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प्रारंग पर्यावरण श्रृंखला 1: ग्लोबल वार्मिंग व पिघलते ग्लेशियरों का हमारे जीवन पर प्रभाव

जौनपुर

 22-08-2022 11:30 AM
जलवायु व ऋतु

हिमालय और अन्य ग्लेशियर (Glacier) हमारे जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। नदियों का जन्म भी इन हिमखंडों से ही होता है जो हमारे लिए पेयजल के महत्वपूर्ण स्रोत होती हैं। वातावरण का संतुलन बनाए रखने में भी इन हिमखंडों का महत्वपूर्ण योगदान है। दिनों दिन हो रहे जलवायु परिवर्तन के परिणामस्वरूप यह ग्लेशियर लगातार पिघलते जा रहे हैं। यह सभी मनुष्यों के लिए एक बहुत बड़ी समस्या का कारण है। बढ़ते तापमान के कारण धीरे-धीरे जलस्रोत सूखते जा रहे हैं। आज भी कई क्षेत्र ऐसे हैं जहां लोग नदियों के पानी पर पूरी तरह निर्भर करते हैं। ऐसे में जल स्रोतों के सूखने से भयंकर परिस्थितियाँ उत्पन्न हो सकती हैं। 
जलवायु परिवर्तन मात्र इतने तक ही सीमित नहीं है अपितु लगातार तापमान के बढ़ने से कई बार ऐसी परिस्थितियाँ उत्पन्न हो जाती हैं कि जब मनुष्य को अचानक प्राकृतिक प्रकोप से जूझना पड़ता है। वर्ष 2013 में केदारनाथ, उत्तराखंड में आई प्राकृतिक आपदा और जुलाई 2022 में अमरनाथ में फटने वाला बादल ऐसी ही परिस्थितियों के उदाहरण हैं। तीर्थ यात्राओं पर हर साल लाखों की संख्या में लोग आते हैं। इतने सारे लोगों के रहने-खाने की व्यवस्था, आवागमन और विकट परिस्थितियों में बचाव व सुरक्षा आदि कार्य शासन-प्रशासन के किए काफी चुनौतीपूर्ण होता है। अमरनाथ जहाँ प्रतिवर्ष भगवान शिव के बर्फ से बने शिवलिंग के दर्शन किए जाते हैं, जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग (Global Warming) का प्रभाव शिवलिंग पर भी देखा जा सकता है। शिवलिंग के आकार में प्रतिवर्ष काफी परिवर्तन देखा जा रहा है। 
इस साल अत्यधिक सर्दी के बावजूद गर्मी का स्तर अपने चरम पर रहा है। अप्रैल माह में किसानों द्वारा गेहूं की फसल में 20% तक की कमी की सूचना दी गई है। शुरुआत से ही तेज गर्मी के कारण मार्च महीने में ही बर्फ के पिघलने की जानकारी मिली है।  गर्मी के बढ़ने से ग्लेशियर लगातार पिघलते जा रहे हैं जिसका एक परिणाम यह भी है कि बर्फ पिघलने से जल स्रोतों का स्तर बढ़ जाता है और इन जल स्रोतों के आसपास रहने वाले लोगों के निवास क्षेत्रों में बाढ़ जैसी स्थिति उत्पन्न हो जाती है। बाढ़ के कारण जहां एक ओर पूरा क्षेत्र जलमग्न हो जाता है वहीं दूसरी ओर पीने के पानी की समस्या बढ़ जाती है। ऐसी स्थिति अन्य क्षेत्रों की तुलना में एशिया के ऊँचे क्षेत्रों में अधिक देखी जा सकती है। उदाहरण के लिए इस वर्ष मई में उत्तरी पाकिस्तान के हसनाबाद इलाके में हिमनद झील के फटने से गांव में बाढ़ की स्थिति उत्पन्न हो गई। जिससे दो जल विद्युत संयंत्र और एक पुल नष्ट हो गया। इसके अलावा पूरे गांव में पीने का पानी का अभाव हो गया। पर्वतीय क्षेत्र में रहने वाले आधे अरब से ज्यादा लोग जलवायु परिवर्तन के दुष्परिणामों का सामना करने के लिए मजबूर हैं।
