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मुगलों के दौर में रामायण के फारसी अनुवाद और मुगलों की शानदार वास्तुकला से जुड़े विषयों को हम प्रारंग के पिछले लेखों में विस्तार से पढ़ चुके हैं! इसी रोमांचक श्रंखला को आगे बढ़ाते हुए आज हम मुगलों की ‘भूमि कर संग्रह प्रणाली’ (Land Revenue) की विरासत को समझने की कोशिश करेंगे!
भारत में 16वीं शताब्दी से 18वीं शताब्दी (1526–1761) तक मुगल साम्राज्य एक शक्तिशाली राजवंश था। इस विशाल साम्राज्य को सूबा नामक प्रांतों में विभाजित किया गया था, जो आगे सरकार, परगना और ग्राम जैसे छोटे क्षेत्रों में विभाजित थे। मुगलों के पास केंद्रीकृत शक्ति के साथ-साथ एक मजबूत प्रशासनिक व्यवस्था भी थी, जिसका अर्थ था कि सम्राट का प्रशासन पर पूर्ण अधिकार था।
विभिन्न मामलों से जुड़े लेन-देन के सुचारू संचालन के लिए विभिन्न सरकारी विभागों में कई अधिकारियों को नियुक्त किया गया था। मुगल साम्राज्य के चार मुख्य विभाग थे, जिनमें केंद्र सरकार के चार मुख्य अधिकारी होते थे-
1.दीवान (जिसे वजीर भी कहा जाता है)
2.मीर बख्शी
3.मीर सामाँ
4.सदर
प्रत्येक विभाग सम्राट के अधीन काम करता था और प्रत्येक का एक विशिष्ट कार्य था। दीवान विभाग राजस्व तथा वित्तीय मामलों के लिए जिम्मेदार था, जबकि मीर बख्शी, सैन्य वेतन तथा खातों के प्रभारी थे। शाही घराने को बनाए रखने के लिए मीर सामाँ जिम्मेदार था, आखिर में सदरधार्मिक दान तथा योगदान के लिए जिम्मेदार था। कभी-कभी वज़ीर और अन्य मंत्रियों के ऊपर एक अन्य महत्वपूर्ण व्यक्ति को भी नियुक्त किया जाता था जिसे वक़ील कहा जाता था। वह सल्तनत (नायब) के डिप्टी (Deputy) के रूप में काम किया करता था
राजस्व संग्रह मुगल साम्राज्य की आय का प्रमुख स्रोत होता था। मुगल शासक किसानों द्वारा उत्पादित फसल का एक हिस्सा “कर” के रूप में लेते थे। यह मुगल कृषि व्यवस्था की केंद्रीय विशेषता थी। हालांकि प्रारंभ में ब्रिटिश प्रशासक, भू-राजस्व को राजा को दिया जाने वाला लगान मानते थे, लेकिन बाद के अध्ययनों से पता चलता है कि यह वास्तव में फसलों पर लगाया जाने वाला कर था। मुगल राज्य ने करों के आरोपण को यह कहकर उचित ठहराया कि यह कर संप्रभुता का पारिश्रमिक है, और संरक्षण तथा न्याय के बदले में उनसे यह भुगतान लिया जाता है।
मुगलों ने भू-राजस्व निर्धारण के लिए कई विधियों का प्रयोग किया। मुगल साम्राज्य के पास राजस्व संग्रह के तीन तरीके (बटाई (फसल-बंटवारा) नसाक और कंकुट) थे।
सबसे आम को बटाई या घल्लाबक्षी कहा जाता था, जिसे तीन भागों में विभाजित किया गया था:
⚘. भाओली - काटी हुई फसल और ढेर वाली फसल
⚘. खेत बटाई - बुवाई के बाद खेतों को विभाजित करना।
⚘. लंग बटाई - अनाज के ढेर का विभाजन।
