City Subscribers (FB+App) | Website (Direct+Google) | Total | ||
3345 | 10 | 3355 |
***Scroll down to the bottom of the page for above post viewership metric definitions
आज की युवा पीढ़ी अपने रंग-रूप, शिक्षा और पारिवारिक पृष्टभूमि के प्रति बेहद तुलनात्मक या
अधिक नकारात्मक होने लगी है। अधिकाशं युवा सदैव ही किसी अन्य के जैसा बनना चाह रहे हैं।
लेकिन हमारे धार्मिक ग्रंथों में एक ऐसे देवता है, जिनसे आज की युवा पीढ़ी सबसे बड़ी शिक्षा यह ले
सकती हैं की, हमारी श्रेष्टता इस बात पर बहुत कम निर्भर करती है की, हम कैसे दिखते हैं। बल्कि
इस बात पर अधिक निर्भर करती हैं की, हम किन मायनों में अद्वितीय हैं। आज गणेश चतुर्थी के
पावन अवसर पर हम, सभी देवी-देवताओं के लाड़ले श्री गणेश की अद्वितीयता अर्थात उनके हाथी
सिर की प्राप्ति के विभिन्न आख्यानों एवं वेदांतिक अर्थों के बारे में विस्तार से जानेगे।
गणेश जी के हाथी मस्तक से उनकी पहचान करना आसान हो जाता है। उन्हें शुरुआत के स्वामी,
विघ्नों को हरने वाले, कला एवं विज्ञान के संरक्षक, तथा बुद्धि और ज्ञान के देवता के रूप में पूजा
जाता है। भक्त कभी-कभी उनके हाथी के सिर की व्याख्या बुद्धि, विवेकपूर्ण शक्ति, निष्ठा, या
हाथियों के अन्य गुणों के संकेत के रूप में करते हैं। कहा जाता है कि हाथी के बड़े कान, ज्ञान और
मदद मांगने वाले लोगों को सुनने की क्षमता को दर्शाते हैं। गणेश जी के जन्म का इतिहास बाद के
पुराणों में मिलता है, जिनकी रचना लगभग 600 ईस्वी के आसपास हुई है।
यद्यपि श्री गणेश को लोकप्रिय रूप से भगवान शिव और पार्वती का पुत्र माना जाता है, लेकिन
पौराणिक मिथक उनके जन्म के कई अलग-अलग अन्य संस्करणों को भी दर्शाते हैं। हिंदू पौराणिक
कथाएं श्री गणेश के जन्म से जुड़ी कई कहानियां प्रस्तुत करती हैं, जिनमें यह बताया गया है कि,
गणेश ने अपना हाथी या गज मस्तक कैसे प्राप्त किया?
हाथी का सिर प्राप्त करने से जुड़ी सबसे प्रसिद्ध कहानी शायद शिव पुराण से ली गई है। कहानी के
अनुसार: एक बार देवी पार्वती स्नान की तैयारी में जुटी हुई थी, और वह अपने स्नान के दौरान कोई
बाधा नहीं चाहती थी। चूंकि उस समय नंदी भी द्वार की रखवाली करने के लिए कैलाश में नहीं थे,
इसलिए माता पार्वती ने अपने शरीर से हल्दी का लेप लिया और एक बालक की मूर्ति बनाई, तथा
उसमें प्राण फूंक दिए। इस बालक को माता पार्वती ने दरवाजे की रखवाली करने और स्नान समाप्त
होने तक किसी को भी अंदर प्रवेश नहीं करने देने का निर्देश दिया था।
दूसरी और भगवान शिव ने अपने ध्यान से बाहर आने के बाद, माता पार्वती से मिलने की इच्छा
प्रकट की एवं उनके स्नान कक्ष की तरफ आगे बड़े। लेकिन द्वार पर खड़े इस बालक ने उन्हें भी
रोक दिया। शिव ने यह कहते हुए बालक को समझाने की कोशिश की, कि वह पार्वती के पति है।
लेकिन बालक ने उनकी एक न नहीं सुनी और शिव को माता पार्वती से दूर रखने की हठ पकड़ ली।
एक साधारण बालक द्वारा स्वयं को अपनी पत्नी से न मिलने देने और उसकी हठ से क्रोधित
होकर भगवान शिव ने उस बालक के सिर को अपने त्रिशूल से काट दिया और उसका वध कर दिया।
यह खबर पाते ही माता पार्वती बेहद क्रोधित हो उठी और उन्होंने सारी सृष्टि को नष्ट करने का
फैसला कर लिया। माता पार्वती के क्रोध एवं प्रण से चिंतित भगवान ब्रह्मा ने श्रृष्टि का निर्माता
होने के नाते, माता से निवेदन किया कि वह अपने कठोर प्रण पर पुनर्विचार करें।
इसके पश्चात् ब्रह्मा ने माता पार्वती की दो शर्तों को स्वीकार किया: पहली कि बालक को फिर से
जीवित किया जाए, और दूसरी कि वह प्रार्थना में उन्हें सर्वप्रथम पूजा जाए। शिव भी माता पार्वती
की शर्तों से सहमत हो गए। उन्होंने अपने भक्तों को आदेश दिया कि वे पहले प्राणी के सिर को
लेकर आएं, जिसका सिर उत्तर की ओर हो। शिव के आदेश पाकर वे जल्द ही गजासुर नामक एक
मजबूत और शक्तिशाली हाथी के सिर के साथ लौट आए, जिसे भगवान ब्रह्मा ने नन्हे बालक के
शरीर के ऊपर रख दिया। ब्रह्मा ने बालक में नया जीवन फूंकते हुए, उन्हें गजानन घोषित किया
तथा उन्हें सर्वप्रथम पूजनीय बना दिया ।
हाथी के सिर से जुड़ी एक अन्य किवदंती के अनुसार एक बार, एक हाथी के समान विशेषताओं वाले
