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शहरीकरण‚ कृषि परिवर्तनकाल का एक मुख्य संचालक है‚ जो आधिक्य या
विस्तारीकरण की प्रवृत्तियों को आकार देता है। बेंगलुरु का भारतीय मेगासिटी‚
शहरीकरण को डेयरी उत्पादों की मांग के साथ जोड़ता है‚ जिसकी आपूर्ति शहरी
और पेरी-शहरी डेयरी उत्पादकों द्वारा की जाती है। राष्ट्रीय डेयरी अनुसंधान
संस्थान (National Dairy Research Institute)‚ करनाल में “डेयरींग इन इंडिया
बाय 2030: मेक इन इंडिया” (“Dairying in India by 2030: Make in India”)
विषय पर तीन दिन के सम्मेलन का उद्घाटन किया गया‚ जिसमें राष्ट्रीय डेयरी
विकास बोर्ड (National Dairy Development Board) के अध्यक्ष टी नंद कुमार
ने बताया कि भारत की अर्थव्यवस्था 7-8% की दर से बढ़ रही है‚ जिसमें मुख्य
प्रेरक शक्ति शहरीकरण है‚ जो प्रसंस्कृत दूध की मांग को पूरा करेगा और डेयरीक्षेत्र के विकास को सुनिश्चित करेगा। कुमार ने यह भी बताया कि एनडीडीबी
(NDDB) द्वारा किए गए एक सर्वेक्षण में 15 करोड़ ग्रामीण महिलाओं में से एक
करोड़ महिलाओं ने पशुपालन को व्यवसाय के रूप में अपनाने की बात कही। उस
सर्वेक्षण में यह भी साबित हुआ कि‚ डेयरी पशु वाले ग्रामीण परिवारों में गैर-डेयरी
परिवारों की तुलना में 3 गुना बेहतर पोषण होता है। देश में डेयरी क्षेत्र का विकास
कुपोषण को कम करने में मदद कर सकता है‚ खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में।
ग्रामीण
क्षेत्रों में डेयरी उत्पादकों के लिए विपणन की एकमात्र प्रणाली‚ ग्राम डेयरी
सहकारिता है‚ जबकि शहरी इलाकों में दूध ज्यादातर प्रत्यक्ष विपणन या बिचौलिए
के माध्यम से बेचा जाता है। तेजी से बढ़ते शहरीकरण के बावजूद भी बेंगलुरु का
डेयरी क्षेत्र अभी भी छोटे पैमाने के पारिवारिक डेयरी फार्मों पर निर्भर करता है।
संसाधन जैसे भूमि और श्रम की उपलब्धता में बदलाव‚ बाजार-उन्मुख आधिक्य के
संभावित संचालक होने के साथ शहरीकरण की परिस्थिति में डेयरी उत्पादन का
विस्तार भी हैं।
एक समय में जौनपुर का भी एक मिल्क यूनियन हुआ करता था। तब लोग सीधे
यूनियन से ही दूध‚ दही‚ घी‚ पनीर आदि खरीदा करते थे। लेकिन 2016 में
जौनपुर और गाजीपुर यूनियन टूट गया और वाराणसी मिल्क यूनियन में विलीन
हो गया और जौनपुर मिल्क यूनियन केवल एक संग्रह केंद्र बनकर रह गया है‚
जहां जिले का सारा दूध जमा होता है। उत्तर प्रदेश में पहले से ही कई डेयरी और
आइसक्रीम बनाने वाली कंपनियां हैं जो दूध खरीदती हैं। लेकिन “ऑपरेशन फ्लड”
(“Operation Flood”) के तहत स्थापित डेयरियों में से एक ‘बनास डेयरी’
(‘Banas Dairy’) वाराणसी में अपनी नई यूनिट खोलने की योजना बना रही है।
बनास डेयरी ने कहा है कि वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लोकसभा क्षेत्र वाराणसी में
अपनी तीसरी इकाई खोलेगी। बनास डेयरी की वाराणसी योजना में दुग्ध प्रसंस्करण
क्षमता को शुरू में प्रति दिन पांच लाख लीटर तथा बाद में बढ़ाकर 10 लाख लीटर
प्रतिदिन करने की प्रक्रिया शामिल है‚ जिसे 500 करोड़ रुपये की लागत के साथ
उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा प्रदान की गई भूमि पर स्थापित किया जाएगा। इस नई
यूनिट में दूध के अलावा कुकीज‚ आइसक्रीम‚ दही‚ छाछ और पनीर भी बनाई
जाएगी। बनास डेयरी के अधिकारियों ने बताया कि गुजरात में ‘गिर’ (Gir) गायों
की एक स्वदेशी नस्ल है‚ जो प्रतिदिन 20 से 25 लीटर तक दूध दे सकती है। यह
