व्यापार था। इसका मध्य एशिया
के व्यापार केंद्रों से भी संबंध था‚ जो बैक्ट्रिया (Bactria) की ओर जाता था और
धीरे-धीरे रोमन भूमध्यसागरीय तक अपनी श्रृंखला का काम करता था और इस
प्रक्रिया में फारस के साथ समुद्री संबंध विकसित करता था।
4- पूमपुहर बंदरगाह (Poompuhar Port) - यह चोझा साम्राज्य (Chozha
Empire) का बंदरगाह शहर माना जाता है‚ जिसे पुहार (puhar) भी कहा जाता है।
वर्तमान में यह तमिलनाडु के नागपट्टिनम (Nagapattinam) जिले में स्थित है।
पांच महान तमिल महाकाव्यों में से एक‚ सिलप्पादिकारम (Silappadikaram) में‚
लेखक इलांगो अडिगल (Ilango Adigal) ने पूमपुहर को एक हलचल वाले बंदरगाह
के रूप में वर्णित किया है‚ जहां घोड़े‚ काली मिर्च‚ रत्न‚ सोना‚ मोती और गेहूं का
बड़ी मात्रा में व्यापार किया जाता था। इसका उल्लेख करने वाली अन्य साहित्यिक
कृतियों में अन्य तमिल महाकाव्य जैसे; मणिमेखलाई (Manimekhalai) और
प्राकृत ग्रंथ (Prakrit texts) जैसे; मिलिंदपन्हा (Milindpanha)‚ जातक टेल्स
(Jataka Tales)‚ टॉलेमीज जियोग्राफिया (Ptolemy’s Geographia) और
ऐतिहासिक दस्तावेज पेरिप्लस ऑफ एरिथ्रियन सी (Periplus of Erythrean
Sea) शामिल हैं।
संदर्भ:
https://bit.ly/3HReE6G
https://bit.ly/3HPsrL1
https://bit.ly/3CZhgfv
https://bit.ly/3cK7D9G
https://bit.ly/32i0DyH
चित्र संदर्भ
1. जॉर्ज ब्रौन और फ्रैंस होगेनबर्ग (Georg Braun and Frans Hogenberg) के एटलस से कालीकट मानचित्र को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
2. 8वीं शताब्दी के बोरोबुदुर जहाजों में से एक को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. मुज़िरिस बंदरगाह (Muziris Port) का एक चित्रण (wikimedia)
4. व्यापारिक समुद्री जहाजों को दर्शाता एक चित्रण (maritimemanual)
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