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गन्ना‚ सैकरम (Saccharum) वंश के एंड्रोपोगोनी (Andropogoneae) जनजाति
में लंबी तथा बारहमासी घास की एक प्रजाति है‚ जिसका उपयोग चीनी उत्पादन के
लिए किया जाता है। इसका पौधा 2 से 6 मीटर लंबा होता है‚ जिसमें सुक्रोज
(sucrose) से भरपूर‚ संयुक्त‚ रेशेदार डंठल होते हैं। गन्ना पोएसी (Poaceae)
घास परिवार से संबंधित है‚ जो एक आर्थिक रूप से महत्वपूर्ण फूलदार पौधा
परिवार है‚ जिसमें मक्का‚ गेहूं‚ चावल‚ ज्वारी और कई चारा फसलें शामिल हैं।
इसे संयंत्र जैव ईंधन उत्पादन के लिए भी उगाया जाता है। यह भारत‚ दक्षिण पूर्व
एशिया (Southeast Asia) तथा न्यू गिनी (New Guinea) जैसे स्थानों के गर्म
समशीतोष्ण और उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों का मूल निवासी है। उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में
उगाया जाने वाला गन्ना‚ उत्पादन की मात्रा के हिसाब से दुनिया की सबसे बड़ी
फसल है‚ 2017 में 1.8 बिलियन टन का उत्पादन किया गया था‚ जिसमें ब्राजील
(Brazil) का कुल हिस्सा‚ विश्व का 40 प्रतिशत था। इसे ब्राजील में विशेष रूप से
संयंत्र जैव ईंधन उत्पादन के लिए उगाया जाता है‚ क्योंकि इसके बेंत का उपयोग
सीधे एथिल अल्कोहल (ethyl alcohol) के उत्पादन के लिए किया जा सकता है।
विश्व स्तर पर उत्पादित की जाने वाली चीनी का 79 प्रतिशत हिस्सा गन्ना है
तथा बाकी का अधिकांश मीठे चुकंदर से बनाया जाता है। उत्पादित चीनी का
लगभग 70 प्रतिशत‚ सैकरम ऑफ़िसिनारम (Saccharum officinarum) और
इसके संकरों से आता है। गन्ने से सुक्रोज विशेष प्रकार के मिल कारखानों में
निकाला जाता है। इसका सीधा उपयोग मिष्टान्न गृहों में भी किया जाता है‚ जहांपेय पदार्थों को मीठा करने के लिए‚ जाम (jams) में एक परिरक्षक के रूप में‚
केक के लिए सजावट के रूप में तथा खाद्य पदार्थों में कच्चे माल के रूप में
इसका इस्तेमाल किया जाता है। इसके अलावा इथेनॉल (ethanol) का उत्पादन
करने के लिए खमीर के रूप में भी इसका प्रयोग किया जाता है। चीनी के उपद्रव
से प्राप्त उत्पादों में फालेर्नम (falernum)‚ रम (rum) और कचका (cachaca)
शामिल हैं। कुछ क्षेत्रों में लोग गन्ने की बेंत का उपयोग छप्पर‚ परदा‚ चटाई और
कलम बनाने के लिए भी करते हैं। गन्ना एक नकदी फसल है‚ लेकिन इसका
उपयोग पशुओं के चारे के रूप में भी किया जाता है।
गन्ने की उत्पत्ति के लिए भारतीय उपमहाद्वीप और दक्षिण पूर्व एशिया को जाना
जाता है‚ इसके विभिन्न प्रजातियों की उत्पत्ति अलग-अलग स्थानों में हुई है‚
जिसमें एस. बरबेरी (S. barberi) की उत्पत्ति भारत में हुई तथा एस. एडुले (S.
