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इस पेचीदा संसार की सबसे बड़ी विडंबना यह है कि हम किसी भी परिस्थिति को उसकी वास्तविक अवस्था
में देखने के बजाय, वैसे देखते हैं, जैसे वह हमारे लिए उचित हो! उदाहरण के हम तौर पर रूस और यूक्रेन
विवाद को ले सकते हैं। जहाँ एक ओर रूस की दृष्टि से यह युद्ध जरूरी या व्यवहारिक है, वहीँ यूक्रेन के
नज़रिये से यह युद्ध उन पर हो रहा अत्याचार है।
केवल यह विवाद ही नहीं, बल्कि हमारे दैनिक जीवन में ऐसे अनेक अवसर आते हैं, जब हम परिस्थिति को
ठीक वैसे नहीं देख पाते हैं, जैसे कि वास्तव में वह हैं! लेकिन यदि हम वास्तव में एक पारदर्शी दृष्टिकोण को
अपनाना चाहते हैं, तो 2500 वर्ष पूर्व गौतम बुद्ध द्वारा बताई गई विपश्यना योग साधना की सहायता ले
सकते हैं।
विपश्यना या विपस्सना (पालि) , गौतम बुद्ध द्वारा प्रदत्त एक योग साधना हैं। जिसका अर्थ होता है विशेष
प्रकार से देखना (वि + पश्य + ना) । योग संसार में विपश्यना, भावातीत ध्यान और हठयोग, योग साधना के
तीन प्रचलित मार्ग हैं।
भगवान बुद्ध ने ध्यान की 'विपश्यना-साधना' द्वारा बुद्धत्व प्राप्त किया था। यह वास्तव में सत्य की
उपासना है, सत्य में जीने का अभ्यास है। विपश्यना इसी क्षण में यानी तत्काल में जीने की कला है।
विपश्यना, का अर्थ होता है किसी भी परिस्थिति या चीजों को वैसे ही देखना जैसे कि वे वास्तव में हैं।
यह भारत में ध्यान की सबसे प्राचीन तकनीकों में से एक है। लुप्त हो चुकी इस साधना को 2500 साल से
भी पहले गौतम बुद्ध द्वारा पुनः खोजा गया और उनके द्वारा इसे सार्वभौमिक परेशानियों के लिए एक
सार्वभौमिक उपचार, यानी आर्ट ऑफ लिविंग (art of Living) के रूप में सिखाया गया था। इस गैर-
सांप्रदायिक तकनीक का उद्देश्य, मानसिक अशुद्धियों का पूर्ण उन्मूलन और पूर्ण मुक्ति के परिणामी
उच्चतम सुख को प्राप्त करना है। विपश्यना आत्म-निरीक्षण के माध्यम से आत्म-परिवर्तन का एक तरीका
है। यह मन और शरीर के बीच गहरे अंतर्सम्बंध स्थापित करता है। यह अवलोकन-आधारित, मन और
शरीर की आत्म-खोज यात्रा है, जो मानसिक अशुद्धता को मिटा देती है, जिसके परिणामस्वरूप प्रेम और
करुणा से भरा एक संतुलित मन प्राप्त होता है।
इसके अभ्यास से किसी के विचारों, भावनाओं, निर्णयों और संवेदनाओं को संचालित करने वाले वैज्ञानिक
नियम भी स्पष्ट हो जाते हैं। भूत (अतीत) की चिंताएँ और भविष्य की आशंकाओं में जीने की जगह भगवान
बुद्ध ने अपने शिष्यों को आज (वर्तमान) के बारे में सोचने के लिए कहा।
विपश्यना सम्यक् ज्ञान है, अर्थात जो जैसा है, उसे ठीक वैसा ही देख-समझकर जो आचरण होगा, वही सही
और कल्याणकारी सम्यक आचरण होगा। विपश्यना जीवन की सच्चाई से भागने की शिक्षा नहीं देता है,
बल्कि यह जीवन की सच्चाई को उसके वास्तविक रूप में स्वीकारने की प्रेरणा देता है।
बुद्ध के समय से, शिक्षकों की एक अटूट शृंखला द्वारा, विपश्यना को आज तक पीढ़ी दर पीढ़ी आगे बढ़ाया
गया है। वर्तमान में विपश्यना के सबसे बड़े ज्ञाताओं में बर्मा (म्यांमार) में जन्में भारतीय वंश के
सत्यनारायण गोयनका अति लोकप्रिय नाम है। म्यांमार में रहते सत्यनारायण गोयनका को अपने शिक्षक
सयागी ऊ बा खिन (Sayagy U Ba Khin) से विपश्यना सीखने का सौभाग्य प्राप्त हुआ, जो उस समय एक
उच्च सरकारी अधिकारी थे। चौदह वर्षों तक अपने शिक्षक से प्रशिक्षण प्राप्त करने के बाद, श्री गोयनका
भारत में बस गए और 1969 में विपश्यना सिखाने लगे। गोयनका का पालन पोषण रूढ़िवादी हिन्दू
सनातनी घर में हुआ। उनके माता-पिता मारवाड़ी जातीयता समूह के भारतीय लोग थे। उनके द्वारा ही
