प्रारंग पर्यावरण श्रृंखला 2: बंदर कैसे  अपने भोजन और आवास के लिए पेड़ों को चुनते हैं?

पेड़, झाड़ियाँ, बेल व लतायें
23-08-2022 10:35 AM
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प्रारंग पर्यावरण श्रृंखला 2: बंदर कैसे  अपने भोजन और आवास के लिए पेड़ों को चुनते हैं?

बंदर ऑस्ट्रेलिया (Australia) और अंटार्कटिका (Antarctica) को छोड़कर सभी महाद्वीपों पर पाए जाते हैं। ये अक्सर पेड़ों में अपना घर बनाते हैं। मनुष्य बंदरों के जीवन में बहुत रुचि रखता है। कहते है कि इनकी आदतें हम लोगों से मिलती जुलती हैं। कभी-कभी ऐसा लगता है कि ये जानवर लगभग हम जैसे ही बुद्धिमान हैं। बंदरों का व्यवहार काफी हद तक हमारे जैसा ही है। बंदर  प्राइमेट (Primate) समूह के अंतर्गत आते हैं। 
प्राइमेट, स्तनधारियों का एक विविध और सफल समूह हैं, यह एक गण का नाम है जिसे वर्ग स्तनधारी के अंतर्गत शामिल किया गया है इसके अलावा इसमें प्रोसिमियन, बंदर, कपि और मानव शामिल हैं। प्राइमेट एक प्राचीन समूह है जो शायद लगभग 65 लाख वर्ष पूर्व के प्राचीन स्तनधारी वंश से अलग हुआ होगा। स्तनधारियों के वंश के अधिकांश प्राइमेट, जिनमें अर्ध-बंदर और बंदर शामिल हैं, जो पेड़ो पर चढ़ाई के लिए अच्छी तरह से अनुकूलित होते हैं। पेड़ से पेड़ तक जाने के लिए, प्राइमेट को जमीन पर उतरने की जरूरत नहीं है।  दुनिया भर में फैले विभिन्न प्रकार के बंदरों की बहुत अलग जीवन शैली होती हैं। वे कई आकार, प्रकार और रंगों के होते हैं, लेकिन वे सभी बुद्धिमान और सामाजिक प्राणी होते हैं। बंदरों को मोटे तौर पर दो समूहों में विभाजित किया जाता है: पुरानी दुनिया के बंदर और नई दुनिया के बंदर। पुरानी दुनिया के बंदरों के मध्यम आकार के प्रतिनिधि हैं। उनकी एक बहुत लंबी पूंछ, एक मध्यम लम्बी और गोल थूथन, और छोटे और गोल कान होते हैं। पुरानी दुनिया के बंदर एशिया और अफ्रीका में रहते हैं और नीचे की ओर नथुने होते हैं।  नई दुनिया के बंदर उत्तर और दक्षिण अमेरिका में रहते हैं और उनके नथुने बाहर की ओर होते हैं। बंदर ऑस्ट्रेलिया और अंटार्कटिका को छोड़कर सभी महाद्वीपों पर रहते हैं। वे अक्सर गर्म और गीले उष्णकटिबंधीय वर्षावनों में पेड़ों में अपना घर बनाते हैं, जिसमें दक्षिण अमेरिका (South America) में अमेज़ॅन वर्षावन (Amazon rainforest) और मध्य अफ्रीका (Central Africa) में कांगो बेसिन (Congo Basin) शामिल हैं।
कुछ प्रजातियों ने तो कठोर वातावरण (जैसे कि रेगिस्तान जैसे सवाना या बर्फीले पहाड़) में रहने के लिए अपने को अनुकूलित किया है। उदाहरण के लिए, जापानी मकाक (Japanese macaques), या हिम बंदर। सी ए बी आई  इनवेसिव स्पीशीज़ कम्पेंडियम (CABI Invasive Species Compendium) के अनुसार रीसस मैकाक (rhesus macaques) अत्यधिक अनुकूलनीय बंदर हैं, जिसकी प्रजाति  पूरे एशिया में फैली हुई है और इसमें भारत जैसे देश शामिल हैं, इनको अमानवीय प्राइमेट में सबसे बड़ा माना जाता है। इनके सर्वहारी व्यवहार और कई प्रकार के आवासों में रहने की क्षमता के कारण सभी स्थानों में रहने के लिए सक्षम हो पाए हैं, यह आमतौर पर 30 साल तक जीवित रहते हैं। ये बंदर मजबूत सामाजिक बंधन बनाते हैं और उन्हें एक दूसरे को संवारने जैसी गतिविधियों के माध्यम से बनाए रखते हैं।  