edule) और एस. ऑफ़िसिनारम (S. officinarum) को न्यू गिनी से आने के लिए
जाना जाता है। गन्ने की मिठास निकालने के लिए लोग उसे कच्चा चबाते थे।
भारतीयों ने लगभग 350 ईस्वी में गुप्त राजवंश के दौरान‚ चीनी को क्रिस्टलीकृत
करने की खोज करी थी‚ हालांकि चौथी-तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व में भारतीय ग्रंथों
जैसे अर्थशास्त्र से साहित्यिक साक्ष्य के संकेत मिलते हैं कि भारत में पहले से ही
परिष्कृत चीनी का उत्पादन किया जा रहा था। गन्ना ऑस्ट्रोनेशियन
(Austronesian) और पापुआन (Papuan) लोगों की एक प्राचीन फसल थी‚ जो
मूल रूप से इसका इस्तेमाल पालतू सूअरों के भोजन के रूप में करते थे। इसे
1200 से 1000 ईसा पूर्व के आसपास ऑस्ट्रोनेशियन व्यापारियों द्वारा दक्षिणी
चीन और भारत में भी पेश किया गया था। भारतीय नाविक और चीनी के
उपभोक्ता विभिन्न व्यापार मार्गों से चीनी ले जाते थे। उत्तर भारत में हर्ष के
शासनकाल के दौरान‚ तांग (Tang) के सम्राट ताइज़ोंग (Taizong) ने चीनी में
अपनी रुचि को ज्ञात करने के बाद तांग चीन (Tang China) में भारतीय दूतों ने
गन्ने की खेती के तरीके सिखाए और चीन ने जल्द ही सातवीं शताब्दी में अपनी
पहली गन्ने की खेती की स्थापना की। चीनी दस्तावेज़ भारत में कम से कम दो
मिशनों की पुष्टि करते हैं‚ जिन्हें 647 ईस्वी में चीनी शोधन के लिए प्रौद्योगिकी
प्राप्त करने के लिए शुरू किया गया था। भारत‚ मध्य पूर्व और चीन में चीनी
खाना पकाने और मिठाइयों का मुख्य हिस्सा बन गई थी। छठी और चौथी शताब्दी
ईसा पूर्व के बीच भारत में फारसियों (Persians) और यूनानियों (Greeks) को
प्रसिद्ध “नरकट जो मधुमक्खियों के बिना शहद का उत्पादन करते हैं” (“reeds
that produce honey without bees”) का सामना करना पड़ा था‚ तब उन्होंने
गन्ने की खेती को अपनाया और फिर उसका प्रसार किया। व्यापारियों ने चीनी का
व्यापार करना शुरू किया‚ जिसे भारत से एक शानदार तथा महंगे मसाले के रूप
में जाना जाता था।
चीनी का उत्पादन पहली शताब्दी ईस्वी के कुछ समय बाद भारत में गन्ने के पौधों
से हुआ था। “चीनी” शब्द की व्युत्पत्ति संस्कृत शब्द “शर्करा” (“sarkara”) से हुई
है‚ जिसका अर्थ है “कैंडीड चीनी” (“candied sugar”) या मूल रूप से “कंकरी या
कंकड़”। क्रिस्टलीय चीनी का सबसे पहला ज्ञात उत्पादन उत्तरी भारत में शुरू हुआ
था। प्राचीन भारत का संस्कृत साहित्य‚ 1500-500 ईसा पूर्व के बीच लिखा गया
था‚ जो भारत के बंगाल क्षेत्र में गन्ने की खेती और चीनी के निर्माण के पहले
दस्तावेज की पुष्टि करता है। चीनी उत्पादन का सबसे पहला प्रमाण प्राचीन
संस्कृत और पाली ग्रंथों से मिलता है। मध्ययुगीन काल के अंत तक दुनिया भर में
चीनी को जाना जाने लगा था‚ जो बहुत महंगी और “बढ़िया मसाला” के रूप में
जानी जाती थी‚ लेकिन लगभग 1500 से‚ तकनीकी सुधार और नई दुनिया के
तकनीकी स्रोतों ने इसे सस्ती थोक वस्तु के रूप में बदलना शुरू कर दिया।
प्रारंभिक शोधन विधियों में गन्ने से रस निकालने के लिए गन्ने को पीसना पड़ता
था और फिर रस को उबालना या धूप में सुखाना पड़ता था‚ ताकि कंकड़ की तरह
दिखने वाले शर्करा वाले ठोस पदार्थ निकल सकें। ग्रेट ब्रिटेन (Great Britain) में
1792 में चीनी की कीमतें बढ़ गईं। 15 मार्च 1792 को ब्रिटिश (British) संसद में
महामहिम के मंत्रियों ने ब्रिटिश भारत में परिष्कृत चीनी के उत्पादन से संबंधित
एक रिपोर्ट प्रस्तुत की। बंगाल प्रेसीडेंसी (Bengal Presidency) के लेफ्टिनेंट जे.
पैटर्सन (J. Paterson) ने बताया कि भारत में वेस्ट इंडीज (West Indies) की
तुलना में बहुत अधिक सस्ते में परिष्कृत चीनी का उत्पादन कई बेहतर लाभों के
साथ किया जा सकता है। अधिकांश देशों में जहां गन्ने की खेती की जाती है‚ कई
खाद्य पदार्थ और लोकप्रिय व्यंजन भी सीधे इससे प्राप्त होते हैं। भारत प्राचीनकाल से ही गुड़ और चीनी के विभिन्न रूपों का निर्माण और उपयोग करता रहाहै। गुड़ एक ठोस खाद्य पदार्थ है‚ जिसे दक्षिण एशिया में गुर (gur)‚ गुड़ (gud)
या गुल (gul) के रूप में जाना जाता है‚ पारंपरिक रूप से गन्ने के रस को वाष्पित
करके गाढ़ा गाद बनाकर फिर इसे ठंडा करके बाल्टियों में ढालकर बनाया जाता है।
इसका उपयोग पारंपरिक व्यंजनों‚ मिठाइयों और मिठाइयों को पकाने में स्वीटनर
के रूप में भी किया जाता है।
संदर्भ:
https://bit.ly/3uiIQC1
https://bit.ly/3qqZe1V
https://bit.ly/36FQhee
चित्र संदर्भ
1. गन्ना किसानों को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
2. गन्ने का उत्पादन (2019) को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
3. गन्ने की खेती को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4. ब्राउन और व्हाइट शुगर क्रिस्टल को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
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