विपश्यना को इसके मूल स्थान भारत पुनः लाया जा सका।
तब से उन्होंने पूर्व से लेकर पश्चिम तक सभी जातियों और सभी धर्मों के हजारों लोगों को पढ़ाया है। 1982
में उन्होंने विपश्यना पाठ्यक्रमों की बढ़ती मांग को पूरा करने में मदद करने के लिए सहायक शिक्षकों की
नियुक्ति शुरू की और 1976 में इगतपुरी में, नासिक के पास एक ध्यान केन्द्र की स्थापना की।
विपश्यना मनुष्य के दुखों के निवारण करने की एक प्रक्रिया है। इस शिक्षा के द्वारा मनुष्य स्वयं ही अपने
दुखों पर नियंत्रण कर सकता है। हालांकि दुर्भाग्य से यह ज्ञान भारत से लगभग 2000 साल पहले
राजनीतिक परिवर्तन के कारण विलुप्त हो गया था। 2500 साल पहले के भारत में बुद्ध द्वारा पढ़ाए जाने
के दौरान, यह बौद्ध धर्म या किसी अन्य धर्म तक ही सीमित नहीं है और मौजूदा धार्मिक मान्यताओं या
विश्वासों के अभाव के बिना किसी के द्वारा भी इसका अभ्यास किया जा सकता है।
विपश्यना तकनीक को दस-दिवसीय आवासीय पाठ्यक्रमों में पढ़ाया जाता है, जिसके दौरान प्रतिभागियों
द्वारा एक निर्धारित अनुशासन संहिता का पालन किया जाता हैं। वह इस विधि की मूल बातें सीखते हैं और
इसके लाभकारी परिणामों का अनुभव करने के लिए पर्याप्त अभ्यास करते हैं।
विपश्यना प्रशिक्षण के तीन चरण होते हैं:
पहला कदम, पाठ्यक्रम की अवधि के दौरान, हत्या, चोरी, यौन गतिविधि, झूठ बोलना और नशीले पदार्थों से
दूर रहना है। नैतिक आचरण की यह सरल संहिता मन को शांत करने का काम करती है।
दूसरा कदम नासिका (नाक) छिद्रों में प्रवेश करने और छोड़ने वाली श्वास के निरंतर बदलते प्रवाह की
प्राकृतिक वास्तविकता पर अपना ध्यान केंद्रित करना सीखकर मन पर कुछ प्रभुत्व विकसित करना है।
अंत में, अंतिम पूरे दिन प्रतिभागी सभी के प्रति प्रेमपूर्ण दया या सद्भावना का ध्यान सीखते हैं, जिसमें
पाठ्यक्रम के दौरान विकसित हुई पवित्रता सभी प्राणियों के साथ साझा की जाती है।
संपूर्ण अभ्यास वास्तव में एक मानसिक प्रशिक्षण है। जिस तरह हम अपने शारीरिक स्वास्थ्य को बेहतर
बनाने के लिए शारीरिक व्यायाम का उपयोग करते हैं, उसी तरह स्वस्थ दिमाग को विकसित करने के लिए
विपश्यना का उपयोग किया जा सकता है। यह व्यावसायिक रूप से नहीं पढ़ाया जाता है, बल्कि सभी खर्चे
उन लोगों के दान से पूरे होते हैं, जिन्होंने एक कोर्स पूरा कर लिया है और विपश्यना के लाभों का अनुभव
किया है, तथा जो दूसरों को भी इसका लाभ उठाने का अवसर देना चाहते हैं।
यदि आप भी जौनपुर में रहकर इस लाभकारी अभ्यास को सीखना चाहते हैं तो, जौनपुर में विपश्यना केंद्रों
का पता निम्नवत दिया गया है
धम्म कल्याण विपश्यना ध्यान केंद्र
श्रेणी: ध्यान केंद्र
वेबसाइट: http://www.dhammakalyana.org/
पता: चकेरी वार्ड, चौदानपुर, उत्तर प्रदेश 208008
संदर्भ
https://bit.ly/3JwNFOB
https://bit.ly/3CKA4k3
https://www.dhamma.org/en-US/about/vipassana
https://www.dhammakalyana.org/
https://en.wikipedia.org/wiki/S._N._Goenka
चित्र सन्दर्भ
1. विपस्सना अभ्यास को दर्शाता चित्रण (facebook)
2. वैश्विक विपश्यना शिवालय में बुद्ध को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. कल्याणमित्र सत्यनारायण गोयनका जिन्होंने 2500 वर्षों के बाद विपश्यना ध्यान तकनीक को भारत में लाया को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
4. ग्लोबल विपश्यना पगोडा गेट को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
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