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एक पुरानी कहावत है "अति का भला न बोलना, अति की भली न चूप. अति का भला न बरसाना
और अति की भली न धूप" यह कहावत स्पष्ट रूप से दर्शाती है की, भले ही कोई वस्तु अथवा सेवा
आपके लिए कितनी ही लाभदायक क्यों न हो, यदि वह ज़रुरत से ज्यादा मिलने लगे तो हानिकारक
साबित होने लगती है। उदाहरण के लिए हमारे शहरों में, सर्दियों की दोपहर में गुनगुनी धूप की गर्मी,
कितनी मनभावन होती है! लेकिन वही आप गर्मियों की दोपहर में घर से बाहर निकल गए, तो
यहां की सड़को पर आपके सिर-पैर जलने लगेंगे।
हालांकि कई दशकों पहले तक गर्मी से इतने भयानक हालात नहीं थे। लेकिन हाल ही में जारी एक
अध्ययन के अनुसार, दुनियाभर में तेज़ी से बढ़ती शहरी आबादी , और कथाकथित ग्लोबल वार्मिंग
(Global Warming) के कारण हमारे शहरों का तापमान अनिश्चित रूप से बढ़ रहा है। जिस
कारण स्वास्थ सम्बंधित समस्याएं भी तेज़ी से बढ़ रही हैं। शहरों में बढ़ती गर्मी का सीधा प्रभाव
यहां आकर बसने वाली ग्रामीण आबादी पर भी पड़ रहा है।
प्रोसीडिंग्स ऑफ द नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज (Proceedings of the National Academy
of Sciences) में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार समूची धरती पर होने वाली तापमान में वृद्धि
के कारण दुनिया की लगभग एक चौथाई आबादी प्रभावित हुई है, जिसमे कई क्षेत्र अभी से गंभीर
रूप से प्रभावित होने लगे हैं!
हालिया दशकों के दौरान कई ग्रामीण लोग शहरों में प्रवासित हुए हैं, जहां डामर जैसी सतहों के
कारण ज़मीन के तापमान ने भी ज़बरदस्त रूप से वृद्धि की है। दुनियाभर में कई विशेषज्ञों द्वारा
वर्ष 1983 से लेकर 2016 तक लगभग 13,000 से अधिक शहरों में अधिकतम दैनिक गर्मी और
आर्द्रता का अध्ययन किया गया। अध्ययन के परिणाम स्वरूप 1983 की तुलना में 2016 के
तापमान में अधिक वृद्धि देखि गई। जिसके प्रमुख शोधकर्ता कोलंबिया विश्वविद्यालय के अर्थ
इंस्टीट्यूट में कैस्केड तुहोल्स्के (Cascade Tuholsk) ने कहा कि, तापमान में देखी गई इस वृद्धि
से "रुग्णता और मृत्यु दर को बढ़ावा मिला है।" अत्यधिक गर्मी लोगों की काम करने की क्षमता को
प्रभावित करती है, और इसके परिणामस्वरूप आर्थिक उत्पादन में भी कमी देखी जाती है। इस
अध्धयन में पाया गया की गर्मी से बांग्लादेश की राजधानी ढाका सबसे अधिक प्रभावित शहर था।
अध्ययन के अनुसार गर्म जलवायु के कारण सबसे अधिक जोखिम वाले शहरों में बगदाद, काहिरा,
कुवैत शहर, लागोस, कोलकाता और मुंबई शामिल हैं।
आज दुनिया अपने इतिहास के सबसे अधिक गर्म ग्रीष्मकाल का सामना कर रही है, जिस कारण
आज ग्लोबल वार्मिग से निपटने के उपायों की आवश्यकता भी अधिक हो चली है। हम सभी
पारंपरिक एयर कंडीशनिंग (conventional air conditioning) के प्रतिकूल प्रभावों के बारे में
पहले से जानते हैं की, यह हमारे वातावरण के लिए बेहद घातक होता है! लेकिन इससे भी अधिक
ज़रूरी यह जानना है की हम किस प्रकार बेहतर एयर कंडीशनिंग के उपायों को खोजें?
