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शिकार एक ऐसा अभ्यास है, जिसका उपयोग सदियों पूर्व से विभिन्न कारणों के चलते किया
गया है। इनमें से एक कारण मनोरंजन भी है।मनोरंजन के लिए कई जीवों को मारा जाता है,
जिसके कारण उनकी संख्या आज बहुत कम हो गई है। इन जीवों में से एक जीव ब्लैक बक
(Blackbuck) या काला हिरण भी है। ब्लैकबक जिसे भारतीय मृग के रूप में भी जाना जाता
है, भारत और नेपाल का मूल निवासी है। यह घास के मैदानों और बारहमासी जल स्रोतों के
साथ हल्के जंगलों वाले क्षेत्रों में निवास करता है। कंधे से लेकर पैरों तक इसकी ऊंचाई 74 से
84 सेंटीमीटर तक होती है। औसत 38 किलोग्राम (84 पाउंड) के साथ नर का वजन 20-57
किलोग्राम (44-126 पाउंड) होता है।
मादाएं, नर की तुलना में हल्की होती हैं, जिनका वजन
औसतन 20-33 किलोग्राम (44-73 पाउंड) या 27 किलोग्राम (60 पाउंड) होता है।नर में 35-75
सेंटीमीटर लंबे छल्ले जैसे सींग पाए जाते हैं, हालांकि मादाएं भी सींग विकसित कर सकती हैं।
ठुड्डी और आंखों के आसपास सफेद फर मौजूद होता है, जबकि चेहरे का बाकी हिस्सा काले
रंग का होता है। नर, दो रंग के आवरण में पाए जाते हैं।पैरों के ऊपरी हिस्से और बाहरी
हिस्से गहरे भूरे से काले रंग के होते हैं तथा पैरों के नीचे और अंदर के हिस्से सफेद रंग के
होते हैं। मादा और किशोर पीले रंग से भूरे रंग के होते हैं।
ब्लैकबक, जीनस एंटीलोप(Antelope) का एकमात्र जीवित सदस्य है और इसे 1758 में कार्ल
लिनिअस (Carl Linnaeus) द्वारा वैज्ञानिक रूप से वर्णित किया गया था। इसकी दो उप-
प्रजातियों को मान्यता दी गई है।काला हिरण मुख्य रूप से दिन में सक्रिय रहता है तथा तीन
प्रकार के छोटे समूह बनाता है, जिनमें मादा समूह, नर समूह और कुंवारा झुंड शामिल
है।काला हिरण एक शाकाहारी जानवर है और कम घास खाने पर भी संतुष्ट हो जाता है।
इनका जीवनकाल आमतौर पर 10 से 15 वर्ष होता है। यह हिरण मूल रूप से भारत में पाया
जाता है,जबकि पाकिस्तान (Pakistan) और बांग्लादेश (Bangladesh) में यह स्थानीय रूप से
विलुप्त है। आज इनके केवल छोटे, बिखरे हुए झुंड देखे जाते हैं, जो बड़े पैमाने पर संरक्षित
क्षेत्रों तक ही सीमित हैं।
20वीं शताब्दी के दौरान, अत्यधिक शिकार, वनों की कटाई, और आवास में गिरावट के कारण
ब्लैकबक की संख्या में तेजी से गिरावट आई। भारत में, वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972
की अनुसूचीI के तहत काले हिरण का शिकार प्रतिबंधित है। हिंदू धर्म में काले हिरण का
महत्व है, तथा भारतीय और नेपाली ग्रामीण, हिरण को नुकसान नहीं पहुंचाते हैं।हिरण और
सूंअर के शिकार का अभ्यास मेरठ में भी किया गया।मेरठ से कुछ 10 मील दूर हल्के रंग के
हिरण पाए जाते थे, जो कि भोजन के लिए वहां मौजूद घास की अधिकता पर निर्भर थे।
उनके सींग सीधे तथा लगभग 19 इंच के थे।यहां हिरण के झुंडों को भी देखा जा सकता था,
जो शिकार से बचने के लिए फसलों या पेड़ों का इस्तेमाल करते थे।ये हिरण आकार में बड़े
और वजन में काफी भारी थे। इसी प्रकार से सूंअर का शिकार भी काफी आम था, और इसके