एक दानव गजासुर की घोर तपस्या से संतुष्ट होकर, भगवान शिव ने उसे मनचाहा वरदान मांगने
के लिए कहा। दानव की इच्छा थी कि वह अपने शरीर से लगातार आग उगल सके, ताकि कोई भी
उसके पास जाने की हिम्मत न कर सके। शिव ने उसका अनुरोध स्वीकार कर लिया। गजासुर ने
अपनी तपस्या जारी रखी और फिर एक बार भगवान शिव को प्रसन्न करके उनसे वरदान मांगा की
"मैं चाहता हूं कि आप मेरे पेट में निवास करें।" भोलेभाले शिव इस बात के लिए भी राजी हो गए।
दूसरी ओर माता पार्वती ने उन्हें हर जगह खोजा, लेकिन उन्हें शिव कहीं भी नहीं मिले। आखिर में,
वह अपने भाई भगवान विष्णु के पास गई। भगवान विष्णु ने उन्हें आश्वस्त किया: "चिंता मत
करो, प्रिय बहन, तुम्हारे पति शंकर बड़े भोले है, लेकिन मैं उन्हें वापस ले आऊंगा।"
जिसके पश्चात् विष्णु ने नंदी (शिव के बैल) को एक नाचते हुए बैल में बदल दिया, और स्वयं बांसुरी
वादक बनकर गजासुर के सामने बांसुरी बजाने लगे। बांसुरी वादक और बैल के आकर्षक प्रदर्शन ने
दानव को मंत्रमुग्ध कर दिया तथा परमानंद से भर दिया। जिसके बाद दानव ने प्रसन्नता पूर्वक
बांसुरी वादक से कहा कि वह, उसे बताए कि वह (बांसुरी वादक) क्या चाहता है।
संगीतमय विष्णु ने उत्तर दिया: "क्या आप मुझे वह दे सकते हैं जो मैं मांगूंगा?" गजासुर ने उत्तर
दिया: आप जो भी मांगेंगे वह मैं आपको तुरंत दे सकता हूं।" बांसुरी वादक के रूप में भगवान विष्णु
ने तब कहा: "यदि ऐसा है, तो शिव को अपने पेट से मुक्त कर दो।" गजासुर तब समझ गया कि यह
कोई और नहीं बल्कि स्वयं विष्णु हैं, जो उस रहस्य को जान सकते थे। इसके बाद उसने स्वयं को
भगवान विष्णु के चरणों में समर्पित कर दिया। शिव को मुक्त करने के लिए सहमत होने के बाद,
गजासुर ने उनसे दो अंतिम वरदान मांगे: "मेरा अंतिम अनुरोध है कि हर कोई मुझे मेरे सिर की पूजा
करते हुए याद रखे और दूसरा की आप मेरी त्वचा को पहन लें।"
गणेश के जन्म की एक और कहानी एक घटना से संबंधित है, जिसमें शिव ने एक ऋषि के पुत्र
आदित्य (भगवान सूर्य) को मार डाला था। हालांकि शिव ने मृत लड़के को पुनर्जीवित कर दिया था,
लेकिन इससे भी क्रोधित ऋषि कश्यप शांत नहीं हुए। जिसके पश्चात् कश्यप ने शिव को श्राप दिया
और घोषणा की कि शिव का पुत्र अपना सिर खो देगा। आखिरकार जब ऐसा हुआ तो इसे बदलने के
लिए इंद्र के हाथी के सिर का इस्तेमाल किया गया।
एक अन्य कथा के अनुसार एक बार पार्वती द्वारा उपयोग किए गए स्नान-जल को, गंगा नदी से
हाथी के सिर वाली देवी मालिनी ने पिया था। इसके पश्चात् उन्होंने चार भुजाओं और पांच हाथी
सिर वाले एक बच्चे को जन्म दिया था। हालांकि गंगा नदी ने उन्हें अपने पुत्र के रूप में दावा किया,
लेकिन शिव ने उन्हें पार्वती के पुत्र के रूप में घोषित किया, उनके पांच सिरों को एक कर दिया तथा
उन्हें बाधाओं (विग्नेश) के नियंत्रक के रूप में विराजमान किया। अधिकांश हिंदू देवताओं की तरह,
गणेश आज एक स्वतंत्र, स्व-निर्मित (स्वयंभू) देवता हैं, जो अनंत को मूर्त रूप देते हैं। कोख के बाहर
की यही रचना उन्हें विशेष बनाती है।
संदर्भ
https://bit.ly/3KnZxn2
https://bit.ly/3ApoBpk
चित्र संदर्भ
1. श्री गणेश के मस्तक विस्थापन तथा भगवान शिव, श्री गणेश एवं माता पार्वती का स्वागत करते हुए भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी को दर्शाता एक चित्रण (youtube, wikimedia)
2. बलुआ पत्थर से निर्मित श्री गणेश जी की मूर्ति को दर्शाता एक चित्रण (
World History Encyclopedia)
3. माता पार्वती एवं श्री गणेश को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4. गजानन के मस्तक को दर्शाता एक चित्रण (Free SVG)
5. भगवान शिव और शिशु गणेश को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
6. शिव कुटुंब को दर्शाता एक चित्रण (GetArchive)
© - 2017 All content on this website, such as text, graphics, logos, button icons, software, images and its selection, arrangement, presentation & overall design, is the property of Indoeuropeans India Pvt. Ltd. and protected by international copyright laws.