सनातन धर्म में "गुरु" अर्थात शिक्षक को ईश्वर के सामान अथवा बढ़कर महत्ता दी गई है। एक
प्रसिद्ध दोहा है, जिसके अनुसार
"गुरू ब्रह्मा गुरू विष्णु, गुरु देवो महेश्वरा
गुरु साक्षात परब्रह्म, तस्मै श्री गुरुवे नमः"
इस श्लोक के माध्यम संकेतात्मक रूप से यह बताने की कोशिश की जा रही है की, मानव जीवन में
शिक्षक और शिक्षा अति महत्वपूर्ण हैं। शिक्षक भगवान के सामान है, और ज्ञान की रौशनी के बिना
मनुष्य का जीवन अंधकारमय है। हालांकि आमतौर पर "शिक्षक" शब्द सुनने से किसी भी व्यक्ति
के मष्तिष्क में विद्यालय के बुद्धिमान शिक्षकों का चित्र उभरकर आता है। किंतु वास्तव में
शिक्षक और शिक्षा का दायरा अत्यंत विस्तृत है। जिस व्यक्ति के भीतर सीखने की भूख होती है,
उसके लिए पूरे संसार के सभी तत्व शिक्षक के सामान होते है। उदाहरण के तौर पर आकार में बेहद
छोटे प्रतीत होने वाले पशु-पक्षी भी हमें कुछ ऐसी सीख दे सकते हैं, जो आमतौर पर किसी मनुष्य
रुपी शिक्षक के लिए देना कठिन हो सकता है।
मनुष्य के समान ही जानवरों और पक्षियों की भी अपनी शिक्षण संस्कृति होती है। अधिकांश
जानवर अपने बच्चों एवं स्वयं से छोटे जानवरों को कई कलाओं में प्रशिक्षित करते हैं। जानवर
अपने बच्चों को सिखाते हैं की, किस प्रकार अनुशासन में रहना और आज्ञा पालन करना, उनके
लिए बेहद आवश्यक है?
स्वयं से अधिक अनुभवी जानवरों से मिली शिक्षा युवाओं के जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती
है। वास्तव में यह शिक्षा उनकी उत्तरजीविता अर्थात जिंदा रहने के लिए बेहद आवश्यक होती है।
यदि किसी भी जानवर को जीवित रहना है तो, उसे यह जरूर सिखाया जाना चाहिए की, भोजन
अथवा शिकार कैसे हासिल किया जा सकता है? उन्हें खतरे का आभास करना आना चाहिए।
हालांकि उन्हें ईश्वर द्वारा सीमित मात्रा में बुद्धि प्रदान की जाती है, किंतु जानवर उस बुद्धि का
उत्कृष्ट रूप से प्रयोग करते हैं। पशु माता-पिता अपने बच्चों को सिखाने के लिए उन्हें, समझाते
अथवा कारण नहीं बताते हैं, की वह काम उन्हें कैसे और क्यों करना है? बल्कि इसके बजाय अपने
बच्चों को वह काम, स्वयं उस चुनौती को पूरा करके मिसाल के तौर पर समझाते हैं। युवा जानवरों
को शिक्षित करने में उन्हें कुछ मात्रा में बल प्रयोग करना हो अथवा अपने बच्चों को थोड़ा कष्ट भी
देना हो तो वह पीछे नहीं हटते।
माता-पिता के रूप में जानवर अपने बच्चों को प्रशिक्षण देने में बहुत समय लगाते हैं। उदारहण के
तौर पर एक मादा भालू को अपने शावकों को सिखाने में दो साल तक का समय लग सकता है। वह
उन्हें दिखाती है कि उन्हें भोजन कहाँ मिल सकता है? और उन्हें मांदों की खुदाई करना सिखाती है।
वह उन्हें उस जंगली शहद की तीखी मिठास से भी परिचित कराती है जिसका स्वाद सभी भालुओं
को जीवन पर्यन्त याद रहता है, और उनका पसंदीदा भी होता है।
युवा रैकून (Young raccoons) को पूरी तरह आत्मनिर्भर होने के लिए काफी प्रशिक्षण की
आवश्यकता पड़ती हैं। उनकी माँ उन्हें खेल-खेल में सिखाती है। उदाहरण स्वरूप वह अपना काफी