लिए कार्दिर कप (Kardir Cup) जैसे पिग स्टिकिंग इवेंट (Pig Sticking Event) का आयोजन भी
किया गया था। 1896-97 के दौरान लगभग 110 सूंअरों और 16 पराह हिरनों के शिकार केमामले सामने आए थे।
काले हिरण के शिकार को मुगल काल के लघु चित्रों में चित्रित किया गया है। सदियों से, बड़े-
खेल शिकार, जो कि राजघरानों का समय बिताने का तरीका हुआ करता था, अब हजारों
लुप्तप्राय हिरण प्रजातियों की मृत्यु के लिए जिम्मेदार है,जो भारतीय उपमहाद्वीप के लिए
स्थानिक है। आजादी के बाद देशी रियासतों को भंग कर दिया गया और उनके फालतू
मनोरंजन को गैरकानूनी घोषित कर दिया गया।
हालांकि काले हिरण जैसे जानवरों का शिकार
विशेष रूप से अब भी किया जा रहा है,मुख्य रूप से उनकी मुलायम त्वचा, और मुड़े हुए
सींगों के लिए। "वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972, काले हिरण, चिंकारा, बाघ,हाथियों और कई
अन्य जानवरों की प्रजातियों के लिए एक वरदान साबित हुआ है, क्यों कि अधिनियम के लागू
होने से पहले इनका शिकार अत्यधिक किया जाता था। औपनिवेशिक शासकों और विभिन्न
महाराजाओं द्वारा बड़ी संख्या में इनका शिकार किया गया था। 1972 से वन्यजीव
अधिनियम की अनुसूची I के तहत काला हिरण संरक्षित जानवर हैं।बाघ, तेंदुआ, हाथी, पैंगोलिन,
मॉनिटर (Monitor) छिपकली, अजगर आदि भी एक ही श्रेणी में आते हैं। वैज्ञानिक रूप से
एंटीलोप सर्विकाप्रा (Antelope cervicapra) के नाम से जाना जाने वाला यह जीव हिरण की
एक अनियमित प्रजाति है।2008 में, उन्हें प्रकृति के संरक्षण के लिए अंतर्राष्ट्रीय संघ द्वारा
'निकट संकट ग्रस्त' घोषित किया गया था, लेकिन 2017 में उन्हें 'कम चिंताजनक’की श्रेणी में
शामिल कर दिया गया।शिकार, उनके वन घरों को नष्ट करना, जलवायु परिवर्तन और ग्रामीणों
के साथ संघर्ष उनके अस्तित्व के लिए प्रमुख चुनौतियां हैं।भारत में, वे गुजरात, महाराष्ट्र, मध्य
प्रदेश, राजस्थान, बिहार, कर्नाटक, तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश के कुछ हिस्सों में पाए जाते हैं।
यह शाकाहारी प्रजाति खुले घास के मैदान, सूखी कांटेदार झाड़ियाँऔर हल्के जंगलों वाले क्षेत्रों
में पाई जाती हैं।कृषि क्षेत्रों में उन्हें अक्सर भोजन करते भी देखा जा सकता है। वे मुख्य रूप
से अधिक दूरी की यात्रा करना पसंद नहीं करते हैं, लेकिन गर्मियों में पानी की तलाश में
लंबी दूरी तय कर सकते हैं।हालांकि एक समय में काले हिरण हंटिंग ट्राफियां (Hunting
trophies) हुआ करते थे, लेकिन अब वे संरक्षित प्रजातियों में बदल गए हैं।
संदर्भ:
https://bit.ly/3H6mHLH
https://bit.ly/3v9PmNB
https://bit.ly/34LvMMD
चित्र संदर्भ
1. नर काला हिरण को दर्शाता एक चित्रण (Flickr)
2. महाराष्ट्र के सोलापुर के पास नन्नज में काला हिरण नर और मादा को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
3. लेपाक्षी (16वीं शताब्दी) में मंदिर के स्तंभ पर उकेरे गए काले हिरण को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
4. उठने की कोशिश करते काले हिरण को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
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