प्रत्येक कृषक को भूमि जोत या पट्टा और क़ुबुलियत (समझौते का विलेख जिसके द्वारा वह राज्य के राजस्व का भुगतान करता है)भी दिया जाता था। मुगलों के पास भू-राजस्व नामक एक प्रणाली भी थी, जिसे इस साम्राज्य की आय का प्रमुख स्रोत माना जाता था। अकबर ने दहसाला/बंदोबस्त अराज़ी/ज़ब्ती प्रणालियों की शुरुआत की, जिनके तहत विभिन्न फसलों की औसत उपज और पिछले दस वर्षों में उनकी औसत कीमतों की गणना की जाती थी। राज्य इस औसत का एक-तिहाई हिस्सा अपने हिस्से के रूप में लेता था और इसका भुगतान किसानों द्वारा नकद में किया जाता था। खेती की निरंतरता और उत्पादकता दोनों को ध्यान में रखते हुए भूमि राजस्व तय किया जाता था
भू-राजस्व का मूल्यांकन पहले फसल के रूप में किया जाता था और फिर ‘दस्तूर-उल-अमल’ नामक मूल्य सूची का उपयोग करके फसल के मूल्य को नकदी में परिवर्तित करने के लिए आंका जाता था । यह सूची विभिन्न खाद्य फसलों के लिए क्षेत्रीय स्तर पर तैयार की जाती थी।
आइये जानते हैं कि भू-राजस्व प्रणाली कैसे काम करती थी?
𓇣. गल्ला बख्शी (फसल-बंटाई): किसान द्वारा उत्पादित फसल को किसान और राज्य के बीच साझा किया जाता था।
𓇣. कंकुट /दानाबंदी: भूमि की उत्पादकता का अनुमान लगाया जाता था और उसी के अनुसार राजस्व की मांग निर्धारित की जाती थी।
𓇣. ज़ब्ती: यह मूल्यांकन की सबसे महत्वपूर्ण विधि थी, जो भूमि को मापने और प्रत्येक फसल के लिए नकद राजस्व दरों को तय करने पर आधारित थी।
हालांकि इनमें से मूल्यांकन की प्रत्येक विधि के अपने गुण और दोष थे। उदाहरण के लिए, ज़ब्ती प्रणाली ने भू-राजस्व की मांग को लागू करने में अनिश्चितताओं और उतार-चढ़ाव को कम करते हुए नकद दरें तय की थीं। लेकिन यदि मिट्टी की गुणवत्ता एक समान नहीं होती या यदि उपज अनिश्चित होती, तो ज़ब्ती प्रणाली किसानों के लिए हानिकारक हो जाती थी।
अब्बास खान के ‘अर्गु-ए शेरशाही’ के अनुसार, शेर शाह ने राजस्व निर्धारण समय के दौरान रियायत देने की अनुमति दी, लेकिन संग्रह समय के दौरान रियायत कदापि नहीं दी जाती थी। इसका मतलब यह था कि एक बार फसल कट जाने के बाद कोई छूट या राहत नहीं मिलती थी। हालांकि राजस्व निर्धारण पद्धति का उपयोग किए जाने के बावजूद खराब फसल के समय राहत के कुछ प्रावधान मौजूद थे। जो किसान भाग जाते थे या मर जाते थे, उनके रिश्तेदारों से बकाया की मांग की जाती थी। हालांकि, औरंगजेब ने खलीसा और जागीर भूमि में इस प्रथा की जांच के लिए “हस्ब उल हुक्म” जारी किया। जिसके अनुसार किसी भी किसान को दूसरों द्वारा अनुबंधित बकाया राशि के लिए जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता था।
संदर्भ
https://bit.ly/41dEdZ7
https://bit.ly/3opIg69
चित्र संदर्भ
1. मुग़ल साम्राज्य की भू-राजस्व प्रणाली को संदर्भित करता एक चित्रण (prarang)
2. 1700 में मुगल साम्राज्य के विस्तार को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. मुग़ल साम्राज्य में चिंतन को दर्शाता एक चित्रण (Flickr)
4. जहांगीर के राजदूत खान आलम को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
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