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भारत में कई पर्यटक हर साल आते हैं और अपने साथ बहुत सारी सुनहरी यादें ले कर जाते हैं। परन्तु
"पर्यटकों" का एक समूह ऐसा भी है जो हमारे खजाने को चुराने के लिए भारत आता है। ये लोग सिक्कों,
मंदिरों की मूर्तियों और प्राचीन वस्तुओं को चुराने नहीं आते बल्कि ये चुराते है हमारे बहुमूल्य कीड़े। जी
हाँ अपने सही सुना, आपने अक्सर बगीचे या पेड़-पौधों के आसपास कीड़ों को मंडराते हुए देखा होगा,
जिनकी भिनभिनाहट लोगों को बिल्कुल भी पसंद नहीं आती है। लेकिन स्टैग बीटल (Stag Beetle) एक
ऐसे कीड़े की प्रजाति है, जिसे खरीदने के लिए लोग करोड़ रुपए खर्च करने से भी पीछे नहीं हटते हैं, इसी
कारण स्टैग बीटल की तस्करी में इजाफ़ा हुआ है। भारत में इस बहुमूल्य कीड़े की तस्करी इतनी बढ़ गई
है की हर दिन इन बहुमूल्य कीड़ों के बाहर जाने से इनकी आबादी में कमी आ गई है। भारतीय
पारिस्थितिकी तंत्र में कीट प्रजातियों का एक महान योगदान रहा है। दुर्भाग्य से, सरकार या शिक्षा जगत
में कोई भी कीड़ों की आबादी में आई कमी का अध्ययन नहीं कर रहे हैं।
स्टैग बीटल की चोरी चंद लोगों द्वारा नहीं की जाती है। कुछ देशों से बड़े गिरोह भारत आते हैं, और
पहाड़ों या आदिवासी इलाकों में जा कर स्थानीय लोगों को जीवित स्टैग बीटल इकट्ठा करने के लिए पैसे
देते हैं। फिर इन कीड़ों को सूटकेस (suitcase) में डालकर, एयरलाइनों (airlines) में निजी सामान के रूप में
अपने देश ले जाते है और अच्छी कीमतों पर इनको बेच देते हैं। सबसे ज्यादा गंभीर खतरे में स्टैग
बीटल है। भारत जिराफ़ स्टैग-बीटल (Giraffe Stag-Beetle) (प्रोसोपोकोइलस जिराफ़ Prosopocoilusgiraffa)
का घर है, जो लंबे और नुकीले जबड़े के साथ दुनिया का सबसे बड़ा सॉ-टूथ (saw-tooth) स्टैग बीटल है।
इसकी दुर्लभता, उच्च बिक्री मूल्य, और पकड़ने में कठिनाई के कारण इसकी मांग बढ़ती जा रही है।
स्टैग बीटल पर्यावरण के लिए अच्छे होते हैं। वे सड़ती हुई लकड़ी को खाते हैं और महत्वपूर्ण खनिजों को
मिट्टी में लौटाते हैं, लेकिन वे जीवित पौधों को नहीं खाते हैं। वयस्क स्टैग बीटल फलों के रस, पेड़ के रस
और पानी पर जीवित रहते हैं। स्टैग बीटल की जीभ नारंगी रंग की होती है। ये लार्वा अवधि के दौरान
निर्मित अपने वसा भंडार पर निर्भर रहते हैं। नर स्टैग बीटल के बड़े जबड़े होते हैं जो हिरण के सींग की
तरह दिखते हैं, इसलिए नाम स्टैग बीटल पड़ा। ये अपना अधिकांश जीवन भूमिगत लार्वा के रूप में
बिताते हैं, केवल कुछ हफ्तों के लिए एक साथी को खोजने और प्रजनन करने के लिए जमीन के ऊपर
आते हैं। स्टैग बीटल और उनके लार्वा काफी हानिरहित होते हैं। ये दुर्लभ भृंगों में से हैं। इसकी शारीरिक
लंबाई सिर्फ 2 से 3 इंच तक होती है। हालांकि इसके बावजूद भी स्टैग बीटल को पृथ्वी पर मौजूद सबसे
अनोखे, अजीब और छोटे कीड़े की प्रजाति माना जाता है। कुछ साल पहले एक जापानी ब्रीडर ने अपने
स्टैग बीटल को 89,000 डॉलर (आज की कीमत में लगभग 65 लाख रुपये) में बेचा था। दुनिया भर में
