हाल ही में उत्तराखंड में आई आपदा ने वैज्ञानिकों को चौंका दिया कि ठंड के महीने में भी हिमस्खलन कैसे हो गया। इसका कारण भले ही अभी तक साफ ना हुआ हो परंतु यह साफ तौर पर कहा जा सकता है कि यह सामान्य नहीं था। विश्व की कई बड़ी नदियाँ जिनमें प्रसिद्ध सिंधु नदी भी है, एक बहुत बड़ी दर से सिमट रही हैं, वह भी प्राकृतिक कारणों से नहीं बल्कि मानवीय कारणों से। जलवायु परिवर्तन ने कई बड़ी नदी प्रणालियों को प्रभावित किया है जिनमें माना जाता है कि हिमालय की नदियां भी अधिक तेज़ी के साथ सिकुड़ रही है।
सई (Sai) नदी या ‘आदि-गंगा’ (ancient Ganga) जैसा कि इसे रामचरितमानस में कहा गया है, गोमती (Gomti) की एक सहायक नदी है। जौनपुर से होकर गुजरने वाली यह नदी अपने उद्गम स्थल ‘भिजवान झील’ (Bhijwan lake) (परसई गांव, हरदोई) से निकलकर रायबरेली, प्रतापगढ़ और जौनपुर आदि जिलों से होकर बहती है। यह नदी लखनऊ एवं उन्नाव ज़िलों को विभाजित करती है।
नदी के किनारे बसे लोगों के लिए ही सई नदी का महत्व नहीं है, बल्कि उन कई हिंदुओं के लिए भी है जो इसके किनारे स्थित बाबा घुइसरनाथ (Baba Ghuisarnath) को नदी के जल में स्नान कर पूजा अर्पित करते हैं। सई हिन्दू पुराणों में और तुलसीदास जी द्वारा रचित रामचरितमानस में भी उल्लिखित है। परंतु आज यह नदी जीवित रहने के लिए संघर्ष कर रही है अपने उद्गम स्थल परसई गांव में भी अब यह सूख रही है जो बेहद चिंताजनक है। स्थानीय लोगों का कहना है कि एक समय में (2005-6) वे नदी का पानी पीने के लिए इस्तेमाल करते थे जो आज सिंचाई के लिए भी प्रयोग करने के लायक नहीं है। सई नदी कई शहरों को छूते हुए निकलती है जहां नदी के जलागम क्षेत्र पर कई जगह अतिक्रमण हो चुका है और इसके भूमिगत जल स्रोत अवरुद्ध हो गए हैं तथा औद्योगिक अपशिष्ट और घरेलू कूड़े ने इसकी स्थिति और खराब कर दी है। अतिक्रमण से शहरों के नाले जो नदी के पानी में इज़ाफा करते थे, भी अवरुद्ध हो गए और नदी का एक और जलस्रोत समाप्त हो गया।
भारतीय मौसम विभाग (Indian Meteorological Department) की 2013 की ‘भारत में राज्य स्तरीय जलवायु परिवर्तन की प्रवृत्तियां’ (State Level Climate Change Trends in India) नामक रिपोर्ट से यह पता चला है कि उत्तर प्रदेश में औसतन वार्षिक वर्षा में सबसे अधिक गिरावट आई है। कुछ वर्षों पहले वर्षा ऋतु में सई में काफी पानी आ जाता था परंतु अब कम वर्षा जल मिलने से अन्य नदियों की तरह सई पर भी बहुत बुरा प्रभाव पड़ा है और यह पहले से अधिक सूख गई है।
नदी पर अतिक्रमण, औद्योगिक अपशिष्ट एवं घरेलू कूड़े-कचरे के अलावा सई पर जलवायु परिवर्तन की भी मार पड़ रही है। यदि अब भी इसे बचाने की पहल नहीं की गई तो यह नदी भी समाप्त हो जाएगी और यह मृत्यु पूर्ण रूप से मानव-जन्य होगी।