ये प्रजाति बहु-पुरुष, बहु-महिला समूहों में रहती हैं जहां नर और मादा बहुविवाहित होते हैं। रीसस मकाक बंदरो की प्राचीतम प्रजातियों में से एक है, जो कि एशिया के बड़े भू भाग पर पायी जाती है, जिसमें भारत, बांग्लादेश, पाकिस्तान, नेपाल, बर्मा, थाईलैंड, वियतनाम, अफगानिस्तान और दक्षिणी चीन मुख्य रूप से शामिल है। इस प्रजाति के बंदरो के शरीर का रंग भुरा या ग्रे (Grey) होता है परंतु इनके चेहरे का रंग गुलाबी होता है, पूरे शरीर पे मुलायम फ़र होते हैं। 
इंडोनेशियाई प्राइमेट (Indonesian primates) के दो व्यापक अध्ययनों से पता चलता है कि प्रत्येक शाम को प्राइमेट द्वारा पेड़ों के चयन तरीका प्रत्येक प्रजाति के लिए भिन्न-भिन्न  होता  हैं और ये प्राइमेट्स अपने सोने की जगहों पर 12 घंटे तक बिता सकते हैं। बेल्जियम में यूनिवर्सिटी ऑफ लीज ( University of Liège in Belgium) के प्राइमेट वैज्ञानिक फैनी ब्रोटकोर्न (Fany Brotcorne) ने कहा, हमें यह समझने की जरूरत है कि बंदरों को सोने के लिए क्या चाहिए होता है  तो शायद हम उनके इस तरीके को समझ सकें। कुछ  वैज्ञानिकों का मानना  कि वे शिकारियों से सुरक्षा, भोजन की उपलब्धता  मानव संपर्क, कीट से बचाव और अन्य प्राइमेट के साथ प्रतिस्पर्धा जैसे  कारकों  को ध्यान में रख कर अपने  पेड़ों के चयन करते होंगे, लेकिन दावे से कुछ भी नहीं कहा जा सकता है।  ब्रोटकोर्न की टीम ने बाली के नेशनल पार्क में 56 रातें बिताईं, जिसमें लंबी पूंछ वाले मकाक प्रजाति का अध्ययन किया गया। बोर्नियो (Borneo) द्वीप पर पश्चिम कालीमंतन में (West Kalimantan), कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय (University of California) के प्राइमेटोलॉजिस्ट केटी फीलेन (primatologist Katie Feilen) ने 132 रातों तक लुप्तप्राय प्रोबोसिस बंदर (Proboscis monkey) या लम्बी-नाक बंदर (Long-nosed monkey) के सोने के व्यवहार का अध्ययन  किया। दोनों समूहों ने बंदरों द्वारा पसंद किए जाने वाले पेड़ों के आकार और प्रकार को नोट किया। देखा गया की ब्रॉटकोर्न के समूह ने पाया मकाक प्रजाति मानव-संशोधित क्षेत्रों के पास पेड़ों में अपनी रात बिताते है, क्यूंकि शायद पेड़ो के चयन में उनका मुख्य कारक भोजन की उपलब्धता थी। बंदरों ने एक हिंदू मंदिर और पर्यटन क्षेत्र के करीब अपना डेरा डाला, जहां फल, चावल और खाने की उपलब्धता लाजिमी थी।