समय छोटे जानवरों जैसे मेंढकों और क्रेफ़िश को पलटने, फ़्लिप में करने बिताती हैं। वह उन्हें
आत्मरक्षा, शिकार और मछली पकड़ने का भी हुनर देती है। अतः समय के साथ उसके बच्चे चूहों
को पकड़ना, मेंढकों को पकड़ना और कीट लार्वा का पता लगाना सीख जाते हैं। उनकी माँ उन्हें यह
भी बताती है कि वे जंगली अंगूर और सबसे अच्छा मकई कहाँ प्राप्त कर सकते हैं।
कुछ ऐसे भी जानवर हैं, जो हमारे लिए बेहद आसान माने जाने वाले हुनर को सीखने में भी काफी
समय लेते हैं। उदाहरण के तौर पर मादा ऊदबिलाव अपने बच्चों को पानी से प्रेम करना सिखाती है।
वह उन्हें तैरना सिखाती है। हालांकि शुरुआत में उसके बच्चे इस काम को करने से डरते हैं, और
पानी में नहीं आते। ऐसे में उनकी माँ उन्हें गर्दन से पकड़कर पानी में खींचती और छोड़ देती है।
हालांकि पहले उसके बच्चे थोड़ा घबराते हैं, किन्तु वह धीरे-धीरे तैरना सीख ही जाते हैं।
एक युवा उड़ने वाली गिलहरी (flying squirrel) माँ, अपने बच्चे को पेड़ से छलांग मारने की कला
सिखाने के लिए पेड़ से धक्का दे-देती है। चूंकि अब बच्चे के सामने अपने छोटे पैरों को फ़ैलाने के
सिवा कोई अन्य विकल्प नहीं होता। दरअसल पैरों को फैलाने से उसके आगे और पीछे के पैरों को
जोड़ने वाली हर तरफ पतली झिल्ली एक प्रकार का पैराशूट बनाती है। जिससे वह सुरक्षित रूप से
जमीन पर फिसल सकता है। हालांकि उसकी माँ उसे सिखाने से पूर्व बच्चे के परिपक्व होने का
इंतज़ार जरूर करती है।
युवा पक्षि उड़ना सीखने एवं अपनी उड़ने वाली मांसपेशियों को विकसित करने के लिए व्यायाम
करना शुरू कर देते हैं। वे अपनी गर्दनें झुकाते हैं, अपने पंख फड़फड़ाते हैं, मुड़ते हैं और चक्कर
लगाते हैं। उनकी माता चिड़िया उन्हें अपना घोंसला छोड़ने और उड़ने की कोशिश करने के लिए
राजी करती है। ऐसा करने के लिए वह कुछ फुट दूर होकर, उन्हें बाहर निकलने और अपने पंखों को
आजमाने के लिए प्रोत्साहित करती है, जिसके लिए वह उन्हें भोजन के स्वादिष्ट टुकड़े देती है।
भोजन के लिए, समुद्र के किनारे रहने वाले युवा जीवों को मछली पकड़ना सीखना होगा। सील,
समुद्री शेर और ध्रुवीय भालू को पानी में गोता सीखना पड़ता है, जिससे वह मछली पकड़ सकें। इस
कला को सीखने के लिए उनके माता पिता उनका साथ देते हैं, अतः इन जानवरों को मछली पकड़ने
में काफी दक्ष होने में ज्यादा समय नहीं लगता है।
कुछ समय पहले तक, शिक्षण एक ऐसा कौशल था, जिसे विशिष्ट रूप से मानवीय माना जाता था।
अब, जैसे-जैसे जानवरों में संस्कृति के संचरण अनुसंधानों में वृद्धि हुई है, पशु समूहों के बीच
शिक्षण की भूमिका स्पष्ट हो गई है। शिक्षण केवल स्तनधारियों तक ही सीमित नहीं है। उदाहरण
के लिए, कई कीड़े भोजन प्राप्त करने के लिए विभिन्न प्रकार के शिक्षण का प्रदर्शन करते हुए देखे
गए हैं। उदाहरण के लिए, चींटियां "टेंडेम रनिंग tandem running()" नामक एक प्रक्रिया के
माध्यम से खाद्य स्रोतों के लिए एक-दूसरे का मार्गदर्शन करती हैं, जिसमें एक चींटी अपने साथी
