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उत्तर प्रदेश की राजधानी, यानी हमारा शहर लखनऊ अपनी सांस्कृतिक धरोहरों एवं परंपराओं के मद्देनज़र
देश में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है! यही कारण है की, लखनऊ शहर का समग्र विकास, सरकार की
प्राथमिकता सूची में शीर्ष पर आता है, और शायद इसीलिए, जिले में शहरीकरण भी तेज़ गति से रफ़्तार
पकड़ रहा है। लेकिन बढ़ते शहरीकरण के बीच, हम सभी को यह भी अवश्य ध्यान में रखना होगा की, शहरी
विलासिता की चाह कहीं हमारी प्राकृतिक विरासतों या उपहारों का हनन तो नहीं कर रही है!
लखनऊ में तेजी से बढ़ते शहरीकरण के बीच, राज्य की राजधानी ने अपने जल निकायों का 46 प्रतिशत
हिस्सा खो दिया है। जो शेष बचे हुए है, उनमें से भी अधिकांश अपशिष्ट और सीवेज से प्रदूषित हो चुके हैं।
लखनऊ नगर निगम द्वारा किए गए एक सर्वेक्षण के अनुसार 1952 में शहर में कुल 964 तालाब थे,
लेकिन वर्ष 2006 में यह संख्या घटकर मात्र 494 हो गई। नगर निगम के भूमि रिकॉर्ड बताते हैं कि शहर में
964 टैंक और तालाब हैं, जिनमें से अधिकांश अब सुधार के कारण अज्ञात हैं।
तालाब और पूल, जो स्पंज तथा थर्मो-रेगुलेटर (damper and thermo-regulator) के रूप में कार्य करते
हैं, वर्षा जल के संचय में मदद करते हैं और क्षेत्र में भूजल स्तर को बढ़ाते हैं। लेकिन लखनऊ के मुख्य शहरी
क्षेत्र में जल निकाय (water body) काफी हद तक विलुप्त हो चुके हैं। इसने लखनऊ को भविष्य में भीषण
बाढ़ की चपेट में घेर लिया है। राज्य की राजधानी में पिछले एक दशक में बाढ़ की चार बड़ी घटनाएं पहले ही
हो चुकी हैं।
हमारी गोमती नदी आज सबसे खराब स्थिति में है। गोमती एक भूजल-आधारित नदी है और इसकी
विभिन्न सहायक नदियों द्वारा फिर से भर दी जाती है। उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (Uttar Pradesh
Pollution Control Board (UPPCB) के आंकड़े बताते हैं की, पिछले कुछ वर्षों में गोमती का प्रवाह 35 से
40 प्रतिशत तक कम हो गया है। यहां तक की कई स्थानों पर पानी इतना कम हो गया है की, नदी को
आसानी से पैदल ही पार किया जा सकता है। लखनऊ में 13 किलोमीटर तक लंबी यह नदी अपने सबसे गंदे
स्थान पर है, और इसे केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (Central Pollution Control Board (CPCB) द्वारा
देश में सबसे प्रदूषित नदी खंड घोषित किया गया है।
बढ़े हुए जैविक दबाव, कम पारिस्थितिकी प्रवाह, प्रमुख सहायक नदियों के बिगड़ने, नदी के जलग्रहण क्षेत्र
की गाद और अतिक्रमण ने, नदी को सूखा , सीवेज और कीचड़ से भर दिया है। जानकारों का कहना है कि
लखनऊ के आसपास करीब, 300 जलाशयों के निर्माण की साजिश रचने से यह स्थिति दिनों दिन खराब
होती जा रही है, तथा उत्तर प्रदेश में अवैध अतिक्रमण के कारण हम एक लाख से अधिक जलाशय (टैंक,
तालाब, झील और कुएं) खो चुके हैं।
गोमती में प्रदूषण को नियंत्रित करने का पहला प्रयास 1993 में केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय द्वारा शुरू की गई
गोमती कार्य योजना के तहत किया गया था। जिसका मुख्य उद्देश्य नाले को टैप करना और सीवेज को
उपचार संयंत्रों में निर्देशित करना था। इन कदमों के बावजूद, अनुपचारित सीवेज अभी भी नदी में बहता है।
