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तप्ती गर्मी से राहत देने पहुंच गई मानसून की वर्षा

जौनपुर

 05-07-2022 10:12 AM
जलवायु व ऋतु

दक्षिण एशिया में घातक ताप या ग्रीष्म लहरों ने न केवल स्थानीय और क्षेत्रीय स्तर पर बल्कि वैश्विक स्तर पर भी व्यापक प्रभाव डाला हैं। भारत और पाकिस्तान जैसे देशों में विशेष रूप से अप्रैल और मई के महीनों में रिकॉर्ड तोड़ ग्रीष्म लहरें जलवायु परिवर्तन का कारण बनी हुई हैं। जानमाल के नुकसान के अलावा, इस क्षेत्र में स्वास्थ्य सुरक्षा, खाद्य सुरक्षा, जल सुरक्षा, आजीविका सुरक्षा, ऊर्जा सुरक्षा और अन्य सुरक्षा क्षेत्रों पर भी विविध प्रकार के असर हो रहे हैं।
हालांकि भारत जैसे देश पिछले एक दशक में इस तरह की ताप लहरों से निपटने केलिए अपनी तैयारियों को बढ़ा रहे हैं, लेकिन इस तरह की चरम घटनाओं की आवृत्ति और तीव्रता के प्रभाव के कारण जलवायु बदल रही है और हमारे नीति समुदाय और अन्य हितधारक इसके आगे विवश होते जा रहे हैं। भारत में ताप लहरे, वर्षा की कमी के साथ, नदियों में जल स्तर को प्रभावित करती है। दिल्ली जैसे शहर के कई क्षेत्र यमुना नदी के सूखने के कारण पीने के पानी की कमी से जूझ रहे हैं, गर्मी की लहर ने देश के कई हिस्सों में सूखे की स्थिति को बढ़ा दिया, खासकर ग्रामीण इलाकों में जो पहले से ही बारिश की कमी से जूझ रहे थे। देश के कई हिस्सों में, विशेष रूप से उत्तरी भारत के जंगलों में ताप लहरों ने आग को बढ़ा दिया है। हाल ही में ग्रीष्म लहरों ने कृषि उत्पादकता में भी बाधा डाली है, जिससे खाद्य सुरक्षा काफी प्रभावित हुई है। उदाहरण के लिए, हरियाणा, पंजाब और उत्तर प्रदेश में गेहूं की पैदावार में 10-35 प्रतिशत की कमी देखी गई। इसी तरह अन्य फसलों (चावल, दाल आदि) की पैदावार में भी कमी आई है।
अंतर्राष्ट्रीय खाद्य नीति अनुसंधान संस्थान की वैश्विक खाद्य नीति रिपोर्ट 2022 (International Food Policy Research Institute’s Global Food Policy Report 2022) के अनुसार, भारत में कृषि उत्पादन में कमी के कारण 2030 तक यह जलवायु परिवर्तन लगभग 9 करोड़ लोगों को भूखमरी की ओर धकेल सकती है। साथ ही साथ बिजली की खपत में वृद्धि भी हुई है जिसने भविष्य में देश की बिजली आपूर्ति के संकट को बढ़ा दिया है। ग्रीष्म लहरें ग्रामीण क्षेत्रों में पानी की उपलब्धता, बिजली आपूर्ति और कृषि उत्पादकता को प्रभावित करती हैं, वे न केवल खाद्य आपूर्ति श्रृंखलाओं को प्रभावित करती हैं, बल्कि कृषि क्षेत्र में कार्यरत लोगों की आजीविका को भी प्रभावित करती हैं। इस कारण ग्रामीण लोग वैकल्पिक रोजगार के अवसरों की तलाश में शहरों में प्रवास करने के लिए मजबूर हो जाते है, इसी तरह, ये ताप की लहरें श्रम उत्पादकता को भी प्रभावित करती हैं । इतना ही नहीं जब श्रमिक सीधे तौर पर इन लहरों की चपेट में आते है तो उनके शारीरिक स्वास्थ्य को भी नुकसान पहुंचता है।
ऐसा कहा जा रहा है कि जलवायु परिवर्तन ने पूर्वानुमानों को गलत साबित करते हुए प्राकृतिक सीमाओं को परिवर्तित कर दिया है, जिससे ग्रीष्म लहर की तीव्रता और बारंबारता अधिक हो गई है। वैज्ञानिकों का अनुमान है कि जलवायु परिवर्तन के कारण वैश्विक तापमान में होने वाली वृद्धि से अतिशय मौसमी घटनाओं, जैसे- ऊष्मा तरंगों को और बढ़ावा मिला है। जलवायु परिवर्तन से सिर्फ ग्रीष्म लहरे ही नहीं बल्कि ऊष्णकटिबंधी चक्रवात, जंगल की आग, सूखा, भारी वर्षा और बाढ़ ने भी इस साल दुनिया भर में व्यापक उथल-पुथल मचा रखी है, जिसमें हजारों लोग मारे गए हैं और लाखों लोग विस्थापित हुए हैं।
