धार्मिक प्रसंगों से शुरू होते हुए, असमिया साहित्य का अन्य विधाओं में विकास

ध्वनि 2- भाषायें
10-08-2022 10:01 AM
Post Viewership from Post Date to 09- Sep-2022 (30th Day)
City Subscribers (FB+App) Website (Direct+Google) Email Instagram Total
2689 8 2697
धार्मिक प्रसंगों से शुरू होते हुए, असमिया साहित्य का अन्य विधाओं में विकास

भारत में साहित्यों की एक महत्वपूर्ण विविधता देखने को मिलती है, तथा असमिया साहित्य भी इन्हीं में से एक है।असमिया साहित्य असमिया भाषा में कविता, उपन्यासों, लघु कथाओं, नाटकों, दस्तावेजों और अन्य लेखन का संपूर्ण संग्रह है। असम की भाषा का पहला संदर्भ प्रसिद्ध चीनी भिक्षु और यात्री जुआनज़ैंग (Xuanzang) के माध्यम से प्राप्त हुए हैं।उन्होंने वर्मन वंश के कुमार भास्कर वर्मन के शासनकाल के दौरान कामरूप साम्राज्य का दौरा किया।सातवीं शताब्दी में कामरूप का दौरा करते हुए, जुआनज़ैंग ने यह देखा कि इस क्षेत्र की भाषा मध्य भारत (मगध) की भाषा से थोड़ी अलग थी।बनिकंता काकाती जो कि एक प्रमुख भाषाविद्, साहित्यकार, आलोचक और असमिया भाषा के विद्वान थे,ने असमिया साहित्य के इतिहास को तीन प्रमुख युगों में विभाजित किया है - प्रारंभिक असमिया, मध्य असमिया और आधुनिक असमिया।प्रारम्भिक काल (950-1300 ईस्वी) के साहित्यों में चर्यपदा और मंत्र साहित्य जैसे कार्य शामिल हैं। मध्यकालीन युग (1300-1826 ईस्वी) को पुनः तीन भागों में बांटा गया है, जिनमें पूर्व शंकारी साहित्य,शंकारी साहित्य, शंकारी के बाद का साहित्य शामिल है।आधुनिक युग (1826 ईस्वी से लेकर अब तक) में मिशनरी साहित्य,हेमचंद्र-गुणभिराम बरुआ का युग,रोमांटिक युग या बेज़बरुआ का युग शामिल है।
असमिया साहित्य मुख्य रूप से भारत के असम राज्य में बोली जाने वाली रचनाओं का निकाय है। प्रह्लाद चरित्र संभवत: 13वीं सदी के कवि हेमा सरस्वती द्वारा लिखित सबसे शुरुआती असमिया लेखनों में से एक है।इसमें विष्णु-पुराण की कहानी व्यापक संस्कृत शैली में लिखी गई थी।14वीं शताब्दी के पहले मान्यता प्राप्त असमिया कवि माधव कंडाली थे, जिनकी सबसे अधिक मान्यता प्राप्त कृति संस्कृत रामायण का अनुवाद है। इन्होंने देवजीत (भगवान कृष्ण के बारे में एक कहानी) का लेखन कार्य भी किया था।भक्ति आंदोलन की शुरुआत के बाद, शंकरदेव, जिनकी अधिकांश असमिया साहित्य पुस्तकें कविता और भक्ति की रचनाएँ थीं, बहुत लोकप्रिय हुई।
असमिया भाषा में लिखे गए पहले नाटकों में से एक 1861 में हेमचंद्र बरुआ का कनियार कीर्तन (द रेवेल्स ऑफ ए ओपियम ईटर - The Revels of an Opium Eater) है, जो अफीम की लत के बारे में था। उन्होंने इसमें यह भी दर्शाया कि कैसे धर्म के नाम पर गोसाईं और महंतों, जिन्हें धार्मिक प्रशासन सौंपा गया था, ने अनैतिकताएं कीं, और कैसे अंग्रेजों के असमिया चपरासियों ने अपने अहंकार में हिन्दुस्तानी भाषा का इस्तेमाल आम लोगों को भ्रमित करने और प्रभावशाली आंकड़ों को मिटाने के लिए किया, पूरा स्वांग कटु व्यंग्य से भरा है। इसकी सुधारात्मक अपील और मनोरंजक संवाद ने कनियार कीर्तन को उत्कृष्ट साहित्यिक उपलब्धि बनाया। इसने सरकार की ओर से एक पुरस्कार भी जीता। असमिया गद्य शैली के विकास में हेमचंद्र बरुआ का गहरा प्रभाव रहा है।उनके नाटकों ने सामाजिक मुद्दों को बहुत व्यापक रूप से संबोधित किया।बरुआ ने बहिरे रोंगसोंग भितारे कोवाभातुरी (फेयर आउटसाइड एंड फाउल विदिन - Fair Outside and Foul Within) भी उसी वर्ष लिखा था।हेम चंद्र बरुआ ने पहली असमिया पत्रिका ओरुनोदोई के लिए भी कई योगदान दिए। उन्होंने 1859 में असोमिया ब्याकरण (असमिया व्याकरण) और 1886 में असोमिया लोरार ब्याकरण (असमिया छात्र का व्याकरण) प्रकाशित किया। उन्होंने पहला असमिया शब्दकोश हेमकोश संकलित किया। वे ऐसे पहले असमिया लेखक थे जिन्होंने व्यंग्य को अभिव्यक्ति के माध्यम के रूप में इस्तेमाल किया। उनकी अन्य साहित्यिक कृतियों में आदिपथ (1873), पथमाला (1882), पोरहसोलिया अभिधान (1892), असमिया विवाह प्रणाली आदि शामिल हैं।