राज्य सरकार की गोमती पुनरुद्धार परियोजना अप्रैल 2015 में शुरू हुई थी, जिसके अंतर्गत नदी के किनारे
की सफाई, बैंक को मजबूत करना और आसपास का सौंदर्यीकरण किया जाना था। गोमती बैराज तक नदीके पुनरुद्धार की कुल लागत लगभग 600 करोड़ रुपये रखी गई थी।
तेजी से शहरीकरण के कारण हुए अतिक्रमण के कारण, शहर पहले ही अपने 46 प्रतिशत जल निकायों को
खो चुका है। जल निकायों की भूमि हथियाने और निर्माण की घटनाओं को रोकने के लिए सरकार और
सर्वोच्च न्यायालय ने अनेक हस्तक्षेप किए हैं। 2006 में, सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि, प्राकृतिक झीलों और
तालाबों की सुरक्षा सबसे बुनियादी मौलिक अधिकार-जीवन का अधिकार- का सम्मान करती है, जिसे
संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत गारंटी दी गई है।
लेकिन लखनऊ के आधिकारिक रिकॉर्ड इसके विपरीत, एक गंभीर तस्वीर पेश करते हैं। शहर के एक
पर्यावरण कार्यकर्ता अशोक शंकरम की, 2014 में इलाहाबाद उच्च न्यायालय में 37 जल निकायों के
अतिक्रमण के खिलाफ दायर एक याचिका के जवाब में अदालत ने, लखनऊ विकास प्राधिकरण
(Lucknow Development Authority (LDA) और लखनऊ नगर निगम से जवाब मांगा था। लेकिन
2015 में दिए गए जवाब में जमीन हथियाने के खिलाफ उठाए गए ठोस कदमों के बारे में कोई जानकारी
नहीं थी। 2014 में हाईकोर्ट ने चेताया था की एलडीए और नगर निगम का यह वैधानिक कर्तव्य है कि वह
सभी झीलों और तालाबों को अतिक्रमण हटाकर अतिक्रमणकारियों के खिलाफ कार्रवाई करे! झीलों और
तालाबों से अतिक्रमण हटाने की मांग करने वाले अधिवक्ता, मोतीलाल यादव कहते हैं कि, लखनऊ के
आसपास लगभग 300 जलाशयों के निर्माण के लिए साजिश रचने से स्थिति दिन पर दिन खराब होती जा
रही है। लखनऊ में जल निकायों, सरकारी जमीन को अतिक्रमणकारियों से मुक्त कराने के लिए लखनऊ
जिला प्रशासन ने सरकारी अभियान भी शुरू किया है।
लखनऊ के जिला मजिस्ट्रेट का कहना है कि
"तालाबों और जल निकायों के पुनरुद्धार को सुनिश्चित करने के अलावा, इस अभियान का उद्देश्य
सरकारी भूमि को अतिक्रमण से मुक्त करना भी है।" सरोजनीनगर तहसील से अतिक्रमण विरोधी
अभियान शुरू होने पर डीएम ने आदेश दिया है की ''यह सुनिश्चित किया जाएगा कि जमीन को अतिक्रमण
मुक्त किया जाए।'' इस संबंध में कार्यवाही करते हुए राजस्व विभाग और अन्य प्रशासनिक अधिकारियों की
एक टीम ने करीब 12 बीघा जमीन से अतिक्रमण हटाया, जिसकी बाजार कीमत ₹7 करोड़ 84 लाख रुपये
है।
संदर्भ
https://bit.ly/3sPYxQY
https://bit.ly/3yQ0HE3
https://bit.ly/3wFhvwi
चित्र संदर्भ
1 प्रदूषण, अतिक्रमण से पीड़ित नदी को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
2. एक पारंपरिक तालाब को दर्शाता एक चित्रण (Flickr)
3. 70 के दशक में कभी बिक्रमगढ़ झील 14 एकड़ का जलाशय हुआ करता था, चारों तरफ कचरा फेंकने और अवैध अतिक्रमण के कारण यह अपने मूल आकार से आधा रह गया। एक प्रमुख अपराधी ने झील की एक पूरी एकड़ जमीन पर कब्जा कर लिया था।, झील को दर्शाता एक चित्रण (Flickr)
4. नदी किनारे लोगों को दर्शाता एक चित्रण (Piqsels)
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