विश्व ग्रीन बिल्डिंग काउंसिल (World Green Building Council) की रिपोर्ट के अनुसार केवल
हीटिंग, कूलिंग और लाइटिंग उपकरणों से ही वैश्विक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में उल्लेखनीय
28% वृद्धि हुई है, जिसमे जलवायु परिवर्तन से सम्बंधित नुकसानों में पारंपरिक एयर कंडीशनिंग
का अहम् योगदान है। आज वैश्विक तापमान बढ़ने के कारण दुनिया भर में एयर कंडीशनिंग की
मांग में एक साथ वृद्धि हुई है। अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी के अनुसार 2020 तक वैश्विक स्तर पर
अनुमानित दो बिलियन एयर कंडीशनिंग इकाइयों का प्रयोग किया जा रहा हैं। जलवायु परिवर्तन
की समस्याओं को देखते हुए आज समय की मांग है कि, एक ऐसा एयर कंडीशनिंग समाधान
अपनाया जाए, जो न केवल ऊर्जा-कुशल और लागत-कुशल हो, बल्कि वास्तव में पर्यावरण के
अनुकूल और टिकाऊ भी हो। इसके समाधान के तौर पर डिस्ट्रिक्ट कूलिंग (District Cooling)
एक टिकाऊ, विश्वसनीय और ऊर्जा प्रभावी समाधान साबित हो सकता है।
दरअसल डिस्ट्रिक्ट कूलिंग सिस्टम में एक केंद्रीकृत कूलिंग प्लांट होता है, जिसमें बड़े, अत्यधिक
कुशल, औद्योगिक-श्रेणी के उपकरण लगे होते हैं, जो इंसुलेटेड पाइपलाइनों के माध्यम से अपने
ग्रिड के भीतर इमारतों को ठंडा करते हैं, और पानी की आपूर्ति करते हैं।
आईएसजीएफ की एक रिपोर्ट के अनुसार, शहरों में एयर कंडीशनिंग की मांग बिजली के 50-60%
हिस्से की खपत कर सकती है, जिससे पावर ग्रिड पर दबाव पड़ता है।
डिस्ट्रिक्ट कूलिंग सिस्टम न
केवल बिजली की खपत कम करता है, बल्कि विशेष और प्रशिक्षित ऑपरेटरों के माध्यम से
वास्तविक समय की निगरानी और मांग प्रबंधन करते हुए ऊर्जा-कुशल शीतलन प्रदान करने का भी
एक प्रभावी उपाय है। यह नवीनतम थर्मल स्टोरेज तकनीकों का प्रयोग करके पारंपरिक शीतलन
की तुलना में बिजली की मांग को 40% तक कम कर सकता है। यह वातावरण के संदर्भ में भी
लाभदायक साबित होता है, क्यों की यह हानिकारक DCS GHG उत्सर्जन को 100% तक और
CO2 उत्सर्जन को 50% से अधिक कम कर देता है। पर्यावरणीय शोधकर्ता इसे भविष्य के लिए
बेहतरीन एयर कंडीशनिंग समाधान मानते हैं। स्थिरता के संदर्भ में यह GHG और CO2 उत्सर्जन
कमी के साथ स्वच्छ और हरित वातावरण सुनिश्चित करते हैं।
संदर्भ
https://bit.ly/3AqseJq
https://bit.ly/30bWxY3
https://bit.ly/2Yv0JkH
चित्र संदर्भ
1. तेज़ गर्मी में पानी पीते भारतीय का एक चित्रण (Science)
2. जलवायु डेटा के एक समूह पर गणना की गई हीट वेव्स इंडेक्स का एक चित्रण (wikimedia)
3. तेज़ गर्मी में शहर की दृश्यता का एक चित्रण (istock)
4. डिस्ट्रिक्ट कूलिंग (District Cooling) एक टिकाऊ, विश्वसनीय और ऊर्जा प्रभावी समाधान साबित हो सकता है, जिसको दर्शाता एक चित्रण (youtube)
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