संथाली जनजाति के संघर्षपूर्ण लोग और उनकी संस्कृति

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30-06-2022 08:38 AM
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संथाली जनजाति के संघर्षपूर्ण लोग और उनकी संस्कृति

भाजपा ने झारखंड की पूर्व राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू को सत्तारूढ़ राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के रूप में नामित किया। संथाली जनजाति से ताल्लुक रखने वाली द्रौपदी मुर्मू निर्वाचित होने पर, ये ओडिशा की 64 वर्षीय नेता, भारत की राष्ट्रपति बनने वाली पहली आदिवासी और दूसरी महिला होंगी। ये घटनाएं भारत की जनजातियों के लिए बहुत अधिक सुखद और प्रतिनिधित्व ला रही हैं, खासकर की संथाली भाषा के लोग के लिए यह घटना काफी महत्वपूर्ण है। समुदाय के नेताओं ने इसे देश में संथालों के लिए 'स्वर्ण युग' करार दिया। संथाली आबादी ओडिशा, झारखंड और पश्चिम बंगाल में फैली हुई है। द्रौपदी मुर्मू का गृह जिला मयूरभंज, संथाली जनजाति की सबसे बड़ी सांद्रता वाले जिलों में से एक है। ओडिशा में, मयूरभंज जिले के अलावा, क्योंझर और बालासोर में संथाल लोग निवास करते हैं। उनकी साक्षरता दर ओडिशा की अन्य जनजातियों की तुलना में बहुत अधिक है। संथाल समुदाय में जन्मीं मुर्मू ने 1997 में रायरंगपुर नगर पंचायत में एक पार्षद के रूप में अपना राजनीतिक जीवन शुरू किया और वह वर्ष 2000 में ओडिशा सरकार में मंत्री बनीं। बाद में उन्होंने 2015 में झारखंड के राज्यपाल पद की जिम्मेदारी भी संभाली। बेहद पिछड़े और दूरदराज के जिले से ताल्लुक रखने वालीं मुर्मू ने गरीबी और अन्य समस्याओं से जुझते हुए भुवनेश्वर के रमादेवी महिला कॉलेज से कला में स्नातक किया, उनका जीवन बहुत ही संघर्षपूर्ण रहा। इनके अलावा, झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन, केंद्र शासित प्रदेश जम्मू और कश्मीर के पहले उपराज्यपाल गिरीश चंद्र मुर्मू (अब भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक), सिद्धू मुर्मू और कान्हू मुर्मू (स्वतंत्रता सेनानी और संथाल विद्रोह के नायक), पंडित रघुनाथ मुर्मू (ओल चिकी लिपि के आविष्कारक), बाबूलाल मरांडी (झारखंड के प्रथम मुख्यमंत्री), शिबू सोरेन (झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री), उमा सरेन (16वीं लोकसभा में सांसद), खागेन मुर्मू (लोकसभा सांसद), बिरबाहा हाँसदा (संथाली, बंगाली और हिंदी फिल्मों की अभिनेत्री तथा पश्चिम बंगाल सरकार में मंत्री), श्याम सुंदर बेसरा (सिविल सेवक और साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित लेखक) मयूरभंज सांसद, बिसेश्वर टुडू भी संथाली जनजाति से ताल्लुक रखते हैं। संथाल या संताल, भारत के मूल निवासी मुंडा जातीय समूह हैं। संथाल भारत के झारखंड राज्य में जनसंख्या की दृष्टि से सबसे बड़ी जनजाति है और यह असम, त्रिपुरा, बिहार, छत्तीसगढ़, ओडिशा और पश्चिम बंगाल राज्यों में भी पाई जाती है। ये उत्तरी बांग्लादेश के राजशाही और रंगपुर विभाग में सबसे बड़े जातीय अल्पसंख्यक हैं। नेपाल और भूटान में इनकी अच्छी खासी आबादी है। संथाल संताली बोलते हैं, जो मुंडा भाषाओं में सबसे अधिक बोली जाती है। संथाल संभवत: बंगाली भाषा से लिया गया एक उपनाम है। इस शब्द का अर्थ होता है साओत के निवासी, जो अब पश्चिम बंगाल के मिदनापुर क्षेत्र में है, जो संतालों की पारंपरिक मातृभूमि है। इनका जातीय नाम होर होपोन जिसका अर्थ होता है “मानव जाति के पुत्र”। धर्म से यह हिंदू, सरना या क्रिश्चियन हो सकते हैं। लगभग 63% संथाल हिंदू धर्म का पालन करते हैं और हिंदू देवी -देवताओं की पूजा करते