हम सभी ने हिंदू धार्मिक ग्रंथ रामचरितमानस में, भारत और लंका को जोड़ने वाले "राम सेतू" के बारे में
अनेक धार्मिक प्रकरणों में सुना है। लेकिन क्या आपको यह पता था की, तुलसीदास की रामचरितमानस में
हमारे जौनपुर से होकर गुजरने वाली एक पवित्र नदी, आदि गंगा' (प्राचीन गंगा) या प्रमुख रूप से "सईं नदी"
का भी वर्णन मिलता है। लेकिन स्थानीय लोगों और धार्मिक रूप से महत्वपूर्ण यह नदी भी, देश की अन्य
नदियों की भांति, अपने अस्तित्व बनाए रखने के लिए संघर्ष कर रही है!
सई नदी (सई सेतु) को, आदि गंगा भी कहा जाता है। यह उत्तर प्रदेश में गोमती नदी की एक सहायक नदी है।
इस नदी का उद्गम हरदोई जिले के एक गांव, परसोई में पहाड़ी की चोटी पर, भिजवां झील नामक एक
विशाल तालाब से होता है। यह नदी लखनऊ क्षेत्र को उन्नाव से अलग करती है। नदी रायबरेली से दक्षिण
की ओर बहती है, फिर पश्चिम से होते हुए प्रतापगढ़ और जौनपुर के क्षेत्र में प्रवेश करती है, फिर पूर्व की ओर
मुड़कर घुईसरनाथ धाम को जाती है। वहां से यह दूसरे चंडिका धाम को छूती है।
उत्तर प्रदेश के अधिकांश जिले सई नदी के तट पर स्थित हैं। यह नदी हिन्दुओं के बीच पूजनीय है, और भक्त
साई नदी में पवित्र स्नान करते हैं। इसका उल्लेख पुराणों और गोस्वामी तुलसीदास की रामचरितमानस में
भी मिलता है। दरअसल वनवास से लौटते समय, श्रीराम ने अयोध्या में प्रवेश से पहले सई नदी को पार कर
गोमती में स्नान किया था। गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरित मानस में भी इसका उल्लेख किया है कि,
"सई उतर गोमती नहाए, चौथे दिवस अवधपुर आए...।" सई-गोमती का संगम तट जौनपुर के सिरकोनी
ब्लॉक में राजेपुर के पास है, जहां हर वर्ष भव्य मेला भी आयोजित किया जाता है।br>
अपने धार्मिक महत्व के साथ, नदी अपने तट पर रहने वाले लाखों भारतीयों के लिए, जीवन रेखा भी मानी
जाती है। दुर्भाग्य से तुलसीदास की रामचरितमानस में 'आदि गंगा' (प्राचीन गंगा) के रूप में वर्णित सईं के
नाम से लोकप्रिय, यह नदी आज अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रही है। पिछले दस वर्षों में ही इस नदी
का जलस्तर बेहद कम हो गया है और पानी भी पीने लायक नहीं रहा है।br>
दरअसल, खेती और निर्माण ने नदी के जलग्रहण क्षेत्र पर अतिक्रमण कर लिया है, जिससे भूजल स्रोत भी
अवरुद्ध हो गया है। 2005-06 तक, इसका पानी मानव निर्मित खाइयों की मदद से 500 मीटर तक और
पंपों से एक कि.मी (Km) से अधिक क्षेत्र की फसलों की सिंचाई करता था। आज, नदी के पास के खेतों को भी
सिंचाई के लिए डीजल पंपों का उपयोग करना पड़ता है!br>
जैसे ही नदी हरदोई जिले के दक्षिण में लखनऊ की ओर बहती है, बेरोकटोक अतिक्रमण, नदी के प्रवाह को
बेहद कम कर देते हैं! कुछ वर्षों पूर्व मानसून के दौरान नदी अपने सबसे अच्छे रूप में हुआ करती थी। लेकिन
अब ऐसा बिलकुल भी नहीं है। अतिक्रम और पर्याप्त बारिश न होने के कारण, जलस्तर कम हो गया है और
इससे निकले कई नाले भी बंद हो गए हैं।
हरदोई, उन्नाव और लखनऊ के बाद, साई रायबरेली, प्रतापगढ़ और जौनपुर से होकर 715 किमी की दूरी पर
लगभग 500 गांवों को कवर करते हुए अंत में जौनपुर में गोमती नदी में विलीन हो जाती है, और गोमती
अंततः गंगा में मिल जाती है।
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यूपी के छह जिलों से होकर गुजरने के दौरान, सईं अशोधित नगरपालिका और औद्योगिक कचरे से
उत्तरोत्तर बेहद प्रदूषित हो जाती है। सफाई और सरंक्षण के अभाव में नदी एक नाले में तब्दील होती जा रही
है। जीवन दायिनी मानी जाने वाली सई की धारा ठहर गई है और आज यह नदी, नाले के समान दिखाई
पड़ती है। पानी इतना सूख गया है की कई जगहों पर लोग साइकल और पैदल ही नदी को पार कर रहे हैं।
जिन स्थानों पर थोड़ा-बहुत पानी बचा हुआ है, वह भी प्रदूषण के कारण काला पड़ गया है, और काला पानी
शरीर पर लगने पर खुजली होने लगती है। नदी के सूखने के बाद पानी इतना जहरीला हो जाता है की ,ऐेसे
पानी को पीने से मवेशी भी परहेज करते हैं।
इसके किनारे बसे सैकडों गांवों में विभिन्न अनुष्ठान भी नदी किनारे ही होते हैं। जल संकट के कारण नदी
के किनारे जंगली जानवरों और पालतू पशुओं के लिए भी पेयजल का संकट खड़ा हो गया है। विशेषज्ञ मानते
हैं की, यदि अतिक्रमण हटा दिए जाते हैं और पारंपरिक भूजल स्रोत इसे रिचार्ज करना शुरू कर देते हैं, तो सईनदी, फिर से लाखों लोगों के लिए जीवन रेखा बन सकती हैं! दम तोड़ती हुई इस नदी को पुनर्जीवित करने
का अंतिम प्रयास 2008 में किया गया था, जब शारदा नहर का पानी लखनऊ के बाहरी इलाके बानी में सईं
में छोड़ा गया था
संदर्भ
https://bit.ly/3lxKvj1
https://bit.ly/39LOG8r
https://bit.ly/3GpN1Sh
चित्र संदर्भ
1 श्री बेल्हा जी मंदिर की पृष्ठभूमि में सई नदी को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
2. तुलसीदास की रामचरितमानस को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. जौनपुर सहित यूपी के 6 जिलों से गुज़रती पवित्र सई नदी, को दर्शाता एक चित्रण (youtube)
4. सई नदी के तट पर कपडे धोते हुए जौनपूरवासियों को दर्शाता एक चित्रण (Prarang)
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