पिछले कुछ महीनों में, मानसून की बारिश ने बांग्लादेश में विनाशकारी बाढ़ ला दी, और दक्षिण एशिया और यूरोप के कुछ हिस्सों में भीषण ग्रीष्म लहरों ने तबाही मचा रखी है। शोधकर्ताओं ने पिछले दो दशकों में अलग-अलग मौसम की घटनाओं में जलवायु परिवर्तन की भूमिका की जांच की है, वे बताते है कि वैश्विक ताप के कारण पड़ रहे दुष्प्रभावों को लेकर हमे सतर्क रहना चाहिए। भारत समेत अन्य देश इन चरम घटनाओं से सबसे अधिक प्रभावित हो सकते हैं। जलवायु परिवर्तन के कारण भारत में मानसून की बरसात कम या अनियमित हो सकती है, इसका सीधा असर मानसून आधारित कृषि अर्थव्यवस्था पर बड़े पैमाने पर पड़ सकता है। भारत को सूखे का सामना भी करना पड़ा था। इस तरह की चरम घटनाएं भविष्य में बढ़ सकती हैं। जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न ये ग्रीष्म लहरें एक नई चुनौती बनकर उभर रही हैं। विक्टोरिया यूनिवर्सिटी ऑफ वेलिंगटन (Victoria University of Wellington) के एक जलवायु वैज्ञानिक, अध्ययन के सह-लेखक ल्यूक हैरिंगटन (Luke Harrington) कहते है कि जलवायु परिवर्तन के कारण ग्रीष्म लहरों और अत्यधिक वर्षा जैसी घटनाओं की तीव्रता बदल रही है। अपने समीक्षा पत्र के लिए, वैज्ञानिकों ने सैकड़ों "एट्रिब्यूशन" (attribution) अध्ययन, या शोध के माध्यम से यह जानने की कोशिश की है कि कैसे जलवायु परिवर्तन ने ग्रीष्म लहरों और अत्यधिक वर्षा जैसी घटनाओं को प्रभावित किया। ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय (University of Oxford) के एक पर्यावरण वैज्ञानिक, अध्ययन के सह-लेखक बेन क्लार्क (Ben Clark) बताते है कि दुनिया भर में सभी ग्रीष्म लहरों को जलवायु परिवर्तन ने अधिक तीव्र और अधिक संभावित बना दिया है।
इस तरह की ग्रीष्म लहरों और चरम मौसम की घटनाओं के अनुकूल होने की लागत पिछले कुछ वर्षों में ही बढ़ी है। विश्व मौसम विज्ञान संगठन (World Meteorological Organization ) की एक रिपोर्ट के अनुसार, 2020 में, भारत को जलवायु संबंधी आपदाओं के कारण 87 बिलियन अमरीकी डॉलर (लगभग 6 खरब) का नुकसान हुआ था। इसका तात्पर्य यह है कि भारत को न केवल शमन (mitigation) करने के लिए, बल्कि जलवायु अनुकूलन के लिए अधिक वित्त की आवश्यकता होगी।
भारत के राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (National Disaster Management Authority - NDMA) ने ग्रीष्म लहरों से निपटने के लिए एक ढांचा विकसित किया है, जो राज्य-स्तरीय आपदा प्रतिक्रिया एजेंसियों और स्थानीय सरकारों को जागरूकता, अंतर-एजेंसी समन्वय, शीतलन रणनीतियों आदि के माध्यम से तैयारियों को बढ़ावा देने के लिए एक साथ कार्य करने के लिए प्रेरित करता है। अहमदाबाद 2013 में हीट एक्शन प्लान (Heat Action Plan ) लागू करने वाला पहला दक्षिण एशियाई शहर बन गया। लेकिन भले ही भारत ने उपरोक्त कदम उठाए हो, जिससे ग्रीष्म लहरों के कारण होने वाली मौतों में काफी कमी आई हो, लेकिन विभिन्न स्तरों पर राज्य सरकारों के लिए अपनी प्रतिक्रियाओं की निरंतर निगरानी, समीक्षा और उन्नयन करना एक बड़ी चुनौती होगी क्योंकि ये घटनाएं भविष्य में अधिक तेज हो सकती हैं। भविष्य में और नुकसान से बचने के लिए शमन को प्राथमिकता दी जानी चाहिए। साथ ही साथ हमें ग्रीष्म लहर के प्रतिकूल प्रभावों और उनके कारण होने वाली दुर्घटनाओं की संख्या को कम करने के लिये, दीर्घावधि उपायों के साथ-साथ अल्पावधि क्रियान्वयन योजनाओं को भी लागू करनी होगी। जलवायु परिवर्तन का सामना करने के लिये स्थानीय, राज्य और राष्ट्रीय सरकारों की तत्परता के साथ-साथ अंतर्राष्ट्रीय सहकारिता एवं सहयोग ही मुख्य निर्धारक सिद्ध हो सकते हैं।
यह केवल भारत और पाकिस्तान जैसे देशों की जिम्मेदारी नहीं की वो ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को कम करें बल्कि सभी औद्योगिक देशों को ये जिम्मेदारी लेनी चाहिए की सभी अपने अपने स्तर से ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को कम कर सकें। ये ग्रीष्म लहरें केवल दक्षिण एशिया में ही नहीं बनाई जाती हैं, यह एक वैश्विक घटना है जिसके लिए एक मजबूत वैश्विक प्रतिक्रिया की आवश्यकता है।

संदर्भ:
https://bit.ly/3nuliXK
https://reut.rs/3nxq4ny

चित्र संदर्भ

1. गर्मी से परेशान व्यक्ति को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
2. जौनपुर के तापमान को दर्शाता एक चित्रण (google)
3. एशिया में मई में मौसम 2022 को दर्शाता एक चित्रण (cdn.hikb)
4. ग्लोबल वार्मिंग की भविष्यवाणी के नक़्शे को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)



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