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यदि आपको याद हो तो, 2016-2017 और फिर 2019 में दिल्ली सरकार द्वारा, ऑड-ईवन योजना (odd-
even scheme) लागू की गई थी, जिसका प्रमुख उद्देश्य, परिवहन के कारण दिल्ली की हवा में बढ़ते
प्रदूषण और कार्बन उत्सर्जन को कम करना बताया जा रहा था। हालांकि प्रदूषण कम करने के परिपेक्ष्य में,
यह एक शानदार योजना साबित हो सकती है! लेकिन वास्तव में यह, परिवहन से होने वाले पर्यावरण
प्रदूषण और कार्बन उत्सर्जन का एक स्थायी समाधान नहीं हो सकती है, लेकिन कुछ शानदार और
आधुनिक तकनीकों के दम पर सड़क परिवहन को डीकार्बोनाइज़ (decarbonize) करने का समय आ गया
है।
भारत में कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) उत्सर्जन में परिवहन का महत्वपूर्ण योगदान है। यह ऊर्जा से
संबंधित प्रत्यक्ष (स्कोप 1) CO2 उत्सर्जन का 14% है, और उद्योग के साथ-साथ देश में सबसे तेजी से बढ़ते
उत्सर्जन क्षेत्रों में से एक है। परिवहन क्षेत्र के भीतर, सड़क परिवहन, कुल ऊर्जा खपत के 90% के लिए
जिम्मेदार है। हाल के वर्षों में भारत के मोटर वाहन बेड़े में तेजी से वृद्धि हुई है, और COVID-19 महामारी
से पहले, 2030 तक ऑन-रोड वाहन स्टॉक (on-road vehicle stock) लगभग दोगुना होकर 200
मिलियन से अधिक होने की उम्मीद थी।
वर्तमान में, सड़क परिवहन में उपयोग की जाने वाली ऊर्जा ज्यादातर पेट्रोलियम से प्राप्त होती है, और
उसमें से अधिकांश को आयात किया जाता है। इसके अतिरिक्त, पेरिस समझौते के तहत अपने राष्ट्रीय
स्तर पर निर्धारित योगदान (एनडीसी NDC) में, भारत ने अपने सकल घरेलू उत्पाद (Gross domestic
product (GDP) की उत्सर्जन तीव्रता को, 2005 के स्तर 33% से 2030 तक 35% तक कम करने का
लक्ष्य रखा है। सड़क क्षेत्र के लिए एक नीति रोडमैप और एक मजबूत डीकार्बोनाइजेशन लक्ष्य (Policy
roadmap and a strong decarbonization target) भारत को अपनी जलवायु प्रतिबद्धता (climate
commitment) के करीब ले जाएगा।
भारत में, परिवहन से कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) का 90% उत्सर्जन सड़क क्षेत्र से होता है। सड़क
परिवहन में डीकार्बोनाइजेशन, भारत को अपनी समग्र जलवायु प्रतिबद्धता के करीब लाने में मदद करने,
और स्वच्छ हवा तथा संबंधित स्वास्थ्य और भलाई लाभ जैसे महत्वपूर्ण सह-लाभ प्रदान करता है। सड़क
परिवहन दुनिया की सबसे बड़ी कार्बन उत्सर्जन चुनौतियों में से एक है! यह उत्सर्जन वाला एक ऐसा क्षेत्र है
जो बस बढ़ता ही जा रहा है। हाल के वर्षों में पर्यावरण से मिली चुनौतियों को देखते हुए, यह प्रतीत होता है
की आखिरकार सड़क परिवहन को डीकार्बोनाइज़ करने का सही समय अब आ गया है।
इस संदर्भ में यूरोपीय संघ ने यूरोपीय ग्रीन डील (European green deal) के माध्यम से 2050 तक
जलवायु तटस्थ बनने के लिए प्रतिबद्ध किया है, जिसमें परिवहन के स्वच्छ, सस्ते और स्वस्थ रूपों को
रोल आउट करने की कार्रवाई शामिल है। यूके (United Kingdom, UK) में, केंद्र सरकार द्वारा पिछले
साल की गई, घोषणा में कहा गया की वह, 2030 तक नई पेट्रोल और डीजल कारों और वैन की बिक्री को
समाप्त कर देगी!
परिवहन डीकार्बोनाइजेशन के संदर्भ में कुछ संभावनाएं निम्नवत हैं:
1. स्थानीय बिजली वितरण प्रणाली को सुदृढ़ करें: भविष्य में हमारी अधिकांश कारें, वैन और छोटे ट्रक
पलक झपकते ही इलेक्ट्रिक हो जाएंगे। जैविक ईंधन संचालित वाहन हमारे सड़क परिवहन बेड़े का हिस्सा
है, जो वर्तमान में सड़क परिवहन उत्सर्जन में अधिकांश योगदान देता है। बैटरी प्रौद्योगिकी में एक क्रांति
का मतलब यह होगा कि, इलेक्ट्रिक ने हल्के वाहनों के लिए हाइड्रोजन पर दौड़ जीत ली है। साथ ही, बैटरी
रेंज के बारे में जनता की इलेक्ट्रिक वाहन खरीदने की चिंता कम होती जा रही है, और ईवी (Electronic
Vehicles) की बाजार वांछनीयता भी काफी अधिक है। इसका मतलब यह है कि भविष्य में स्थानीय
बिजली वितरण प्रणालियों की क्षमता और विश्वसनीयता भी मायने रखेगी।
निजी ईवी उपयोगकर्ता
जिनके पास घर पर चार्जिंग की सुविधा है, वे तेजी से और अनजाने में स्थानीय बिजली वितरकों के लिए
एक गंभीर चुनौती बनेंगे। इसलिए हमें स्थानीय बिजली वितरण प्रणाली को सुदृढ़ करना ही होगा!