अपने मूल से असमिया साहित्य काफी हद तक धार्मिक था, जिसमें रामायण और महाभारत और भागवत पुराण का बहुत बड़ा प्रभाव था।लेकिन लगभग 1860,में हेमचंद्र बरुआ और उनके लेखन ने यह सब बदल दिया।आज भी, हेमचंदर बरुआ के प्रभावशाली कार्यों जैसे कनियार कीर्तन की समकालीन प्रासंगिकता है, लेकिन फिर भी हिंदी या उर्दू में इसके अनुवाद ढूंढना मुश्किल है।हेम चंद्र बरुआ के अलावा बनिकंता काकाती ने साहित्य, भाषा विज्ञान, सांस्कृतिक नृविज्ञान और तुलनात्मक धर्म जैसे विभिन्न क्षेत्रों में योगदान दिया।
उन्हें असमिया भाषा के स्वतंत्र चरित्र को स्थापित करने के लिए जाना जाता है।साहित्य करुण रस जैसे उनके लेखों से पता चलता है कि कैसे उद्धरणों और संदर्भों का भव्य रूप से उपयोग किया गया है।उनकी बाद की रचनाएँ आलोचनात्मक समझ के विकास को दर्शाती हैं। उन्होंने बीसवीं सदी के असमिया रोमांटिक साहित्य के लिए आलोचनात्मक पृष्ठभूमि का चित्रण किया था। वर्ष 1940 को मनोवैज्ञानिक कथा की ओर एक बदलाव के रूप में चिह्नित किया गया, लेकिन द्वितीय विश्व युद्ध ने असम में साहित्यिक विकास को बहुत बुरी तरह प्रभावित किया, और यह लगभग समाप्त हो गया।जब युद्ध के बाद लेखन कार्य फिर से शुरू हुए, तो लंबे अंतराल ने लेखन के उस युग को समाप्त कर दिया।पश्चिमी साहित्य के प्रभाव के साथ- साथ उपन्यास का विकास सबसे अप्रत्याशित विकास का क्षेत्र था। लघुकथाएं कभी पर्दे पर उतरी ही नहीं। हालांकि, लेखकों ने एक ऐसे सौंदर्यशास्त्र के साथ प्रयोग करना शुरू किया, जिसने समकालीन दुनिया को दर्शाया। 21वीं सदी की शुरुआत तक, असम में साहित्य के विभिन्न रूपों जैसे जीवनी,यात्रा वृत्तांत और साहित्यिक आलोचना ने अच्छी पकड़ बना ली थी।

संदर्भ:
https://bit.ly/3JvyCoV
https://bit.ly/3oTrKbq
https://bit.ly/3JvU8d3
https://bit.ly/3zUTuTm

चित्र संदर्भ
1. असमिया साहित्य को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
2. असमिया सांस्कृतिक प्रतीकों का असेंबल: जपी, बिहू नृत्य, साड़ी (ज़ोराई), बिहू ढोल, गामोसा को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. नहेमचंद्र बरुआ की पुस्तक को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4. मधुपुर सतरा में शंकरदेव की एक मूर्ति को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)

पिछला / Previous अगला / Next

Definitions of the Post Viewership Metrics

A. City Subscribers (FB + App) - This is the Total city-based unique subscribers from the Prarang Hindi FB page and the Prarang App who reached this specific post.

B. Website (Google + Direct) - This is the Total viewership of readers who reached this post directly through their browsers and via Google search.

C. Total Viewership — This is the Sum of all Subscribers (FB+App), Website (Google+Direct), Email, and Instagram who reached this Prarang post/page.

D. The Reach (Viewership) - The reach on the post is updated either on the 6th day from the day of posting or on the completion (Day 31 or 32) of one month from the day of posting.