स्टैग बीटल की 1,200 से ज्यादा ज्ञात प्रजातियाँ मौजूद हैं, लेकिन उनमें से महज कुछ ही प्रजातियाँ
आकर्षक और बेशकीमती मानी जाती हैं।
इस बीटल को खरीदने के लिए लोग 1 करोड़ रुपए तक की कीमत खर्च करने के तैयार हैं, जबकि
आमतौर पर कोई इंसान कीड़े पर 10 रुपए भी खर्च करना पसंद नहीं करता है। ये तीन से सात साल का
वक्त कहीं भी बिता सकते हैं क्योंकि इस अवधि के दौरान लार्वा से वयस्क विकसित हो रहे होते हैं।
हालांकि यह समय मौसम पर निर्भर करता है। स्टैग बीटल (Stag Beetle) को एक व्यस्क कीड़ा बनने में
कुछ ही हफ्तों का वक्त लगता है, जो गर्म जगहों पर तेजी से पनपनता है। ठंड का मौसम स्टैग बीटल के
लिए उपयुक्त नहीं है, क्योंकि यह लार्वा प्रक्रिया को बढ़ा सकता है। इसके अलावा इस प्रजाति के कीड़ों के
लिए ठंड का मौसम जानलेवा साबित हो जाता, इसलिए इनके लिए गर्म जगहें ज्यादा अच्छी रहती हैं।
स्टैग बीटल्स में मैंडीबल्स (mandibles) होते हैं, लेकिन वे उन्हें काटने के लिए उपयोग नहीं करते हैं।
परन्तु स्टैग बीटल की मुख्य पहचान इसके ब्लैक शाइनी सिर (black shiny head) से निकलने वाले सींगों
से की जा सकती है। एक रिपोर्ट के मुताबिक, स्टैग बीटल से कई प्रकार की दवाइयां भी बनती, यही वजह
है कि जापान समेत अंतर्राष्ट्रीय बाजारों में स्टैग बीटल की मांग काफी ज्यादा है, साथ ही साथ कई लोग
इस प्रजाति के सबसे बड़े बीटल को शौकिया रूप से घर पर पालना भी पसंद करते हैं। आपको यह
जानकर हैरानी होगी कि इस कीड़े की शुरुआती कीमत 65 लाख रुपए के आसपास है, जिसे खरीदने के
लिए बोली लगती है। इसे घर में रखना शान की बात माना जाता है। इस कीड़े की ऊपरी त्वचा चमकदार
होती है, जिसकी वजह से यह ज्यादा आकर्षक दिखाई देता है और धूप में ज्यादा चमकता है।
जापान (Japan) में इन बीटल की बढ़ती मांग ने तस्करी को बहुत बड़ा दिया है यहाँ इसने कई मिलियन
डॉलर के उद्योग को जन्म दिया है जो विदेशी बीटल प्रजातियों के आयात के इर्द-गिर्द घूमता है। यहाँ
1990 के दशक तक, लोग अवैध रूप से 700 से अधिक प्रजातियों का आयात कर रहे थे। स्टैग बीटल का
व्यापार सालाना 100 मिलियन डॉलर तक पहुंच गया है, जापान की दुकानों में बीटल की 1200 प्रजातियां
हैं जिसमें से केवल 35 ही जापानी मूल की प्रजातियां हैं। यहाँ बीटल तस्करी तब से बहुत आसान हो गई
है जब से जापानी सरकार ने 1999 में कानून में संशोधन किया और विदेशी बीटल प्रजातियों के आयात
को वैध कर दिया, 1999 में चौंतीस विदेशी प्रजातियों को वैध किया गया था और 2003 में 505 प्रजातियों
को।
जापान, तस्करी के लिए थाईलैंड (Thailand), मलेशिया (Malaysia), लाओस (Laos), इंडोनेशिया (Indonesia),
म्यांमार (Myanmar), फिलीपींस (Philippines), चीन (China), दक्षिण अमेरिका (South America), फ्रांस
(France), भारत, नेपाल (Nepal), भूटान (Bhutan) और ऑस्ट्रेलिया (Australia) को अपना शिकार बनाता हैं।
फिलीपींस, ताइवान (Taiwan) और इंडोनेशिया से कई पर्यटन समूह आयोजित किए जाते हैं जिनका एकमात्र