दूसरी ओर प्रोबोसिस बंदर हर रात नदियों के पास ऊंचे, अलग- थलग पेड़ों पर लौट आते हैं। फीलेन का मानना ​​​​है कि इन  बंदरों का पेड़ो के चयन में  मुख्य कारक शिकारियों और कीड़ों से बचाव  होगा। फेलेन बताते है की प्रोबोसिस बंदर पेड़ों को काटे जाने  के कारण काफी प्रभावित हुए हैं,  इनके निवास स्थान समाप्त होते जा रहे हैं जिससे इनकी आबादी कम होती जा रही है, यहाँ उन्हें खनन और ताड़ के तेल कंपनियों द्वारा वनों की कटाई से जूझना पड़ रहा है। दूसरी ओर ब्रॉटकोर्न बताते है की मकाक बंदरों और मनुष्यों के बीच मानव-संशोधित क्षेत्रों के लिए सदियों से स्थान और भोजन के लिए प्रतिस्पर्धा चली आ रही है। जिससे मानवों को काफी दिक्कतों का सामना भी करना पड़ा है, इससे निजात के लिए सभी देश अपने अपने स्तर पर बहुत से उपाये अपनाते है। जब भारत के उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने वन विभाग से राज्य में बंदरों की समस्या पर अंकुश लगाने के उपाय तलाशने को कहा था, तब रावत ने राज्य के जंगलों में अमरूद, आम और घंगारू (एक प्रकार का बेरी) जैसे फल देने वाले पेड़ लगाने का सुझाव दिया है ताकि जानवरों को भोजन की तलाश में मानव आवास में प्रवेश करने से रोका जा सके। मुख्य वन संरक्षक (वन्यजीव) के साथ बैठक में सीएम ने कहा कि बंदर अक्सर मानव बस्तियों में मुख्य रूप से भोजन के लिए आते हैं और यदि जंगलों में उनकी आवश्यकताओं को पूरा किया जाता है तो वे मानव आवास में प्रवेश नहीं करेंगे। 
अध्ययन में यहाँ भी पाया गया कि मानव जनित आवास परिवर्तन ने बंदरों के अपने प्राकृतिक आवासमें संवाद करने के तरीके को बदल दिया है। यानी की वनों की कटाई और मानव के बढ़ते हस्तक्षेप के कारण बंदरों का संवाद करने का तरीका बदलता जा रहा है। वैज्ञानिकों ने पाया की मानव गतिविधि से प्रभावित वन के क्षेत्र में हॉवलर बंदर का संचार व्यवहार प्राकृतिक वन के अंदर वाले क्षेत्रों (जहां मानव गतिविधि नहीं होती) से भिन्न होता है। वाटरलू में एंथ्रोपोलॉजी (anthropology) के एक सहायक प्रोफेसर लौरा बोल्ट (Laura Bolt) ने कहा, हाउलर बंदर (Howler monkey) बहुत जोर की और  लंबी दूरी की आवाजें निकालने के लिए जाने जाते हैं, अध्ययन में पाया गया कि नर  बंदर उच्च गुणवत्ता वाले संसाधनों की रक्षा करने के लिए चिल्लाते हैं। लेकिन  देखा गया की मानवजनित वनों की कटाई हाउलर बंदर व्यवहार को बदल रही है।

संदर्भ:
https://bit.ly/3poSyke
https://bit.ly/3PzoCMX
https://bit.ly/3PzRe8J
https://bit.ly/3QDIW0T

चित्र संदर्भ
1. पेड़ पर बैठे बंदरों को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
2. ज़बुकाई का पेड़ और एक बंदर को दर्शाता एक चित्रण (Look and Learn)
3. जंगल में सपरिवार बैठे बंदरों को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4. हाउलर बंदर को दर्शाता एक चित्रण (flickr)

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