चींटी को भोजन के स्रोत तक ले जाती है।
शिक्षण यकीनन सामाजिक तंत्र है, जो व्यक्तियों और पीढ़ियों के बीच सूचना हस्तांतरण की
उच्चतम निष्ठा प्रदान करता है, और एक प्रत्यक्ष मार्ग प्रदान करता है। जिसके माध्यम से स्थानीय
परंपराओं को पारित और प्रसारित किया जा सकता है। मनुष्य सहित अधिकांश जीव जैसे भालू,
मुर्गी या सुअर आदि एक माँ के रूप में अपने बच्चों को भोजन प्राप्त करने और दुनिया में जीवित
रहने के उन्हें विभिन्न प्रकार से सिखाती हैं। पहले चरण से लेकर जीवित रहने के कौशल तक, पशु
माताएं अपने बच्चों को मानव माताओं के समान ही पाठ पढ़ाती हैं। सभी माताएँ अपने बच्चों को
स्वतंत्र, वयस्क बनना सिखाती हैं, ताकि वह स्वयं अपनी रक्षा और पालन पोषण कर सकें।
कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के थॉर्नटन और मैकऑलिफ (Thornton and McAuliffe of the
University of Cambridge) द्वारा जर्नल, साइंस - टीचिंग इन वाइल्ड मीरकैट्स (Teaching in
Wild Meerkats) में एक अध्ययन से पता चलता है, कि मेरकट (meerkat) माताएं, मनुष्यों की
तरह, अपने बच्चों को सिखाती हैं कि कैसे और क्या खाना चाहिए?।
मांसाहारियों में शिकार करना सीखना सबसे अहम् होता है और यह क्रमवार होता है: उदाहरण के
तौर पर शिकारी जानवरों में सबसे पहले माँ अपने बच्चे को मृत शिकार लाती है। इसके बाद, वह
जीवित शिकार लाती है जिसे वह उसे अपने बच्चे के सामने ही मार देती है, और फिर उन्हें खाने की
अनुमति देती है। अब तीसरे चरण में वह केवल जीवित शिकार को भगाती और उसे थका देती हैं,
यहां पर बच्चे पहली बार शिकार की हत्या करना सीखते हैं। अफ्रीका के मीरकैट्स (Meerkats )
अपने पिल्लों को सिखाती है कि खतरनाक बिच्छुओं से कैसे सावधान रहना है, जो उनके शिकार के
मुख्य स्रोतों में से एक है। मीरकैट्स (Meerkats ) हुनरमंद शिकारी होते हैं। वे जहरीले कनखजूरे
और बिच्छू जैसे खतरनाक शिकार को खाने के लिए तरह-तरह के हथकंडे अपनाते हैं।
शिक्षक के तौर पर पशु भी हमें अपने बारे में बहुत कुछ सिखा सकते हैं—चिहुआहुआ (Chihuahua,)
को ही लें, जिसका धैर्य हमें विकट समय में भी अपने निर्णय पर बने रहना सिखाता है। अतः यह
स्पष्ट है की धरती पर शिक्षकों में मानवों का एकाधिकार नहीं है!
संदर्भ
https://en.wikipedia.org/wiki/Animal_culture#Teaching
http://www.bihartimes.in/maneka/animalmoms.html
https://wol.jw.org/en/wol/d/r1/lp-e/101973048
https://on.natgeo.com/3ou6U1S
https://bit.ly/3wHVP0E
चित्र संदर्भ
1. अपने शावकों को शिकार की शिक्षा देती मादा चीता का एक चित्रण (youtube)
2. अपने बच्चे को दुलार करती माता रैकून को दर्शाता एक चित्रण (NationalGeographic)
3. उड़ती गिलहरी, को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4. अपने शावकों के सामने शिकार करते शेर के झुण्ड का एक चित्रण (youtube)
5. मेरकट (meerkat) माताओं को दर्शाता एक चित्रण (unsplash )
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