उद्देश्य स्टैग बीटल इकट्ठा करना होता है। 2001 में, जापान ने 680,000 स्टैग और गैंडा बीटल
(Rhinoceros beetles) का आयात किया। यह अब सालाना एक मिलियन से अधिक हो गया है और बाजार
100 मिलियन डॉलर से अधिक मूल्य का बिकता है।
हालांकि अधिकांश देशों में बीटल के निर्यात पर औपचारिक रूप से प्रतिबंध लगा दिया गया है। डोरकास
एंटेयस बीटल (Dorcas antaeus) भूटान, भारत और नेपाल में पूरी तरह से प्रतिबंधित हैं, लेकिन चूंकि
जापान उनके आयात की अनुमति देता है, इसलिए इन देशों से तस्करी से लाये गए बीटल्स की कीमत
बहुत अधिक है। 2001 में, नेपाल के त्रिभुवन अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे पर दो जापानीयों को देश से 542
स्टैग बीटल की तस्करी के प्रयास में गिरफ्तार किया गया था।
भारत के पूर्वी हिमालय और पश्चिमी घाट दुर्लभ गैंडे, लोंगहॉर्नड और ज्वेल बीटल (Rhinoceros,
Longhorned and Jewel beetles) की वजह से तस्करों के लिए प्रमुख स्थल हैं। हाल के वर्षों में यहाँ इनके
व्यापार में वृद्धि हुई है और कई जापानी इन बीटल्स के साथ पश्चिम बंगाल में पकड़े भी गए हैं।
पर्याप्त कानून ना होने की वजह से हमारे देश के कीड़े, विशेष रूप से स्टैग और तितलियाँ, पूरे इंटरनेट पर
बेचे जा रहे हैं। हाल ही में सिंगलिला नेशनल पार्क (Singalila National Park) से दुर्लभ स्टैग और तितलियों
को बाहर ले जाते हुए कुछ लोग पकड़े गए थे। इन्हें अपनी वेबसाइट के माध्यम से जापानी कलेक्टरों के
पास जाना था। पारिस्थितिकीविदों के अनुसार, वनों के अस्तित्व के लिए कीड़े महत्वपूर्ण हैं, बड़े कीड़ो के
गायब होने पर कीट खाने वाले पक्षियों और चमगादड़ों की आबादी कम हो सकती है। बीटल संग्राहक भी
पर्यावरण को बहुत नुकसान पहुंचाते हैं क्योंकि पेड़ों की छाल निकाल कर इन कीड़ो को खोजा जाता है,
जिस कारण कई अन्य कीड़े और पक्षी अपनी जान गंवा देते हैं। जंगल कम होते जा रहे हैं। कीड़ों की
स्थानीय आबादी गायब होती जा रही है।
आज पर्याप्त कानून ना होने के कारण भारत को आसान लक्ष्य के रूप में देखा जा रहा है। यहाँ रेंजर को
पर्याप्त ज्ञान नहीं हैं वो आसानी से रिश्वत भी ले लेता हैं, स्थानीय पुलिस भी कीट तस्करी को एक
महत्वपूर्ण अपराध के रूप में नहीं देखती है। समय आ गया है की भारत इन तस्करों को रोकने के लिए
नए कानून बनाये और अधिकारियों को उचित प्रशिक्षण प्रदान करे, ताकि देशी स्टैग बीटल प्रजातियों को
बचाया जा सके।
संदर्भ:
https://bit.ly/39vkyy8
https://bit.ly/3mSUYq5
https://bit.ly/3MVWXUV
चित्र संदर्भ
1. स्टैग बीटल (Stag Beetle) को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
2. निमिया वोलाटिलिया और एम्फीबिया को दर्शाता एक चित्रण (Rawpixel)
3. स्टैग बीटल को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4. एंटलर एलोमेट्री को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
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