जौनपुर शहर के लिए इस नदी का एक खास महत्व है। सिर्फ इस शहर के लिए ही नहीं बल्कि हर शहर के लिए नदियों का एक बड़ा महत्व होता है। दुनिया की हर बड़ी सभ्यता जैसे मिश्र की सभ्यता (Egyptian Civilization), सिंधु-घाटी सभ्यता (Indus Valley Civilization) आदि सभी नदियों को केंद्र में रखकर ही विकसित हुई हैं। आज भी कई पुराने शहर जैसे काशी (वाराणसी), प्रयागराज, दिल्ली और लखनऊ आदि नदियों के किनारे ही बसे हैं और उन पर निर्भर भी हैं। नदियों का जल कई प्राकृतिक क्रियाओं में मदद करता है। नदियों के जल से संचित उनके किनारों पर स्थित वन बाढ़ रोकने और शीतलन प्रभाव (cooling effect) उत्पन्न करने में मदद करते हैं। ये वन बाढ़ के बहाव को कम कर देते हैं जिससे भवनों और लोगों को कम क्षति पहुंचती है। इसके साथ ही वे काफी जल अवशोषित भी कर लेते हैं। वन पशु-पक्षियों को आवास प्रदान करके जैव-विविधता (biodiversity) लाने में भी मदद करते हैं।
नदियों का सिर्फ पर्यावरणीय महत्व ही नहीं है बल्कि वे सांस्कृतिक दृष्टि से भी बहुत महत्वपूर्ण हैं। भारत में तो इनका खास ही महत्व है। यहां नदियों को ‘माँ’ कहकर पुकारा जाता है और प्राचीन ग्रंथों जैसे, वेद पुराणों में इन्हें देवी का दर्जा दिया गया है। आज भी कई धार्मिक त्यौहार (खास कर हिंदू धर्म के) और मेले नदियों के किनारे ही होते हैं, जैसे- छठ पूजा, कुंभ का मेला आदि। हिंदू धर्म में तो किसी मृत व्यक्ति की अस्थियों का गंगा नदी में विसर्जन करने से स्वर्ग प्राप्त होने की मान्यता भी है। हालांकि ऐसा बहुत अधिक होने से गंगा के प्रदूषण में वृद्धि भी हुई है।
नदियाँ परिवहन के लिए भी प्रयोग होती हैं। इटली (Italy) के बेहद खूबसूरत शहर वेनिस (Venice) में तो नहरें यातायात का प्रमुख मार्ग है। भारत में भी कई नदियों पर अंतर्देशीय जलमार्ग विकसित किए गए हैं जिनमें कुछ प्रमुख नदियाँ हैं गंगा (The Ganges), ब्रह्मपुत्र (the Brahmaputra) और बराक (Barak) नदी। नदियाँ शहरों और उन में स्थित उद्योगों को भी जल उपलब्ध कराती हैं। यह भूमिगत जल के बाद मीठे पानी का दूसरा सबसे बड़ा स्रोत हैं। मीठे पानी के अन्य स्रोत जैसे ग्लेशियर और झीलें या तो आसानी से प्रयोग में नहीं आ सकते या वे पर्याप्त नहीं हैं। इसलिए नदियों का बचना अत्यधिक आवश्यक है।
सई छह ज़िलों की जीवन रेखा है परंतु इसे पुनर्जीवित करने का विचार किसी भी सरकार या संस्था को अब तक नहीं आया। विश्व के अन्य देशों की तरह यहां भी सई तथा अन्य नदियों के जल ग्रहण क्षेत्र से अतिक्रमण हटाया जाना चाहिए। इसमें जल लाने वाले अन्य चैनलों/मार्गों जैसे नाले आदि को फिर से खोलना चाहिए। अवरुद्ध स्रोतों को पुनर्जीवित करने के साथ ही औद्योगिक तथा घरेलू अपशिष्ट को भी निस्तारण का कोई दूसरा स्थान प्रदान कर नदी को साफ कराना चाहिए। गैर सरकारी संगठनों को सई के लिए भी सरकार पर दबाव बनाना चाहिए और स्थानीय लोगों को भी जागरूक होकर नदी के पुनर्जीवीकरण में सहायक बनना चाहिए। ऐसा करने से ही सई को पुनर्जीवित किया जा सकता है।
चित्र संदर्भ:
https://en.wikipedia.org/wiki/Sai_River_(Uttar_Pradesh)
https://www.hindustantimes.com/static/river-sutra/sai-river-uttar-pradesh/
https://theconversation.com/lessons-from-cities-that-plan-for-their-rivers-102670
चित्र संदर्भ:
मुख्य चित्र में उत्तर प्रदेश के मानचित्र पर सई नदी को दिखाया गया है। (प्रारंग)
दूसरी तस्वीर में ट्रेन से सई नदी को दिखाया गया है। (youtube)
तीसरी तस्वीर में जौनपुर स्थित सई नदी के तट को चित्रित किया गया है। (प्रारंग)
अंतिम तस्वीर में सई नदी के तट पर कपडे धोते हुए जौनपूरवासियों को चित्रित किया गया है। (प्रारंग)