2. समान ईवी चार्जिंग एक्सेस (EV Charging Access) प्रदान करें: कई स्थानीय सरकारों के सामने
सबसे बड़ी समस्याओं में से एक यह है कि, उन लोगों के लिए ईवी चार्जिंग (EV Charging) तक पहुंच कैसे
प्रदान की जाए, जो घर पर ऑफ-स्ट्रीट चार्ज (off-street charge) नहीं कर सकते। उदाहरण के तौर पर
यूके (UK, United Kingdom) के लगभग 30% घरों में ऑफ-स्ट्रीट पार्किंग की सुविधा नहीं है! इस
समस्या से सभी सामाजिक-आर्थिक पृष्ठभूमि के परिवार प्रभावित होते हैं। अगर सही राष्ट्रीय नीतियां और
फंडिंग जल्दी सामने नहीं आती है, तो हम आवश्यक ईवी ट्रांजिशन, ईवी चार्जिंग (EV Transition, EV
Charging) की उच्च लागत का सामना करेंगे।
3. भारी वाहनों के लिए हाइड्रोजन पर करीब से नज़र डालें: परिवहन को डीकार्बोनाइज करने के 'सही' तरीके
के बारे में अनगिनत बहसें सामने आती हैं। भारी वाहनों को कार्बन मुक्त करने के लिए 'सर्वश्रेष्ठ' समाधानमें हाइड्रोजन, बैटरी और यहां तक कि कैटेनरी सिस्टम (catenary system) शामिल हो सकता हैं,
लेकिन इन सभी के परे यकीनन, हाइड्रोजन सबसे अधिक भरोसेमंद है।
सड़क क्षेत्र के लिए, एक मजबूत डीकार्बोनाइजेशन लक्ष्य भारत को अपनी जलवायु प्रतिबद्धताओं के करीब
ले जाएगा! डीकार्बोनाइजेशन स्वच्छ हवा और संबंधित स्वास्थ्य और कल्याण लाभ जैसे महत्वपूर्ण सह-
लाभ प्रदान करता है। कुछ अध्ययनों ने भारत के परिवहन क्षेत्र के विभिन्न मॉडलों में मॉडलिंग ढांचे और
अनुमानों की तुलना करने का प्रयास किया है।
यह अध्ययन भारत के आठ प्रमुख सड़क परिवहन ऊर्जा और
उत्सर्जन मॉडल का मेटा-विश्लेषण है। इसमें ईंधन प्रकार द्वारा प्रमुख मान्यताओं, ऊर्जा उपयोग और CO2
उत्सर्जन की तुलना; COVID-19 महामारी के प्रभाव का आकलन करते हुए यह अनुमान लगाया गया है की
आक्रामक नीतिगत प्रयासों के माध्यम से 2050 तक सड़क परिवहन क्षेत्र से उत्सर्जन में कितनी कमी
प्राप्त की जा सकती है। इसमें सामान्य भविष्य के परिदृश्य में, मॉडल आम तौर पर 2020 और 2050 के
बीच ऊर्जा खपत और सीओ 2 उत्सर्जन में 3-4 गुना वृद्धि की उम्मीद की गई हैं: (बीएयू (BAU)। इंजन
वाहन, वाहन विद्युतीकरण, वैकल्पिक ईंधन के बढ़ते उपयोग, और यात्रा की मांग को रोकना परिवहन क्षेत्र
से CO2 उत्सर्जन के विकास की प्रवृत्ति को सीमित या उलट भी सकता है। इसके अतिरिक्त, भारत को वाहन
विद्युतीकरण, बिजली ग्रिड डीकार्बोनाइजेशन (electricity grid decarbonization) सहित कड़े ईंधन
दक्षता मानकों को प्राथमिकता देनी चाहिए।
संदर्भ
https://bit.ly/3PHbbM7
https://bit.ly/3sWrkDP
https://bit.ly/3lLFXWt
चित्र संदर्भ
1 कार्बन मुक्त इलेक्ट्रिक कार को दर्शाता एक चित्रण (pxhere)
2. सड़क में प्रदूषण को दर्शाता एक चित्रण (
Max Pixel)
3. भारत में वायु प्रदूषण में धूल और निर्माण का योगदान लगभग 59% है, जिसके बाद अपशिष्ट जलना होता है। धूल और निर्माण गतिविधियाँ ज्यादातर शहरी क्षेत्रों में होती हैं जबकि अपशिष्ट जलाना ग्रामीण क्षेत्रों (कृषि) में होता है। को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4. दिल्ली में ट्रेफिक को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
5. हाइड्रोजन प्लांट को दर्शाता एक चित्रण (ISPI)
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