दु:ख मनुष्यों में पायी जाने वाली एक सामान्य भावना है जिसका प्रकटीकरण मनुष्य तब करता है जब वह अत्यधिक भावनात्मक और शारीरिक पीड़ा में होता है। क्रोध से लेकर त्याग, दोषिता, उदासी, निराशा आदि में दु:ख का अनुभव होता है। मानव जीवन में हमेशा ऐसे क्षण आते रहते हैं जब मनुष्य इस भावना से ग्रसित होता है तथा इस व्यवहार का प्रदर्शन करता है। मनुष्य को सभी जीवों में श्रेष्ठ माना जाता है और शायद यह भी एक मुख्य कारण है जोकि उसे अन्य जीवों से अलग समझा जाता है, क्योंकि उसमें विभिन्न प्रकार की भावनाएं विद्यमान है, जिनमें से दुख भी एक है। किंतु क्या आप जानते हैं कि केवल मनुष्य ही एक ऐसा प्राणी नहीं है जो दुख का अनुभव करता है। बल्कि पृथ्वी पर उसके आस-पास रहने वाले ऐसे कई जंतु हैं, जो दुख को महसूस करते हैं, यहां तक कि इसका प्रदर्शन भी करते हैं।
इस भावना को विशेषकर उस जंतु समूह में तब देखा जा सकता है जब उनमें से किसी एक की मृत्यु हो जाती है और शोक के रूप में वे उस दुःख का प्रकटीकरण करते हैं। इस तरह का सबसे आश्चर्यजनक व्यवहार हाथियों में देखा जा सकता है। मृत्यु के सम्बंध में उनके कुछ अपने संस्कार या पद्धतियां होती हैं। जब वे किसी मृत हाथी की हड्डियों या अस्थियों के सम्पर्क में आते हैं, तो वे यह पहचानने में सक्षम प्रतीत होते हैं कि हड्डियाँ अन्य हाथी की हैं। वे बहुत ही सूक्ष्म और शांत तरीके से हड्डियों की जांच में बहुत समय व्यतीत करते हैं। हाथी अक्सर नियमित रूप से हाथी की कब्र-स्थल का दौरा करते हैं। वे कुछ समय के लिए भूखे और प्यासे अपने झुंड के मृत हाथी के पास रहते हैं। वे पत्तियों, मिट्टी, और शाखाओं के द्वारा मृत हाथी को आवरित करते हैं।
ऐसा माना जाता है कि हाथी, मनुष्यों और कुत्तों जैसे अन्य जानवरों के मृत शरीर के साथ भी ऐसा ही करेंगे। इन सभी बातों से यह प्रमाण मिलता है कि हाथी अत्यंत आनुभविक प्राणी हैं। जानवरों को उन लोगों की मृत्यु की परवाह होती है जिन्हें वे प्यार करते हैं, और हाथी इसका सबसे अच्छा उदाहरण है। जब भी हाथियों के समूह की कोई वृद्ध मादा हाथी मर जाती है तो वे शोक प्रकट करने के लिए मृत शरीर को देखते, सूंघते, छूते और बार-बार उसके पास से गुजरते हैं। शोधकर्ताओं की एक रिपोर्ट के अनुसार हाथियों में खुद को शीशे में पहचानने की क्षमता भी होती है। मनुष्य के अलावा बन्दर, डॉल्फ़िन, हाथी आदि में इस तरह की आत्म-जागरूकता होती है।
हाथी के अलावा चिंपैंजी (Chimpanzee), मैगपी (Magpie), गाय आदि ऐसे जीव हैं जो अपने जैसे जीवों की मृत्यु के प्रति शोक प्रकट करते हैं। एक मामले में, देखा गया कि चिंपैंजी के एक छोटे समूह में से जब एक बुजुर्ग मादा की मृत्यु हुई तो एक चिंपैंजी ने मृत शरीर को जीवन के संकेतों के लिए जांचा और उसके बालों से घास के तिनके साफ़ किये। मादा चिंपैंजी की मृत्यु के कई दिनों बाद भी वे उस स्थान पर नहीं गए जहां उसकी मृत्यु हुई थी। मैगपी को भी अपने मृत सम्बन्धियों को घास की टहनियों के नीचे दफनाते देखा गया है। इसी प्रकार से अमेरिका के कुछ हिस्सों में पाए जाने वाले जंगली सुअर जैसे जानवर की एक प्रजाति, को भी अपने समूह के मृत सदस्य के प्रति शोक करते हुए देखा गया है। वे शव को बार-बार देखते हैं, उसे सहलाते हैं तथा उसके बगल में सो जाते हैं। निहितार्थ यह है कि जानवर भी अपने समूह के सदस्य की मृत्यु के बाद शोक करते हैं और शवों के प्रति कुछ संवेदनशीलता महसूस करते हैं। ये सभी साक्ष्य यह बताते हैं की जानवरों में भी सुख और दुःख की संवेदनाएँ होती है। हाथियों और इंसानों के बीच काफी समानताएं होती हैं, और यही कारण है कि हाथी उसी तरह की कई भावनाओं का अनुभव करते हैं जैसी इंसानों में होती हैं। हाथी उदासी, खुशी, प्रेम, ईर्ष्या, रोष, शोक, करुणा आदि भावनाएँ प्रकट करने में सक्षम हैं।
सन्दर्भ:
1. https://www.nationalgeographic.com/news/2016/08/elephants-mourning-video-animal-grief/
2. https://www.smithsonianmag.com/science-nature/do-animals-experience-grief-180970124/
3. https://www.elephantsforever.co.za/elephant-emotions-grieving.html
4. https://www.livescience.com/4272-elephant-awareness-mirrors-humans.html
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