उत्तर प्रदेश में गायों की स्थानीय नस्ल ‘गंगातीरी’ (Gangatiri) से अधिक है‚ जो
प्रतिदिन 5 से 7 लीटर तक दूध देती हैं। बनास डेयरी ने अगस्त 2021 में
वाराणसी के 100 परिवारों को ‘गिर’ गाय दी थी‚ ये वे परिवार थे जिन्होंने बनास
डेयरी के साथ पशु-पालन कार्यशाला में भाग लिया था। इन परिवारों के किसानों को
गोपालन और डेयरी फार्म प्रबंधन प्रशिक्षण के साथ पशु पालन के लिए सतत
मार्गदर्शन भी दिया गया। वर्तमान समय में बनास डेयरी वाराणसी और आसपास
के क्षेत्रों से लगभग 30‚000 लीटर दूध एकत्र कर रही है‚ जिसमें ‘गिर’ गायों और
देशी ‘गंगातिरी’ गायों का दूध भी शामिल है।
बनास डेयरी उत्तर प्रदेश सहित अन्य राज्यों में भी तेजी से विस्तार कर रही है।
इसकी एक इकाई है जो फरीदाबाद में प्रतिदिन 13.5 लाख लीटर दूध का
प्रसंस्करण कर रही है। बनास डेयरी प्रतिदिन औसतन 68 लाख लीटर दूध एकत्र
करती है‚ जो एशिया में सबसे अधिक है और यह अमूल की कुल दूध प्राप्ति में
एक तिहाई दूध का योगदान भी रखती है। यह अमूल ब्रांड के तहत शहद और
आलू के व्यंजनों का उत्पादन भी करती है। बनास डेयरी के अध्यक्ष शंकर भाई
चौधरी बताते हैं कि इस परियोजना से 750 लोगों के लिए प्रत्यक्ष रोजगार‚ 2350
लोगों को आनुसांगिक कार्य तथा लगभग 10 लाख परिवारों को रोजगार मिलने की
सम्भावना है। इससे वाराणसी‚ जौनपुर‚ मछलीशहर‚ चंदौली‚ भदोही‚ गाजीपुर‚
मिर्जापुर और आजमगढ़ के पूर्वांचल क्षेत्र के एक हजार गांवों के स्थानीय किसानों
को भी लाभ प्राप्त होगा तथा ग्राहकों को अच्छी कीमत पर उच्च गुणवत्ता वाले
उत्पाद प्राप्त होंगे। अप्रैल 2021 में उत्तर प्रदेश में दुग्ध सहकारी समितियों द्वारा
भुगतान की गई दूध खरीद मूल्य 43 रुपये प्रति किलोग्राम थी‚ जैसा कि लोकसभा
में पेश किया गया था‚ जिसमें पिछले साल की तुलना में 13.15 प्रतिशत की
वृद्धि हुई है। यह इसी अवधि के दौरान गुजरात में किए गए भुगतान से अधिक
जो 40.3 रुपये प्रति किलोग्राम था। केरल दूध उत्पादकों को 46.91 रुपये
पारिश्रमिक देता है। चौधरी बताते हैं कि पिछले साल उत्तर प्रदेश में दूध उत्पादकों
के बैंक खातों में 800 करोड़ रुपये जमा किए गए थे और इस साल किसानों का
राजस्व 1000 करोड़ रुपये से अधिक होने की उम्मीद है। उन्होंने कहा कि उत्तर
प्रदेश में बनास डेयरी से जुड़े दूध उत्पादक गुजरात की तुलना में छोटे हैं और
प्रतिदिन 2-5 लीटर दूध जमा करते हैं‚ इसलिए उत्तर प्रदेश के उन आठ जिलों में
जहां से दूध खरीदा जाता है ऐसे दुग्ध उत्पादकों की संख्या अधिक है‚ जो लाखों में
है। चौधरी यह भी बताते हैं कि जब हमने पहली बार उत्तर प्रदेश में प्रवेश किया
था‚ तब दूध उत्पादकों को प्रति लीटर दूध के लिए मात्र 12-13 रुपये मिलते थे‚
हमने 28-30 रुपये प्रति लीटर का भुगतान करना शुरू किया तो प्रतियोगियों को
भी कीमतें बढ़ानी पड़ीं।
संदर्भ:
https://bit.ly/3oQnPN5
https://bit.ly/33rbozI
https://bit.ly/3gSsoSM
https://bit.ly/3Jzq0MN
चित्र संदर्भ
1. दुग्ध उत्पादन को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
2. राष्ट्रीय डेयरी अनुसंधान संस्थान (National Dairy Research Institute)‚के लोगो को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
3. एक दूध संग्रह केंद्र को दर्शाता चित्रण (flickr)
4. सुबह का दूध दुग्ध कृषकों से लेते हुए एक दुग्ध संग्राहक को दर्शाता चित्रण (flickr)
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