हैं। लगभग 31% संथाल अपने लोक धर्म ,सरना धर्म, का अनुपालन करते हैं। वहीं, 5% संथाल ईसाई धर्म को मानते हैं। यह संथाली भाषा बोलते हैं, जो ऑस्ट्रो-एशियाई (Austro-Asiatic) भाषा परिवार की तीसरी सबसे बड़ी भाषा है। संथाली के अलावा यह हिंदी, बंगाली, उड़िया और नेपाली भाषा बोलते हैं। संथाल जनजाति की लगभग 97 प्रतिशत आबादी गाँवों में निवास करती है। इस जनजाति के परिवार का स्वरुप पितृसतात्मक, पितृवंशीय तथा पितृस्थानीय है। भाषाविद् पॉल सिडवेल (Paul Sidwell) के अनुसार, ऑस्ट्रोएशियाटिक भाषा बोलने वाले संभवतः लगभग 4000- 3500 साल पहले इंडोचीन (Indochina) से ओडिशा के तट पर पहुंचे थे। यह दक्षिण पूर्व एशिया से फैल गए और स्थानीय भारतीय आबादी के साथ व्यापक रूप से मिश्रित हो गए। महत्वपूर्ण पुरातात्विक अभिलेखों की कमी के कारण, संथालों की मूल मातृभूमि निश्चित रूप से ज्ञात नहीं है। संथालों के लोककथाओं में इस बात का दावा किया जाता है कि यह हिहिरी (Hihiri) से आए थे, जिसे विद्वानों ने हजारीबाग जिले के अहुरी के रूप में पहचाना है। अहुरी से उन्हें छोटा नागपुर, फिर झालदा, पटकुम और अंत में साओत में धकेल दिया गया, जहां ये अच्छे से बस गए। इस बात का उल्लेख कई विद्वानों ने किया है, और इसके प्रमाण के रूप में यह कहा जाता है कि कभी हजारीबाग में संथालों की महत्वपूर्ण उपस्थिति थी। स्वतंत्रता के बाद, संतालों को अनुसूचित जनजातियों में से एक बना दिया गया । 2000 में झारखंड के बिहार से अलग होने के बाद, संताल परगना को राज्य का एक अलग डिवीजन बनाया गया था। इन संतालों ने जनगणना में अपनी परंपराओं को एक अलग धर्म, सरना धर्म के रूप में मान्यता देने के लिए आंदोलन किया है, जिसके लिए झारखंड विधानसभा ने 2020 में एक प्रस्ताव पारित किया। कई अभी भी गरीबी और शोषण का सामना करते हैं, और बांग्लादेश में, उनकी भूमि की चोरी आम है। हालांकि एक बड़े क्षेत्र में फैले हुए, वे अब संताल परगना को अपनी सांस्कृतिक हृदयभूमि मानते हैं। संथाल जनजाति के जीवन में पर्व त्योहारों का विशेष महत्व है। इनके बीच सभी त्यौहार सामूहिक तौर से मनाये जाने की परंपरा है। उत्सव मनाने के सिलसिले में आयोजित नाच गान में सभी संथाल पुरूष महिलायें समान रूप से हिस्सा लेते हैं। संथाल जनजाति के त्योहारों का शुभारम्भ आषाड़ मास से होता है। सोहराई संताल समुदाय का प्रमुख त्योहार है। इसके अलावा एरोक, हरियाड़, जापाड़, साकरात, भागसिम, बाहा, दनसाई, रुंडो और मैगसिम इत्यादि संथाल जनजाति के प्रमुख पर्व है। इस प्रकार संथाल जनजाति के पर्व प्रकृति, कृषि तथा अलौकिक शक्तियों से संबंधित हैं। यही कारण है कि इनके पर्वों का समय मौसम तथा कृषि आवश्यकताओं के अनुसार सुनिश्चित होते हैं। संताल कला अपनी जटिल नक्काशी शैली के लिए ध्यान देने योग्य है। पारंपरिक संताल घरों की दीवारों में जानवरों के नक्काशीदार डिजाइन, शिकार के दृश्य, नृत्य के दृश्य, ज्यामितीय पैटर्न और भी बहुत कुछ अलंकृत होता हैं। संताल शैली की पालकियों को भी बारीक नक्काशी और डिजाइन किया गया था।

संदर्भ:
https://bit.ly/39VU1KE
https://bit.ly/3No7DvV

चित्र संदर्भ
1. संथाली जनजाति के संघर्षपूर्ण लोग और उनकी संस्कृति, को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
2. झारखंड की पूर्व राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. बहा परब संथाल लोगों के त्योहार को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4. पश्चिम बंगाल के पुरुलिया जिले में एक पारंपरिक नृत्य को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)

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