ग्लोबल वार्मिंग के कारण हर साल गर्मी का स्तर बढ़ता ही जा रहा है। इस साल अप्रैल में पाकिस्तान के कुछ हिस्सों में 50 डिग्री सेल्सियस का रिकॉर्ड तोड़ तापमान दर्ज किया गया है। मध्य एशियाई पर्वतीय क्षेत्र जिनमें हिमालय और हिंदू कुश पर्वत शामिल हैं, चीन से अफगानिस्तान तक फैला उच्च एशियाई पर्वत 55,000 हिमनदियों का घर माना जाता है। यह 10 बड़ी नदियों का उद्गम स्थल है। इन घाटियों में लगभग 2 लाख से अधिक लोग निवास करते हैं। घाटियों में रहने वाले लोग पीने के पानी और आजीविका के लिए इन नदियों पर निर्भर हैं। बढ़ते ग्लोबल वार्मिंग के कारण यहां रहने वाले लोगों का जीवन संकट में है। संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम के अनुसार, हिमालय में तापमान वैश्विक औसत से दोगुनी तेजी से बढ़ रहा है। यदि समय रहते स्थियों को नियंत्रित नहीं किया गया तो इस सदी के अंत तक, मध्य एशिया के पहाड़ों में कुल बर्फ का आधा और दो-तिहाई हिस्सा विलुप्त हो जाएगा। भारत के कोलकाता में जेआईएस विश्वविद्यालय के ग्लेशियोलॉजिस्ट (Glaciologist) अतनु भट्टाचार्य के अनुसार, सभी ग्लेशियर निश्चित रूप से पिघल जाएंगे। यह कथन भविष्य में होने वाली पेयजल की समस्या की ओर इशारा करता है। भट्टाचार्य का कहना है कि नीति निर्माताओं को कृषि, बेहतर जल प्रबंधन के बारे में सोचने की आवश्यकता है। 
बढ़ते तापमान और पिघलते ग्लेशियर के कारण एक और बड़ी समस्या ऊर्जा आपूर्ति में बाधा है। वैज्ञानिकों के अनुमान के अनुसार, हिमालय में 250 से अधिक जल विद्युत संयंत्र हिमनद झीलों में आने वाली बाढ़ के कारण नष्ट होने की संभावित कगार पर हैं। भविष्य में यदि पानी की समस्या होती है तो विद्युत उत्पन्न करना भी एक चुनौतीपूर्ण कार्य बन जाएगा। 
हम मनुष्य द्वारा इंधन का अत्यधिक इस्तेमाल भी ग्लेशियरों के पिघलने का एक महत्वपूर्ण कारण है। जीवाश्म ईंधन जैसे कोयला, गैस और तेल आदि के अत्यधिक इस्तेमाल से एक ऐसा हानिकारक अपशिष्ट पदार्थ उत्पन्न होता है जो हवा के साथ उड़ कर इन हिमखंडों पर बस जाता है। यह पदार्थ सामान्य बर्फ की तुलना में अत्यधिक गर्मी अवशोषित करने के लिए उत्तरदाई है।  इन सभी घटनाओं के लिए हम मनुष्य ही जिम्मेदार हैं। लगातार बढ़ती जनसंख्या, प्राकृतिक संसाधनों का अंधाधुन्ध उपयोग, शहरीकरण और आधुनिकीकरण, प्रदूषण और लगातार प्रकृति का विनाश मनुष्य द्वारा किए गए ऐसे कृत्य हैं जिनकी वजह से आज हम इन प्राकृतिक आपदाओं का सामना कर रहे हैं। यदि हम मनुष्यों ने अपने लाभ के लिए प्रकृति को नुकसान पहुँचाना बंद नहीं किया तो आने वाली पीढ़ी के लिए पृथ्वी पर ना तो स्वच्छ वातावरण बचेगा और ना ही पीने योग्य जल। भारतीय संसद में कई बार जलवायु परिवर्तन का मुद्दा उठता है परंतु आज तक कोई भी ठोस कदम नहीं उठाया गया है।  विशेषज्ञों का मानना है कि वायु प्रदूषण को नियंत्रित करके पिघलते ग्लेशियरों को बचाया जा सकता है। दो-तिहाई ब्लैक कार्बन ईंट भट्टों और लकड़ी के कणों से उत्पन्न होता है। डीजल वाहन दूसरे सबसे बड़े प्रदूषक हैं, जो 7% से 18% प्रदूषण के लिए जिम्मेदार हैं। इनके उपयोग को नियंत्रित करके हम पर्यावरण को बचा सकते हैं।

संदर्भ:
https://bit.ly/3pqpJ6X
https://bit.ly/3Aq6l0b
https://bit.ly/3bZLcR9
https://bit.ly/3Pxmrth

चित्र संदर्भ
1. पार्कचिक ग्लेशियर, नन कुन मासिफो को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
2. अलेत्श ग्लेशियर एनिमेशन को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. गंगोत्री ग्लेशियर का टर्मिनस गौमुख को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4. हिमनदों के टूटने की घटना के एनिमेशन को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)



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